Revised Common Lectionary (Complementary)
17 किन्तु लोग परमेश्वर के विरोध में पाप करते रहे।
वे मरूस्थल तक में, परमपरमेश्वर के विरूद्ध हो गए।
18 फिर उन लोगों ने परमेश्वर को परखने का निश्चय किया।
उन्होंने बस अपनी भूख मिटाने के लिये परमेश्वर से भोजन माँगा।
19 परमेश्वर के विरूद्ध वे बतियाने लगे, वे कहने लगे,
“कया मरुभूमि में परमेश्वर हमें खाने को दे सकता है
20 परमेश्वर ने चट्टान पर चोट की और जल का एक रेला बाहर फूट पड़ा।
निश्चय ही वह हमको कुछ रोटी और माँस दे सकता है।”
52 फिर उसने इस्राएल की चरवाहे के समान अगुवाई की।
परमेश्वर ने अपने लोगों को ऐसे राह दिखाई जैसे जंगल में भेड़ों कि अगुवाई की है।
53 वह अपनेनिज लोगों को सुरक्षा के साथ ले चला।
परमेश्वर के भक्तों को किसी से डर नहीं था।
परमेश्वर ने उनके शत्रुओं को लाल सागर में हुबाया।
54 परमेश्वर अपने निज भक्तों को अपनी पवित्र धरती पर ले आया।
उसने उन्हें उस पर्वत पर लाया जिसे उसने अपनी ही शक्ति से पाया।
55 परमेश्वर ने दूसरी जातियों को वह भूमि छोड़ने को विवश किया।
परमेश्वर ने प्रत्येक घराने को उनका भाग उस भूमि में दिया।
इस तरह इस्राएल के घराने अपने ही घरों में बस गये।
मिलापवाला तम्बू
7 मूसा मिलापवाले तम्बू को डेरे से कुछ दूर ले गया। वहाँ उसने उसे लगाया और उसका नाम “मिलापवाला तम्बू” रखा। कोई व्यक्ति जो यहोवा से कुछ जानना चाहता था उसे डेरे के बाहर मिलापवाले तम्बू तक जाना होता था। 8 जब कभी मूसा बाहर तम्बू में जाता तो लोग उसको देखते रहते। लोग अपने तम्बूओं के द्वार पर खड़े रहते और मूसा को तब तक देखते रहते जब तक वह मिलापवाले तम्बू में चला जाता। 9 जब मूसा तम्बू में जाता तो एक लम्बा बादल का स्तम्भ सदा नीचे उतरता था। वह बादल तम्बू के द्वार पर ठहरता। इस प्रकार यहोवा मूसा से बात करता था। 10 जब लोग तम्बू के द्वार पर बादल को देखते तो सामने झुकते और उपासना करते थे। हर एक व्यक्ति अपने तम्बू के द्वार पर उपासना करता था।
11 यहोवा मूसा से आमने—सामने बात करता था। यहोवा मूसा से इस प्रकार बात करता था जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने मित्र से बात करता है। यहोवा से बात करने के बाद मूसा हमेशा अपने डेरे मे वापस लौटता था। नून का पुत्र नवयुवक यहोशू मूसा का सहायक था। यहोशू सदा तम्बू में रहता था जब मूसा उसे छोड़ता था।
मूसा को यहोवा की महिमा का दर्शन
12 मूसा ने यहोवा से कहा, “तूने मुझे इन लोगों को ले चलने को कहा। किन्तु तूने यह नहीं बताया कि मेरे साथ किसे भेजेगा। तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ और मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।’ 13 यदि तुझे मैंने सचमुच प्रसन्न किया है तो अपने निर्णय मुझे बता। तुझे मैं सचमुच जानना चाहता हूँ। तब मैं तुझे लगातार प्रसन्न रख सकता हूँ। याद रख कि ये सभी तेरे लोग हैं।”
14 यहोवा ने कहा, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।”[a]
15 तब मूसा ने उससे कहा, “यदि तू हम लोगों के साथ न चले तो तू इस स्थान से हम लोगों को दूर मत भेज। 16 हम यह भी कैसे जानेंगे कि तू मुझसे और इन लोगों से प्रसन्न है? यदि तू साथ चलेगा तो हम लोग निश्चयपूर्वक यह जानेंगे। यदि तू हम लोगों के साथ नहीं जाता तो मैं और ये लोग धरती के अन्य दूसरे लोगों से भिन्न नहीं होंगे।”
17 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं वह करूँगा जो तू कहता है। मैं यह करूँगा क्योंकि मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूँ।”
18 तब मूसा ने कहा, “अब कृपया मुझे अपनी महिमा दिखा।”
19 तब यहोवा ने उत्तर दिया, “मैं अपनी सम्पूर्ण भलाई को तुम तक जाने दूँगा। मैं यहोवा हूँ और मैं अपने नाम की घोषणा करूँगा जिससे तुम उसे सुन सको। मैं उन लोगों पर कृपा और प्रेम दिखाऊँगा जिन्हें मैं चुनूँगा। 20 किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख सकते। कोई भी व्यक्ति मुझे देख नहीं सकता और यदि देख ले तो जीवित नहीं रह सकता है।
21 “मेरे समीप के स्थान पर एक चट्टान है। तुम उस चट्टान पर खड़े हो सकते हो। 22 मेरी महिमा उस स्थान से होकर गुज़रेगी। उस चट्टान की बड़ी दरार में मैं तुम को रखूँगा और गुजरते समय मैं तुम्हें अपने हाथ से ढकूँगा। 23 तब मैं अपना हाथ हटा लूँगा और तुम मेरी पीठ मात्र देखोगे। किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख पाओगे।”
30 “चालीस वर्ष बीत जाने के बाद सिनाई पर्वत के पास मरुभूमि में एक जलती झाड़ी की लपटों के बीच उसके सामने एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ। 31 मूसा ने जब यह देखा तो इस दृश्य पर वह आश्चर्य चकित हो उठा। जब और अधिक निकटता से देखने के लिये वह उसके पास गया तो उसे प्रभु की वाणी सुनाई दी: 32 ‘मैं तेरे पूर्वजों का परमेश्वर हूँ, इब्राहीम का, इसहाक का और याकूब का परमेश्वर हूँ।’(A) भय से काँपते हुए मूसा कुछ देखने का साहस नहीं कर पा रहा था।
33 “तभी प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पैरों की चप्पलें उतार क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। 34 मैंने मिस्र में अपने लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखा है, परखा है। मैंने उन्हें विलाप करते हुए सुना है। उन्हें मुक्त कराने के लिये मैं नीचे उतरा हूँ। आ, अब मैं तुझे मिस्र भेजूँगा।’(B)
© 1995, 2010 Bible League International