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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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इब्री 13

आपसी प्रेम, सौहार्द व आज्ञाकारिता सम्बन्धी निर्देश

13 भाईचारे का प्रेम लगातार बना रहे. अपरिचितों का अतिथि-सत्कार करना न भूलो. ऐसा करने के द्वारा कुछ ने अनजाने ही स्वर्गदूतों का अतिथि-सत्कार किया था. बन्दियों के प्रति तुम्हारा व्यवहार ऐसा हो मानो तुम स्वयं उनके साथ बन्दीगृह में हो. सताए जाने वालों को न भूलना क्योंकि तुम सभी एक शरीर के अंग हो.

विवाह की बात सम्मानित रहे तथा विवाह का बिछौना कभी अशुद्ध न होने पाए क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों तथा परस्त्रीगामियों को दण्डित करेंगे. यह ध्यान रहे कि तुम्हारा चरित्र धन के लोभ से मुक्त हो. जो कुछ तुम्हारे पास है, उसी में सन्तुष्ट रहो क्योंकि स्वयं उन्होंने कहा है:

मैं न तो तुम्हारा त्याग करूँगा
    और न ही कभी तुम्हें छोड़ूँगा.

इसलिए हम निश्चयपूर्वक यह कहते हैं:

प्रभु मेरे सहायक हैं, मैं डरूंगा नहीं.
    मनुष्य मेरा क्या कर लेगा?

उनको याद रखो, जो तुम्हारे अगुवे थे, जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा दी और उनके स्वभाव के परिणाम को याद करते हुए उनके विश्वास का अनुसरण करो. मसीह येशु एक से हैं—कल, आज तथा युगानुयुग.

बदली हुई विचित्र प्रकार की शिक्षाओं के बहाव में न बह जाना. हृदय के लिए सही है कि वह अनुग्रह द्वारा दृढ़ किया जाए न कि खाने की वस्तुओं द्वारा. खान-पान सम्बन्धी प्रथाओं द्वारा किसी का भला नहीं हुआ है. 10 हमारी एक वेदी है, जिस पर से उन्हें, जो मन्दिर में सेवा करते हैं, खाने का कोई अधिकार नहीं है.

11 क्योंकि उन पशुओं का शरीर, जिनका लहू महायाजक द्वारा पापबलि के लिए पवित्र स्थान में लाया जाता है, छावनी के बाहर ही जला दिए जाते हैं. 12 मसीह येशु ने भी नगर के बाहर दुःख सहे कि वह स्वयं अपने लहू से लोगों को शुद्ध करें. 13 इसलिए हम भी उनसे भेंट करने छावनी के बाहर वैसी ही निन्दा उठाने चलें, जैसी उन्होंने उठाई 14 क्योंकि यहाँ हमारा घर स्थाई नगर में नहीं है—हम उस नगर की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो अनन्त काल का है.

15 इसलिए हम उनके द्वारा परमेश्वर को लगातार आराधना की बलि भेंट करें अर्थात् उन होठों का फल, जो उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं. 16 भलाई करना और वस्तुओं का आपस में मिलकर बाँटना समाप्त न करो क्योंकि ये ऐसी बलि हैं, जो परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं. 17 अपने अगुवों का आज्ञापालन करो, उनके अधीन रहो. वे तुम्हारी आत्माओं के पहरेदार हैं. उन्हें तुम्हारे विषय में हिसाब देना है. उनके लिए यह काम आनन्द का विषय बना रहे न कि एक कष्टदायी बोझ. यह तुम्हारे लिए भी लाभदायक होगा.

18 हमारे लिए निरन्तर प्रार्थना करते रहो क्योंकि हमें हमारे निर्मल विवेक का निश्चय है. हमारा लगातार प्रयास यही है कि हमारा जीवन हर एक बात में आदर-योग्य हो. 19 तुमसे मेरी विशेष विनती है कि प्रार्थना करो कि मैं तुमसे भेंट करने शीघ्र आ सकूँ.

आशीर्वचन तथा नमस्कार

20 शान्ति के परमेश्वर, जिन्होंने भेड़ों के महान चरवाहे अर्थात् मसीह येशु, हमारे प्रभु को अनन्त वाचा के लहू के द्वारा मरे हुओं में से जीवित किया, 21 तुम्हें हर एक भले काम में अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सुसज्जित करें तथा हमें मसीह येशु के द्वारा वह करने के लिए प्रेरित करें, जो उनकी दृष्टि में सुखद है. उन्हीं की महिमा हमेशा-हमेशा हो. आमेन.

22 प्रियजन, मेरी विनती है कि इस उपदेश-पत्र को धीरज से सहन करना क्योंकि यह मैंने संक्षेप में लिखा है.

23 याद रहे कि हमारे भाई तिमोथियॉस को छोड़ दिया गया है. यदि वह यहाँ शीघ्र आएँ तो उनके साथ आकर मैं तुमसे भेंट कर सकूँगा.

24 अपने सभी अगुवों तथा सभी पवित्र लोगों को मेरा नमस्कार. इतालिया वासियों का तुम्हें नमस्कार.

25 तुम सब पर अनुग्रह बना रहे.

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लूकॉ 2

बैथलहम नगर में मसीह येशु का जन्म

यह उस समय की घटना है जब सम्राट कयसर औगुस्तॉस की ओर से यह राजाज्ञा घोषित की गई कि सभी रोम शासित राष्ट्रों में जनगणना की जाए. यह सीरिया राज्य पर राज्यपाल क्वीरिनियुस के शासनकाल में पहिली जनगणना थी. सभी नागरिक अपने नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने जन्मस्थान को जाने लगे.

योसेफ़, दाविद के वंशज थे, इसलिए वह गलील प्रदेश के नाज़रेथ नगर से यहूदिया प्रदेश के बैथलहम अर्थात् दाविद के नगर गए कि वह भी अपनी मंगेतर मरियम के साथ, जो गर्भवती थीं, नाम लिखवाएं. वहीं मरियम का प्रसवकाल पूरा हुआ और उन्होंने अपने पहिलौठे पुत्र को जन्म दिया. उन्होंने उसे कपड़ों में लपेट कर चरनी में लिटा दिया क्योंकि यात्री निवास में उनके ठहरने के लिए कोई स्थान उपलब्ध न था.

चरवाहों द्वारा मसीह येशु की वन्दना

उसी क्षेत्र में कुछ चरवाहे रात के समय मैदानों में अपनी भेड़ों की चौकसी कर रहे थे. सहसा प्रभु का एक स्वर्गदूत उनके सामने प्रकट हुआ और प्रभु का तेज उनके चारों ओर फैल गया और चरवाहे अत्यन्त डर गए. 10 इस पर स्वर्गदूत ने उन्हें धीरज देते हुए कहा, “डरो मत! क्योंकि मैं अतिशय आनन्द का एक शुभसन्देश लाया हूँ, जो सभी के लिए है: 11 तुम्हारे उद्धारकर्ता ने आज दाविद के नगर में जन्म लिया है. मसीह प्रभु वही हैं. 12 उनकी पहचान के चिह्न ये हैं: कपड़ों में लिपटा और चरनी में लेटा हुआ एक शिशु”.

13 सहसा उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का एक विशाल समूह प्रकट हुआ, जो परमेश्वर की स्तुति इस गान के द्वारा कर रहा था:

14 “सबसे ऊँचे स्वर्ग में परमेश्वर की स्तुति; तथा पृथ्वी पर उनमें, जिन पर
    उनकी कृपादृष्टि है, शान्ति स्थापित हो.”

15 जब स्वर्गदूत स्वर्ग लौट गए तब चरवाहों ने आपस में विचार किया, “आओ हम बैथलहम जा कर वह सब देखें, जिसका प्रभु ने हम पर प्रकाशन किया है.”

16 इसलिए वे तुरन्त चल पड़े और बैथलहम नगर पहुँच कर मरियम, योसेफ़ तथा उस शिशु को देखा, जो चरनी में लेटा हुआ था. 17 उस शिशु का दर्शन कर वे उससे सम्बन्धित सभी बातों को, जो उन पर प्रकाशित की गयी थी, सभी जगह बताने लगे. 18 सभी सुननेवालों के लिए चरवाहों का समाचार आश्चर्य का विषय था. 19 मरियम इन बातों को अपने हृदय में सँजोकर उनके बारे में सोच विचार करती रहीं. 20 चरवाहे परमेश्वर की स्तुति तथा गुणगान करते हुए लौट गए क्योंकि जो कुछ उन्होंने देखा था, वह ठीक वैसा ही था, जैसा उन पर प्रकाशित किया गया था.

21 जन्म के आठवें दिन, ख़तना के समय, उस शिशु का नाम येशु रखा गया—वही नाम, जो उनके गर्भ में आने के पूर्व स्वर्गदूत द्वारा बताया गया था.

मसीह येशु का अर्पण किया जाना

22 जब मोशेह की व्यवस्था के अनुरूप मरियम और योसेफ़ के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, वे शिशु को येरूशालेम लाए कि उसे प्रभु को भेंट किया जाए. 23 जैसा कि व्यवस्था का आदेश है: हर एक पहिलौठा पुत्र प्रभु को भेंट किया जाए 24 तथा प्रभु के व्यवस्था की आज्ञा के अनुसार एक जोड़ा पंडुकी या कबूतर के दो बच्चों की बलि चढ़ाई जाए.

25 येरूशालेम में शिमोन नामक एक व्यक्ति थे. वह धर्मी तथा श्रद्धालु थे. वह इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन पर पवित्रात्मा का आच्छादन था. 26 पवित्रात्मा के द्वारा उन पर यह स्पष्ट कर दिया गया था कि प्रभु के मसीह को देखे बिना उनकी मृत्यु नहीं होगी. 27 पवित्रात्मा के सिखाने पर शिमोन मन्दिर के आँगन में आए. उसी समय मरियम और योसेफ़ ने व्यवस्था द्वारा निर्धारित विधियों को पूरा करने के उद्देश्य से शिशु येशु को ले कर वहाँ प्रवेश किया. 28 शिशु येशु को देखकर शिमोन ने उन्हें गोद में लेकर परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा.

शिमोन का विदाई गान

29 “परम प्रधान प्रभु, अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार
    अपने सेवक को शान्ति में विदा कीजिए,
30 क्योंकि मैंने अपनी आँखों से आपके उद्धार को देख लिया है,
31     जिसे आपने सभी के लिए तैयार किया है.
32 यह आपकी प्रजा इस्राएल का गौरव तथा सब राष्ट्रों की ज्ञान की ज्योति है.”

33 मरियम और योसेफ़ अपने पुत्र के विषय में इन बातों को सुन चकित रह गए. 34 शिमोन ने मरियम को सम्बोधित करते हुए ये आशीर्वचन कहे: “यह पहिले से ठहराया हुआ है कि यह शिशु इस्राएल में अनेकों के पतन और उत्थान के लिए चुना गया है. यह एक ऐसा चिन्ह होगा लोकमत जिसके विरुद्ध ही होगा. 35 यह तलवार तुम्हारे ही प्राण को आर-पार बेध देगी—कि अनेकों के हृदयों के विचार प्रकट हो जाएँ.”

36 हन्ना नामक एक भविष्यद्वक्तिन थीं, जो आशेर वंश के फ़नुएल नामक व्यक्ति की पुत्री थीं. वह अत्यन्त वृद्ध थीं तथा विवाह के बाद पति के साथ मात्र सात वर्ष रह कर विधवा हो गई थीं. 37 इस समय उनकी आयु चौरासी वर्ष थी. उन्होंने मन्दिर कभी नहीं छोड़ा और वह दिन-रात उपवास तथा प्रार्थना करते हुए परमेश्वर की उपासना में तल्लीन रहती थीं. 38 उसी समय वह वहाँ आईं और परमेश्वर के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने लगीं. उन्होंने उन सभी को इस शिशु के विषय में सूचित किया, जो येरूशालेम के छुटकारे की प्रतीक्षा में थे.

39 जब योसेफ़ तथा मरियम प्रभु के व्यवस्था में निर्धारित विधियाँ पूरी कर चुके, वे गलील प्रदेश में अपने नगर नाज़रेथ लौट गए. 40 बालक येशु बड़े होते हुए बलवन्त होते गए तथा उनकी बुद्धि का विकास होता गया. परमेश्वर उनसे प्रसन्न थे तथा वह उनकी कृपादृष्टि के पात्र थे.

ज्ञानियों के मध्य मसीह येशु

41 मसीह येशु के माता-पिता प्रतिवर्ष फ़सह उत्सव के उपलक्ष्य में येरूशालेम जाया करते थे. 42 जब मसीह येशु की अवस्था बारह वर्ष की हुई, तब प्रथा के अनुसार वह भी अपने माता-पिता के साथ उत्सव के लिए येरूशालेम गए. 43 उत्सव की समाप्ति पर जब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, बालक येशु येरूशालेम में ही ठहर गए. उनके माता-पिता इससे अनजान थे. 44 यह सोच कर कि बालक यात्री-समूह में ही कहीं होगा, वे उस दिन की यात्रा में आगे बढ़ते गए. जब उन्होंने परिजनों-मित्रों में मसीह येशु को खोजना प्रारम्भ किया, 45 मसीह येशु उन्हें उनके मध्य नहीं मिले इसलिए वे उन्हें खोजने येरूशालेम लौट गए. 46 तीन दिन बाद उन्होंने मसीह येशु को मन्दिर-परिसर में शिक्षकों के साथ बैठा हुआ पाया. वहाँ बैठे हुए वह उनकी सुन रहे थे तथा उनसे प्रश्न भी कर रहे थे. 47 जिस किसी ने भी उनको सुना, वह उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे. 48 उनके माता-पिता उन्हें वहाँ देख चकित रह गए. उनकी माता ने उनसे प्रश्न किया, “पुत्र! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं तुम्हें कितनी बेचैनी से खोज रहे थे!”

49 “क्यों खोज रहे थे आप मुझे?” मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या आपको यह मालूम न था कि मेरा मेरे पिता के घर में ही होना उचित है?” 50 मरियम और योसेफ़ को मसीह येशु की इस बात का अर्थ समझ नहीं आया.

51 मसीह येशु अपने माता-पिता के साथ नाज़रेथ लौट गए और उनके आज्ञाकारी रहे. उनकी माता ने ये सब विषय हृदय में सँजोए रखे. 52 मसीह येशु बुद्धि, ड़ीलड़ौल तथा परमेश्वर और मनुष्यों की कृपादृष्टि में बढ़ते चले गए.

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