Revised Common Lectionary (Complementary)
एज्रा वंश के एतान का एक भक्ति गीत।
1 मैं यहोवा, की करूणा के गीत सदा गाऊँगा।
मैं उसके भक्ति के गीत सदा अनन्त काल तक गाता रहूँगा।
2 हे यहोवा, मुझे सचमुच विश्वास है, तेरा प्रेम अमर है।
तेरी भक्ति फैले हुए अम्बर से भी विस्तृत है।
3 परमेश्वर ने कहा था, “मैंने अपने चुने हुए राजा के साथ एक वाचा कीया है।
अपने सेवक दाऊद को मैंने वचन दिया है।
4 ‘दाऊद तेरे वंश को मैं सतत् अमर बनाऊँगा।
मैं तेरे राज्य को सदा सर्वदा के लिये अटल बनाऊँगा।’”
15 हे परमेश्वर, तेरे भक्त सचमुच प्रसन्न है।
वे तेरी करूणा के प्रकाश में जीवित रहते हैं।
16 तेरा नाम उनको सदा प्रसन्न करता है।
वे तेरे खरेपन की प्रशंसा करते हैं।
17 तू उनकी अद्भुत शक्ति है।
उनको तुमसे बल मिलता है।
18 हे यहोवा, तू हमारा रक्षक है।
इस्राएल का वह पवित्र हमारा राजा है।
यिर्मयाह के उपदेश का सार
25 यह वह सन्देश है, जो यहूदा के सभी लोगों से सम्बन्धित, यिर्मयाह को मिला। यह सन्देश यहोयाकीम के यहूदा में राज्यकाल के चौथे वर्ष में आया। यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। राजा के रूप में उसके राज्यकाल का चौथा वर्ष वही था जो बाबुल में नबूकदनेस्सर का पहला वर्ष था। 2 यह वही सन्देश है जिसे यिर्मयाह नबी ने यहूदा के लोगों और यरूशलेम के लोगों को दिया।
3 मैंने इन गत तेईस वर्षों में यहोवा के सन्देशों को तुम्हें बार—बार दिया है। मैं यहूदा के राजा आमोन के पुत्र योशिय्याह के राज्यकाल के तेरहवें वर्ष से नबी हूँ। मैंने उस समय से आज तक यहोवा के यहाँ से सन्देशों को तुम्हें दिया है। किन्तु तुमने उसे अनसुना किया है। 4 यहोवा ने अपने सेवक नबियों को तुम्हारे पास बार—बार भेजा है। किन्तु तुमने उन्हें अनसुना किया है। तुमने उनकी ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया है।
5 उन नबियों ने कहा, “अपने जीवन को बदलो। उन बुरे कामों को करना छोड़ो। यदि तुम बदल जाओगे, तो तुम उस भूमि पर वापस लौट और रह सकोगे जिसे यहोवा ने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को बहुत पहले दी थी। उसने यह भूमि तुम्हें सदैव रहने को दी। 6 अन्य देवताओं का अनुसरण न करो। उनकी सेवा या उनकी पूजा न करो। उन मूर्तियों की पूजा न करो जिन्हें कुछ लोगों ने बनाया है। वह मुझे तुम पर केवल क्रोधित करता है। यह करना तुम्हें केवल चोट पहुँचाता है।”
7 “किन्तु तुमने मेरी अनसुनी की।” यह सन्देश यहोवा का है। “तुमने उन मूर्तियों की पूजा की जिन्हें कुछ लोगों ने बनाया और उसने मुझे क्रोधित किया और उसने तुम्हें केवल चोट पहुँचाई।”
2 सुनो! स्वयं मैं, पौलुस तुमसे कह रहा हूँ कि यदि ख़तना करा कर तुम फिर से व्यवस्था के विधान की ओर लौटते हो तो तुम्हारे लिये मसीह का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। 3 अपना ख़तना कराने देने वाले प्रत्येक व्यक्ति को, मैं एक बार फिर से जताये देता हूँ कि उसे समूचे व्यवस्था के विधान पर चलना अनिवार्य है। 4 तुममें से जितने भी लोग व्यवस्था के पालन के कारण धर्मी के रूप में स्वीकृत होना चाहते हैं, वे सभी मसीह से दूर हो गये हैं और परमेश्वर के अनुग्रह के क्षेत्र से बाहर हैं। 5 किन्तु हम विश्वास के द्वारा परमेश्वर के सामने धर्मी स्वीकार किये जाने की आशा रखते हैं। आत्मा की सहायता से हम इसकी बाट जोह रहे हैं। 6 क्योंकि मसीह यीशु में स्थिति के लिये न तो ख़तना कराने का कोई महत्त्व है और न ख़तना नहीं कराने का बल्कि उसमें तो प्रेम से पैदा होने वाले विश्वास का ही महत्त्व है।
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