Old/New Testament
उत्तिम जिन्नगी स संपन्नता
3 हे मोर पूत, मोरी सिच्छा क जिन बिसरा, बल्कि तू मोर आदेसन क आपन हिरदय मँ बसाइ ल्या। 2 काहेकि उ सबइ तोहार जिन्नगी क लम्बी अउर सान्तिमइ बनाहीं।
3 वफादारी अउर सच्चाई क कबहुँ भी आपन स अलग न होइ द्या। तू एनका हार क नाई अपने गले मँ डावा। एनका आपन हिरदय क पटल पइ लिख ल्या। 4 इ तरह स तू सफल होब्या अउर परमेस्सर अउ मनई दुइनउँ तोहसे आन्नदित होब्या। यहोवा मँ बिस्सास राखा
5 आपन पूरे हिरदय स यहोवा मँ बिस्सास राखा। तू अपनी समुझ पइ निर्भर जिन करा। 6 तू आपन सबइ करमन मँ जेका तू करत ह परमेस्सर क इच्छा क याद राखा। उहइ तोहार सब राहन क सोझ करी। 7 आपन ही आँखिन मँ तू बुद्धिमान जिन बना, यहोवा स डरेत रहा अउर बुराई स दूर रहा। 8 एहसे तोहार बदन पूरा तन्दुरूस्त रही अउर तोहार हाड्डियन पुट्ठ होइहीं। यहोवा क अर्पण कइ द्या
9 आपन सम्पत्ति स, अउर आपन उपज स पहिले फलन स यहोवा क आदर करा। 10 तोहार भण्डार बहुतायत स भरि जइहीं, अउर तोहार मधु क बर्तन दाखरस स उमण्डत रइहीं। यहोवा क दण्ड अंगीकार करा
11 हे मोर पूत, यहोवा क अनुसासन क रद्द जिन करा। तोहका सुधार करइ क ओकर प्रयास बरे बुरा जिन बोला।
12 काहेकि यहोवा सिरिफ ओनहीं क डाँटत ह जेनसे उ पिआर करत ह। वइसे ही जइसे बाप उ पूत क डाँटइ जउन ओका बहोतइ पिआरा अहइ। विवेक क महत्व
13 धन्य अहइ उ मनई, जउन बुद्धि पावत ह। उ मनई धन्य अहइ जउन समुझ प्राप्त करइ। 14 बुद्धि, कीमती चाँदी स जियादा लाभ देइवाली अहइ, अउर सोना स जियादा उत्तिम प्रतिदान देत ह। 15 बुद्धि मणि माणिक स जियादा कीमती अहइ। जेका तू चाह सक्या। सबइ चिजियन मँ स कउनो भी चीज जेका तू सायद कि चाह रखत ह ओकर बराबरी क नाहीं हो सकत ह।
16 बुद्धि क दाहिन हाथे मँ सुदीर्घ जिन्नगी अहइ अउर ओकरे बाएँ हाथे मँ सम्पत्ति अउ सम्मान अहइ। 17 ओकर मारग मनोहर अहइँ अउर ओकर सबहिं राह सान्ति क रहत हीं। 18 बुद्धि ओनके बरे जिन्नगी क दरखत अहइ जउन एका गले लगावत ह। उ पचे हमेसा धन्य रइहीं जउन मजबूती स बुद्धि क थामे रहत हीं।
19 यहोवा धरती क नेेंव बुद्धि स धरेस, उ समुझ अकासे क स्थिर किहस। 20 ओकरे ही गियान स गहिर सोतन फूटि पड़ेन अउ बादर ओसे क कण बरसावत हीं।
21 हे मोर पूत, तू अपनी निगाह स बुद्धि क लुप्त जिन होइ द्या। किन्तु बजाए एका आपन जोग्यता क सही फैसला लइ बरे अउर विवेक बरे रच्छा करा। 22 उ पचे तउ तोहरे बरे जिन्नगी बन जइहीं, अउर तोहरे कंठे क सजावइ क एक ठु आभूसण। 23 तब तू सुरच्छित बना अपना मार्गे पर चलेहीं अउर तोहार गोड़ कबहुँ ठोकर नाहीं खइहीं। 24 तोहका सोवइ पइ कबहुँ डर नाहीं खाहीं अउर सोइ जाए पइ तोहार नींद मधुर होइ। 25 तू आकस्मिक बिनासे स या उ तबाही स जउन दुट्ठ लोगन पइ आवत ह जिन डेराअ। 26 काहेकि यहोवा तोहार संग होइ, अउर उ तोहरे गोड़े क फँदा मँ फँसइ स बचाइ।
27 जउन लोग नीक चीज क हकदार अहइ ओनका उहइ दइ स इन्कार जिन करा। जब तू नीक करइ क जोग्य ह तउ एका करा। 28 जब आपन पड़ोसी क देब तोहरे लगे धरा होइ तउ ओहसे अइसा जिन कहा कि “बाद मँ आया काल्हि तोहका देब।”
29 तोहार पड़ोसी बिस्सास स तोहरे लगे रहत होइ तउ ओकरे खिलाफ ओका नोस्कान पहोंचावइ बरे कउनो सडयंत्र जिन रचा।
30 बिना कउनो कारण क कउनो मनइ क संग जउन कि तोहका कउनो छति नाहीं पहोंचाएस ह बहस जिन करा।
31 कउनो उपद्रवी मनई स तू जलन जिन करा, अउर ओकर कउनो भी राहे क अनुसरन जिन करा। 32 काहेकि यहोवा कुटिल लोगन स घिना करत ह अउ इमानदार लोगन क अपनावत ह।
33 दुट्ठ मनई क घरे यहोवा क सराप रहत ह, उ नेक क घरे क आसीर्वाद देत ह।
34 उ स्वार्थी अउर घमंडी लोगन क हँसी उड़ावत ह, मुला विनम्र लोगन पइ उ मेहरबानी करत ह।
35 विवेकी जन तउ आदर पइहीं, मुला उ मूर्खन क, लज्जित ही करी।
विवेक क महत्व
4 हे मोर पूतो, बाप क सिच्छा क सुना ओह पइ धियान द्या अउर तू समुझबूझ पाइ लया। 2 मइँ तू पचन्क गहिर-गंभीर सिच्छा देत हउँ। मोर इ सिच्छा क तू पचे जिन तज्या।
3 जब मइँ आपन बाप क घर एक बालक रहेउँ अउर महतारी क बहोतइ कोमल एकलौता गदेला रहेउँ, 4 उ मोका सिखावत रहा, “मोरे सिखिया का पूर्ण रूप स पालन करा। जदि तू मोर आदेसन क माना तउ तू जिअब। 5 तू बुद्धि प्राप्त करा अउ समुझबूझ प्राप्त करा, मोर वचन जिन बिसरा अउर ओनसे जिन डुगा, 6 बुद्धि जिन तजा। उ तोहार रच्छा करी। ओहसे पिरेम करा उ तोहार धियान राखी।”
7 बुद्धि सबन त नीक बाटइ: सब कछू दइके भी बुद्धि प्राप्त करा। गियान प्राप्त करा। 8 बुद्धि स पिरेम करा। उ तोहका महान बनाहीं। ओका तू गले स लगाइ ल्या, उ तोहार सम्मान बढ़ाई। 9 उ तोहरे मूँड़े पइ सोभा क माला धरी अउर उ तोहका एक ठु वैभव क मुकुट देइ।
10 सुना, हे मोर पूत! जउन कछू मइँ कहत हउँ तू ओका ग्रहण करा। तू अनगिनत बरिस जिअत रहब्या। 11 मइँ तोहका बुद्धि क मागेर् पइ चलइ क राह देखावत हउँ, अउर सरल मार्गन पइ अगुवाई करत हउँ। 12 जब तू अगवा बढ़ब्या तोहार गोड़ रूकावट नाहीं पइहीं, अउर जब तू दउड़ब्या ठोकर नाहीं खाब्या। 13 सिच्छा क थामे रहा, ओका तू जिन छो़ड़ा। एकर रखवारी करा। इहइ तोहार जिन्नगी अहइ।
14 तू दुट्ठ लोगन क राहे पइ कदम जिन धरा। बुरे लोगन क राहे पइ जिन चला। 15 तू एहसे बचत रहा। एह क ओर कदम जिन बढ़ावा। एहसे तू मुड़ि जा अउर एकरे बगल स गुजर जा। 16 उ पचे बुरे करम किए बगैर सोइ नाहीं पउतेन। उ पचे नींद खोइ चुकत हीं जब तलक कउनो क नाहीं गिरउतेन। 17 उ पचे तउ बस हमेसा नीच होइ क रोटी खात हीं अउर हिंसा क दाखरस पिअत हीं।
18 मुला नीक लोगन क राह वइसे होत ह जइसे भिंसारे क किरण होत ह, जउन दिन क पूर्ण होइ तलक आपन प्रकास मँ बढ़त ही चली जात ह। 19 मुला दुठ्न लोगन क मारग अँधियारा जइसा होत ह। उ पचे नाहीं जानत ह कि केकर कारण उ पचे ठोकर खात ह या गिरत ह।
20 हे मोर पूत, जउन कछू मइँ कहत हउँ ओह पइ तू धियान द्या। मोर बचनन क तू कान लगाइके सुना। 21 ओनका आपन दृस्टि स ओझर जिन होइ द्या। आपन हिरदय पइ तू ओनका धरे रहा। 22 काहेकि जउन ओनका पावत हीं ओनके बरे उ सबइ जिन्नगी बन जात हीं अउर उ पचे एक मनई क संपूर्ण तने क तन्दुरूस्ती बनत हीं। 23 सबन स बड़की बात इ अहइ कि तू आपन विचार क बारे मँ होसियार रहा। काहेकि तोहार विचार जिन्नगी क कब्जे मँ राखत हीं।
24 तू आपन मुँह स कुटिलता क दूर राखा। तू आपन ओंठन स गलत बात दूर राखा। 25 आपन आंखिन क हमेसा सिधे रखा, आपन पलकन क समन्वा क ओर रखा। 26 आपन गोड़न बरे तू सोझ मारग बनावा। बस तू ओन राहन पइ चला जउन निहचइ ही सुरच्छित अहइँ। 27 दाहिने क या बाएँ क जिन डुगा। तू आपन गोड़न क बुराई स रोके रहा।
पराई मेहरारू स बचा रहा
5 हे मोर पूत तू मोरी बुद्धि क बातन पइ धियान द्या। मोर बुद्धिमानी क सिच्छा क धियान स सुना। 2 ताकि तोहार भला-बुरा क चेतना सुरच्छित रहइ अउर तोहरे ओंठन गियान कि सुरच्छा करइ। 3 काहेकि कउनो पराई मनइ क पत्नी आपन ओंठन क मधुर बातन स तोहका लुभा सकत ह, ओकर ओंठन क वाणी तेल स भी जियादा चिकनी होत ह। 4 अंत मँ उ तोहरे बरे भयंकर दुःख दर्द लाहीं उ दुधारी तरवार क नाई अहइ। 5 ओकर गोड़ मउत क गड्ढा कइँती बढ़त हीं अउर उ तोहका सिधे कब्र तलक लइ जात हीं। 6 उ कबहुँ भी जिन्नगी क मारग क नाहीं सोचत। ओकर राहन खोटी अहइँ। किंतु हाय्य, ओका मालूम नाहीं। बिभिचार बिनासे क मूल बाटइ
7 अब हे मोरे पूतन, तू मोर बात सुना। जउन कछू भी मइँ कहत हउँ ओहसे जिन मोड़ा। 8 तू अइसी राह पइ चला जउन ओहसे काफी दूर होइ। ओकर घरे तलक जिन जा। 9 नाहीं तउ दूसर कउनो तोहरे ताकत क उपयोग करिहीं, अउर तोहार जिन्नगी क बरिस कउनो अइसे मनइ लइ ले हीं जउन कि करुर होइ। 10 अइसा न होइ, तोहरे धने पइ अजनबी मउज करइँ। तोहार मेहनत अउरन क घर भरइ। 11 तोहार जिन्नगी क अंतिम दिना मँ जब तू बिमार होब्या अउर तोहार लगे कछू भी न होइ, तउ तोहका रोवत बिलबिलात भवा छोड़ दीन्हा जाहीं। 12 अउर तू कहब्या, “हाय! मइँ अनुसासन स काहे घिना किहा? मइँ सुधार क काहे उपेच्छा किहा? 13 मइँ आपन सिच्छकन क बात नाहीं मानेउँ या मइँ आपन प्रसिच्छकन पइ धियान नाहीं दिहेउँ। 14 मइँ महानासे क किनारे पइ आइ गवा हउँ अउर हर एक इ जानत ह।” आपन पत्नी के संग आनन्द मनावा
15 तू आपन हौज स ही पानी पिया करा अउ तू आपन झरना स ही सुद्ध पानी पिया करा। 16 तू आपन पानी क गलियन मँ इधर-उधर फइलइ जिन दया। एका गलियन मँ नदी क नाई बह्य जिन द्या। 17 इ तउ बस तोहार ही होइ, एकमात्र तोहार ही। ओनमाँ कबहुँ कउनो अजनबी क हींसा न होइ, 18 आपन पत्नी क संग धन्न रहा। ओकरे संग ही तू जीवन रस क पान करा जेक तू आपन जवानी क समइ सादी कीन्ह रहा। 19 ओकर छातियन हरिणी अउर खुबसुरत पहाड़ी बोकरी क नाई तोहका हमेसा सन्तुस्त करइ, ओकर पिरेम जाल तोहका हमेसा फाँस लइ 20 हे मोर पूत, कउनो बिभिचारिणी क तोहका विनासे क ओर काहे लइ जावइ चाही? तोहका कउनो अजनबी मेहरारु क काहे गले लगावइ चाही?
21 यहोवा तोहार राहन पूरी तरह लखत अहइ अउ उ तोहार सबहिं राहन परखत बाटइ। 22 दुट्ठ क बुरे करम ओका बाँध लेत हीं। ओकर ही पाप जाल ओका फाँसि लेत ह। 23 उ अनुसासन क कमी क कारण मरि जात ह। ओकर महान मूरखता ओका विनास क ओर लइ जावत ह।
1 परमेस्सर क इच्छा स मसीह ईसू क प्रेरित पौलुस अउर हमरे भाई तीमुथियुस क कइँती स।
कुरिन्थुस परमेस्सर क कलीसिया अउर अखाया क पूरे छेत्रन क पवित्तर लोग क नाउँ:
2 हमार परमपिता परमेस्सर अउर पर्भू ईसू मसीह क कइँती से तू सबन क अनुग्रह अउर सान्ति मिलइ।
पौलुस क परमेस्सर क धन्यवाद
3 हमार पर्भू ईसू मसीह क परमपिता परमेस्सर धन्य अहइ। उ दया क स्वामी अहइ अउर आनन्द क प्रेरणा अहइ। 4 हमार हर विपत्तिन मँ उ हमका सान्ति देत ह ताकि हमहूँ हर प्रकार क विपत्तिन मँ पड़े लोगन क वइसेनइ सान्ति दइ सकी जइसेन परमेस्सर हमका दिहे अहइ। 5 काहेकि जइसेन मसीह क सबइ यातना मँ हम सहभागी अही। वइसेनही मसीह क कारण हमार आनन्द भी तोहरे बरे उमड़त बा। 6 जदि हम कष्ट उठाइत ह तउ उ तोहरे दिलासा अउर उद्धार क बरे बा। अउर हम आनन्दित अही। तउ उ तोहरे दिलासा क बरे बा। ई आनन्द ओनही यातना क जेनका हमहूँ सहत अही। तू सबन क धीरज क साथ सहई बरे प्रेरित करत ह। 7 तोहरे बिसय मँ हमका पूरी आसा बा। काहेकि हम जानित ह कि जइसे हमरे कस्टन क तू बाँटत ह, बइसेनइ ही हमरे आनन्द मँ तोहार भाग बा।
8 भाइयो, हम चाहित ह कि तू ओन यातना क बारे मँ जाना जउन हमका एसिया[a] मँ झेलइ क पड़ी रही। उहाँ हम, हमार सहन सक्ति क सीमा स कहूँ बहुत बोझन क तरे दबाइ गवा रहे। इहाँ तक कि हमका जिअइ क कउनउ आसा नाहीं रही ग रही। 9 हाँ अपने अपने मने मँ हमका अइसेन लागत रह जइसेन हमका मऊत क सजा दीन्ह गइ रही। ताकि हम अपने ऊपर अउर जियादा भरोसा न कइके परमेस्सर पइ भरोसा करी जउन मरे हुए क फिन से जिआई देई। 10 हमका उ भयंकर मऊत से उहइ बचाएस अउर हमार आजु क परिस्थितियन मँ उहइ हमका बचावत रहा। हमार आसा उहइ पर टिकी बा। उहइ हमका आगेउ बचाइ। 11 अउर तूहऊ हमरे तरफ स पराथना कइके मदद देब्या तउ हमका बहुत जने क पराथना क कारण परमेस्सर क अनुग्रह मिला बा, ओकरे बरे बहुत मनइयन क हमरे तरफ स धन्यवाद देई बरे मिली जाई।
पौलुस क योजनन मँ बदलाव
12 हमका ऐकर गरब बा कि हम इ बात साफ मने स कहि सकित ह कि हम इ जगत क साथे अउर खासकर तू लोगन क साथे परमेस्सर क अनुग्रह क एकदम्मई उहइ रुप क व्यवहार किहे अही। हम उ सरलपन अउर सच्चाई क साथे बहुत खातिदारी किहे रहेन। जउन परमेस्सर से मिलत ह न कि दुनियावी बुद्धि स। 13 हाँ! इहीं बरे हम ओका छोड़िके तू सबन क बस अउर कछू नाहीं लिखत अही। जेसे तू मोका एकदंमई वइसेन ही समझ लेब्या। 14 जइसेन तू हमका थोड़ेन मँ समझे अहा। तू हमरे बरे वइसेन ही गरब कई सकत ह। जब हमार पर्भू ईसू फिन आइ।
15 अउ इहीं बिसवास क कारण मइँ पहिले तोहरे पास आवइ बरे ठाने रहेउँ। ताकि तोहका दुसरीउ बार से आसीर्बाद क लाभ मिल सकइ। 16 मइँ सोचित ह कि मैसीडोनिया से लऊटिउँ उ फिन तोहरे पास जाउँ। अउर फिन तोहरे से ही यहूदिया क जाइ बदे बिदा कीन्ह जाउँ। 17 मइँ जब इ जोजना बनाए रहेउँ, तउ मोका कउनो संदेह नाहीं रहा। का तू बिना अच्छी तरह से सोच्या ह। मइँ जउन जोजना बनाइत ह, ओक ओ संसारी ढंग से बनाइत ह कि एक्कइ समइ “हाँ, हाँ” कहत रही अउर “न, न” कहत रही।
18 यदि तू परमेस्सर मँ बिसवास कइ सकत ह तउ तू बिसवास कइ सकत ह कि अउर उ ऍनके सास्छी देई कि तोहरे बरे हमार जउन बचन बा एक साथे “हाँ” अउर “ना” नाहीं कहत। 19 काहेकि तोहरे बिचवा मँ जउन परमेस्सर क पूत ईसू मसीह क हम यानि सिलवानुस, तीमुथियुस अउर मइँ प्रचार किहे अही, उ “हाँ” अउर “ना” दुइनँउ एक साथे नाहीं बल्कि ओनके कारण एक चिरन्तन “हाँ” का घोसणा कही गइ बा। 20 काहेकि परमेस्सर जउन अनन्त प्रतिज्ञा किहे अहइ उ ईसू मँ सबके बरे “हाँ” बनि जात ह। इही बरे हम ओकरे द्वारा जउन “आमीन” कहत अही उ परमेस्सर क ही महिमा बरे होत ह। 21 उ जउन तोहका मसीह क मनई क रुप मँ हमरे साथे सुनिस्चित करत ह अउर मइँ क अभिसेक किहे बा उ परमेस्सर ही अहइ। 22 जउन हम पइ आपन स्वामी क मोहर लगाए अहइ अउर हमरे भीतर बयाना क नाई उ पवित्तर आतिमा दिहेस जउन इ बात क आस्वासन बा कि जउन देइ क बचन उ हमका दिहे अहइ, ओका उ हमका देई।
23 साच्छी की तरह परमेस्सर क दुहाई देत अउर अपने जीवन क सपथ लेत मइँ कहत अहउँ कि मइँ दुवारा कुरिन्तुस इही बरे नाहीं आए रहेउँ कि मइँ तोहका पीड़ा से बचावई चाहत रहेउँ। 24 ऐकर मतलब इ नाहीं कि हम तोहरे बिसवासे पर काबू पावई चाहत अही। तू तउ अपने बिसवासे मँ अडिग अहा। बल्कि बाति इ अहइ कि हम तउ तोहरे खुस रहई बरे तोहर कर्मी अही।
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version. Copyright © 2005 Bible League International.