Revised Common Lectionary (Complementary)
परमेश्वर ऐसा भोजन देता है जिससे सच्ची तृप्ति मिलती है
55 “हे प्यासे लोगों, जल के पास आओ।
यदि तुम्हारे पास धन हीं है तो इसकी चिन्ता मत करो।
आओ, खाना लो और खाओ।
आओ, भोजन लो।
तुम्हें इसकी कीमत देने की आवश्यकता नहीं है।
बिना किसी कीमत के दूध और दाखमधु लो।
2 व्यर्थ ही अपना धन ऐसी किसीवस्तु पर क्यों बर्बाद करते हो जो सच्चा भोजन नहीं है
ऐसी किसी वस्तु के लिये क्यों श्रम करते हो जो सचमुच में तुम्हें तृप्त नहीं करती
मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम सच्चा भोजन पाओगे।
तुम उस भोजन का आनन्द लोगे। जिससे तुम्हारा मन तृप्त हो जायेगा।
3 जो कुछ मैं कहता हूँ, ध्यान से सुनो।
मुझ पर ध्यान दो कि तुम्हारा प्राण सजीव हो।
तुम मेरे पास आओ और मैं तुम्हारे साथ एक वाचा करूँगा जो सदा—सदा के लिये बना रहेगा।
यह वाचा वैसी ही होगी जैसी वाचा दाऊद के संग मैंने की थी।
मैंने दाऊद को वचन दिया था कि मैं उस पर सदा करूणा करूँगा
और तुम उस वाचा के भरोसे रह सकते हो।
4 मैंने अपनी उस शक्ति का दाऊद को साक्षी बनाया था जो सभी राष्ट्रों के लिये थी।
मैंने दाऊद का बहुत देशों का प्रशासक और उनका सेनापति बनाया था।”
5 अनेक अज्ञात देशों में अनेक अनजानी जातियाँ हैं।
तू उन सभी जातियों को बुलायेगा, जो जातियाँ तुझ से अपरिचित हैं
किन्तु वे भागकर तेरे पास आयेंगी। ऐसा घटेगा क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा ऐसा ही चाहता है।
ऐसा घटेगा क्योंकि वह इस्राएल का पवित्र तुझको मान देता है।
8 यहोवा दयालु है और करुणापूर्ण है।
यहोवा तू धैर्य और प्रेम से पूर्ण है।
9 यहोवा सब के लिये भला है।
परमेश्वर जो कुछ भी करता है उसी में निजकरुणा प्रकट करता है।
14 यहोवा गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाता है।
यहोवा विपदा में पड़े लोगों को सहारा देता है।
15 हे यहोवा, सभी प्राणी तेरी ओर खाना पाने को देखते हैं।
तू उनको ठीक समय पर उनका भोजन दिया करता है।
16 हे यहोवा, तू निज मुट्ठी खोलता है,
और तू सभी प्राणियों को वह हर एक वस्तु जिसकी उन्हें आवश्यकता देता है।
17 यहोवा जो भी करता है, अच्छा ही करता है।
यहोवा जो भी करता, उसमें निज सच्चा प्रेम प्रकट करता है।
18 जो लोग यहोवा की उपासना करते हैं, यहोवा उनके निकट रहता है।
सचमुच जो उसकी उपासना करते है, यहोवा हर उस व्यक्ति के निकट रहता है।
19 यहोवा के भक्त जो उससे करवाना चाहते हैं, वह उन बातों को करता है।
यहोवा अपने भक्तों की सुनता है।
वह उनकी प्रार्थनाओ का उत्तर देता है और उनकी रक्षा करता है।
20 जिसका भी यहोवा से प्रेम है, यहोवा हर उस व्यक्ति को बचाता है,
किन्तु यहोवा दुष्ट को नष्ट करता है।
21 मैं यहोवा के गुण गाऊँगा!
मेरी यह इच्छा है कि हर कोई उसके पवित्र नाम के गुण सदा और सर्वदा गाये।
परमेश्वर और यहूदी लोग
9 मसीह में मैं सच कह रहा हूँ। मैं झूठ नहीं कहता और मेरी चेतना जो पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकाशित है, मेरे साथ मेरी साक्षी देती है, 2 कि मुझे गहरा दुःख है और मेरे मन में निरन्तर पीड़ा है। 3 काश मैं चाह सकता कि अपने भाई बहनों और दुनियावी सम्बन्धियों के लिए मैं मसीह का शाप अपने ऊपर ले लेता और उससे अलग हो जाता। 4 जो इस्राएली हैं और जिन्हें परमेश्वर की संपालित संतान होने का अधिकार है, जो परमेश्वर की महिमा का दर्शन कर चुके है, जो परमेश्वर के करार के भागीदार हैं। जिन्हें मूसा की व्यवस्था, सच्ची उपासना और वचन प्रदान किया गया है। 5 पुरखे उन्हीं से सम्बन्ध रखते हैं और मानव शरीर की दृष्टि से मसीह उन्हीं में पैदा हुआ जो सब का परमेश्वर है और सदा धन्य है! आमीन।
यीशु का पाँच हजा़र से अधिक को खाना खिलाना
(मरकुस 6:30-44; लूका 9:10-17; यूहन्ना 6:1-14)
13 जब यीशु ने इसकी चर्चा सुनी तो वह वहाँ से नाव में किसी एकान्त स्थान पर अकेला चला गया। किन्तु जब भीड़ को इसका पता चला तो वे अपने नगरों से पैदल ही उसके पीछे हो लिये। 14 यीशु जब नाव से बाहर निकल कर किनारे पर आया तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। उसे उन पर दया आयी और उसने उनके बीमारों को अच्छा किया।
15 जब शाम हुई तो उसके शिष्यों ने उसके पास आकर कहा, “यह सुनसान जगह है और बहुत देर भी हो चुकी है, सो भीड़ को विदा कर, ताकि वे गाँव में जाकर अपने लिये खाना मोल ले लें।”
16 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “इन्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम इन्हें कुछ खाने को दो।”
17 उन्होंने उससे कहा, “हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों को छोड़ कर और कुछ नहीं है।”
18 यीशु ने कहा, “उन्हें मेरे पास ले आओ।” 19 उसने भीड़ के लोगों से कहा कि वे घास पर बैठ जायें। फिर उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लेकर स्वर्ग की ओर देखा और भोजन के लिये परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर रोटी के टुकड़े तोड़े और उन्हें अपने शिष्यों को दे दिया। शिष्यों ने वे टुकड़े लोगों में बाँट दिये। 20 सभी ने छक कर खाया। इसके बाद बचे हुए टुकड़ों से उसके शिष्यों ने बारह टोकरियाँ भरीं। 21 स्त्रियों और बच्चों को छोड़ कर वहाँ खाने वाले कोई पाँच हज़ार पुरुष थे।
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