Read the New Testament in 24 Weeks
पाँचवीं तुरही
9 जब पाँचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो मैंने आकाश से पृथ्वी पर गिरा हुआ एक तारा देखा. उस तारे को अथाह गड्ढे की कुंजी दी गई. 2 उसने अथाह गड्ढे का द्वार खोला तो उसमें से धुआँ निकला, जो विशाल भट्टी के धुएँ के समान था. अथाह गड्ढे के इस धुएँ से सूर्य और आकाश निस्तेज और वायुमण्डल काला हो गया. 3 इस धुएँ में से टिड्डियाँ निकल कर पृथ्वी पर फैल गईं. उन्हें वही शक्ति दी गई, जो पृथ्वी पर बिच्छुओं की होती है. 4 उनसे कहा गया कि वे पृथ्वी पर न तो घास को हानि पहुंचाएं, न हरी वनस्पति को और न ही किसी पेड़ को परन्तु सिर्फ़ उन्हीं को, जिनके माथे पर परमेश्वर की मोहर नहीं है. 5 उन्हें किसी के प्राण लेने की नहीं परन्तु सिर्फ़ पाँच माह तक घोर पीड़ा देने की ही आज्ञा दी गई थी. यह पीड़ा वैसी ही थी, जैसी बिच्छू के ड़ंक से होती है. 6 उन दिनों में मनुष्य अपनी मृत्यु को खोजेंगे किन्तु उसे पाएँगे नहीं, वे मृत्यु की कामना तो करेंगे किन्तु मृत्यु उनसे दूर भागेगी.
7 ये टिड्डियाँ देखने में युद्ध के लिए सुसज्जित घोड़ों जैसी थीं. उनके सिर पर सोने के मुकुट-सा कुछ था. उनका मुखमण्डल मनुष्य के मुखमण्डल जैसा था. 8 उनके बाल स्त्री बाल जैसे तथा उनके दाँत सिंह के दाँत जैसे थे. 9 उनका शरीर मानो लोहे के कवच से ढँका हुआ था. उनके पंखों की आवाज़ ऐसी थी, जैसी युद्ध में अनेक घोड़े जुते हुए दौड़ते रथों की होती है. 10 उनकी पूँछ बिच्छू के डंक के समान थी और उनकी पूँछ में ही मनुष्यों को पाँच माह तक पीड़ा देने की क्षमता थी. 11 अथाह गड्ढे का अपदूत उनके लिए राजा के रूप में था. इब्री भाषा में उसे अबादोन तथा यूनानी में अपोलियॉन कहा जाता है.
12 पहिली विपत्ति समाप्त हुई किन्तु इसके बाद दो अन्य विपत्तियां अभी बाकी हैं.
छठी तुरही
13 जब छठे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो मैंने परमेश्वर के सामने स्थापित सोने की वेदी के चारों सींगों से आता हुआ एक शब्द सुना, 14 जो छठे स्वर्गदूत के लिए, जिसने तुरही फूँकी थी, यह आज्ञा थी, “महानद यूफ़्रातेस में जो चार स्वर्गदूत बन्दी हैं, उन्हें आज़ाद कर दो,” 15 इसलिए वे चारों स्वर्गदूत, जो इसी क्षण, दिन, माह और वर्ष के लिए तैयार रखे गए थे, एक तिहाई मनुष्यों का संहार करने के लिए आज़ाद कर दिए गए. 16 मुझे बताया गया कि घुड़सवारों की सेना की संख्या बीस करोड़ है.
17 मैंने दर्शन में घोड़े और उन्हें देखा, जो उन पर बैठे थे. उनके कवच आग के समान लाल, धूम्रकान्त तथा गन्धक जैसे पीले रंग के थे. घोड़ों के सिर सिंहों के सिर जैसे थे तथा उनके मुँह से आग, गन्धक तथा धुआँ निकल रहा था. 18 उनके मुँह से निकल रही तीन महामारियों—आग, गन्धक तथा धुएँ से एक तिहाई मनुष्य नाश हो गए, 19 उन घोड़ों की क्षमता उनके मुँह तथा पूँछ में मौजूद थी क्योंकि उनकी पूँछें सिर वाले साँपों के समान थीं, जिनके द्वारा वे पीड़ा देते थे.
20 शेष मनुष्यों ने, जो इन महामारियों से नाश नहीं हुए थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया—उन्होंने प्रेतों तथा सोने, चांदी, काँसे, पत्थर और लकड़ी की मूर्तियों की, जो न तो देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही चल सकती हैं, उपासना करना न छोड़ा 21 और न ही उन्होंने हत्या, जादू-टोना, लैंगिक व्यभिचार तथा चोरी करना छोड़ा.
निकट आता अन्तिम दण्ड
10 तब मुझे स्वर्ग से उतरता हुआ एक दूसरा शक्तिशाली स्वर्गदूत दिखाई दिया, जिसने बादल को कपड़ों के समान धारण किया हुआ था, उसके सिर के ऊपर सात रंगों का मेघ-धनुष था, उसका चेहरा सूर्य-सा तथा पैर आग के खम्भे के समान थे. 2 उसके हाथ में एक छोटी पुस्तिका खुली हुई थी. उसने अपना दायाँ पांव समुद्र पर तथा बायाँ भूमि पर रखा. 3 वह ऊँचे शब्द में सिंह गर्जन जैसे पुकार उठा. उसके पुकारने पर सात बादलों के गर्जन भी पुकार उठे. 4 जब सात बादलों के गर्जन बोल चुके, मैं लिखने के लिए तैयार हुआ ही था; पर मैंने स्वर्ग से यह आवाज़ सुनी, “जो कुछ सात बादलों के गर्जन ने कहा है, उसे लिखो मत परन्तु मुहरबन्द कर दो.”
5 तब उस स्वर्गदूत ने, जिसे मैंने समुद्र तथा भूमि पर खड़े हुए देखा था, अपना दायाँ हाथ स्वर्ग की ओर उठाया 6 और उसने उनकी, जो हमेशा-हमेशा के लिए जीवित हैं, जिन्होंने स्वर्ग और उसमें बसी सब वस्तुओं को, पृथ्वी तथा उसमें बसी सब वस्तुओं को तथा समुद्र तथा उसमें बसी सब वस्तुओं को बनाया है, शपथ खाते हुए यह कहा: “अब और देर न होगी. 7 उस समय, जब सातवां स्वर्गदूत तुरही फूंकेगा, परमेश्वर अपनी गुप्त योजनाएँ पूरी करेंगे, जिनकी घोषणा उन्होंने अपने दासों—अपने भविष्यद्वक्ताओं से की थी.”
स्वर्गदूत तथा पुस्तिका
8 जो शब्द मैंने स्वर्ग से सुना था, उसने दोबारा मुझे सम्बोधित करते हुए कहा, “जाओ! उस स्वर्गदूत के हाथ से, जो समुद्र तथा भूमि पर खड़ा है, वह खुली हुई पुस्तिका ले लो.”
9 मैंने स्वर्गदूत के पास जाकर उससे वह पुस्तिका माँगी. उसने मुझे वह पुस्तिका देते हुए कहा, “लो, इसे खा लो. यह तुम्हारे उदर को तो खट्टा कर देगी किन्तु तुम्हारे मुँह में यह शहद के समान मीठी लगेगी.” 10 मैंने स्वर्गदूत से वह पुस्तिका लेकर खा ली. मुझे वह मुँह में तो शहद के समान मीठी लगी किन्तु खा लेने पर मेरा उदर खट्टा हो गया. 11 तब मुझसे कहा गया, “यह ज़रूरी है कि तुम दोबारा अनेक प्रजातियों, राष्ट्रों, भाषाओं तथा राजाओं के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करो.”
दो गवाह
11 तब मुझे एक सरकण्डा दिया गया, जो मापने के यन्त्र जैसा था तथा मुझसे कहा गया, “जाओ, परमेश्वर के मन्दिर तथा वेदी का माप लो तथा वहाँ उपस्थित उपासकों की गिनती करो, 2 किन्तु मन्दिर के बाहरी आँगन को छोड़ देना, उसे न मापना क्योंकि वह अन्य राष्ट्रों को सौंप दिया गया है. वे पवित्र नगर को बयालीस माह तक रौन्देंगे. 3 मैं अपने दो गवाहों को, जिनका वस्त्र टाट का है, 1,260 दिन तक भविष्यवाणी करने की प्रदान करूँगा.” 4 ये दोनों गवाह ज़ैतून के दो पेड़ तथा दो दीपदान हैं, जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े हैं. 5 यदि कोई उन्हें हानि पहुंचाना चाहे तो उनके मुँह से आग निकल कर उनके शत्रुओं को चट कर जाती है. यदि कोई उन्हें हानि पहुंचाना चाहे तो उसका इसी रीति से विनाश होना तय है. 6 इनमें आकाश को बन्द कर देने की सामर्थ्य है कि उनके भविष्यवाणी के दिनों में वर्षा न हो. उनमें जल को लहू में बदल देने की तथा जब-जब वे चाहें, पृथ्वी पर महामारी का प्रहार करने की क्षमता है.
7 जब वे अपनी गवाही दे चुकें होंगे तो वह हिंसक पशु, जो उस अथाह गड्ढे में से निकलेगा, उनसे युद्ध करेगा और उन्हें हरा कर उनका विनाश कर डालेगा. 8 उनके शव उस महानगर के चौक में पड़े रहेंगे, जिसका सांकेतिक नाम है सोदोम तथा मिस्र, जहाँ उनके प्रभु को क्रूस पर भी चढ़ाया गया था. 9 प्रजातियों, कुलों, भाषाओं तथा राष्ट्रों के लोग साढ़े तीन दिन तक उनके शवों को देखने के लिए आते रहेंगे और वे उन शवों को दफ़नाने की अनुमति न देंगे. 10 पृथ्वी के निवासी उनकी मृत्यु पर आनन्दित हो खुशी का उत्सव मनाएंगे—यहाँ तक कि वे एक दूसरे को उपहार भी देंगे क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने पृथ्वी के निवासियों को अत्याधिक ताड़नाएं दी थी.
11 साढ़े तीन दिन पूरे होने पर परमेश्वर की ओर से उनमें जीवन की साँस का प्रवेश हुआ और वे खड़े हो गए. यह देख उनके दर्शकों में भय समा गया. 12 तब स्वर्ग से उन्हें संबोधित करता हुआ एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, “यहाँ ऊपर आओ!” और वे शत्रुओं के देखते-देखते बादलों में से स्वर्ग में उठा लिए गए.
13 उसी समय एक भीषण भूकम्प आया, जिससे नगर का एक दसवां भाग नाश हो गया. इस भूकम्प में सात हज़ार व्यक्ति मर गए. शेष जीवित व्यक्तियों में भय समा गया और वे स्वर्ग के परमेश्वर का धन्यवाद-महिमा करने लगे.
14 दूसरी विपदा समाप्त हुई, तीसरी विपदा शीघ्र आ रही है.
सातवीं तुरही
15 जब सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो स्वर्ग से ये तरह-तरह की आवाज़ें सुनाई देने लगीं:
“संसार का राज्य अब हमारे प्रभु तथा उनके मसीह का राज्य हो गया है.
वही युगानुयुग राज्य करेंगे.”
16 तब उन चौबीसों पुरनियों ने, जो अपने-अपने सिंहासन पर बैठे थे, परमेश्वर के सामने दण्डवत् हो यह कहते हुए उनका धन्यवाद किया:
17 “सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर!
हम आपका, जो हैं और जो थे,
आभार मानते हैं कि आपने अपने अवर्णनीय अधिकारों को स्वीकार कर अपने राज्य का आरम्भ किया है.
18 राष्ट्र क्रोधित हुए.
उन पर आपका क्रोध आ पड़ा.
अब समय आ गया है कि मरे हुओं का न्याय किया जाए.
आपके दासों—भविष्यद्वक्ताओं, पवित्र लोगों तथा आपके सभी श्रद्धालुओं को,
चाहे वे साधारण हों या विशेष, और
उनका बदला दिया जाए तथा आपके द्वारा उन्हें नाश किया जाए,
जिन्होंने पृथ्वी को गंदा कर रखा है.”
19 तब परमेश्वर का मन्दिर, जो स्वर्ग में है, खोल दिया गया और उस मन्दिर में उनकी वाचा का संदूक दिखाई दिया. उसी समय बिजली कौन्धी, गड़गड़ाहट तथा बादलों का गरजना हुआ, एक भीषण भूकम्प आया और बड़े-बड़े ओले पड़े.
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