Revised Common Lectionary (Complementary)
हेथ्
33 हे यहोवा, तू मुझे अपनी व्यवस्था सिखा
तब मैं उनका अनुसरण करूँगा।
34 मुझको सहारा दे कि मैं उनको समझूँ
और मैं तेरी शिक्षाओं का पालन करुँगा।
मैं पूरी तरह उनका पालन करूँगा।
35 हे यहोवा, तू मुझको अपने आदेशों की राह पर ले चल।
मुझे सचमुच तेरे आदेशों से प्रेम है। मेरा भला कर और मुझे जीने दे।
36 मेरी सहायता कर कि मैं तेरे वाचा का मनन करूँ,
बजाय उसके कि यह सोचता रहूँ कि कैसे धनवान बनूँ।
37 हे यहोवा, मुझे अद्भुत वस्तुओं पाने को
कठिन जतन मत करने दे।
38 हे यहोवा, मैं तेरा दास हूँ। सो उन बातों को कर जिनका वचन तूने दिये है।
तूने उन लोगों को जो पूर्वज हैं उन बातों को वचन दिया था।
39 हे यहोवा, जिस लाज से मुझको भय उसको तू दूर कर दे।
तेरे विवेकपूर्ण निर्णय अच्छे होते हैं।
40 देख मुझको तेरे आदेशोंसे प्रेम है।
मेरा भला कर और मुझे जीने दे।
यहेजकेल की पत्नी की मृत्यु
15 तब यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, 16 “मनुष्य के पुत्र, तुम अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते हो किन्तु मैं उसे तुमसे दूर कर रहा हूँ। तुम्हारी पत्नी अचानक मरेगी। किन्तु तुम्हें अपना शोक प्रकट नहीं करना चाहिए। तुम्हें जोर से रोना नहीं चाहिए। तुम रोओगे और तुम्हारे आँसू गिरेंगे। 17 किन्तु तुम्हें अपना शोक—रूदन बहुत मन्द रखना चाहिए। अपनी मृत पत्नी के लिये जोर से न रोओ। तुम्हें सामान्य नित्य के वस्त्र पहनने चाहिए। अपनी पगड़ी और अपने जूते पहनो। अपने शोक को प्रकट करने के लिये अपनी मूँछे न ढको और वह भोजन न करो जो प्राय: किसी के मरने पर लोग करते हैं।”
18 अगली सुबह मैंने लोगों को बताया कि परमेश्वर ने क्या कहा है। उसी शाम मेरी पत्नी मरी। अगली प्रात: मैंने वही किया जो परमेश्वर ने आदेश दिया था। 19 तब लोगों ने मुझसे कहा, “तुम यह काम क्यों कर रहे हो इसका मतलब क्या है”
20 मैंने उनसे कहा, “यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने मुझसे, 21 इस्राएल के परिवार से कहने को कहा। मेरे स्वामी यहोवा ने कहा, ‘ध्यान दो, मैंअपने पवित्र स्थान को नष्ट करूँगा। तुम लोगों को उस पर गर्व है और तुम लोग उसकी प्रशंसा के गीत गाते हो। तुम्हें उस स्थान को देखने का प्रेम है। तुम सचमुच उस स्थान से प्रेम करते हो। किन्तु मैं उस स्थान को नष्ट करूँगा और तुम्हारे पीछे छूटे हुए तुम्हारे बच्चे युद्ध में मारे जाएंगे। 22 किन्तु तुम वही करोगे जो मैंने अपनी मृत पत्नी के बारे में किया है। तुम अपना शोक प्रकट करने के लिये अपनी मूँछे नहीं ढकोगे। तुम वह भोजन नहीं करोगे जो लोग प्राय: किसी के मरने पर खाते हैं। 23 तुम अपनी पगड़ियाँ और अपने जूते पहनोगे। तुम अपना शोक नहीं प्रकट करोगे। तुम रोओगे नहीं। किन्तु तुम अपने पाप के कारण बरबाद होते रहोगे। तुम चुपचाप अपनी आहें एक दूसरे के सामने भरोगे। 24 अत: यहेजकेल तुम्हारे लिये एक उदाहरण है। तुम वही सब करोगे जो इसने किया। दण्ड का यह समय आयेगा और तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ।’”
25-26 “मनुष्य के पुत्र, मैं उस सुरक्षित स्थान यरूशलेम को लोगों से ले लूँगा। वह सुन्दर स्थान उनको आनन्दित करता है। उन्हें उस स्थान को देखने का प्रेम है। वे सचमुच उस स्थान से प्रेम करते हैं। किन्तु उस समय मैं नगर और उनके बच्चों को उन लोगों से ले लूँगा। बचने वालों में से एक यरूशलेम के बारे में बुरा सन्देश लेकर तुम्हारे पास आएगा। 27 उस समय तुम उस व्यक्ति से बातें कर सकोगे। तुम और अधिक चुप नहीं रह सकोगे। इस प्रकार तुम उनके लिये उदाहरण बनोगे। तब वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ।”
15 और उपदेशक तब तक उपदेश कैसे दे पायेंगे जब तक उन्हें भेजा न गया हो? जैसा कि शास्त्रों में कहा है: “सुसमाचार लाने वालों के चरण कितने सुन्दर हैं।”(A)
16 किन्तु सब ने सुसमाचार को स्वीकारा नहीं। यशायाह कहता है, “हे प्रभु, हमारे उपदेश को किसने स्वीकार किया?”(B) 17 सो उपदेश के सुनने से विश्वास उपजता है और उपदेश तब सुना जाता है जब कोई मसीह के विषय में उपदेश देता है।
18 किन्तु मैं कहता हूँ, “क्या उन्होंने हमारे उपदेश को नहीं सुना?” हाँ, निश्चय ही। शास्त्र कहता है:
“उनका स्वर समूची धरती पर फैल गया,
और उनके वचन जगत के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचा।”(C)
19 किन्तु मैं पूछता हूँ, “क्या इस्राएली नहीं समझते थे?” मूसा कहता है:
“पहले मैं तुम लोगों के मन में ऐसे लोगों के द्वारा जो वास्तव में कोई जाति नहीं हैं, डाह पैदा करूँगा।
मैं विश्वासहीन जाति के द्वारा तुम्हें क्रोध दिलाऊँगा।”(D)
20 फिर यशायाह साहस के साथ कहता है:
“मुझे उन लोगों ने पा लिया
जो मुझे नहीं खोज रहे थे।
मैं उनके लिए प्रकट हो गया जो मेरी खोज खबर में नहीं थे।”(E)
21 किन्तु परमेश्वर ने इस्राएलियों के बारे में कहा है,
“मैं सारे दिन आज्ञा न मानने वाले
और अपने विरोधियों के आगे हाथ फैलाए रहा।”(F)
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