M’Cheyne Bible Reading Plan
शिमशोन का विवाह
14 शिमशोन तिम्ना नगर को गया। उसने वहाँ एक पलिश्ती युवती को देखा। 2 जब वह वापस लौटा तो उसने अपने माता पिता से कहा, “मैंने एक पलिश्ती लड़की को तिम्ना में देखा है। मैं चाहता हूँ तुम उसे मेरे लिये लाओ। मैं उससे विवाह करना चाहता हूँ।”
3 उसके पिता और माता ने उत्तर दिया, “किन्तु इस्राएल के लोगों में से एक लड़की है जिससे तुम विवाह कर सकते हो। क्या तुम पलिश्ती लोगों में से एक लड़की से विवाह करोगे? उन लोगों का खतना भी नहीं होता।”
किन्तु शिमशोन ने कहा, “मेरे लिये वही लड़की लाओ। मैं उसे ही चाहता हूँ।” 4 (शिमशोन के माता पिता नहीं समझते थे कि यहोवा ऐसा ही होने देना चाहता है। यहोवा कोई रास्ता ढूँढ रहा था, जिससे वह पलिश्ती लोगों के विरुद्ध कुछ कर सके। उस समय पलिश्ती लोग इस्राएल के लोगों पर शासन कर रहे थे।)
5 शिमशोन अपने माता—पिता के साथ तिम्ना नगर को गया। वे नगर के निकट अंगूर के खेतों तक गए। उस स्थान पर एक जवान सिंह गरज उठा और शिमशोन पर कूदा। 6 यहोवा की आत्मा बड़ी शक्ति से शिमशोन पर उतरी। उसने अपने खाली हाथों से ही सिंह को चीर डाला। यह उसके लिये सरल मालूम हुआ। यह वैसा सरल हुआ जैसा एक बकरी के बच्चे को चीरना। किन्तु शिमशोन ने अपने माता पिता को नहीं बताया कि उसने क्या किया है।
7 इसलिए शिमशोन नगर में गया और उसने पलिश्ती लड़की से बातें कीं। उसने उसे प्रसन्न किया। 8 कई दिन बाद शिमशोन उस पलिश्ती लड़की के साथ विवाह करने के लिये वापस आया। आते समय रास्ते में वह मरे सिंह को देखने गया। उसने मरे सिंह के शरीर में मधुमक्खियों का एक छत्ता पाया। उन्होंने कुछ शहद तैयार कर लिया था। 9 शिमशोन ने अपने हाथ से कुछ शहद निकाला। वह शहद चाटता हुआ रास्ते पर चल पड़ा। जब वह अपने मात—पिता के पास आया तो उसने उन्हें कुछ शहद दिया। उन्होंने भी उसे खाया किन्तु शिमशोन ने अपने माता—पिता को नहीं बताया कि उसने मरे सिंह के शरीर से शहद लिया है।
10 शिमशोन का पिता पलिश्ती लड़की को देखने गया। दूल्हे के लिये यह रिवाज था कि उसे एक दावत देनी होती थी। इसलिए शिमशोन ने दावत दी। 11 जब लोगों ने देखा कि वह एक दावत दे रहा है तो उन्होंने उसके साथ तीस व्यक्ति भेजे।
12 तब शिमशोन ने उन तीस व्यक्तियों से कहा, “मैं तुम्हें एक पहेली सुनाना चाहता हूँ। यह दावत सात दिन तक चलेगी। उस समय उत्तर ढूँढने की कोशिश करना। यदि तुम पहेली का उत्तर उस समय के अन्दर दे सके तो मैं तुम्हें तीस सूती कमीज़ें, तीस वस्त्रों के जोड़े दूँगा। 13 किन्तु यदि तुम इसका उत्तर न निकाल सके तो तुम्हें तीस सूती कमीज़ें और तीस जोड़े वस्त्र मुझे देने होंगे।” अत: तीस व्यक्तियों ने कहा, “पहले अपनी पहेली सुनाओ, हम इसे सुनना चाहते हैं।”
14 शिमशोन ने यह पहेली सुनाईः
“खाने वाले में से खाद्य वस्तु।
और शक्तिशाली में से मधुर वस्तु निकली।”
अत: तीस व्यक्तियों ने तीन दिन तक इसका उत्तर ढूँढने का प्रयत्न किया, किन्तु वे कोई उत्तर न पा सके।
15 चौथे दिन[a] वे व्यक्ति शिमशोन की पत्नी के पास आए। उन्हों ने कहा, “क्या तुमने हमें गरीब बनाने के लिये यहाँ बुलाया है? तुम अपने पति को, हम लोगों को पहेली का उत्तर देने के लिये फुसलाओ। यदी तुम हम लोगों के लिये उत्तर नहीं निकालती तो हम लोग तुम्हें और तुम्हारे पिता के घर में रहने वाले सभी लोगों को जला देंगे।”
16 इसलिए शिमशोन की पत्नी उसके पास गई और रोने—चिल्लाने लगी। उसने कहा, “तुम मुझसे घृणा करते हो। तुम मुझसे सच्चा प्रेम नहीं करते हो। तुमने मेरे लोगों को एक पहेली सुनाई है और तुम उसका उत्तर मुझे नहीं बता सकते।”
17 शिमशोन की पत्नी दावत के शेष सात दिन तक रोती चिल्लाती रही। अत: अन्त में उसने सातवें दिन पहेली का उत्तर उसे दे दिया। उसने बता दिया क्योंकि वह उसे बराबर परेशान कर रही थी। तब वह अपने लोगों के बीच गई और उन्हें पहेली का उत्तर दे दिया।
18 इस प्रकार दावत वाले सातवें दिन सूरज के डूबने से पहले पलिश्ती लोगों के पास पहेली का उत्तर था। वे शिमशोन के पास आए और उन्होंने कहा,
“शहद से मीठा क्या है?
सिंह से अधिक शक्तिशाशी कौन है?”
तब शिमशोन ने उनसे कहा,
“यदि तुम ने मेरी गाय को न जोता होता तो,
मेरी पहेली का हल नहीं निकाल पाए होते!”
19 शिमशोन बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा की आत्मा उसके ऊपर बड़ी शक्ति के साथ आई। वह आश्कलोन नगर को गया। उस नगर में उसने उनके तीस व्यक्तियों को मारा। तब उसने सारे वस्त्र और शवों से सारी सम्पत्ति ली। वह उन वस्त्रों को लेकर लौटा और उन व्यक्तियों को दिया, जिन्होने पहली का उत्तर दिया था। तब वह अपने पिता के घर लौटा। 20 शिमशोन अपनी पत्नी को नहीं ले गया। विवाह समारोह में उपस्थित सबसे अच्छे व्यक्ति ने उसे रख लिया।
पौलुस कुरिन्थियुस में
18 इसके बाद पौलुस एथेंस छोड़ कर कुरिन्थियुस चला गया। 2 वहाँ वह पुन्तुस के रहने वाले अक्विला नाम के एक यहूदी से मिला। जो हाल में ही अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इटली से आया था। उन्होंने इटली इसलिए छोड़ी थी कि क्लौदियुस ने सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने का आदेश दिया था। सो पौलुस उनसे मिलने गया। 3 और क्योंकि उनका काम धन्धा एक ही था सो वह उन ही के साथ ठहरा और काम करने लगा। व्यवसाय से वे तम्बू बनाने वाले थे।
4 हर सब्त के दिन वह यहूदी आराधनालयों में तर्क-वितर्क करके यहूदियों और यूनानियों को समझाने बुझाने का जतन करता। 5 जब वे मकिदुनिया से सिलास और तिमुथियुस आये तब पौलुस ने अपना सारा समय वचन के प्रचार में लगा रखा था। वह यहूदियों को यह प्रमाणित किया करता था कि यीशु ही मसीह है। 6 सो जब उन्होंने उसका विरोध किया और उससे भला बुरा कहा तो उसने उनके विरोध में अपने कपड़े झाड़ते हुए उनसे कहा, “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पड़े। उसका मुझ से कोई सरोकार नहीं है। अब से आगे मैं ग़ैर यहूदियों के पास चला जाऊँगा।”
7 इस तरह पौलुस वहाँ से चल पड़ा और तीतुस यूसतुस नाम के एक व्यक्ति के घर गया। वह परमेश्वर का उपासक था। उसका घर यहूदी आराधनालय से लगा हुआ था। 8 क्रिसपुस ने, जो यहूदी आराधनालय का प्रधान था, अपने समूचे घराने के साथ प्रभु में विश्वास ग्रहण किया। साथ ही उन बहुत से कुरिन्थियों ने जिन्होंने पौलुस का प्रवचन सुना था, विश्वास ग्रहण करके बपतिस्मा लिया।
9 एक रात सपने में प्रभु ने पौलुस से कहा, “डर मत, बोलता रह और चुप मत हो। 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। सो तुझ पर हमला करके कोई भी तुझे हानि नहीं पहुँचायेगा क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” 11 सो पौलुस, वहाँ डेढ़ साल तक परमेश्वर के वचन की उनके बीच शिक्षा देते हुए, ठहरा।
पौलुस का गल्लियों के सामने लाया जाना
12 जब अखाया का राज्यपाल गल्लियो था तभी यहूदी एक जुट हो कर पौलुस पर चढ़ आये और उसे पकड़ कर अदालत में ले गये। 13 और बोले, “यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की उपासना ऐसे ढंग से करने के लिये बहका रहा है जो व्यवस्था के विधान के विपरीत है।”
14 पौलुस अभी अपना मुँह खोलने को ही था कि गल्लियो ने यहूदियो से कहा, “अरे यहूदियों, यदि यह विषय किसी अन्याय या गम्भीर अपराध का होता तो तुम्हारी बात सुनना मेरे लिये न्यायसंगत होता। 15 किन्तु क्योंकि यह विषय शब्दों नामों और तुम्हारी अपनी व्यवस्था के प्रश्नों से सम्बन्धित है, इसलिए इसे तुम अपने आप ही निपटो। ऐसे विषयों में मैं न्यायाधीश नहीं बनना चाहता।” 16 और फिर उसने उन्हें अदालत से बाहर निकाल दिया।
17 सो उन्होंने आराधनालय के नेता सोस्थिनेस को धर दबोचा और अदालत के सामने ही उसे पीटने लगे। किन्तु गल्लियो ने इन बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया।
पौलुस की वापसी
18 बहुत दिनों बाद तक पौलुस वहाँ ठहरा रहा। फिर भाइयों से विदा लेकर वह नाव के रास्ते सीरिया को चल पड़ा। उसके साथ प्रिसकिल्ला तथा अक्विला भी थे। पौलुस ने किंखिया में अपने केश उतरवाये क्योंकि उसने एक मन्नत मानी थी। 19 फिर वे इफिसुस पहुँचे और पौलुस ने प्रिसकिल्ला और अक्विला को वहीं छोड़ दिया। और आप आराधनालय में जाकर यहूदियों के साथ बहस करने लगा। 20 जब वहाँ के लोगों ने उससे कुछ दिन और ठहरने को कहा तो उसने मना कर दिया। 21 किन्तु जाते समय उसने कहा, “यदि परमेश्वर की इच्छा हुई तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” फिर उसने इफिसुस से नाव द्वारा यात्रा की।
22 फिर कैसरिया पहुँच कर वह यरूशलेम गया और वहाँ कलीसिया के लोगों से भेंट की। फिर वह अन्ताकिया की ओर चला गया। 23 वहाँ कुछ समय बिताने के बाद उसने विदा ली और गलातिया एवम् फ्रूगिया के क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते हुए सभी अनुयायिओं के विश्वास को बढ़ाने लगा।
इफिसुस में अपुल्लोस
24 वहीं अपुल्लोस नाम का एक यहूदी था। वह सिकंदरिया का निवासी था। वह विद्वान वक्ता था। वह इफिसुस में आया। शास्त्रों का उसे सम्पूर्ण ज्ञान था। 25 उसे प्रभु के मार्ग की दीक्षा भी मिली थी। वह हृदय में उत्साह भर कर प्रवचन करता तथा यीशु के विषय में बड़ी सावधानी से उपदेश देता था। यद्यपि उसे केवल यूहन्ना के बपतिस्मा का ही ज्ञान था। 26 यहूदी आराधनालय में वह निर्भय हो कर बोलने लगा। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने उसे बोलते सुना तो वे उसे एक ओर ले गये और अधिक बारीकी के साथ उसे परमेश्वर के मार्ग की व्याख्या समझाई।
27 सो जब उसने अखाया को जाना चाहा तो भाइयों ने उसका साहस बढ़ाया और वहाँ के अनुयायिओं को उसका स्वागत करने को लिख भेजा। जब वह वहाँ पहुँचा तो उनके लिये बड़ा सहायक सिद्ध हुआ जिन्होंने परमेश्वर के अनुग्रह से विश्वास ग्रहण कर लिया था। 28 क्योंकि शास्त्रों से यह प्रमाणित करते हुए कि यीशु ही मसीह है, उसने यहूदियों को जनता के बीच जोरदार शब्दों में बोलते हुए शास्त्रार्थ में पछाड़ा था।
यहोवा ने नबूकदनेस्सर को शासक बनाया है
27 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहूदा के राजा सिदकिय्याह के राज्यकाल के चौथे वर्ष यह आया। सिदकिय्याह राजा योशिय्याह का पुत्र था। 2 यहोवा ने मुझसे जो कहा, वह यह है: “यिर्मयाह, छड़ और चमड़े की पट्टियों से जुवा बनाओ। उस जुवा को अपनी गर्दन के पीछे की ओर रखो। 3 तब एदोम, मोआब, अम्मोन, सोर और सीदोन के राजाओं को सन्देश भेजो। ये सन्देश इन राजाओं के राजदूतों द्वारा भेजो जो यहूदा के राजा सिदकिय्याह से मिलने यरूशलेम आए हैं। 4 उन राजदूतों से कहो कि वे सन्देश अपने स्वामियों को दें। उनसे यह कहो कि इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है: ‘अपने स्वामियों से कहो कि 5 मैंने पृथ्वी और इस पर रहने वाले सभी लोगों को बनाया। मैंने पृथ्वी के सभी जानवरों को बनाया। मैंने यह अपनी बड़ी शक्ति और शक्तिशाली भुजा से किया। मैं यह पृथ्वी किसी को भी जिसे चाहूँ दे सकता हूँ। 6 इस समय मैंने बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को तुम्हारे देश दे दिये है। वह मेरा सेवक है। मैं जंगली जानवरों को भी उसका आज्ञाकारी बनाऊँगा। 7 सभी राष्ट्र नबूकदनेस्सर उसके पुत्र और उसके पौत्र की सेवा करेंगे। तब बाबुल की पराजय का समय आएगा। कई राष्ट्र और बड़े सम्राट बाबुल को अपना सेवक बनाएंगे।
8 “‘किन्तु इस समय कुछ राष्ट्र या राज्य बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर की सेवा करने से इन्कार कर सकते हैं। वे उसके जवे को अपनी गर्दन पर रखने से इन्कार कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो जो मैं करूँगा वह यह है: मैं उस राष्ट्र को तलवार, भूख और भयंकर बीमारी का दण्ड दूँगा। यह सन्देश यहोवा का है। मैं वह तब तक करूँगा जब तक मैं उस राष्ट्र को नष्ट न कर दूँ। मैं नबूकदनेस्सर का उपयोग उस राष्ट्र को नष्ट करने के लिये करूँगा जो उसके विरुद्ध करता है। 9 अत: अपने नबियों की एक न सुनो। उन व्यक्तियों की एक न सुनो जो भविष्य की घटनाओं को जानने के लिये जादू का उपयोग करते हैं। उन लोगों की एक न सुनो जो यह कहते हैं कि हम स्वप्न का फल बता सकते हैं। उन व्यक्तियों की एक न सुनो जो मरों से बात करते हैं या वे लोग जो जादूगर हैं। वे सभी तुमसे कहते हैं, “तुम बाबुल के राजा के दास नहीं बनोगे।” 10 नकिन्तु वे लोग तुमसे झूठ बोलते हैं। मैं तुम्हें तुम्हारी जन्म भूमि से बहुत दूर जाने पर विवश करूँगा और तुम दूसरे देश में मरोगे।
11 “‘किन्तु वे राष्ट्र, जो बाबुल के राजा के जुवे को अपने कंधे पर रखेंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे, जीवित रहेंगे। मैं उन राष्ट्रों को उनके अपने देश में रहने दूँगा और बाबुल के राजा की सेवा करने दूँगा।’ यह सन्देश यहोवा का है। ‘उन राष्ट्रों के लोग अपनी भूमि पर रहेंगे और उस पर खेती करेंगे।’”
12 मैंने यहूदा के राजा सिदकिय्याह को भी यही सन्देश दिया। मैंने कहा, “सिदकिय्याह, तुम्हें बाबुल के राजा के जुवे के नीचे अपनी गर्दन देनी चाहिये और उसकी आज्ञा माननी चाहिये। यदि तुम बाबुल के राजा और उसके लोगों की सेवा करोगे तो तुम रह सकोगे। 13 यदि तुम बाबुल के राजा की सेवा करना स्वीकार नहीं करते तो तुम और तुम्हारे लोग शत्रु की तलवार के घाट उतारे जाएंगे, तथा भूख और भयंकर बीमारी से मरेंगे। यहोवा ने कहा कि ये घटनायें होंगी। 14 किन्तु झूठे नबी कह रहे हैं: ‘तुम बाबुल के राजा के दास कभी नहीं होगे।’
“उन नबियों की एक न सुनो। क्योंकि वे तुम्हें झूठा उपदेश दे रहे हैं। 15 ‘मैंने उन नबियों को नहीं भेजा है। यह सन्देश यहोवा का है। वे झूठा उपदेश दे रहे हैं और कह रहे हैं कि वह सन्देश मेरे यहाँ से है। अत: यहूदा के लोगों, मैं तुम्हें दूर भेजूँगा। तुम मरोगे और वे नबी भी जो उपदेश दे रहे हैं मरेंगे।’”
16 तब मैंने (यिर्मयाह) याजक और उन सभी लोगों से कहा, “यहोवा कहता है: ‘वे झूठे नबी कह रहे हैं: कसदियों ने बहुत सी चीज़ें यहोवा के मन्दिर से ली। वे चीज़ें शीघ्र ही वापस लाई जाएंगी।’ उन नबियों की एक न सुनो क्योंकि वे तुम्हें झूठा उपदेश दे रहे हैं। 17 उन नबियों की एक न सुनो। बाबुल के राजा की सेवा करो और तुम जीवित रहोगे। तुम्हारे लिये कोई कारण नहीं कि तुम यरूशलेम नगर को नष्ट करवाओ। 18 यदि वे लोग नबी हैं और उनके पास यहोवा का सन्देश है तो उन्हें प्रार्थना करने दो। उन चीज़ों के बारे में उन्हें प्रार्थना करने दो जो अभी तक राजा के महल में हैं और उन्हें उन चीज़ों के बारे में प्रार्थना करने दो जो अब तक यरूशलेम में हैं। उन नबियों को प्रार्थना करने दो ताकि वे सभी चीज़ें बाबुल नहीं ले जायी जायें।”
19 “सर्वशक्तिमान यहोवा उन सब चीज़ों के बारे में यह कहता है जो अभी तक यरूशलेम में बची रह गई हैं। मन्दिर में स्तम्भ, काँसे का बना सागर, हटाने योग्य आधार और अन्य चीज़ें हैं। बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने उन चीज़ों को यरूशलेम में छोड़ दिया। 20 नबूकदनेस्सर जब यहूदा के राजा यकोन्याह को बन्दी बनाकर ले गया तब उन चीज़ों को नहीं ले गया। यकोन्याह राजा यहोयाकीम का पुत्र था। नबूकदनेस्सर यहूदा और यरूशलेम के अन्य बड़े लोगों को भी ले गया। 21 इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा मन्दिर में बची, राजमहल में बची और यरूशलेम में बची चीज़ों के बारे में यह कहता है: ‘वे सभी चीज़ें भी बाबुल ले जाई जाएंगी। 22 वे चीज़ें बाबुल में तब तक रहेंगी जब तक वह समय आएगा कि मैं उन्हें लेने जाऊँगा।’ यह सन्देश यहोवा का है। ‘तब मैं उन चीज़ों को वापस लाऊँगा। मैं इन चीज़ों को इस स्थान पर वापस रखूँगा।’”
यीशु द्वारा विनाश की भविष्यवाणी
(मत्ती 24:1-44; लूका 21:5-33)
13 जब वह मन्दिर से जा रहा था, उसके एक शिष्य ने उससे कहा, “गुरु, देख! ये पत्थर और भवन कितने अनोखे हैं।”
2 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “तू इन विशाल भवनों को देख रहा है? यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर टिका नहीं रहेगा। एक-एक पत्थर ढहा दिया जायेगा।”
3 जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के सामने बैठा था तो उससे पतरस, याकूब यूहन्न और अन्द्रियास ने अकेले में पूछा, 4 “हमें बता, यह सब कुछ कब घटेगा? जब ये सब कुछ पूरा होने को होगा तो उस समय कैसे संकेत होंगे?”
5 इस पर यीशु कहने लगा, “सावधान! कोई तुम्हें छलने न पाये। 6 मेरे नाम से बहुत से लोग आयेंगे और दावा करेंगे ‘मैं वही हूँ।’ वे बहुतों को छलेंगे। 7 जब तुम युद्धों या युद्धों की अफवाहों के बारे में सुनो तो घबराना मत। ऐसा तो होगा ही किन्तु अभी अंत नहीं है। 8 एक जाति दूसरी जाति के विरोध में और एक राज्य दूसरे राज्य के विरोध में खड़े होंगे। बहुत से स्थानों पर भूचाल आयेंगे और अकाल पड़ेंगे। वे पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा।
9 “अपने बारे में सचेत रहो। वे लोग तुम्हें न्यायालयों के हवाले कर देंगे और फिर तुम्हें उनके आराधनालयों में पीटा जाएगा और मेरे कारण तुम्हें शासकों और राजाओं के आगे खड़ा होना होगा ताकि उन्हें कोई प्रमाण मिल सके। 10 किन्तु यह आवश्यक है कि पहले सब किसी को सुसमाचार सुना दिया जाये। 11 और जब कभी वे तुम्हें पकड़ कर तुम पर मुकद्दमा चलायें तो पहले से ही यह चिन्ता मत करने लगना कि तुम्हें क्या कहना है। उस समय जो कुछ तुम्हें बताया जाये, वही बोलना क्योंकि ये तुम नहीं हो जो बोल रहे हो, बल्कि बोलने वाला तो पवित्र आत्मा है।
12 “भाई, भाई को धोखे से पकड़वा कर मरवा डालेगा। पिता, पुत्र को धोखे से पकड़वायेगा और बाल बच्चे अपने माता-पिता के विरोध में खड़े होकर उन्हें मरवायेंगे। 13 मेरे कारण सब लोग तुमसे घृणा करेंगे। किन्तु जो अंत तक धीरज धरेगा, उसका उद्धार होगा।
14 “जब तुम ‘भयानक विनाशकारी वस्तुओं को,’ जहाँ वे नहीं होनी चाहियें, वहाँ खड़े देखो” (पढ़ने वाला स्वयं समझ ले कि इसका अर्थ क्या है।) “तब जो लोग यहूदिया में हों, उन्हें पहाड़ों पर भाग जाना चाहिये और 15 जो लोग अपने घर की छत पर हों, वे घर में भीतर जा कर कुछ भी लाने के लिये नीचे न उतरें। 16 और जो बाहर मैदान में हों, वह पीछे मुड़ कर अपना वस्त्र तक न लें।
17 “उन स्त्रियों के लिये जो गर्भवती होंगी या जिनके दूध पीते बच्चे होंगे, वे दिन बहुत भयानक होंगे। 18 प्रार्थना करो कि यह सब कुछ सर्दियों में न हो। 19 उन दिनों ऐसी विपत्ति आयेगी जैसी जब से परमेश्वर ने इस सृष्टि को रचा है, आज तक न कभी आयी है और न कभी आयेगी। 20 और यदि परमेश्वर ने उन दिनों को घटा न दिया होता तो कोई भी नहीं बचता। किन्तु उन चुने हुए व्यक्तियों के कारण जिन्हें उसने चुना है, उसने उस समय को कम किया है।
21 “उन दिनों यदि कोई तुमसे कहे, ‘देखो, यह रहा मसीह!’ या ‘वह रहा मसीह’ तो उसका विश्वास मत करना। 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्ता दिखाई पड़ने लगेंगे और वे ऐसे ऐसे आश्चर्य चिन्ह दर्शाएगे और अद्भुत काम करेंगे कि हो सके तो चुने हुओं को भी चक्कर में डाल दें। 23 इसीलिए तुम सावधान रहना। मैंने समय से पहले ही तुम्हें सब कुछ बता दिया है।
24 “उन दिनों यातना के उस काल के बाद,
‘सूरज काला पड़ जायेगा,
चाँद से उसकी चाँदनी नहीं छिटकेगी।
25 आकाश से तारे गिरने लगेंगे
और आकाश में महाशक्तियाँ झकझोर दी जायेंगी।’[a]
26 “तब लोग मनुष्य के पुत्र को महाशक्ति और महिमा के साथ बादलों में प्रकट होते देखेंगे। 27 फिर वह अपने दूतों को भेज कर चारों दिशाओं, पृथ्वी के एक छोर से आकाश के दूसरे छोर तक सब कहीं से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा।
28 “अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो कि जब उसकी टहनियाँ कोमल हो जाती हैं और उस पर कोंपलें फूटने लगती हैं तो तुम जान जाते हो कि ग्रीष्म ऋतु आने को है। 29 ऐसे ही जब तुम यह सब कुछ घटित होते देखो तो समझ जाना कि वह समय[b] निकट आ पहुँचा है, बल्कि ठीक द्वार तक। 30 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि निश्चित रूप से इन लोगों के जीते जी ही ये सब बातें घटेंगी। 31 धरती और आकाश नष्ट हो जायेंगे किन्तु मेरा वचन कभी न टलेगा।
32 “उस दिन या उस घड़ी के बारे में किसी को कुछ पता नहीं, न स्वर्ग में दूतों को और न अभी मनुष्य के पुत्र को, केवल परम पिता परमेश्वर जानता है। 33 सावधान! जागते रहो! क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आ जायेगा।
34 “वह ऐसे ही है जैसे कोई व्यक्ति किसी यात्रा पर जाते हुए सेवकों के ऊपर अपना घर छोड़ जाये और हर एक को उसका अपना अपना काम दे जाये। तथा चौकीदार को यह आज्ञा दे कि वह जागता रहे। 35 इसलिए तुम भी जागते रहो क्योंकि घर का स्वामी न जाने कब आ जाये। साँझ गये, आधी रात, मुर्गे की बाँग देने के समय या फिर दिन निकले। 36 यदि वह अचानक आ जाये तो ऐसा करो जिससे वह तुम्हें सोते न पाये। 37 जो मैं तुमसे कहता हूँ, वही सबसे कहता हूँ ‘जागते रहो!’”
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