Revised Common Lectionary (Complementary)
शाईन्
161 शक्तिशाली नेता मुझ पर व्यर्थ ही वार करते हैं,
किन्तु मैं डरता हूँ और तेरे विधान का बस मैं आदर करता हूँ।
162 हे यहोवा, तेरे वचन मुझ को वैसे आनन्दित करते हैं,
जैसा वह व्यक्ति आनन्दित होता है, जिसे अभी—अभी कोई महाकोश मिल गया हो।
163 मुझे झूठ से बैर है! मैं उससे घृणा करता हूँ!
हे यहोवा, मैं तेरी शिक्षाओं से प्रेम करता हूँ।
164 मैं दिन में सात बार तेरे उत्तम विधान के कारण
तेरी स्तुति करता हूँ।
165 वे व्यक्ति सच्ची शांती पायेंगे, जिन्हें तेरी शिक्षाएँ भाती हैं।
उसको कुछ भी गिरा नहीं पायेगा।
166 हे यहोवा, मैं तेरी प्रतीक्षा में हूँ कि तू मेरा उद्धार करे।
मैंने तेरे आदेशों का पालन किया है।
167 मैं तेरी वाचा पर चलता रहा हूँ।
हे यहोवा, मुझको तेरे विधान से गहन प्रेम है।
168 मैंने तेरी वाचा का और तेरे आदेशों का पालन किया है।
हे यहोवा, तू सब कुछ जानता है जो मैंने किया है।
कुम्हार और मिट्टी
18 यह यहोवा का वह सन्देश है जो यिर्मयाह को मिला: 2 “यिर्मयाह, कुम्हार के घर जाओ। मैं अपना सन्देश तुम्हें कुम्हार के घर पर दूँगा।”
3 अत: मैं कुम्हार के घर गया। मैंने कुम्हार को चाक पर मिट्टी से बर्तन बनाते देखा। 4 वह एक बर्तन मिट्टी से बना रहा था। किन्तु बर्तन में कुछ दोष था। इसलिये कुम्हार ने उस मिट्टी का उपयोग फिर किया और उसने दूसरा बर्तन बनाया। उसने अपने हाथों का उपयोग बर्तन को वह रूप देने के लिये किया जो रूप वह देना चाहता था।
5 तब यहोवा से सन्देश मेरे पास आया, 6 “इस्राएल के परिवार, तुम जानते हो कि मैं (परमेश्वर) वैसा ही तुम्हारे साथ कर सकता हूँ। तुम कुम्हार के हाथ की मिट्टी के समान हो और मैं कुम्हार की तरह हूँ।” 7 “ऐसा समय आ सकता है, जब मैं एक राष्ट्र या राज्य के बारे में बाते करूँ। मैं यह कह सकता हूँ कि मैं उस राष्ट्र को उखाड़ फेंकूँगा या यह भी हो सकता है कि मैं यह कहूँ कि मैं उस राष्ट्र को उखाड़ गिराऊँगा और उस राष्ट्र या राज्य को नष्ट कर दूँगा। 8 किन्तु उस राष्ट्र के लोग अपने हृदय और जीवन को बदल सकते हैं। उस राष्ट्र के लोग बुरे काम करना छोड़ सकते हैं। तब मैं अपने इरादे को बदल दूँगा। मैं उस राष्ट्र पर विपत्ति ढाने की अपनी योजना का अनुसरण करना छोड़ सकता हूँ। 9 कभी ऐसा अन्य समय आ सकता है जब मैं किसी राष्ट्र के बारे में बातें करुँ। मैं यह कह सकता हूँ कि मैं उस राष्ट्र का निर्माण करुँगा और उसे स्थिर करुँगा। 10 किन्तु मैं यह देख सकता हूँ कि मेरी आज्ञा का पालन न करके वह राष्ट्र बुरा काम कर रहा है। तब मैं उस अच्छाई के बारे में फिर सोचूँगा जिसे देने की योजना मैंने उस राष्ट्र के लिये बना रखी है।
11 “अत: यिर्मयाह, यहूदा के लोगों और यरूशलेम में जो लोग रहते हैं उनसे कहो, ‘यहोवा जो कहता है वह यह है: अब मैं सीधे तुम लोगों के लिये विपत्ति का निर्माण कर रहा हूँ। मैं तुम लोगों के विरुद्ध योजना बना रहा हूँ। अत: उन बुरे कामों को करना बन्द करो जो तुम कर रहे हो। हर एक व्यक्ति को बदलना चाहिये और अच्छा काम करना आरम्भ करना चाहिये।’
अविश्वासियों को यीशु की चेतावनी
(लूका 10:13-15)
20 फिर यीशु ने उन नगरों को धिक्कारा जिनमें उसने बहुत से आश्चर्यकर्म किये थे। क्योंकि वहाँ के लोगों ने पाप करना नहीं छोड़ा और अपना मन नहीं फिराया था। 21 अरे अभागे खुराजीन, अरे अभागे बैतसैदा[a] तुम में जो आश्चर्यकर्म किये गये, यदि वे सूर और सैदा में किये जाते तो वहाँ के लोग बहुत पहले से ही टाट के शोक वस्त्र ओढ़ कर और अपने शरीर पर राख मल[b] कर खेद व्यक्त करते हुए मन फिरा चुके होते। 22 किन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ न्याय के दिन सूर और सैदा की स्थिति तुमसे अधिक सहने योग्य होगी।[c]
23 “और अरे कफरनहूम, क्या तू सोचता है कि तुझे स्वर्ग की महिमा तक ऊँचा उठाया जायेगा? तू तो अधोलोक में नरक को जायेगा। क्योंकि जो आश्चर्यकर्म तुझमें किये गये, यदि वे सदोम में किये जाते तो वह नगर आज तक टिका रहता। 24 पर मैं तुम्हें बताता हूँ कि न्याय के दिन तेरे लोगों की हालत से सदोम की हालत कहीं अच्छी होगी।”
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