Readings for Lent and Easter
21 “हे मोर मीतो मोह पइ दाया करा, दाया करा मोह पइ
    काहेकि परमेस्सर क हाथ मोहका छू गवा अहइ।
22 काहे मोका तू भी सतावत अहा जइसे मोका परमेस्सर सताएस ह
    काहे तू मोका दुख देत भए कबहुँ अघात्या नाहीं?
23 “जउन मइँ कहत हउँ ओका कउनो क याद राखइ चाही अउ किताबे मँ लिख देइ चाही!
    मोर सब्द कउनो क गोल पत्रक पइ लिख देइ चाही!
24 मइँ जउने बातन क कहत ओनका कउनो लोहा क कलम स सीसा पइ लिखा जाइ चाही
    या ओनका चट्टाने पइ खोद दीन्ह जाइ चाही ताकि उ हमेसा बरे रहइ जाइ।
25 मोका इ जानत हउँ कि कउनो एक अइसा अहइ जउन मोर बरे बोलब्या अउर मोर रच्छा करब्या।
    मोका बिस्सास अहइ कि आखिर मँ उ धरती पइ खड़ा होब्या अउर मोरे बचाव करब्या।
26 मोरे आपन देह छोड़इ अउर मोर चमड़ी तबाह होइक पाछे भी
    मइँ जानत हउँ कि मइँ परमेस्सर क लखब।
27 मइँ परमेस्सर क खुद आपन आँखिन स लखब।
    खुद स कउनो दूसर नाहीं, परमेस्सर क लखब।
    मइँ बता नाहीं केतँना खुसी अनुभव करत हउँ।
28 “होइ सकत ह तू कहा, ‘हम अय्यूब क तंग करब।
    मइँ मामला क जड़ तलक जाब।’
29 मुला तोहका तरवारे स डरइ चाहीं,
काहेकि परमेस्सर किरोधित होब्या अउर तोहका तरवार स सजा देब्या।
    अउर तब तू पचन्क समझब्या कि हुआँ निआउ क एक निहचित समइ अहइ।”
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version. Copyright © 2005 Bible League International.