Revised Common Lectionary (Complementary)
आसाप का एक गीत।
1 मेरे भक्तों, तुम मेरे उपदेशों को सुनो।
उन बातों पर कान दो जिन्हें मैं बताना हूँ।
2 मैं तुम्हें यह कथा सुनाऊँगा।
मैं तुम्हें पुरानी कथा सुनाऊँगा।
3 हमने यह कहानी सुनी है, और इसे भली भाँति जानते हैं।
यह कहानी हमारे पूर्वजों ने कही।
4 इस कहानी को हम नहीं भूलेंगे।
हमारे लोग इस कथा को अगली पीढ़ी को सुनाते रहेंगे।
हम सभी यहोवा के गुण गायेंगे।
हम उन के अद्भुत कर्मो का जिनको उसने किया है बखान करेंगे।
5 यहोवा ने याकूब से वाचा किया।
परमेश्वर ने इस्राएल को व्यवस्था का विधान दिया,
और परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को आदेश दिया।
उसने हमारे पूर्वजों को व्यवस्था का विधान अपने संतानों को सिखाने को कहा।
6 इस तरह लोग व्यवस्था के विधान को जानेंगे। यहाँ तक कि अन्तिम पीढ़ी तक इसे जानेगी।
नयी पीढ़ी जन्म लेगी और पल भर में बढ़ कर बड़े होंगे, और फिर वे इस कहानी को अपनी संतानों को सुनायेंगे।
7 अत: वे सभी लोग यहोवा पर भरोसा करेंगे।
वे उन शाक्तिपूर्ण कामों को नहीं भूलेंगे जिनको परमेश्वर ने किया था।
वे ध्यान से रखवाली करेंगे और परमेश्वर के आदेशों का अनुसरण करेंगे।
8 अत: लोग अपनी संतानों को परमेश्वर के आदेशों को सिखायेंगे,
तो फिर वे संतानें उनके पूर्वजों जैसे नहीं होंगे।
उनके पूर्वजों ने परमेश्वर से अपना मुख मोड़ा और उसका अनुसरण करने से इन्कार किया, वे लोग हठी थे।
वे परमेश्वर की आत्मा के भक्त नहीं थे।
17 किन्तु लोग परमेश्वर के विरोध में पाप करते रहे।
वे मरूस्थल तक में, परमपरमेश्वर के विरूद्ध हो गए।
18 फिर उन लोगों ने परमेश्वर को परखने का निश्चय किया।
उन्होंने बस अपनी भूख मिटाने के लिये परमेश्वर से भोजन माँगा।
19 परमेश्वर के विरूद्ध वे बतियाने लगे, वे कहने लगे,
“कया मरुभूमि में परमेश्वर हमें खाने को दे सकता है
20 परमेश्वर ने चट्टान पर चोट की और जल का एक रेला बाहर फूट पड़ा।
निश्चय ही वह हमको कुछ रोटी और माँस दे सकता है।”
21 यहोवा ने सुन लिया जो लोगों ने कहा था।
याकूब से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
इस्राएल से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
22 क्यों? क्योंकि लोगों ने उस पर भरोसा नहीं रखा था,
उन्हें भरोसा नहीं था, कि परमेश्वर उन्हें बचा सकता है।
23-24 किन्तु तब भी परमेश्वर ने उन पर बादल को उघाड़ दिया,
उऩके खाने के लिय़े नीचे मन्ना बरसा दिया।
यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे अम्बर के द्वार खुल जाये
और आकाश के कोठे से बाहर अन्न उँडेला हो।
25 लोगों ने वह स्वर्गदूत का भोजन खाया।
उन लोगों को तृप्त करने के लिये परमेश्वर ने भरपूर भोजन भेजा।
26 फिर परमेश्वर ने पूर्व से तीव्र पवन चलाई
और उन पर बटेरे वर्षा जैसे गिरने लगी।
27 तिमान की दिशा से परमेश्वर की महाशक्ति ने एक आँधी उठायी और नीला आकाश काला हो गया
क्योंकि वहाँ अनगिनत पक्षी छाए थे।
28 वे पक्षी ठीक डेरे के बीच में गिरे थे।
वे पक्षी उन लोगों के डेरों के चारों तरफ गिरे थे।
29 उनके पास खाने को भरपूर हो गया,
किन्तु उनकी भूख ने उनसे पाप करवाये।
2 तब इस्राएल के लोगों ने फिर शिकायत करनी शुरु की। उन्होंने मूसा और हारुन से मरुभूमि में शिकायत की। 3 लोगों ने मूसा और हारुन से कहा, “यह हमारे लिए अच्छा होता कि यहोवा ने हम लोगों को मिस्र में मार डाला होता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने को बहुत था। हम लोगों के पास वह सारा भोजन था जिसकी हमें आवश्यकता थी। किन्तु अब तुम हमें मरुभूमि में ले आये हो। हम सभी यहाँ भूख से मर जाएंगे।”
4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं आकाश से भोजन गिराऊँगा। वह भोजन तुम लोगों के खाने के लिए होगा। हर एक दिन लोग बाहर जायें और उस दिन खाने की जरूरत के लिए भोजन इकट्ठा करें। मैं यह इसलिए करूँगा कि मैं देखूँ कि क्या लोग वही करेंगे जो मैं करने को कहूँगा। 5 हर एक दिन लोग प्रत्येक दिन के लिए पर्याप्त भोजन इकट्ठा करें। किन्तु शुक्रवार को जब भोजन तैयार करने लगें तो देखें कि वे दो दिन के लिए पर्याप्त भोजन रखते हैं।”[a]
6 इसलिए मूसा और हारून ने इस्राएल के लोगों से कहा, “आज की रात तुम लोग यहोवा की शक्ति देखोगे। तुम लोग जानोगे कि एक मात्र वह ही ऐसा है जिसने तुम लोगों को मिस्र देश से बचा कर बाहर निकाला। 7 कल सवेरे तुम लोग यहोवा की महिमा देखोगे। तुम लोगों ने यहोवा से शिकायत की। उसने तुम लोगों की सुनी। तुम लोग हम लोगों से शिकायत पर शिकायत कर रहे हो। संभव है कि हम लोग अब कुछ आराम कर सकें।”
8 और मूसा ने कहा, “तुम लोगों ने शिकायत की और यहोवा ने तुम लोगों की शिकायतें सुन ली है। इसलिए रात को यहोवा तुम लोगों को माँस देगा और हर सवेरे तुम लोग वह सारा भोजन पाओगे, जिसकी तुम को ज़रुरत है। तुम लोग मुझसे और हारून से शिकायत करते रहे हो। याद रखो तुम लोग मेरे और हारून के विरुद्ध शिकायत नहीं कर रहे हो। तुम लोग यहोवा के विरुद्ध शिकायत कर रहे हो।”
9 तब मूसा ने हारून से कहा, “इस्राएल के लोगों को सम्बोधित करो। उनसे कहो, ‘यहोवा के सामने इकट्ठे हों क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुनी हैं।’”
10 हारून ने इस्राएल के सभी लोगों को सम्बोधित किया। वे सभी एक स्थान पर इकट्ठे थे। जब हारून बातें कर रहा था तभी लोग मुड़े और उन्होंने मरूभूमि की ओर देखा और उन्होंने यहोवा की महिमा को बादल में प्रकट होते देखा।
11 यहोवा ने मूसा से कहा, 12 “मैंने इस्राएल के लोगों की शिकायत सुनी है। इसलिए उनसे मेरी बातें कहो। मैं कहता हूँ, ‘आज साँझ को तुम माँस खाओगे और कल सवेरे तुम लोग भरपेट रोटियाँ खाओगे, तब तुम लोग जानोगे कि तुम लोग अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास कर सकते हो।’”
13 उस रात बटेरें (पक्षियाँ) डेरे के चारों ओर आईं। लोगों ने इन बटेरों को माँस के लिए पकड़ा। सवेरे डेरे के पास ओस पड़ी होती थी। 14 सूरज के निकलने पर ओस पिघल जाती थी किन्तु ओस के पिघलने पर पाले की तह की तरह ज़मीन पर कुछ रह जाता था। 15 इस्राएल के लोगों ने इसे देखा और परस्पर कहा, “वह क्या है?”[b] उन्होंने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि वे नहीं जानते थे कि वह क्या चीज है। इसलिए मूसा ने उनसे कहा, “यह भोजन है जिसे यहोवा तुम्हें खाने को दे रहा है।
31 इस्राएली लोगों ने इस विशेष भोजन को “मन्ना” कहना आरम्भ किया। मन्ना छोटे सफ़ेद धनिया के बीजों के समान था और इसका स्वाद शहद के साथ बने पापड़ की तरह था। 32 तब मूसा ने कहा, “यहोवा ने आदेश दिया कि, ‘इस भोजन का आठ प्याले भर अपने वंशजों के लिए बचाना। तब वे उस भोजन को देख सकेंगे जिसे मैंने तुम लोगों को मरुभूमि में तब दिया था जब मैंने तुम लोगों को मिस्र से निकाला था।’”
33 इसलिए मूसा ने हारून से कहा, “एक घड़ा लो और इसे आठ प्याले मन्ना से भरो और इस मन्ना को यहोवा के सामने रखने के लिए और अपने वंशजों के लिए बचाओ।” 34 (इसलिए हारून ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। हारून ने आगे चलकर मन्ना के घड़े को साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने रखा।) 35 लोगों ने चालीस वर्ष तक मन्ना खाया। वे मन्ना तब तक खाते रहे जब तक उस प्रदेश में नहीं आ गए जहाँ उन्हें बसना था। वे उसे तब तक खाते रहे जब तक वे कनान के निकट नहीं आ गए।
चार हज़ार से अधिक को भोजन
(मरकुस 8:1-10)
32 तब यीशु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया और कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आ रहा है क्योंकि ये लोग तीन दिन से लगातार मेरे साथ हैं और इनके पास कुछ खाने को भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा ही नहीं भेजना चाहता क्योंकि हो सकता है कि कहीं वे रास्ते में ही मूर्छित होकर न गिर पड़ें।”
33 तब उसके शिष्यों ने कहा, “इतनी बड़ी भीड़ के लिए ऐसी बियाबान जगह में इतना खाना हमें कहाँ से मिलेगा?”
34 तब यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?”
उन्होंने कहा, “सात रोटियाँ और कुछ छोटी मछलियाँ।”
35 यीशु ने भीड़ से धरती पर बैठने को कहा और उन सात रोटियों और मछलियों को लेकर उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया 36 और रोटियाँ तोड़ीं और अपने शिष्यों को देने लगा। फिर उसके शिष्यों ने उन्हें आगे लोगों में बाँट दिया। 37 लोग तब तक खाते रहे जब तक थक न गये। फिर उसके शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरियाँ भरीं। 38 औरतों और बच्चों को छोड़कर वहाँ चार हज़ार पुरुषों ने भोजन किया। 39 भीड़ को विदा करके यीशु नाव में आ गया और मगदन को चला गया।
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