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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
प्रेरितों के काम 5-6

हनन्याह और सफ़ीरा

हनन्याह नाम के एक व्यक्ति और उसकी पत्नी सफ़ीरा ने मिलकर अपनी सम्पत्ति का एक हिस्सा बेच दिया। और अपनी पत्नी की जानकारी में उसने इसमें से कुछ धन बचा लिया और कुछ धन प्रेरितों के चरणों में रख दिया।

इस पर पतरस ने कहा, “हे हनन्याह, शैतान को तूने अपने मन में यह बात क्यों डालने दी कि तूने पवित्र आत्मा से झूठ बोला और खेत को बेचने से मिले धन में से थोड़ा बचा कर रख लिया? उसे बेचने से पहले क्या वह तेरी ही नहीं थी? और जब तूने उसे बेच दिया तो वह धन क्या तेरे ही अधिकार में नहीं था? तूने इस बात की क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परमेश्वर से झूठ बोला है।”

5-6 हनन्याह ने जब ये शब्द सुने तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़ा और दम तोड़ दिया। जिस किसी ने भी इस विषय में सुना, सब पर गहरा भय छा गया। फिर जवान लोगों ने उठ कर उसे कफ़न में लपेटा और बाहर ले जाकर गाड़ दिया।

कोई तीन घण्टे बाद, जो कुछ घटा था, उससे अनजान उसकी पत्नी भीतर आयी। पतरस ने उससे कहा, “बता, तूने तेरे खेत क्या इतनें में ही बेचे थे?”

सो उसने कहा, “हाँ। इतने में ही।”

तब पतरस ने उससे कहा, “तुम दोनों प्रभु की आत्मा की परीक्षा लेने को सहमत क्यों हुए? देख तेरे पति को दफनाने वालों के पैर दरवाज़े तक आ पहुँचे हैं और वे तुझे भी उठा ले जायेंगे।” 10 तब वह उसके चरणों पर गिर पड़ी और मर गयी। फिर जवान लोग भीतर आये और मरा पा कर उसे उठा ले गये और उसके पति के पास ही उसे दफ़ना दिया। 11 सो समूची कलीसिया और जिस किसी ने भी इन बातों को सुना, उन सब पर गहरा भय छा गया।

प्रमाण

12 प्रेरितों द्वारा लोगों के बीच बहुत से चिन्ह प्रकट हो रहे थे और आश्चर्यकर्म किये जा रहे थे। वे सभी सुलैमान के दालान में एकत्र थे। 13 उनमें सम्मिलित होने का साहस कोई नहीं करता था। पर लोग उनकी प्रशंसा अवश्य करते थे। 14 उधर प्रभु पर विश्वास करने वाले स्त्री और पुरूष अधिक से अधिक बढ़ते जा रहे थे। 15 परिणामस्वरूप लोग अपने बीमारों को लाकर चारपाइयों और बिस्तरों पर गलियों में लिटाने लगे ताकि जब पतरस उधर से निकले तो उनमें से कुछ पर कम से कम उसकी छाया ही पड़ जाये। 16 यरूशलेम के आसपास के नगरों से अपने बीमारों और दुष्टात्माओं से पीड़ित लोगों को लेकर झुँड के झुँड लोग आने लगे, और वे सभी अच्छे हो जाया करते थे।

यहूदियों का प्रेरितों को रोकने का जतन

17 फिर महायाजक और उसके साथी, यानी सदूकियों का दल, उनके विरोध में खड़े हो गये। वे ईर्ष्या से भरे हुए थे। 18 सो उन्होंने प्रेरितों को बंदी बना लिया और उन्हें सार्वजनिक बंदीगृह में डाल दिया। 19 किन्तु रात के समय प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बंदीगृह के द्वार खोल दिये। उसने उन्हें बाहर ले जाकर कहा, 20 “जाओ, मन्दिर में खड़े हो जाओ और इस नये जीवन के विषय में लोगों को सब कुछ बताओ।” 21 जब उन्होंने यह सुना तो भोर के तड़के वे मन्दिर में प्रवेश कर गये और उपदेश देने लगे।

फिर जब महायाजक और उसके साथी वहाँ पहुँचे तो उन्होंने यहूदी संघ तथा इस्राएल के बुजुर्गों की पूरी सभा बुलायी। फिर उन्होंने बंदीगृह से प्रेरितों को बुलावा भेजा। 22 किन्तु जब अधिकारी बंदीगृह में पहुँचे तो वहाँ उन्हें प्रेरित नहीं मिले। उन्होंने लौट कर इसकी सूचना दी और 23 कहा, “हमें बंदीगृह की सुरक्षा के ताले लगे हुए और द्वारों पर सुरक्षा-कर्मी खड़े मिले थे किन्तु जब हमने द्वार खोले तो हमें भीतर कोई नहीं मिला।” 24 मन्दिर के रखवालों के मुखिया ने और महायाजकों ने जब ये शब्द सुने तो वे उनके बारे में चक्कर में पड़ गये और सोचने लगे, “अब क्या होगा।”

25 फिर किसी ने भीतर आकर उन्हें बताया, “जिन लोगों को तुमने बंदीगृह में डाल दिया था, वे मन्दिर में खड़े लोगों को उपदेश दे रहे हैं।” 26 सो मन्दिर के सुरक्षा-कर्मियों का मुखिया अपने अधिकारियों के साथ वहाँ गया और प्रेरितों को बिना बल प्रयोग किये वापस ले आया क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग उन्हें (मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों को) पत्थर न मारें।

27 वे उन्हें भीतर ले आये और सर्वोच्च यहूदी सभा के सामने खड़ा कर दिया। फिर महायाजक ने उनसे पूछते हुए कहा, 28 “हमने इस नाम से उपदेश न देने के लिए तुम्हें कठोर आदेश दिया था और तुमने फिर भी समूचे यरूशलेम को अपने उपदेशों से भर दिया है। और तुम इस व्यक्ति की मृत्यु का अपराध हम पर लादना चाहते हो।”

29 पतरस और दूसरे प्रेरितों ने उत्तर दिया, “हमें मनुष्यों की अपेक्षा परमेश्वर की बात माननी चाहिये। 30 उस यीशु को हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मृत्यु से फिर जिला कर खड़ा कर दिया है जिसे एक पेड़ पर लटका कर तुम लोगों ने मार डाला था। 31 उसे ही प्रमुख और उद्धारकर्ता के रूप में महत्त्व देते हुए परमेश्वर ने अपने दाहिने स्थित किया है ताकि इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान की जा सके। 32 इन सब बातों के हम साक्षी हैं और वैसे ही वह पवित्र आत्मा भी है जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।”

33 जब उन्होंने यह सुना तो वे आग बबूला हो उठे और उन्हें मार डालना चाहा। 34 किन्तु महासभा में से एक गमलिएल नामक फ़रीसी, जो धर्मशास्त्र का शिक्षक भी था, तथा जिसका सब लोग आदर करते थे, खड़ा हुआ और आज्ञा दी कि इन्हें थोड़ी देर के लिये बाहर कर दिया जाये। 35 फिर वह उनसे बोला, “इस्राएल के पुरूषो, तुम इन लोगों के साथ जो कुछ करने पर उतारू हो, उसे सोच समझ कर करना। 36 कुछ समय पहले अपने आपको बड़ा घोषित करते हुए थियूदास प्रकट हुआ था। और कोई चार सौ लोग उसके पीछे भी हो लिये थे, पर वह मार डाला गया और उसके सभी अनुयायी तितर-बितर हो गये। परिणाम कुछ नहीं निकला। 37 उसके बाद जनगणना के समय गलील का रहने वाला यहूदा प्रकट हुआ। उसने भी कुछ लोगों को अपने पीछे आकर्षित कर लिया था। वह भी मारा गया। उसके भी सभी अनुयायी इधर उधर बिखर गये। 38 इसीलिए इस वर्तमान विषय में मैं तुमसे कहता हूँ, इन लोगों से अलग रहो, इन्हें ऐसे अकेले छोड़ दो क्योंकि इनकी यह योजना या यह काम मनुष्य की ओर से है तो स्वयं समाप्त हो जायेगा। 39 किन्तु यदि यह परमेश्वर की ओर से है तो तुम उन्हें रोक नहीं पाओगे। और तब हो सकता है तुम अपने आपको ही परमेश्वर के विरोध में लड़ते पाओ!”

उन्होंने उसकी सलाह मान ली। 40 और प्रेरितों को भीतर बुला कर उन्होंने कोड़े लगवाये और यह आज्ञा देकर कि वे यीशु के नाम की कोई चर्चा न करें, उन्हें चले जाने दिया। 41 सो वे प्रेरित इस बात का आनन्द मनाते हुए कि उन्हें उसके नाम के लिये अपमान सहने योग्य गिना गया है, यहूदी महासभा से चले गये। 42 फिर मन्दिर और घर-घर में हर दिन इस सुसमाचार का कि यीशु मसीह है उपदेश देना और प्रचार करना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।

विशेष कार्य के लिए सात पुरूषों का चुना जाना

उन्ही दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ रही थी, तो यूनानी बोलने वाले और इब्रानी बोलने वाले यहूदियों में एक विवाद उठ खड़ा हुआ क्योंकि वस्तुओं के दैनिक वितरण में उनकी विधवाओं के साथ उपेक्षा बरती जा रही थी।

सो बारहों प्रेरितों ने शिष्यों की समूची मण्डली को एक साथ बुला कर कहा, “हमारे लिये परमेश्वर के वचन की सेवा को छोड़ कर भोजन का प्रबन्ध करना उचित नहीं है। सो बंधुओ अच्छी साख वाले पवित्र आत्मा और सूझबूझ से पूर्ण सात पुरूषों को अपने में से चुन लो। हम उन्हें इस काम का अधिकारी बना देंगे। और अपने आपको प्रार्थना और वचन की सेवा के कामों में समर्पित रखेंगे।”

इस सुझाव से सारी मण्डली बहुत प्रसन्न हुई। (सो उन्होंने विश्वास और पवित्र आत्मा से युक्त) स्तिफनुस नाम के व्यक्ति को और फिलिप्पुस, प्रखुरूप, नीकानोर, तिमोन, परमिनास और (अन्ताकिया के निकुलाऊस को, जिसने यहूदी धर्म अपना लिया था,) चुन लिया। और इन लोगों को फिर उन्होंने प्रेरितों के सामने उपस्थित कर दिया। प्रेरितों ने प्रार्थना की और उन पर हाथ रखे।

इस प्रकार परमेश्वर का वचन फैलने लगा और यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी। याजकों का एक बड़ा समूह भी इस मत को मानने लगा था।

यहूदियों द्वारा स्तिफनुस का विरोध

स्तिफनुस एक ऐसा व्यक्ति था जो अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण था। वह लोगों के बीच बड़े-बड़े आश्चर्य कर्म और अद्भुत चिन्ह प्रकट किया करता था। किन्तु तथाकथित स्वतन्त्र किये गये लोगों के आराधनालय के कुछ लोग जो कुरेनी और सिकन्दरिया से तथा किलिकिया और एशिया से आये यहूदी थे, वे उसके विरोध में वाद-विवाद करने लगे। 10 किन्तु वह जिस बुद्धिमानी और आत्मा से बोलता था, वे उसके सामने नहीं ठहर सके।

11 फिर उन्होंने कुछ लोगों को लालच देकर कहलवाया, “हमने मूसा और परमेश्वर के विरोध में इसे अपमानपूर्ण शब्द कहते सुना है।” 12 इस तरह उन्होंने जनता को, बुजुर्ग यहूदी नेताओं को और यहूदी धर्मशास्त्रियों को भड़का दिया। फिर उन्होंने आकर उसे पकड़ लिया और सर्वोच्च यहूदी महासभा के सामने ले आये।

13 उन्होंने वे झूठे गवाह पेश किये जिन्होंने कहा, “यह व्यक्ति इस पवित्र स्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलते कभी रुकता ही नहीं है। 14 हमने इसे कहते सुना है कि यह नासरी यीशु इस स्थान को नष्ट-भ्रष्ट कर देगा और मूसा ने जिन रीति-रिवाजों को हमें दिया है उन्हें बदल देगा।” 15 फिर सर्वोच्च यहूदी महासभा में बैठे हुए सभी लोगों ने जब उसे ध्यान से देखा तो पाया कि उसका मुख किसी स्वर्गदूत के मुख के समान दिखाई दे रहा था।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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