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Historical

Read the books of the Bible as they were written historically, according to the estimated date of their writing.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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लूकॉ 4-5

जंगल में शैतान द्वारा मसीह येशु की परीक्षा

(मत्ति 4:1-11; मारक 1:12, 13)

पवित्रात्मा से भरकर मसीह येशु यरदन नदी से लौटे और आत्मा उन्हें जंगल में ले गया, जहाँ चालीस दिन तक शैतान उन्हें परीक्षा में डालने का प्रयास करता रहा. इस अवधि में वह पूरी तरह बिना भोजन के रहे, इसके बाद उन्हें भूख लगी.

शैतान ने उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो इस पत्थर को आज्ञा दो कि यह रोटी बन जाए.”

मसीह येशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: मनुष्य मात्र रोटी से ही जीवित नहीं रहेगा.”

इसके बाद शैतान ने उन्हें ऊँचे पहाड़ पर ले जा कर क्षण मात्र में सारे विश्व के सभी राज्यों की झलक दिखाई और उनसे कहा, “इन सबका सारा अधिकार और वैभव मैं तुम्हें दूँगा क्योंकि ये सब मुझे सौंपे गए हैं इसलिए ये सब मैं अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकता हूँ. यदि तुम मात्र मेरी आराधना करो तो ये सब तुम्हारा हो जाएगा.”

मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “लिखा है: तुम केवल प्रभु, अपने परमेश्वर की ही वन्दना करना तथा मात्र उन्हीं की सेवा करना.”

इसके बाद शैतान ने उन्हें येरूशालेम ले जा कर मन्दिर की चोटी पर खड़ा कर दिया और उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो यहाँ से कूद जाओ, 10 क्योंकि लिखा है:

“‘वह अपने स्वर्गदूतों को तुम्हारी सुरक्षा के सम्बन्ध
    में आज्ञा देंगे तथा;
11 वे तुम्हें हाथों-हाथ उठा लेंगे;
    कि तुम्हारे पांव को पत्थर से चोट न लगे.’”

12 इसके उत्तर में मसीह येशु ने उससे कहा, “यह भी तो लिखा है: तुम प्रभु अपने परमेश्वर को न परखना.”

13 जब शैतान मसीह येशु को परीक्षा में डालने के सभी प्रयास कर चुका, वह उन्हें किसी सटीक अवसर तक के लिए छोड़ कर चला गया.

प्रचार का प्रारम्भ गलील प्रदेश से

(मत्ति 4:12-17; मारक 1:14-15; योहन 4:43-45)

14 मसीह येशु आत्मा के सामर्थ्य में गलील प्रदेश लौट गए. नज़दीकी सभी नगरों में उनके विषय में समाचार फैल गया. 15 मसीह येशु यहूदी सभागृहों में शिक्षा देते थे तथा सभी उनकी सराहना करते थे.

16 मसीह येशु नाज़रेथ नगर आए, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था. शब्बाथ पर अपनी रीति के अनुसार वह यहूदी सभागृह में जा कर पवित्रशास्त्र पढ़ने के लिए खड़े हो गए. 17 उन्हें भविष्यद्वक्ता यशायाह का अभिलेख दिया गया. उन्होंने उसमें वह जगह निकाली, जहाँ लिखा है:

18 “प्रभु का आत्मा मेरे साथ हैं,
    क्योंकि उन्होंने कंगालों को सुसमाचार देने के लिए मेरा अभिषेक किया है.
उन्होंने मुझे बन्दियों के छुटकारे का प्रचार, अंधों को रोशनी,
    कुचले हुओं को कष्ट से छुड़ाने
19     तथा प्रभु की कृपादृष्टि के समय के प्रचार के लिए भेजा है.”

20 तब उन्होंने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथों में दे दी और स्वयं बैठ गए. सभागृह में हर एक व्यक्ति उन्हें एकटक देख रहा था. 21 मसीह येशु ने आगे कहा, “आज आपके सुनते-सुनते यह लेख पूरा हुआ.”

22 सभी मसीह येशु की सराहना कर रहे थे तथा उनके मुख से निकलने वाले सुन्दर विचारों ने सबको चकित कर रखा था. वे आपस में पूछ रहे थे, “यह योसेफ़ का ही पुत्र है न?”

23 मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “मैं जानता हूँ कि आप मुझसे यह कहना चाहेंगे, ‘अरे चिकित्सक! पहले स्वयं को तो स्वस्थ कर! अपने गृहनगर में भी वह सब कर दिखा, जो हमने तुझे कफ़रनहूम में करते सुना है.’”

24 मसीह येशु ने आगे कहा, “वास्तव में कोई, भी भविष्यद्वक्ता अपने गृहनगर में सम्मान नहीं पाता. 25 सच तो यह है कि एलियाह के समय में जब साढ़े तीन वर्ष वर्षा न हुई, इस्राएल राष्ट्र में अनेक विधवाएँ थीं, तथा सभी राष्ट्र में भयंकर अकाल पड़ा; 26 एलियाह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, अतिरिक्त उसके, जो त्सीदोन प्रदेश के सारेप्ता नगर में थी. 27 वैसे ही भविष्यद्वक्ता एलीशा के समय में इस्राएल राष्ट्र में अनेक कोढ़ रोगी थे किन्तु सीरियावासी नामान के अतिरिक्त कोई भी शुद्ध नहीं किया गया.”

28 यह सुनते ही यहूदी सभागृह में इकट्ठा सभी व्यक्ति अत्यन्त क्रोधित हो गए. 29 उन्होंने मसीह येशु को धक्के मारते हुए नगर के बाहर निकाल दिया और उन्हें खींचते हुए उस पर्वत शिखर पर ले गए, जिस पर वह नगर बसा हुआ था कि उन्हें चट्टान पर से नीचे धकेल दें 30 किन्तु मसीह येशु बचते हुए भीड़ के बीच से निकल गए.

मसीह येशु की अधिकारपूर्ण शिक्षा

(मारक 1:21-28)

31 वहाँ से वह गलील प्रदेश के कफ़रनहूम नामक नगर में आए और शब्बाथ पर लोगों को शिक्षा देने लगे. 32 मसीह येशु की शिक्षा उनके लिए आश्चर्य का विषय थी क्योंकि उनका सन्देश अधिकारपूर्ण होता था.

33 सभागृह में एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति था. वह ऊँचे शब्द में बोल उठा, 34 “ओ नाज़रेथ के येशु! हमारा और तुम्हारा एक दूसरे से क्या लेना-देना? क्या तुम हमें नाश करने आए हो? हम सब जानते हैं कि तुम कौन हो—परमेश्वर के पवित्र जन.”

35 “चुप!” मसीह येशु ने कड़े शब्द में कहा, “उसमें से बाहर निकल आ!” प्रेत ने उस व्यक्ति को उन सबके सामने भूमि पर पटक दिया और उस व्यक्ति की हानि किए बिना उसमें से निकल गया.

36 यह देख वे सभी चकित रह गए और आपस में कहने लगे, “विलक्षण है यह सन्देश! यह बड़े अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ प्रेतों को आज्ञा देता है और वे मनुष्यों में से बाहर आ जाते हैं!” 37 उनके विषय में यह वर्णन आस-पास के सभी क्षेत्रों में फैल गया.

पेतरॉस की सास को स्वास्थ्यदान

(मत्ति 8:14-17; मारक 1:29-34)

38 यहूदी सभागृह से निकल कर मसीह येशु शिमोन के निवास पर गए. वहाँ शिमोन की सास ज्वर-पीड़ित थीं. शिष्यों ने मसीह येशु से उन्हें स्वस्थ करने की विनती की 39 मसीह येशु ने उनके पास जा कर ज्वर को फटकारा और ज्वर उन्हें छोड़ चला गया. वह तुरन्त बिछौने से उठ कर उनकी सेवा टहल में जुट गईं.

40 सूर्यास्त के समय लोग विभिन्न रोगों से पीड़ितों को उनके पास ले आए. मसीह येशु ने हर एक पर हाथ रख उन्हें रोग से मुक्ति प्रदान की. 41 इसके अतिरिक्त अनेकों में से प्रेत यह चिल्लाते हुए बाहर निकल गए, “आप तो परमेश्वर-पुत्र हैं!” किन्तु मसीह येशु उन्हें डाँट कर बोलने से रोक देते थे क्योंकि प्रेत उनके मसीह होने के सत्य से परिचित थे.

42 पौ फटते ही मसीह येशु एक सुनसान स्थल पर चले गए. लोग उन्हें खोजते हुए वहाँ पहुँच गए. वे प्रयास कर रहे थे कि मसीह येशु उन्हें छोड़ कर न जाएँ. 43 मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “यह ज़रूरी है कि मैं अन्य नगरों में भी जा कर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार दूँ क्योंकि मुझे इसी उद्देश्य से भेजा गया है.” 44 इसलिए वह यहूदिया प्रदेश के यहूदी सभागृहों में सुसमाचार का प्रचार करते रहे.

पहिले चार शिष्यों का बुलाया जाना

एक दिन मसीह येशु गन्नेसरत झील के तट पर खड़े थे. वहाँ एक बड़ी भीड़ उनसे परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिर पड़ रही थी. मसीह येशु ने तट पर नावेँ देखीं. मछुवारे उन्हें छोड़ कर चले गए थे क्योंकि वे अपने जाल धो रहे थे. मसीह येशु एक नाव पर बैठ गए, जो शिमोन की थी. उन्होंने शिमोन से नाव को तट से कुछ दूर झील में ले जाने के लिए कहा और तब उन्होंने नाव में बैठ कर इकट्ठा भीड़ को शिक्षा देनी प्रारम्भ कर दी.

जब वह अपना विषय समाप्त कर चुके, शिमोन को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, “नाव को गहरे जल में ले चलो और तब जाल डालो.”

शिमोन प्रभु से बोले, “स्वामी! हम रात भर कठिन परिश्रम कर चुके हैं किन्तु हाथ कुछ न लगा, फिर भी, इसलिए कि यह आप कह रहे हैं, मैं जाल डाल देता हूँ.”

यह कहते हुए उन्होंने जाल डाल दिए. जाल में इतनी बड़ी संख्या में मछलियां आ गईं कि जाल फटने लगे इसलिए उन्होंने दूसरी नाव के सहमछुवारों को सहायता के लिए बुलाया. उन्होंने आ कर सहायता की और दोनों नावों में इतनी मछलियां भर गईं कि बोझ के कारण नावें डूबने लगीं.

सच्चाई का अहसास होते ही शिमोन मसीह येशु के चरणों पर गिर कहने लगे, “आप मुझसे दूर ही रहिए प्रभु, मैं एक पापी मनुष्य हूँ.” यह इसलिए कि शिमोन तथा उनके साथी मछुवारे इतनी मछलियों के पकड़े जाने से अचम्भित थे. 10 शिमोन के अन्य साथी, ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्र, याक़ोब और योहन भी यह देख भौचक्के रह गए थे.

तब मसीह येशु ने शिमोन से कहा, “डरो मत! अब से तुम मछलियों को नहीं, मनुष्यों को मेरे पास लाओगे.” 11 इसलिए उन्होंने नावें तट पर लगाईं और सब कुछ त्याग कर मसीह येशु के पीछे चलने लगे.

कोढ़ रोगी की शुद्धि

(मत्ति 8:1-4; मारक 1:40-45)

12 किसी नगर में एक व्यक्ति था, जिसके सारे शरीर में कोढ़ रोग फैल चुका था. मसीह येशु को देख उसने भूमि पर गिर कर उनसे विनती की, “प्रभु! यदि आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.”

13 मसीह येशु ने हाथ बढ़ा कर उसका स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूँ, शुद्ध हो जाओ!” तत्काल ही उसे कोढ़ रोग से चंगाई प्राप्त हो गई.

14 मसीह येशु ने उसे आज्ञा दी, “इसके विषय में किसी से कुछ न कहना परन्तु जा कर याजक को अपने शुद्ध होने का प्रमाण दो तथा मोशेह द्वारा निर्धारित शुद्धि-बलि भेंट करो कि तुम्हारा कोढ़ से छुटकारा उनके सामने गवाही हो जाए.”

15 फिर भी मसीह येशु के विषय में समाचार और भी अधिक फैलता गया. परिणामस्वरूप लोग भारी संख्या में उनके प्रवचन सुनने और बीमारियों से चँगा होने की अभिलाषा से उनके पास आने लगे. 16 मसीह येशु प्रायः भीड़ को छोड़, गुप्त रूप से, एकान्त में जा कर प्रार्थना किया करते थे.

लकवे से पीड़ित को स्वास्थ्यदान

(मत्ति 9:2-8; मारक 2:1-12)

17 एक दिन, जब मसीह येशु शिक्षा दे रहे थे, फ़रीसी तथा व्यवस्थापक, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेशों तथा येरूशालेम नगर से वहाँ आए थे, बैठे हुए थे. रोगियों को स्वस्थ करने का परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ्य मसीह येशु में सक्रिय था. 18 कुछ व्यक्ति एक लकवे के रोगी को बिछौने पर लिटा कर वहाँ लाए. ये लोग रोगी को मसीह येशु के सामने लाने का प्रयास कर रहे थे. 19 जब वे भीड़ के कारण उसे भीतर ले जाने में असफल रहे तो वे छत पर चढ़ गए और छत में से उसके बिछौने सहित रोगी को मसीह येशु के ठीक सामने उतार दिया.

20 उनका यह विश्वास देख मसीह येशु ने कहा, “वत्स! तुम्हारे पाप क्षमा किए जा चुके हैं.”

21 फ़रीसी और शास्त्री अपने मन में विचार करने लगे, “कौन है यह व्यक्ति, जो परमेश्वर-निन्दा कर रहा है? भला परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कौन पाप क्षमा कर सकता है?”

22 यह जानते हुए कि उनके मन में क्या विचार उठ रहे थे, मसीह येशु ने उनसे कहा, “आप अपने मन में इस प्रकार तर्क-वितर्क क्यों कर रहे हैं? 23 क्या कहना सरल होगा, ‘तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए’ या ‘उठो और चलो’? 24 किन्तु इसलिए कि मैं चाहता हूँ कि आपको यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है, मैं लकवे के इस रोगी से कह रहा हूँ, ‘मेरी आज्ञा है, खड़े हो जाओ, अपना बिछौना उठाओ और घर जाओ!’” 25 उसी क्षण वह रोगी उन सबके सामने उठ खड़ा हुआ, अपना बिछौना उठाया, जिस पर वह लेटा हुआ था और परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए घर चला गया. 26 सभी हैरान रह गए. सभी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. श्रद्धा से भरकर वे कह रहे थे, “हमने आज अनोखे काम होते देखे हैं.”

लेवी का बुलाया जाना

27 जब वह वहाँ से जा रहे थे, उनकी दृष्टि एक चुँगी लेने वाले पर पड़ी, जिनका नाम लेवी था. वह अपनी चौकी पर बैठे काम कर रहे थे. मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “आओ! मेरे पीछे हो लो!” 28 लेवी उठे तथा सभी कुछ वहीं छोड़ कर मसीह येशु के पीछे हो लिए.

29 मसीह येशु के सम्मान में लेवी ने अपने घर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया. बड़ी संख्या में चुँगी लेने वालों के अतिरिक्त वहाँ अनेक अन्य व्यक्ति भी इकट्ठा थे. 30 यह देख उस सम्प्रदाय के फ़रीसी और शास्त्री मसीह येशु के शिष्यों से कहने लगे, “तुम लोग चुँगी लेने वालों तथा अपराधियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”

31 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं, रोगी को होती है; 32 मैं पृथ्वी पर धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्चाताप करें.”

उपवास के प्रश्न का उत्तर

(मत्ति 9:14-17; मारक 2:18-22)

33 फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, “योहन के शिष्य अक्सर उपवास और प्रार्थना करते हैं. फ़रीसियों के शिष्य भी यही करते हैं किन्तु आपके शिष्य तो खाते-पीते रहते हैं.”

34 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या वर की उपस्थिति में अतिथियों से उपवास की आशा की जा सकती है? 35 किन्तु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा—वे उस समय उपवास करेंगे.”

36 मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया, “पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता. यदि कोई ऐसा करता है तब कोरा वस्त्र तो नाश होता ही है साथ ही वह जोड़ पुराने वस्त्र पर अशोभनीय भी लगता है. 37 वैसे ही नया दाखरस पुरानी मश्कों में रखा नहीं जाता. यदि कोई ऐसा करे तो नया दाखरस मश्कों को फाड़ कर बह जाएगा और मटकी भी नाश हो जाएगी. 38 नया दाखरस नई मटकियों में ही रखा जाता है. 39 पुराने दाखरस का पान करने के बाद कोई भी नए दाखरस की इच्छा नहीं करता क्योंकि वे कहते हैं, ‘पुराना दाखरस ही उत्तम है.’”

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