Revised Common Lectionary (Complementary)
लोगों को याद दिलाने के लिये संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
1 हे परमेश्वर, मेरी रक्षा कर!
हे परमेश्वर, जल्दी कर और मुझको सहारा दे!
2 लोग मुझे मार डालने का जतन कर रहे हैं।
उन्हें निराश
और अपमानित कर दे!
ऐसा चाहते हैं कि लोग मेरा बुरा कर डाले।
उनका पतन ऐसा हो जाये कि वे लज्जित हो।
3 लोगों ने मुझको हँसी ठट्टों में उड़ाया।
मैं उनकी पराजय की आस करता हूँ और इस बात की कि उन्हें लज्जा अनुभव हो।
4 मुझको यह आस है कि ऐसे वे सभी लोग जो तेरी आराधना करते हैं,
वह अति प्रसन्न हों।
वे सभी लोग तेरी सहायता की आस रहते हैं
वे तेरी सदा स्तुती करते रहें।
5 हे परमेश्वर, मैं दीन और असहाय हूँ।
जल्दी कर! आ, और मुझको सहारा दे!
हे परमेश्वर, तू ही बस ऐसा है जो मुझको बचा सकता है,
अधिक देर मत कर!
6 “मैंने तुम्हें अपने पास बुलाने के लिये कई काम किये। मैंने तुम्हें खाने को कुछ भी नहीं दिया। तुम्हारे किसी भी नगर में भोजन नहीं था। किन्तु तुम मेरे पास वापस नहीं लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।
7 “मैंने वर्षा भी बन्द की और यह फसल पकने के तीन महीने पहले हुआ। अत: कोई फसल नहीं हुई। तब मैंने एक नगर पर वर्षा होने दी किन्तु दूसरे नगर पर नहीं। वर्षा देश के एक हिस्से में हुई। किन्तु देश के अन्य भागों में भूमि बहुत सूख गई। 8 अत: दो या तीन नगरों से लोग पानी लेने के लिये दूसरे नगरों को लड़खड़ाते हुए गए किन्तु वहाँ भी हर एक व्यक्ति के लिये पर्याप्त जल नहीं मिला। तो भी तुम मेरे पास सहायता के लिये नहीं आए।” यहोवा ने यह सब कहा।
9 “मैंने तुम्हारी फसलों को गर्मी और बीमारी से मार डाला। मैंने तुम्हारे बागों और अंगूर के बगीचों को नष्ट किया। टिड्डियों ने तुम्हारे अंजीर के पेड़ों और जैतून के पेड़ों को खा डाला। किन्तु तुम फिर भी मेरे पास सहायता के लिये नहीं आए।” यहोवा ने यह सब कहा।
10 “मैंने तुम्हारे विरूद्ध महामारियाँ वैसे ही भेजीं जैसे मैंने मिस्र में भेजी थीं। मैंने तुम्हारे युवकों को तलवार के घाट उतार दिया। मैंने तुम्हारे घोड़े ले लिये। मैंने तुम्हारे डेरों को शवों की दुर्गन्ध से भरा। किन्तु तब भी तुम मेरे पास सहायता को वापस नहीं लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।
11 “मैने तुम्हें वैसे ही नष्ट किया जैसे मैंने सदोम और अमोरा को नष्ट किया था और वे नगर पूरी तरह नष्ट किये गये थे। तुम आग से खींची गई जलती लकड़ी की तरह थे। किन्तु तुम फिर भी सहायता के लिये मेरे पास नही लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।
12 “अत: इस्राएल, मैं तुम्हारे साथ यह सब करूँगा। मैं तुम्हारे साथ यह करूँगा। इस्राएल, अपने परमेश्वर से मिलने के लिये तैयार हो जाओ!”
13 मैं कौन हूँ मैं वही हूँ जिसने पर्वतों को बनाया।
मैंने तुम्हारा प्राण बनाया।
मैंने लोगों को अपने विचार बनाए।
मैं ही सुबह को शाम में बदलता हूँ।
मैं पृथ्वी के ऊपर के पर्वतों पर चलता हूँ।
मैं कौन हूँ मेरा नाम यहोवा, सेनाओं का परमेश्वर है।
यीशु द्वारा मन्दिर के विनाश की भविष्यवाणी
(मरकुस 13:1-31; लूका 21:5-33)
24 मन्दिर को छोड़ कर यीशु जब वहाँ से होकर जा रहा था तो उसके शिष्य उसे मन्दिर के भवन दिखाने उसके पास आये। 2 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “तुम इन भवनों को सीधे खड़े देख रहे हो? मैं तुम्हें सच बताता हूँ, यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर टिका नहीं रहेगा। एक एक पत्थर गिरा दिया जायेगा।”
3 यीशु जब जैतून पर्वत[a] पर बैठा था तो एकांत में उसके शिष्य उसके पास आये और बोले, “हमें बता यह कब घटेगा? जब तू वापस आयेगा और इस संसार का अंत होने को होगा तो कैसे संकेत प्रकट होंगे?”
4 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “सावधान! तुम लोगों को कोई छलने न पाये। 5 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि ऐसे बहुत से हैं जो मेरे नाम से आयेंगे और कहेंगे ‘मैं मसीह हूँ’ और वे बहुतों को छलेंगे। 6 तुम पास के युद्धों की बातें या दूर के युद्धों की अफवाहें सुनोगे पर देखो तुम घबराना मत! ऐसा तो होगा ही किन्तु अभी अंत नहीं आया है। 7 हर एक जाति दूसरी जाति के विरोध में और एक राज्य दूसरे राज्य के विरोध में खड़ा होगा। अकाल पड़ेंगें। हर कहीं भूचाल आयेंगे। 8 किन्तु ये सब बातें तो केवल पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा।
9 “उस समय वे तुम्हें दण्ड दिलाने के लिए पकड़वायेंगे, और वे तुम्हें मरवा डालेंगे। क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो, सभी जातियों के लोग तुमसे घृणा करेंगे। 10 उस समय बहुत से लोगों का मोह टूट जायेगा और विश्वास डिग जायेगा। वे एक दूसरे को अधिकारियों के हाथों सौंपेंगे और परस्पर घृणा करेंगे। 11 बहुत से झूठे नबी उठ खड़े होंगे और लोगों को ठगेंगे। 12 क्योंकि अधार्मिकता बढ़ जायेगी सो बहुत से लोगों का प्रेम ठंडा पड़ जायेगा। 13 किन्तु जो अंत तक टिका रहेगा उसका उद्धार होगा। 14 स्वर्ग के राज्य का यह सुसमाचार समस्त विश्व में सभी जातियों को साक्षी के रूप में सुनाया जाएगा और तभी अन्त आएगा।
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