Revised Common Lectionary (Complementary)
आरोहण गीत।
1 यहोवा के सभी भक्त आनन्दित रहते हैं।
वे लोग परमेश्वर जैसा चाहता, वैसा गाते हैं।
2 तूने जिनके लिये काम किया है, उन वस्तुओं का तू आनन्द लेगा।
उन ऐसी वस्तुओं को कोई भी व्यक्ति तुझसे नहीं छिनेगा। तू प्रसन्न रहेगा और तेरे साथ भली बातें घटेंगी।
3 घर पर तेरी घरवाली अंगूर की बेल सी फलवती होगी।
मेज के चारों तरफ तेरी संतानें ऐसी होंगी, जैसे जैतून के वे पेड़ जिन्हें तूने रोपा है।
4 इस प्रकार यहोवा अपने अनुयायिओं को
सचमुच आशीष देगा।
5 यहोवा सिय्योन से तुझ को आशीर्वाद दे यह मेरी कामना है।
जीवन भर यरूशलेम में तुझको वरदानों का आनन्द मिले।
6 तू अपने नाती पोतों को देखने के लिये जीता रहे यह मेरी कामना है।
इस्राएल में शांति रहे।
एक नया समय आ रहा है
17 “देखो, मैं एक नये स्वर्ग और नयी धरती की रचना करूँगा।
लोग मेरे लोगों की पिछली बात याद नहीं रखेंगे।
उनमें से कोई बात याद में नहीं रहेगी।
18 मेरे लोग दु:खी नहीं रहेंगे।
नहीं, वे आनन्द में रहेंगे और वे सदा खुश रहेंगे।
मैं जो बातें रचूँगा, वे उनसे प्रसन्न रहेंगे।
मैं ऐसा यरूशलेम रचूँगा जो आनन्द से परिपूर्ण होगा और
मैं उनको एक प्रसन्न जाति बनाऊँगा।
19 “फिर मैं यरूशलेम से प्रसन्न रहूँगा।
मैं अपने लोगों से प्रसन्न रहूँगा और उस नगरी में फिर कभी विलाप और कोई दु:ख नहीं होगा।
20 उस नगरी में कोई बच्चा ऐसा नहीं होगा जो पैदा होने के बाद कुछ ही दिन जियेगा।
उस नगरी का कोई भी व्यक्ति अपनी अल्प आयु में नहीं मरेगा।
हर पैदा हुआ बच्चा लम्बी उम्र जियेगा
और उस नगरी का प्रत्येक बूढ़ा व्यक्ति एक लम्बे समय तक जीता रहेगा।
वहाँ सौ साल का व्यक्ति भी जवान कहलायेगा।
किन्तु कोई भी ऐसा व्यक्ति जो सौ साल से पहले मरेगा उसे अभिशप्त कहा जायेगा।
21 “देखो, उस नगरी में यदि कोई व्यक्ति अपना घर बनायेगा तो वह व्यक्ति अपने घर में बसेगा।
यदि कोई व्यक्ति वहाँ अंगूर का बाग लगायेगा तो वह अपने बाग के अँगूर खायेगा।
22 वहाँ ऐसा नहीं होगा कि कोई अपना घर बनाये और कोई दूसरा उसमें निवास करे।
ऐसा भी नहीं होगा कि बाग कोई दूसरा लगाये और उस बाग का फल कोई और खाये।
मेरे लोग इतना जियेंगे जितना ये वृक्ष जीते हैं।
ऐसे व्यक्ति जिन्हें मैंने चुना है, उन सभी वस्तुओं का आनन्द लेंगे जिन्हें उन्होंने बनाया है।
23 फिर लोग व्यर्थ का परिश्रम नहीं करेंगे।
लोग ऐसे उन बच्चों को नहीं जन्म देंगे जिनके लिये वे मन में डरेंगे कि वे किसी अचानक विपत्ति का शिकार न हों।
मेरे सभी लोग यहोवा की आशीष पायेंगे।
मेरे लोग और उनकी संताने आर्शीवाद पायेंगे।
24 मुझे उन सभी वस्तुओं का पता हो जायेगा जिनकी आवश्यकता उन्हें होगी, इससे पहले की वे उन्हें मुझसे माँगे।
इससे पहले कि वे मुझ से सहायता की प्रार्थना पूरी कर पायेंगे, मैं उनको मदद दूँगा।
25 भेड़िये और मेमनें एक साथ चरते फिरेंगे।
सिंह भी मवेशियों के जैसे ही भूसा चरेंगे
और भुजंगों का भोजन बस मिट्टी ही होगी।
मेरे पवित्र पर्वत पर कोई किसी को भी हानि नहीं पहुँचायेगा और न ही उन्हें नष्ट करेगा।”
यह यहोवा ने कहा है।
6 ऐसे ही दाऊद भी उसे धन्य मानता है जिसे कामों के आधार के बिना ही परमेश्वर धर्मी मानता है। वह जब कहता है:
7 “धन्य हैं वे जिनके व्यवस्था रहित
कामों को क्षमा मिली और
जिनके पापों को ढक दिया गया!
8 धन्य है वह पुरुष जिसके पापों
को परमेश्वर ने गिना नहीं हैं!”(A)
9 तब क्या यह धन्यपन केवल उन्हीं के लिये है जिनका ख़तना हुआ है, या उनके लिए भी जिनका ख़तना नहीं हुआ। (हाँ, यह उन पर भी लागू होता है जिनका ख़तना नहीं हुआ) क्योंकि हमने कहा है इब्राहीम का विश्वास ही उसके लिये धार्मिकता गिना गया। 10 तो यह कब गिना गया? जब उसका ख़तना हो चुका था या जब वह बिना ख़तने का था। नहीं ख़तना होने के बाद नहीं बल्कि ख़तना होने की स्थिति से पहले। 11 और फिर एक चिन्ह के रूप में उसने ख़तना ग्रहण किया। जो उस विश्वास के परिणामस्वरूप धार्मिकता की एक छाप थी जो उसने उस समय दर्शाया था जब उसका ख़तना नहीं हुआ था। इसलिए वह उन सभी का पिता है जो यद्यपि बिना ख़तने के हैं किन्तु विश्वासी है। (इसलिए वे भी धर्मी गिने जाएँगे) 12 और वह उनका भी पिता है जिनका ख़तना हुआ है किन्तु जो हमारे पूर्वज इब्राहीम के विश्वास का जिसे उसने ख़तना होने से पहले प्रकट किया था, अनुसरण करते है।
विश्वास और परमेश्वर का वचन
13 इब्राहीम या उसके वंशजों को यह वचन कि वे संसार के उत्तराधिकारी होंगे, व्यवस्था से नहीं मिला था बल्कि उस धार्मिकता से मिला था जो विश्वास के द्वारा उत्पन्न होती है।
© 1995, 2010 Bible League International