Revised Common Lectionary (Complementary)
हेथ्
57 हे यहोवा, मैंने तेरे उपदेशों पर चलना निश्चित किया यह मेरा कर्तव्य है।
58 हे यहोवा, मैं पूरी तरह से तुझ पर निर्भर हूँ,
जैसा वचन तूने दिया मुझ पर दयालु हो।
59 मैंने ध्यान से अपनी राह पर मनन किया
और मैं तेरी वाचा पर चलने को लौट आया।
60 मैंने बिना देर लगाये तेरे आदेशों पर चलने कि शीघ्रता की।
61 बुरे लोगों के एक दल ने मेरे विषय में बुरी बातें कहीं।
किन्तु यहोवा मैं तेरी शिक्षाओं को भूला नहीं।
62 तेरे सत निर्णयों का तुझे धन्यवाद देने
मैं आधी रात के बीच उठ बैठता हूँ।
63 जो कोई व्यक्ति तेरी उपासना करता मैं उसका मित्र हूँ।
जो कोई व्यक्ति तेरे आदेशों पर चलता है, मैं उसका मित्र हूँ।
64 हे यहोवा, यह धरती तेरी सत्य करूणा से भरी हुई है।
मुझको तू अपने विधान की शिक्षा दे।
11 अवसर पर बोला वचन होता है ऐसा जैसा हों चाँदी में स्वर्णिम सेब जड़े हुए। 12 जो कान बुद्धिमान की झिड़की सुनता है, वह उसके कान के लिये सोने की बाली या कुन्दन की आभूषण बन जाता है।
13 एक विश्वास योग्य दूत, जो उसे भेजते हैं उनके लिये कटनी के समय की शीतल बयार सा होता है हृदय में निज स्वामियों के वह स्फूर्ती भर देता है।
14 वह मनुष्य वर्षा रहित पवन और रीतें मेघों सा होता है, जो बड़ी—बड़ी कोरी बातें देने की बनाता है; किन्तु नहीं देता है।
15 धैर्यपूर्ण बातों से राजा तक मनाये जाते और नम्र वाणी हड्डी तक तोड़ सकती हैं।
16 यद्यपि शहद बहुत उत्तम है, पर तू बहुत अधिक मत खा और यदि तू अधिक खायेगा, तो उल्टी आ जायेगी और रोगी हो जायेगा। 17 वैसे ही तू पड़ोसी के घर में बार—बार पैर मत रख। अधिक आना जाना निरादर करता है।
18 वह मनुष्य, जो झूठी साक्षी अपने साथी के विरोध में देता है वह तो है हथौड़ा सा अथवा तलवार सा या तीखे बाणा सा। 19 विपत्ति के काल में भरोसा विश्वास—घाती पर होता है ऐसा जैसे दुःख देता दाँत अथवा लँगड़ाते पैर।
20 जो कोई उसके सामने खुशी के गीत गाता है जिसका मन भारी है। वह उसको वैसा लगता है जैसे जोड़े में कोई कपड़े उतार लेता अथवा कोई फोड़े के सफफ पर सिरका उंडेला हो।
21 यदि तेरा शत्रु भी कभी भूखा हो, उसके खाने के लिये, तू भोजन दे दे, और यदि वह प्यासा हो, तू उसके लिये पानी पीने को दे दे। 22 यदि तू ऐसा करेगा वह लज्जित होगा, वह लज्जा उसके चिंतन में अंगारों सी धधकेगी, और यहोवा तुझे उसका प्रतिफल देगा।
9 तुम्हारा प्रेम सच्चा हो। बुराई से घृणा करो। नेकी से जुड़ो। 10 भाई चारे के साथ एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो। आपस में एक दूसरे को आदर के साथ अपने से अधिक महत्व दो। 11 उत्साही बनो, आलसी नहीं, आत्मा के तेज से चमको। प्रभु की सेवा करो। 12 अपनी आशा में प्रसन्न रहो। विपत्ति में धीरज धरो। निरन्तर प्रार्थना करते रहो। 13 परमेश्वर के लोगों की आवश्यकताओं में हाथ बटाओ। अतिथि सत्कार के अवसर ढूँढते रहो।
14 जो तुम्हें सताते हैं उन्हें आशीर्वाद दो। उन्हें शाप मत दो, आशीर्वाद दो। 15 जो प्रसन्न हैं उनके साथ प्रसन्न रहो। जो दुःखी है, उनके दुःख में दुःखी होओ। 16 मेलमिलाप से रहो। अभिमान मत करो बल्कि दीनों की संगति करो। अपने को बुद्धिमान मत समझो।
17 बुराई का बदला बुराई से किसी को मत दो। सभी लोगों की आँखों में जो अच्छा हो उसे ही करने की सोचो। 18 जहाँ तक बन पड़े सब मनुष्यों के साथ शान्ति से रहो। 19 किसी से अपने आप बदला मत लो। मेरे मित्रों, बल्कि इसे परमेश्वर के क्रोध पर छोड़ दो क्योंकि शास्त्र में लिखा है: “प्रभु ने कहा है बदला लेना मेरा काम है। प्रतिदान मैं दूँगा।”(A) 20 बल्कि तू तो
“यदि तेरा शत्रु भूखा है
तो उसे भोजन करा।
यदि वह प्यासा है
तो उसे पीने को दे।
क्योंकि यदि तू ऐसा करता है तो वह तुझसे शर्मिन्दा होगा।”(B)
21 बुराई से मत हार बल्कि अपनी नेकी से बुराई को हरा दे।
© 1995, 2010 Bible League International