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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)
Version
नीतिवचन 19-21

19 उ गरीब मनइ ओन व्यक्ति स बेहतर अहइ जउन झूट बोलत ह अउ मूरख अहइ।

बिना गियान क उत्साह राखब नीक नाहीं अहइ एहसे उतावली मँ गलती होइ जात ह।

मनई आपन बेवकूफी स आपन जिन्नगी बिगाड़ लेत ह, मुला उ यहोवा क दोखी ठहरावत ह।

धन स बहोत सारे मीत बन जात हीं, मुला गरीब जन क ओकर मीत भी तजि जात ह।

लबार गवाह बगैर सजा पाए नाहीं बची अउर जउन झूठ उगलत रहत ह, छूटइ नाहीं पाई।

बहोत स लोग सासक क खुस करइ क जतन करत ह अउर हर एक मनइ ओकर मीत बन जावा चाहत हीं, जउन उपहार देत रहत ह।

निर्धन क सब संबंधी ओहसे कतरात हीं। ओकर मीत ओहसे केतना बचत फिरत हीं, जदपि उ ओन लोगन स मदद बरे बिनती करत हीं तउ पइ भी उ पचे ओकर लगे नाहीं जाइहीं।

जउन गियान पावत ह उ आपन प्राण स ही प्रीति राखत ह, उ जउन समुझ-बूझ बढ़ावत रहत ह फलत अउर फूलत ह।

लबार गवाह सजा पाए बिना नाहीं बची, अउर उ, जउन झूठ उगलत रहत ह, ध्वस्त होइ जाइ।

10 मूरख धनी नाहीं बनइ चाही। उ अइसे होइ जइसे कउनो दास युवराजन पइ राज करइ।

11 बुद्धिमान मनइ सदा साँत रहत ह। जब उ ओन लोगन क छिमा करत ह जउन ओकरे खिलाफ होइँ, तउ ओकर सम्मान अउर भी बढ़ जात ह।

12 राजा क किरोध सेर क दहाड़ जइसा अहइ, मुला ओकर कृपा घास पइ ओसे क बूँद स होत ह।

13 मूरख पूत आपन बाप बरे बिनासे क लावत ह। अउर एक झगरालू पत्नी हमेसा टपकइ वाला पानी क नाईं अहइ।

14 भवन अउ धन-दौलत महतारी बाप स विरासत मँ मिल जात ह। मुला बुद्धिमान पत्नी यहोवा क ओर स धन्न अहइ।

15 आलस गहिर घोर नींद देत ह; मुला उ आलसी भूखा मरत ह।

16 अइसा मनई जउन आदेसन पइ चलत ह उ आपन जिन्नगी क रच्छा करत ह। मुला जउन आदेसन क उपेच्छा करत ह उ निहचय ही मउत अपनावत ह।

17 गरीब पइ किरपा देखाउब यहोवा क उधार देब अहइ, यहोवा ओका, ओकरे इ कामे क प्रतिफल देइ।

18 तू आपन पूत क अनुसासित करा अउर ओका सजा द्या, जब उ अनुचित होइ। बस इहइ आसा अहइ। अगर तू अइसा करइ क मना करा, तब तउ तू ओकरे बिनासे मँ ओकर सहायक बनत अहा।

19 अगर कउनो मनई क तुरंत किरोध आवइ, ओका एकर कीमत चुकावइ क होइ। अगर तू ओकर रच्छा करत अहा, तउ केतनी ही बार तोहे ओका बचावइ क होइ।

20 सुमति पइ धियान द्या अउर सुधार क अपनाइ ल्या तू जेहसे आखीर मँ तू बुद्धिमान बन जा।

21 मनई अपने मने मँ का का करइ क सोचत ह; कितुं यहोवा क जोजना पूरा होत ह।

22 लोग चाहत हीं मनई बिस्सास जोग्ग अउ सच्चा होइ। एह बरे गरीबी मँ बिस्सास क जोग्ग अउ सच्चा बनके रहब उचित अहइ अइसा मनई स जउन झूटा अउर धनी अहइ।

23 यहोवा क भय सच्ची जिन्नगी क राह देखावत ह, एहसे मनई सान्ति पावत ह अउर कस्ट स बचत ह।

24 एक आलसी आपन हाथ थारी मँ डालत ह मुला उ ओका मुँहे तलक उठावइ मँ बहोत सुस्ती क अनुभव करत ह।

25 ठट्ठा करइवाला मनई क मारा ताकि एक साधारन जन आहसे सीख पाइ। मामूली डाँट डपट ही एक बुद्धिमान मनई बरे काफी होत ह।

26 अइसा पूत जउन निन्दा क जोग्ग करम करत ह घरे क अपमान होत ह; उ अइसा होत ह जइसे पूत कउनो आपन बाप स छोरइ अउर घरे स असहाय महतारी क निकारि बाहेर करइ।

27 हे मोर पूत अगर अनुसासन पइ धियान देब तजि देब्या, तउ तू गियान क बचनन स भटक जाब्या।

28 भ्रस्ट गवाह निआव क सम्मान नाहीं देत ह। अउर दुस्ट क मुँह बुराई क भस्म कर देत ह।

29 उ जउन सम्मान नाहीं देत ह सजा पाइ, अउर मूरख जन क पीठ कोड़न खाइ।

20 सराब अउ दाखरस लोगन क काबू मँ नाहीं रहइ देतेन। उ ओनका हल्ला करइवाला अउर सेरवी जतावइ वाला बनावत ह। अउर उ जउन मदमसत होइ जात ह मूरखता क कार्य करत ह।

राजा क किरोध सेर क दहाड़ क सम्मान होत ह, जउन ओका किरोधित करत ह, प्राण स हाथ धोवत ह।

झगड़न स दूर रहब मनई क आदर अहइ। मुला मूरख जन तउ सदा झगड़ा करइ बरे तइयार रहत ह।

मौसम आवइ पइ अदूरदर्सी आलसी हर नाहीं डावत ह, तउ कटनी क समइ उ ताकत रहि जात ह अउर कछू भी नाहीं पावत ह।

व्यक्ति क सोच गहिर पानी क नाईं होत ह। कितुं समुझदार मनई ओनका बाहेर हींच लेत ह।

लोग आपन बिस्सास जोग्गता क बहोत ढोल पीटत हीं। मुला बिस्सास क जोग्ग जन क कउन खोज सकत ह

धर्मी जन बेकलके क जिन्नगी जिअत ह ओकरे पाछे आवइवाली संतानन धन्न अहइँ।

जब राजा निआव क सिंहासने पइ विराजत भवा आपन दृस्टि माय स बुराई क फटकि के छाँटत हइ।

कउन कहि सकत ह, “मइँ आपन हिरदय रखेउँ ह, मइँ बिसुद्ध, अउर पाप रहित हउँ?”

10 एन दुइनउँ स, खोट बाटन अउर खोट नापन स यहोवा घिना करत ह।

11 बालक भी आपन करमन स जाना जात ह, कि ओकर चालचलन सुद्ध अहइ, या नाहीं।

12 यहोवा कान बनाएस ह कि हम सुनी। यहोवा आँखिन बनाएस ह कि हम लखी। यहोवा इ दुइनउँ क एह बरे हमरे बरे बनाएस।

13 नींद स पिरेम जिन करा दरिद्र होइ जाब्या; तू जागत रहा तोहरे लगे भरपूर भोजन होइ।

14 गाहक बेसहत समइ कहत ह, “अच्छा नाहीं, बहोत मँहग!” मुला जब उ हुआँ स उ दूर चला जात ह आपन खरीद क सेखी बघारत ह।

15 कउनो मनई क लगे सोना बहोत बाटइ अउर मणिमाणिक बहोत ढेर अहइँ, मुला अइसे ओंठ जउन बातन गियान क बतावत दुर्लभ रतन होत हीं।

16 जउन कउनो अजनबी क ऋृण क जमानत देत ह उ आपन ओढ़ना तलक गँवाइ बइठत ह।

17 छले स कमाई रोटी मीठ लागत ह पर अंत मँ ओकर मुँह काँकरे स भरि जात ह।

18 सबइ जोजना स पहिले तू उत्तिम सलाह पाइ लिहा करा। जदि तोहका जुद्ध करब होइ तउ उत्तिम लोगन स अगुवाइ ल्या।

19 बकवादी रहस्य क फास कइ देत ह। यह बरे रहस्यमय बातन क बकवादी मनई स जिन कहा।

20 कउनो मनई आपन बाप क या आपन महतारी क कोसइ, ओकर दीया बुझ जाइ अउर गहिर अँधियारा होइ जाइ।

21 बेइमानी स प्राप्त कीन्ह गवा सम्पत्ति अंत मँ आसीस नाही लाइहीं।

22 इ बुराई क बदला मइँ तोहसे लेब। अइसा तू जिन कहा, यहोवा क बाट जोहा तोहका उहइ अजाद करी।

23 यहोवा खोटे बटखरन, गलत तराजू अउ पेमाना स घिना करत ह। खोटा माप नीक नाहीं बाटइ।

24 यहोवा फैसला करत ह कि हर एक मनई क जिन्नगी मँ का होइ। कउनो मनई कइसा समुझ सकत ह कि ओकरे जिन्नगी मँ का घटइवाला अहइ?

25 परमेस्सर क कछू अर्पण करइ क प्रतिग्या स पहिले ही विचार ल्या; भली भाँति विचार ल्या। होइ सकत ह जदि तू पाछे अइसा सोचा, “मइँ उ प्रतिग्या नाहीं करत। किन्तु तोहका उ प्रतिग्या पूरा करइ क होइ जउन तू परमेस्सर स किहा ह।”

26 विवेकी राजा इ फैसला करत ह कि कउन बुरा जन अहइ। अउर उ राजा उ जन क सजा देइ।

27 यहोवा क दीपक जन क आतिमा क जाँच लेत ह। यहोवा जने क अन्दर तलक लखा सकत ह।

28 वफादारी अउर सच्चाइ राजा क सुरच्छित रखत ह। किन्तु ओकर सिंहासन सिरिफ ओकर वफादारी पइ टिकत ह।

29 नउजवानन क महिमा ओनके बल स होत ह अउर बृद्धन क गौरव ओनकर पके बाल अहइँ।

30 अगर हमका सजा दीन्ह जाइ तउ हम बुरा करब तजि देइत ह। दर्द मनई क परिवर्तन कइ सकत ह।

21 राजा लोगन क मन यहोवा क हाथे होत ह, जहाँ भी उ चाहत ह ओका मोड़ देत ह वइसे ही जइसे कउनो किसान पानी क खेते क।

सबहिं क आपन-आपन राहन उत्तिम लागत हीं; मुला यहोवा तउ मने क तउलत ह।

तोहार उ करम क करब जउन उचित अउर नेक अहइ यहोवा क जियादा चढ़ावा चढ़ावइ स ग्राह्य बाटइ।

घमण्डी आँखिन अउ दर्पीला मन पाप अहइँ इ सबइ दुट्ठ क दुट्ठता प्रकास मँ लिआवत हीं।

परिश्रमी क जोजनन फायदा देत हीं इ वइसे ही निहचित अहइ जइसे उतावली स गरीबी आवत ह।

झूठ बोलि बोलिके कमावा धन दौलत अउ महिमा भाप क नाईं स्थिर नाहीं अहइ। अउर नाहीं अहइ, अउ उ घातक फंदा बन जात ह।

दुट्ठ क हिंसा ओनका हींच लइ बूड़ी काहेकि उ पचे उचित करम करइ नाहीं चाहतेन।

अपराधी क मारग कुटिलतापूर्ण होत ह मुला जउन नीक अहइँ ओनकर राह सोझ सच्चा होत हीं।

झगड़ालू मेहरारू क संग घरे मँ निवास स, छत क कउने कोने पइ रहब नीक अहइ।

10 दुट्ठ जन हमेसा बुराइ करइ क इच्छुक रहत ह। ओकर पड़ोसी ओहसे दाया नाहीं पावत।

11 जब उच्छृंखल सजा पावत ह तब सरल जन क बुद्धि मिलि जात ह। मुला बुद्धिमान तउ डाँट फटकार करइ पइ ही गियान क पावत ह।

12 निआव स पूर्ण परमेस्सर दुट्ठ क घरे पइ आँखी धरत ह, अउर दुट्ठ जन क उ नास कइ देत ह।

13 अगर कउनो गरीब क, करुणा पुकार पइ कउनो मनई आपन कान बंद करत ह, तउ जब उ पुकारी तउ ओकर पुकार पइ भी कउनो उत्तर नाहीं दिहीं।

14 गुप्त रूप स दीन्ह गवा भेंट किरोध क सांत करत ह। अउर गुप्त रूप स दीन्ह गवा उपहार खउफनाक किरोध क सांत करत ह।

15 निआव जब पूर्ण होत ह धर्मी क सुख देत ह, मुला कुकमिर्यन क महा भय होत ह।

16 जउन मनई विवेक क पथ स भटकि जात ह, उ विस्राम करइ बरे मृतकन क साथी होइ जात ह।

17 जउन सुख भोगन स पिरेम करत रहत ह उ दरिद्र होइ जाइ, अउर जउन दाखरस अउ अतर स पिरेम करत ह कबहुँ धनी नाहीं होइ।

18 दुर्जन क कबहुँ ओन सबहिं चिजियन क फल भुगतइ क ही पड़ी, जउन सज्जन क खिलाफ करत हीं। बेईमान लोगन क ओनके किए गए क फल भुगतइ पड़ी जउन ईमानदार लोगन क विरुद्ध करत हीं।

19 चिड़चिड़ी झगड़ालू मेहरारू क संग रहइ स रेतिस्तान मँ रहब उचित अहइ।

20 विवेकी क घर मँ मनचाहा खइया क अउर इफरात तेल क भंडारा भरा होत ह मुला मूरख मनई जउन ओकरे लगे होत ह चट कइ जात ह।

21 जउन जन नेकी अउ पिरेम क पालन करत ह, उ जिन्नगी संपन्नता अउर समादर क पावत ह।

22 बुद्धिमान जन क कछू भी कठिन नाहीं अहइ। उ अइसे सहर पइ चढ़ाई कइ सकत ह जेकर रखवारी सूरवीर करत होइँ, उ उ परकोटे क ध्वस्त कइ सकत ह जेकरे बरे उ आपन सुरच्छा क बिस्सास मँ रहेन।

23 उ जउन आपन मुँह क अउर आपन जीभ क बस मँ राखत ह उ आपन आप क बिपत्ति स बचावत ह।

24 अइसा मनई अहंकारी होत ह, जउन आपन क औरन स स्रेस्ठ समुझत ह, ओकर नाउँ हीं “अभिमानी” होत ह। आपन ही करमन स उ देखाइ देत ह कि उ दुट्ठ होत ह।

25 आलसी मनई बरे ओकर ही सबइ लालसा ओकरे मरण क कारण बन जात हीं काहेकि ओकरे हाथे करम क नाहीं अपनउतेन।

26 कछू लालची लोग दिन भइ इच्छा करत ही कि ओका अउर मिलाइ। अउर किन्तु धर्मी जन तउ उदारता स देत ह।

27 दुट्ठ क चढ़ावा यूँ ही घिना स पूर्ण होत ह फिन केतना बुरा होइ जब उ ओका बुरे भाव स चढ़ावइ?

28 लबार गवाह क नास होइ जाइ अउर जउन ओकर झूठी बातन क सुनी उ भी ओकरे संग हमेसा सर्वदा बरे नस्ट होइ जाइ।

29 दुट्ठ मनई बुरा करइ बर ठान लेत ह। किन्तु एक ईमानदार व्यक्ति जानत ह कि ओकर राह सीधी अहइ।

30 जदि यहोवा न चाहइ तउ, न ही कउनो बुद्धि अउर न ही कउनो अन्तदृस्टि, न ही कउनो जोजनन पूरी होइ सकत ह।

31 जुद्ध क दिन तउ घोड़ा तैयार कीन्ह ह, मुला विजय तउ बस यहोवा पइ निर्भर अहइ।

2 कुरिन्थियन 7

पिआरे मित्रन, काहेकि हमरे लगे इ प्रतिज्ञाँ अहइँ, इही बरे आवा परमेस्सर क बरे स्रद्धा क कारण हम अपने पवित्रता क परिपूरन करत भए अपने बाहेर अउर भीतर सबन दोसन क धोइ डालेन। हमका परिपूर्ण होइ चाही जइसे हम जिअत अही, काहेकि हम परमेस्सर क सम्मान करित ह।

पौलुस क आनन्द

अपने मने मँ हमका स्थान द्या हम कउनो क कछू बिगाड़े नाहीं अही। हम कउनो क कउनउ ठेस नाही पहुँचाए अही। हम कउनो क साथे छल नाहीं किहे अही। मइँ तोहे दोसी ठहरावइ बरे अइसेन नाहीं करत अही काहेकि मइँ तोहे बताइ चुका अही कि तु तउ हमरे मने मँ बसत। हिआँ तलक कि हम तोहरे साथ मरई क अउर जिअइ क तइयार अही। मइँ तोहसे खुलकर कहत रहा हउँ कि तोहपे मोका बड़ा गरब बा। मइँ सुख चैन से अहउँ। आपन सब यातना झेलत मोका आनन्द उमड़त रहत ह।

जब हम मैसीडोनिया आइ रहे तबहुँ हमका आराम नाहीं मिल रहा, बल्कि हमका तउ सब तरह से दुख उठावइ पड़ा रहा बाहेर क झगड़न से अउर मन क भितर डर से। मुला दीन दुखिन क खुस करइवाला परमेस्सर त तीतुस क इहाँ पहुँचाइके हमाका सान्त्वना दिहे अहइ। अउर उहउ केवल ओनके इहाँ पहुँचेन की नाहीं बल्कि अइसे हमका अउर जियादा सान्त्वना मिली कि तू ओका केतना सुख दिहे अहा। उ हमका बताएस कि हमसे मिलइ क तू केतना बियाकुल अहा। तोहका हमार केतॅना चिन्ता बा। ऐसे हम अउर भी खुस भए।

जद्यपि अपने चिठ्ठी स मइँ तोहका दुख पहुँचाए हउँ मुला फिन भी मोका ओके लिखाई क खेद नाहीं बा। चाहे पहिले मोका एकर दुख भवा मुला अब मइँ देखत अही कि उ चिठ्ठी स तोहे बस पल भरे क दुख पहुँचाइ रहेउँ। तउ अब मइँ खुस हउँ। एह बरे नाही कि मइँ तोहका दुख पहुँचाए रहेउँ। बल्कि एह बरे कि उही दुखे क कारण से तू पछतावा किहे अहा। तोहका उ दुख भवा जेह तरह कि परमेस्सर चाहत रहा ताकि तोहका हमरे कारण कउनउ हानि न पहुँच पावइ। 10 काहेकि उ दुख जउन परमेस्सर की इच्छा क अनुसार होत ह एक अइसेन मनफिराव क जन्म देत ह जेहके बरे पछतावई क नाहीं पड़त अउ जउन मुक्ति देवॉवत ह। मुला उ दुख जउन संसारी होत ह, ओहसे तउ बस मउत जनम लेत ह। 11 देखा! इ दुख जउन परमेस्सर दिहे अहइ, उ तोहमें केतना उत्साह जगाइ दिहे बा। अपने भोलापन क केतॅना प्रतिरच्छा, केतना विरोध केतना आकुलता, हमसे मिलइ क केतनी बेचैनी, केतना साहस, पापी क बरे निआव चुकावइ क कइसेन भावना पैदा कइ दिहे बा। तू हर बाते मँ इ देखइ दिहे अहा कि एह बारे मँ तू केतना निर्दोस रह्या। 12 तउ इ मइँ तोहे लिखे रहे तउ उ मनई क कारण नाहीं जउन अपराधी रहा अउ न तउ ओकरे कारण जेनके प्रति अपराध किहा गवा रहा। बल्कि एह बरे लिखा गवा रहा कि परमेस्सर क सामने हमरे कारण तोहरे चिन्ता क तोहका बोध होइ जाए। 13 ऐसे हमका प्रोत्साहन मिला बा।

हमरे इ प्रोत्साहन क अलावा तीतुस क आनन्द स हम अउर जियादा आनन्दित भए काहेकि तू सबके कारण ओनके आतिमा क चइन मिला बा। 14 तोहरे बरे मइँ ओनसे जउन बढ़ चढ़ क बात किहे रहे, ओकरे बरे मोका लजाइ क नाहीं पड़ा रहा। बल्कि हम जइसे तोहसे सबकछू सच सच कहे रहे वइसेन ही तोहरे बारे मँ हमार गरब तीतुस क सामने सच सिद्ध भवा अहइ। 15 जब इ याद करत हा कि तू सब कउनो तरह ओनकर आगिया माना ह अउर डर क मारे थर थर काँपत भए तू कइसे ओनका सुवागत किहा तउ तोहरे बरे ओनकर पिरेम अउ जियादा बढ़ जात ह। 16 मइँ खुस अही कि मइँ तोहसे पूरा भरोसा रखी सकित ह।

Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)

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