Revised Common Lectionary (Complementary)
आरोहण गीत।
1 यहोवा के सभी भक्त आनन्दित रहते हैं।
वे लोग परमेश्वर जैसा चाहता, वैसा गाते हैं।
2 तूने जिनके लिये काम किया है, उन वस्तुओं का तू आनन्द लेगा।
उन ऐसी वस्तुओं को कोई भी व्यक्ति तुझसे नहीं छिनेगा। तू प्रसन्न रहेगा और तेरे साथ भली बातें घटेंगी।
3 घर पर तेरी घरवाली अंगूर की बेल सी फलवती होगी।
मेज के चारों तरफ तेरी संतानें ऐसी होंगी, जैसे जैतून के वे पेड़ जिन्हें तूने रोपा है।
4 इस प्रकार यहोवा अपने अनुयायिओं को
सचमुच आशीष देगा।
5 यहोवा सिय्योन से तुझ को आशीर्वाद दे यह मेरी कामना है।
जीवन भर यरूशलेम में तुझको वरदानों का आनन्द मिले।
6 तू अपने नाती पोतों को देखने के लिये जीता रहे यह मेरी कामना है।
इस्राएल में शांति रहे।
22 अत: इस्राएल के परिवार से कहो कि स्वामी यहोवा यह कहता है, ‘इस्राएल के परिवार, तुम जहाँ गए वहाँ तुमने मेरे पवित्र नाम को बदनाम किया। इसे रोकने के लिये मैं कुछ करने जा रहा हूँ। मैं यह तुम्हारे लिये नहीं करूँगा। इस्राएल, मैं इसे अपने पवित्र नाम के लिये करूँगा। 23 मैं उन राष्ट्रों को दिखाऊँगा कि मेरा महान नाम सच में पवित्र है। तब वे राष्ट्र जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ।’” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था।
24 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें उन राष्ट्रों से बाहर निकालूँगा, एक साथ इकट्ठा करूँगा और तुम्हें तुम्हारे अपने देश में लाऊँगा। 25 तब मैं तुम्हारे ऊपर शुद्ध जल छिड़कूँगा और तुम्हें शुद्ध करुँगा। मैं तुम्हारी सारी गन्दगियों को धो डालूँगा और उन घृणित देवमूर्तियों से उत्पन्न गन्दगी को धो डालूँगा।”
26 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम में नयी आत्मा भी भरूँगा और तुम्हारे सोचने के ढंग को बदलूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से कठोर हृदय को बाहर करुंगा और तुम्हें एक कोमल मानवी हृदय दूँगा। 27 मैं तुम्हारे भीतर अपनी आत्मा प्रतिष्ठित करूँगा। मैं तुम्हें बदलूँगा जिससे तुम मेरे नियमों का पालन करोगे। तुम सावधानी से मेरे आदेशों का पालन करोगे। 28 तब तुम उस देश में रहोगे जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। तुम मेरे लोग रहोगे और मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा।”
29 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें बचाऊँगा भी और तुम्हें अशुद्ध होने से रोकूँगा। मैं अन्न को उगने के लिये आदेश दूँगा। मैं तुम्हारे विरुद्ध भूखमरी का समय नहीं लाऊँगा। 30 मैं तुम्हारे वृक्षों से फलों की बड़ी फसलें और खेतों से अन्न की फसलें दूँगा। तब तुम अन्य देशों में भूखे रहने की लज्जा फिर कभी अनुभव नहीं करोगे। 31 तुम उन बुरे कामों को याद करोगे जो तुमने किये। तुम याद करोगे कि वे काम अच्छे नहीं थे। तब तुम अपने पापों और जो भयंकर काम किये उनके लिये तुम स्वयं अपने से घृणा करोगे।”
32 मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “मैं चाहता हूँ कि तुम यह याद रखो: मैं तुम्हारी भलाई के लिये ये काम नहीं कर रहा हूँ! मैं उन्हें अपने अच्छे नाम के लिये कर रहा हूँ। इस्राएल के परिवार, तुम्हें अपने रहने के ढंग पर लज्जित और व्याकुल होना चाहिये!”
दुराचारी स्त्री को क्षमा
53 फिर वे सब वहाँ से अपने-अपने घर चले गये।
8 और यीशु जैतून पर्वत पर चला गया। 2 अलख सवेरे वह फिर मन्दिर में गया। सभी लोग उसके पास आये। यीशु बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।
3 तभी यहूदी धर्मशास्त्री और फ़रीसी लोग व्यभिचार के अपराध में एक स्त्री को वहाँ पकड़ लाये। और उसे लोगों के सामने खड़ा कर दिया। 4 और यीशु से बोले, “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है। 5 मूसा का विधान हमें आज्ञा देता है कि ऐसी स्त्री को पत्थर मारना चाहियें। अब बता तेरा क्या कहना है?”
6 यीशु को जाँचने के लिये यह पूछ रहे थे ताकि उन्हें कोई ऐसा बहाना मिल जाये जिससे उसके विरुद्ध कोई अभियोग लगाया जा सके। किन्तु यीशु नीचे झुका और अपनी उँगली से धरती पर लिखने लगा। 7 क्योंकि वे पूछते ही जा रहे थे इसलिये यीशु सीधा तन कर खड़ा हो गया और उनसे बोला, “तुम में से जो पापी नहीं है वही सबसे पहले इस औरत को पत्थर मारे।” 8 और वह फिर झुककर धरती पर लिखने लगा।
9 जब लोगों ने यह सुना तो सबसे पहले बूढ़े लोग और फिर और भी एक-एक करके वहाँ से खिसकने लगे और इस तरह वहाँ अकेला यीशु ही रह गया। यीशु के सामने वह स्त्री अब भी खड़ी थी। 10 यीशु खड़ा हुआ और उस स्त्री से बोला, “हे स्त्री, वे सब कहाँ गये? क्या तुम्हें किसी ने दोषी नहीं ठहराया?”
11 स्त्री बोली, “हे, महोदय! किसी ने नहीं।”
यीशु ने कहा, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब फिर कभी पाप मत करना।”[a]
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