Revised Common Lectionary (Complementary)
7 परमेश्वर कहता है, “सुनों मेरे भक्तों!
इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हारे विरूद्ध साक्षी दूँगा।
मैं परमेश्वर हूँ, तुम्हारा परमेश्वर।
8 मुझको तुम्हारी बलियों से शिकायत नहीं।
इस्राएल के लोगों, तुम सदा होमबलियाँ मुझे चढ़ाते रहो। तुम मुझे हर दिन अर्पित करो।
9 मैं तेरे घर से कोई बैल नहीं लूँगा।
मैं तेरे पशु गृहों से बकरें नहीं लूँगा।
10 मुझे तुम्हारे उन पशुओं की आवश्यकता नहीं। मैं ही तो वन के सभी पशुओं का स्वामी हूँ।
हजारों पहाड़ों पर जो पशु विचरते हैं, उन सब का मैं स्वामी हूँ।
11 जिन पक्षियों का बसेरा उच्चतम पहाड़ पर है, उन सब को मैं जानता हूँ।
अचलों पर जो भी सचल है वे सब मेरे ही हैं।
12 मैं भूखा नहीं हूँ! यदि मैं भूखा होता, तो भी तुमसे मुझे भोजन नहीं माँगना पड़ता।
मैं जगत का स्वामी हूँ और उसका भी हर वस्तु जो इस जगत में है।
13 मैं बैलों का माँस खाया नहीं करता हूँ।
बकरों का रक्त नहीं पीता।”
14 सचमुच जिस बलि की परमेश्वर को अपेक्षा है, वह तुम्हारी स्तुति है। तुम्हारी मनौतियाँ उसकी सेवा की हैं।
सो परमेश्वर को निज धन्यवाद की भेटें चढ़ाओ। उस सर्वोच्च से जो मनौतियाँ की हैं उसे पूरा करो।
15 “इस्राएल के लोगों, जब तुम पर विपदा पड़े, मेरी प्रार्थना करो,
मैं तुम्हें सहारा दूँगा। तब तुम मेरा मान कर सकोगे।”
7 यरूशलेम बीती बात सोचा करती है,
उन दिनों की बातें जब उस पर प्रहार हुआ था और वह बेघर—बार हुई थी।
उसे बीते दिनों के सुख याद आते थे।
वे पुराने दिनों में जो अच्छी वस्तुएं उसके पास थीं, उसे याद आती थीं।
वह ऐसे उस समय को याद करती है
जब उसके लोग शत्रुओं के द्वारा बंदी किये गये।
वह ऐसे उस समय को याद करती है
जब उसे सहारा देने को कोई भी व्यक्ति नहीं था।
जब शत्रु उसे देखते थे, वे उसकी हंसी उड़ाते थे।
वे उसकी हंसी उड़ाते थे क्योंकि वह उजड़ चुकी थी।
8 यरूशलेम ने गहन पाप किये थे।
उसने पाप किये थे कि जिससे वह ऐसी वस्तु हो गई
कि जिस पर लोग अपना सिर नचाते थे।
वे सभी लोग उसको जो मान देते थे,
अब उससे घृणा करने लगे।
वे उससे घृणा करने लगे क्योंकि उन्होंने उसे नंगा देख लिया है।
यरूशलेम दहाड़े मारती है
और वह मुख फेर लेती है।
9 यरूशलेम के वस्त्र गंदे थे।
उसने नहीं सोचा था कि उसके साथ क्या कुछ घटेगा।
उसका पतन विचित्र था, उसके पास कोई नहीं था जो उसको शांति देता।
वह कहा करती है, “हे यहोवा, देख मैं कितनी दु:खी हूँ!
देख मेरा शत्रु कैसा सोच रहा है कि वह कितना महान है!”
10 शत्रु ने हाथ बढ़ाया और उसकी सब उत्तर वस्तु लूट लीं।
दर असल उसने वे पराये देश उसके पवित्र स्थान में भीतर प्रवेश करते हुये देखे।
हे यहोवा, यह आज्ञा तूने ही दी थी कि वे लोग तेरी सभा में प्रवेश नहीं करेंगे!
11 यरूशलेम के सभी लोग कराह रहे हैं, उसके सभी लोग खाने की खोज में है।
वे खाना जुटाने को अपने मूल्यवान वस्तुयें बेच रहे हैं।
वे ऐसा करते हैं ताकि उनका जीवन बना रहे।
यरूशलेम कहता है, “देख यहोवा, तू मुझको देख!
देख, लोग मुझको कैसे घृणा करते है।
17 ये झूठे उपदेशक सूखे जल स्रोत हैं तथा ऐसे जल रहित बादल हैं जिन्हें तूफान उड़ा ले जाता है। इनके लिए सघन अन्धकारपूर्ण स्थान निश्चित किया गया है। 18 ये उन्हें जो भटके हुओं से बच निकलने का अभी आरम्भ ही कर रहे हैं, अपनी व्यर्थ की अहंकारपूर्ण बातों से उनकी भौतिक वासनापूर्ण इच्छाओं को जगा कर सत् पथ से डिगा लेते हैं। 19 ये झूठे उपदेशक उन्हें छुटकारे का वचन देते हैं। क्योंकि कोई व्यक्ति जो उसे जीत लेता है, वह उसी का दास हो जाता है।
20 सो यदि ये हमारे प्रभु एवं उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह को जान लेने और संसार के खोट से बच निकलने के बाद भी फिर से उन ही में फंस कर हार गये हैं, तो उनके लिए उनकी यह बाद की स्थिति, उनकी पहली स्थिति से कहीं बुरी है 21 क्योंकि उनके लिए यही अच्छा था कि वे इस धार्मिकता के मार्ग को जान ही नहीं पाते बजाय इसके कि जो पवित्र आज्ञा उन्हें दी गयी थी, उसे जानकर उससे मुँह फेर लेते। 22 उनके साथ तो वैसे ही घटी जैसे कि उन सच्ची कहावतों में कहा गया है: “कुत्ता अपनी उल्टी के पास ही लौटता है।”(A) और “एक नहलायी हुई सुअरनी कीचड़ में लोट लगाने के लिए फिर लौट जाती है।”
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