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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 113

यहोवा की प्रशंसा करो!
हे यहोवा के सेवकों यहोवा की स्तुति करो, उसका गुणगान करो!
    यहोवा के नाम की प्रशंसा करो!
यहोवा का नाम आज और सदा सदा के लिये और अधिक धन्य हो।
    यह मेरी कामना है।
मेरी यह कामना है, यहोवा के नाम का गुण पूरब से जहाँ सूरज उगता है,
    पश्चिम तक उस स्थान में जहाँ सूरज डूबता है गाया जाये।
यहोवा सभी राष्ट्रों से महान है।
    उसकी महिमा आकाशों तक उठती है।
हमारे परमेश्वर के समान कोई भी व्यक्ति नहीं है।
    परमेश्वर ऊँचे अम्बर में विराजता है।
ताकि परमेश्वर अम्बर
    और नीचे धरती को देख पाये।
परमेश्वर दीनों को धूल से उठाता है।
    परमेश्वर भिखारियों को कूड़े के घूरे से उठाता है।
परमेश्वर उन्हें महत्वपूर्ण बनाता है।
    परमेश्वर उन लोगों को महत्वपूर्ण मुखिया बनाता है।
चाहै कोई निपूती बाँझ स्त्री हो, परमेश्वर उसे बच्चे दे देगा
    और उसको प्रसन्न करेगा।

यहोवा का गुणगान करो!

उत्पत्ति 30:1-24

30 राहेल ने देखा कि वह याकूब के लिए किसी बच्चे को जन्म नहीं दे रही है। राहेल अपनी बहन लिआ से ईर्ष्या करने लगी। इसलिए राहेल ने याकूब से कहा, “मुझे बच्चा दो, वरना मैं मर जाऊँगी।”

याकूब राहेल पर क्रोधित हुआ। उसने कहा, “मैं परमेश्वर नहीं हूँ। वह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें बच्चों को जन्म देने से रोका है।”

तब राहेल ने कहा, “तुम मेरी दासी बिल्हा को ले सकते हो। उसके साथ सोओ और वह मेरे लिए बच्चे को जन्म देगी।[a] तब मैं उसके द्वारा माँ बनूँगी।”

इस प्रकार राहेल ने अपने पति याकूब के लिए बिल्हा को दिया। याकूब ने बिल्हा के साथ शारीरिक सम्बन्ध किया। बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब के लिए एक पुत्र को जन्म दिया।

राहेल ने कहा, “परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली है। उसने मुझे एक पुत्र देने का निश्चय किया।” इसलिए राहेल ने इस पुत्र का नाम दान रखा।

बिल्हा दूसरी बार गर्भवती हुई और उसने याकूब को दूसरा पुत्र दिया। राहेल ने कहा, “अपनी बहन से मुकाबले के लिए मैंने कठिन लड़ाई लड़ी है और मैंने विजय पा ली है।” इसलिए उसने इस पुत्र क नाम नप्ताली रखा।

लिआ ने सोचा कि वह और अधिक बच्चों को जन्म नहीं दे सकती। इसलिए उसने अपनी दासी जिल्पा को याकूब के लिए दिया। 10 तब जिल्पा ने एक पुत्र को जन्म दिया। 11 लिआ ने कहा, “मैं भाग्यवती हूँ। अब स्त्रियाँ मुझे भाग्यवती कहेंगी।” इसलिए उसने पुत्र का नाम गाद रखा। 12 जिल्पा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। 13 लिआ ने कहा, “मैं बहुत प्रसन्न हूँ।” इसलिए उसने लड़के का नाम आशेर रखा।

14 गेहूँ कटने के समय रूबेन खेतों में गया और कुछ विशेष फूलों को देखा। रूबेन इन फूलों को अपनी माँ लिआ के पास लाया। लेकिन राहेल ने लिआ से कहा, “कृपा कर अपने पुत्र के फूलों में से कुछ मुझे दे दो।”

15 लिआ ने उत्तर दिया, “तुमने तो मेरे पति को पहले ही ले लिया है। अब तुम मेरे पुत्र के फूलों को भी ले लेना चाहती हो।”

लेकिन राहेल ने उत्तर दिया, “यदि तुम अपने पुत्र के फूल मुझे दोगी तो तुम आज रात याकूब के साथ सो सकती हो।”

16 उस रात याकूब खेतों से लौटा। लिआ ने उसे देखा और उससे मिलने गई। उसने कहा, “आज रात तुम मेरे साथ सोओगे। मैंने अपने पुत्र के फूलों को तुम्हारी कीमत के रूप में दिया है।” इसलिए याकूब उस रात लिआ के साथ सोया।

17 तब परमेश्वर ने लिआ को फिर गर्भवती होने दिया। उसने पाँचवें पुत्र को जन्म दिया। 18 लिआ ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे इस बात का पुरस्कार दिया है कि मैंने अपनी दासी को अपने पति को दिया।” इसलिए लिआ ने अपने पुत्र का नाम इस्साकर रखा।

19 लिआ फिर गर्भवती हुई और उसने छठे पुत्र को जन्म दिया। 20 लिआ ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे एक सुन्दर भेंट दी है। अब निश्चय ही याकूब मुझे अपनाएगा, क्योंकि मैंने उसे छः बच्चे दिए हैं।” इसलिए लिआ ने पुत्र का नाम जबूलून रखा।

21 इसके बाद लिआ ने एक पुत्री को जन्म दिया। उसने पुत्री का नाम दीना रखा।

22 तब परमेश्वर ने राहेल की प्रार्थना सुनी। परमेश्वर ने राहेल के लिए बच्चे उत्पन्न करना सभंव बनाया। 23-24 राहेल गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। राहेल ने कहा, “परमेश्वर ने मेरी लज्जा समाप्त कर दी है और मुझे एक पुत्र दिया है।” इसलिए राहेल ने अपने पुत्र का नाम यूसुफ रखा।

रोमियों 8:18-30

हमें महिमा मिलेगी

18 क्योंकि मेरे विचार में इस समय की हमारी यातनाएँ प्रकट होने वाली भावी महिमा के आगे कुछ भी नहीं है। 19 क्योंकि यह सृष्टि बड़ी आशा से उस समय का इंतज़ार कर रही है जब परमेश्वर की संतान को प्रकट किया जायेगा। 20 यह सृष्टि निःसार थी अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से जिसने इसे इस आशा के अधीन किया 21 कि यह भी कभी अपनी विनाशमानता से छुटकारा पाकर परमेश्वर की संतान की शानदार स्वतन्त्रता का आनन्द लेगी।

22 क्योंकि हम जानते हैं कि आज तक समूची सृष्टि पीड़ा में कराहती और तड़पती रही है। 23 न केवल यह सृष्टि बल्कि हम भी जिन्हें आत्मा का पहला फल मिला है, अपने भीतर कराहते रहे है। क्योंकि हमें उसके द्वारा पूरी तरह अपनाये जाने का इंतजार है कि हमारी देह मुक्ति हो जायेगी। 24 हमारा उद्धार हुआ है। इसी से हमारे मन में आशा है किन्तु जब हम जिसकी आशा करते है, उसे देख लेते हैं तो वह आशा नहीं रहती। जो दिख रहा है उसकी आशा कौन कर सकता है। 25 किन्तु यदि जिसे हम देख नहीं रहे उसकी आशा करते हैं तो धीरज और सहनशीलता के साथ उसकी बाट जोहते हैं।

26 ऐसे ही जैसे हम कराहते हैं, आत्मा हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करने आती है क्योंकि हम नहीं जानते कि हम किसके लिये प्रार्थना करें। किन्तु आत्मा स्वयं ऐसी आहें भर कर जिनकी शब्दों में अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती, हमारे लिए विनती करती है। 27 किन्तु वह अन्तर्यामी जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है। क्योंकि परमेश्वर की इच्छा से ही वह परमेश्वर के पवित्र जनों के लिए मध्यस्थता करती है।

28 और हम जानते हैं कि हर परिस्थिति में वह आत्मा परमेश्वर के भक्तों के साथ मिल कर वह काम करता है जो भलाई ही लाते हैं उन सब के लिए जिन्हें उसके प्रयोजन के अनुसार ही बुलाया गया है। 29 जिन्हें उसने पहले ही चुना उन्हें पहले ही अपने पुत्र के रूप में ठहराया ताकि बहुत से भाइयों में वह सबसे बड़ा भाई बन सके। 30 जिन्हें उसने पहले से निश्चित किया, उन्हें भी उसने बुलाया और जिन्हें उसने बुलाया, उन्हें उसने धर्मी ठहराया और जिन्हें उसने धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी प्रदान की।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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