M’Cheyne Bible Reading Plan
मसीह के विश्वासियों में एकता का अभाव
4 तुम्हारे बीच लड़ाई व झगड़े का कारण क्या है? क्या तुम्हारे सुख-विलास ही नहीं, जो तुम्हारे अंगों से लड़ते रहते हैं? 2 तुम इच्छा तो करते हो किन्तु प्राप्त नहीं कर पाते इसलिए हत्या कर देते हो. जलन के कारण तुम लड़ाई व झगड़े करते हो क्योंकि तुम प्राप्त नहीं कर पाते. तुम्हें प्राप्त नहीं होता क्योंकि तुम माँगते नहीं. 3 तुम माँगते हो फिर भी तुम्हें प्राप्त नहीं होता क्योंकि माँगने के पीछे तुम्हारा उद्धेश्य ही बुरी इच्छा से होता है—कि तुम उसे भोग-विलास में उड़ा दो.
4 अरे विश्वासघातियो! क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि संसार से मित्रता परमेश्वर से शत्रुता है? इसलिए उसने, जो संसार की मित्रता से बंधा हुआ है, अपने आप को परमेश्वर का शत्रु बना लिया है. 5 कहीं तुम यह तो नहीं सोच रहे कि पवित्रशास्त्र का यह कथन अर्थहीन है: वह आत्मा, जिनको उन्होंने हमारे भीतर बसाया है, बड़ी लालसा से हमारे लिए कामना करते हैं? 6 वह और अधिक अनुग्रह देते हैं, इसलिए लिखा है:
परमेश्वर घमण्ड़ियों के विरुद्ध रहते
और दीनों को अनुग्रह देते हैं.
7 इसलिए परमेश्वर के आधीन रहो, शैतान का विरोध करो तो वह तुम्हारे सामने से भाग खड़ा होगा. 8 परमेश्वर के पास आओ तो वह तुम्हारे पास आएंगे. पापियो! अपने हाथ स्वच्छ करो. तुम, जो दुचित्ते हो, अपने हृदय शुद्ध करो. 9 आँसू बहाते हुए शोक तथा विलाप करो कि तुम्हारी हँसी रोने में तथा तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए. 10 स्वयं को प्रभु के सामने दीन बनाओ तो वह तुमको शिरोमणि करेंगे.
11 प्रियजन, एक-दूसरे की निन्दा मत करो. जो साथी विश्वासी की निन्दा करता फिरता या उस पर दोष लगाता फिरता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है. यदि तुम व्यवस्था का विरोध करते हो, तुम व्यवस्था के पालन करने वाले नहीं, सिर्फ उसके आलोचक बन जाते हो. 12 व्यवस्था देनेवाला और न्यायाध्यक्ष एक ही हैं—वह, जिनमें रक्षा करने का सामर्थ्य है और नाश करने का भी. तुम कौन होते हो जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाते हो?
धनवानों तथा घमण्ड़ियों के लिए चेतावनी
13 अब तुम, सुनो, जो यह कहते हो, “आज या कल हम अमुक नगर को जाएँगे और वहाँ एक वर्ष रहकर धन कमाएंगे”, 14 जबकि सच तो यह है कि तुम्हें तो अपने आनेवाले कल के जीवन के विषय में भी कुछ मालूम नहीं है, तुम तो सिर्फ वह भाप हो, जो क्षण भर के लिए दिखाई देती है और फिर लुप्त हो जाती है. सुनो! 15 तुम्हारा इस प्रकार कहना सही होगा: “यदि प्रभु की इच्छा हो, तो हम जीवित रहेंगे तथा यह या वह काम करेंगे.” 16 परन्तु तुम अपने अहंकार में घमण्ड़ कर रहे हो. यह घमण्ड़ पाप से भरा है. 17 भलाई करना जानते हुए उसको न करना पाप है.
शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना
(मत्ति 12:1-8; मारक 2:23-28)
6 एक शब्बाथ पर मसीह येशु अन्न के खेत से हो कर जा रहे थे. उनके शिष्यों ने बालें तोड़ कर, मसल-मसल कर खाना प्रारम्भ कर दिया. 2 यह देख कुछ फ़रीसियों ने कहा, “आप शब्बाथ पर यह काम क्यों कर रहे हैं, जो विधानसम्मत नहीं?”
3 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या आपने यह कभी नहीं पढ़ा कि भूख लगने पर दाविद और उनके साथियों ने क्या किया था? 4 दाविद ने परमेश्वर के भवन में प्रवेश कर वह समर्पित रोटी खाई, जिसका खाना पुरोहितों के अतिरिक्त किसी अन्य के लिए विधानसम्मत न था? यही रोटी उन्होंने अपने साथियों को भी दी.” 5 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र शब्बाथ का प्रभु है.”
6 एक अन्य शब्बाथ पर मसीह येशु यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. वहाँ एक व्यक्ति था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था. 7 फ़रीसी और शास्त्री इस अवसर की ताक में थे कि शब्बाथ पर मसीह येशु इस व्यक्ति को स्वस्थ करें और वह उन पर दोष लगा सकें. 8 मसीह येशु को उनके मनों में उठ रहे विचारों का पूरा पता था. उन्होंने उस व्यक्ति को, जिसका हाथ सूखा हुआ था, आज्ञा दी, “उठो! यहाँ सबके मध्य खड़े हो जाओ.” वह उठ कर वहाँ खड़ा हो गया.
9 तब मसीह येशु ने फ़रीसियों और शास्त्रियों को सम्बोधित कर प्रश्न किया, “यह बताइए, शब्बाथ पर क्या करना उचित है: भलाई या बुराई? जीवन रक्षा या विनाश?”
10 उन सब पर एक दृष्टि डालते हुए मसीह येशु ने उस व्यक्ति को आज्ञा दी, “अपना हाथ बढ़ाओ!” उसने ऐसा ही किया—उसका हाथ स्वस्थ हो गया था. 11 यह देख फ़रीसी और शास्त्री क्रोध से जलने लगे. वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि मसीह येशु के साथ अब क्या किया जाए.
बारह शिष्यों का चयन
(मारक 3:13-19)
12 एक दिन मसीह येशु पर्वत पर प्रार्थना करने चले गए और सारी रात वह परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे. 13 प्रातः काल उन्होंने अपने चेलों को अपने पास बुलाया और उनमें से बारह को चुनकर उन्हें प्रेरित पद प्रदान किया. 14 शिमोन, जिन्हें वह पेतरॉस नाम से पुकारते थे. उनके भाई आन्द्रेयास, याक़ोब, योहन, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस 15 मत्ति, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, राष्ट्रवादी शिमोन, 16 याक़ोब के पुत्र यहूदाह तथा कारियोतवासी यहूदाह, जिसने उनके साथ धोखा किया.
भीड़ द्वारा मसीह येशु का अनुगमन
17 मसीह येशु उनके साथ पर्वत से उतरे और आ कर एक समतल स्थल पर खड़े हो गए. येरूशालेम तथा समुद्र के किनारे के नगर त्सोर और त्सीदोन से आए लोगों तथा सुनने वालों का एक बड़ा समूह वहाँ इकट्ठा था, 18 जो उनके प्रवचन सुनने और अपने रोगों से चंगाई के उद्धेश्य से वहाँ आया था. इस समूह में वे दुष्टात्मा से पीड़ित भी सम्मिलित थे, जिन्हें मसीह येशु प्रेतमुक्त करते जा रहे थे. 19 सभी लोग उन्हें छूने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उनसे निकली हुई सामर्थ्य उन सभी को स्वस्थ कर रही थी.
20 अपने शिष्यों की ओर दृष्टि करते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा:
“धन्य हो तुम सभी जो निर्धन हो,
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है.
21 धन्य हो तुम जो भूखे हो,
क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे.
धन्य हो तुम जो इस समय रो रहे हो,
क्योंकि तुम आनन्दित होगे.
22 धन्य हो तुम सभी जिनसे सभी मनुष्य घृणा करते हैं,
तुम्हारा बहिष्कार करते हैं, तुम्हारी निन्दा करते हैं,
तुम्हारे नाम को मनुष्य के पुत्र के
कारण बुराई करनेवाला घोषित कर देते हैं.
23 “आनन्दित हो कर हर्षोल्लास में उछलो-कूदो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा फल होगा. उनके पूर्वजों ने भी भविष्यद्वक्ताओं को इसी प्रकार सताया था.
24 “धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो धनी हो! तुम अपने सारे सुख भोग चुके!
25 धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो अब तृप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए भूखा रहना निर्धारित है.
धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो इस समय हँस रहे हो क्योंकि तुम शोक तथा विलाप करोगे.
26 धिक्कार है तुम पर! जब सब मनुष्य तुम्हारी प्रशंसा करते हैं
क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ यही किया करते थे.”
शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा
(मत्ति 5:43-48)
27 “किन्तु तुम, जो इस समय मेरे प्रवचन सुन रहे हो, अपने शत्रुओं से प्रेम करो तथा उनके साथ भलाई, जो तुमसे घृणा करते हैं. 28 जो तुम्हें शाप देते हैं उनके लिए भलाई की कामना करो और जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करें उनके लिए प्रार्थना. 29 यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर प्रहार करे उसकी ओर दूसरा भी फेर दो. यदि कोई तुम्हारी चादर लेना चाहे तो उसे अपना कुर्ता भी देने में संकोच न करो. 30 जब भी कोई तुमसे कुछ माँगे तो उसे अवश्य दो और यदि कोई तुम्हारी कोई वस्तु ले ले तो उसे वापस न माँगो 31 अन्यों के साथ तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो.
32 “यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 33 वैसे ही यदि तुम उन्हीं के साथ भलाई करते हो, जिन्होंने तुम्हारे साथ भलाई की है, तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 34 और यदि तुम उन्हीं को कर्ज़ देते हो, जिनसे राशि वापस प्राप्त करने की आशा होती है तो तुमने कौन सा प्रशंसनीय काम कर दिखाया? ऐसा तो परमेश्वर से दूर रहनेवाले लोग भी करते हैं—इस आशा में कि उनकी सारी राशि उन्हें लौटा दी जाएगी. 35 सही तो यह है कि तुम अपने शत्रुओं से प्रेम करो, उनका उपकार करो और कुछ भी वापस प्राप्त करने की आशा किए बिना उन्हें कर्ज़ दे दो. तब तुम्हारा ईनाम असाधारण होगा और तुम परमप्रधान की सन्तान ठहराए जाओगे क्योंकि वह उनके प्रति भी कृपालु हैं, जो उपकार नही मानते और बुरे हैं. 36 कृपालु बनो, ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारे पिता कृपालु हैं.
अन्यों पर दोष न लगाने की शिक्षा
(मत्ति 7:1-6)
37 “किसी का न्याय मत करो तो तुम्हारा भी न्याय नहीं किया जाएगा. किसी पर दोष मत लगाओ तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा. क्षमा करो तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा. 38 उदारतापूर्वक दो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा—पूरा नाप दबा-दबा कर और हिला-हिला कर बाहर निकलता हुआ तुम्हारी झोली में उंडेल (यानी अत्यन्त उदारतापूर्वक) देंगे. देने के तुम्हारे नाप के अनुसार ही तुम प्राप्त करोगे.”
39 मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा भी शिक्षा दी.
“क्या कोई अंधा दूसरे अंधे का मार्गदर्शन कर सकता है? क्या वे दोनों ही गड्ढे में न गिरेंगे? 40 विद्यार्थी अपने शिक्षक से बढ़कर नहीं है परन्तु हर एक, जिसने शिक्षा पूरी कर ली है, वह अपने शिक्षक के समान होगा.
41 “तुम अपने भाई के आँख में उस बुरादे के तिनके को क्यों देख रहे हो जबकि अपने आँख में पड़े लट्ठे का तुम्हें ज्ञान ही नहीं? 42 तुम अपने भाई से यह कैसे कह सकते हो, ‘भाई आओ, मैं तुम्हारी आँख में से बुरादे का तिनका निकाल दूँ’ जबकि स्वयं तुमको अपनी आँख में पड़ा लट्ठा दिखाई नहीं देता? अरे पाखण्डी! पहले अपनी आँख में से लट्ठा तो निकाल! तभी तुझे अपने भाई की आँख में से बुरादे का तिनका निकालने के लिए साफ़ दृष्टि मिल सकेगी.”
फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा
(मत्ति 7:15-20)
43 “कोई भी अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं लाता और न बुरा पेड़ अच्छा फल. 44 हर एक पेड़ उसके अपने फलों के द्वारा पहचाना जाता है. कंटीले वृक्षों में से लोग अंजीर या कंटीली झाड़ियों में से अंगूर इकट्ठा नहीं किया करते. 45 भला व्यक्ति अपने हृदय में एकत्रित भलाई में से भलाई ही प्रस्तुत करता है, वैसे ही बुरा मनुष्य अपने हृदय में एकत्रित बुरे विचारों में से बुराई ही निकालता है क्योंकि उसका मुख उसके हृदय के अंदर की वस्तुओं में से ही निकालता है.”
दो भवन-निर्माण
(मत्ति 7:21-29)
46 “तुम लोग मुझे, प्रभु-प्रभु कह कर क्यों पुकारते हो जबकि मेरी आज्ञाओं का पालन ही नहीं करते? 47 मैं तुम्हें बताऊँगा कि वह व्यक्ति किस प्रकार का है, जो मेरे पास आता है, मेरे सन्देश को सुनता तथा उसका पालन करता है: 48 वह उस घर बनानेवाले के जैसा है, जिसने गहरी खुदाई करके चट्टान पर नींव डाली. मूसलाधार बारिश के तेज बहाव ने उस घर पर ठोकरें मारी किन्तु उसे हिला न पाया क्योंकि वह घर मजबूत था. 49 वह व्यक्ति, जो मेरे सन्देश को सुनता है किन्तु उसका पालन नहीं करता, उस व्यक्ति के समान है, जिसने भूमि पर बिना नींव के घर बनाया और जिस क्षण उस पर तेज बहाव ने ठोकरें मारी, वह ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया.”
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