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Historical

Read the books of the Bible as they were written historically, according to the estimated date of their writing.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
2 कोरिन्थॉस 1-4

सम्बोधन, नमस्कार तथा आभार व्यक्ति

परमेश्वर की इच्छा के द्वारा मसीह येशु के प्रेरित पौलॉस तथा हमारे भाई तिमोथियॉस.

की ओर से कोरिन्थॉस नगर में परमेश्वर की कलीसिया तथा आख़ेया प्रदेश के सभी पवित्र लोगों को:

परमेश्वर हमारे पिता तथा प्रभु मसीह येशु की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो.

सारे धीरज के परमेश्वर

स्तुति के योग्य हैं परमेश्वर हमारे प्रभु मसीह येशु के पिता—करुणा के पिता तथा सब प्रकार के धीरज के स्त्रोत परमेश्वर, जो हमारी सारी पीड़ाओं में धीरज प्रदान करते हैं कि हम पीड़ितों को उसी प्रकार धीरज प्रदान कर सकें, जिस प्रकार परमेश्वर हमें धीरज प्रदान करते हैं. ठीक जिस प्रकार हम में मसीह के दुःखों की बहुतायत है, उसी प्रकार बहुत है मसीह के द्वारा हमारा धीरज. यदि हम यातनाएँ सहते हैं तो यह तुम्हारे धीरज और उद्धार के लिए है; यदि हमें धीरज प्राप्त हुआ है तो यह तुम्हारे प्रोत्साहन के लिए है कि तुम भी उन्हीं यातनाओं को धीरज के साथ सह सको, जो हम सह रहे हैं. इस अहसास के प्रकाश में तुम्हारे विषय में हमारी आशा अटल है कि जिस प्रकार तुम हमारी सताहटों में सहभागी हो, उसी प्रकार तुम हमारे धीरज में भी सहभागी होगे.

प्रियजन, हम नहीं चाहते कि तुम उन सब क्लेश के विषय में अनजान रहो, जो आसिया प्रदेश में हम पर आए. हम ऐसे बोझ से दब गए थे, जो हमारी सहनशक्ति से परे था. यहाँ तक कि हम जीवन की आशा तक खो चुके थे. हमें ऐसा लग रहा था, मानो हम पर दण्ड की आज्ञा ही प्रसारित हो चुकी है. यह इसलिए हुआ कि हम स्वयं पर नहीं परन्तु परमेश्वर में विश्वास स्थिर रखें, जो मरे हुओं को जीवित करते हैं. 10 हमने परमेश्वर पर, जिन्होंने हमें घोर संकट से उबारा और उबारते ही रहेंगे, आशा रखी है, वह हमें भविष्य में भी उबारते ही रहेंगे 11 क्योंकि तुम अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा हमारी सहायता करते हो कि हमारी ओर से अनेकों द्वारा उस अनुग्रह के लिए धन्यवाद प्रकट किया जा सके, जो अनेकों की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप हमें प्राप्त हुआ है.

पौलॉस की योजना बदलने का कारण

12 इसलिए हमारे गर्व करने का कारण यह है: हमारी अन्तरात्मा की पुष्टि कि हमारे शारीरिक जीवन में, विशेष रूप से तुम्हारे सम्बन्ध में हमारा व्यवहार परमेश्वर द्वारा दी गई पवित्रता तथा सच्चाई सहित रहा है. यह सांसारिक ज्ञान का नहीं परन्तु मात्र परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम था. 13 हमारे पत्रों में ऐसा कुछ नहीं होता, जो तुम पढ़ या समझ न सको और मेरी आशा यह है कि तुम अन्त में सब कुछ समझ लोगे. 14 ठीक जिस प्रकार तुम हमें बहुत थोड़ा ही समझ पाए हो कि तुम हमारे गर्व का विषय हो, प्रभु के दिन तुम भी हम पर गर्व करोगे.

15 इस निश्चय के द्वारा सबसे पहिले, मैं इस उद्धेश्य से तुम्हारे पास आना चाहता था कि तुम्हें दुगनी कृपा का अनुभव हो. 16 मेरी योजना थी कि मैं मकेदोनिया जाते हुए तुम्हारे पास आऊँ तथा वहाँ से लौटते हुए भी. इसके बाद तुम मुझे यहूदिया प्रदेश की यात्रा पर भेज देते. 17 क्या मेरी यह योजना मेरी अस्थिर मानसिकता थी? या मेरे उद्धेश्य मनुष्य के ज्ञान प्रेरित होते हैं कि मेरा बोलना एक ही समय में हाँ-हाँ भी होता है और न-न भी?

18 जिस प्रकार निस्सन्देह परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं, उसी प्रकार हमारी बातों में भी “हाँ” का मतलब हाँ और “न” का मतलब न ही होता है. 19 परमेश्वर-पुत्र मसीह येशु, जिनका प्रचार सिलवानॉस, तिमोथियॉस तथा मैंने तुम्हारे मध्य किया, वह प्रचार कभी “हाँ” या कभी “न” नहीं परन्तु परमेश्वर में हमेशा हाँ ही रहा है. 20 परमेश्वर की सारी प्रतिज्ञाएँ उनमें “हाँ” ही हैं. इसीलिए हम परमेश्वर की महिमा के लिए मसीह येशु के द्वारा “आमेन” कहते हैं. 21-22 परमेश्वर ही हैं, जो तुम्हारे साथ हमें मसीह में मजबूत करते हैं. परमेश्वर ने हम पर अपनी मोहर लगा कर बयाने के रूप में अपना आत्मा हमारे हृदय में रख कर हमारा अभिषेक किया है.

23 परमेश्वर मेरी इस सच्चाई के गवाह हैं कि मैं दोबारा कोरिन्थॉस इसलिए नहीं आया कि मैं तुम्हें कष्ट देना नहीं चाहता था. 24 इसका मतलब यह नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास पर अपना अधिकार जताएं क्योंकि तुम अपने विश्वास में स्थिर खड़े हो. हम तो तुम्हारे ही आनन्द के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं.

अपनी ओर से मैं यह निश्चय कर चुका था कि मैं एक बार फिर वहाँ आकर तुम्हें दुःख न दूँ, क्योंकि वहाँ आकर यदि मैं ही तुम्हें दुःखी करूँ तो मुझे वहाँ आनन्द किनसे प्राप्त होगा, केवल उनसे, जिन्हें मेरे द्वारा दुःख पहुँचा है? मैंने तुम्हें इसी उद्धेश्य से पत्र लिखा था कि जब मैं वहाँ आऊँ तो वे ही लोग मेरे दुःख का कारण न हो जाएँ, जिनसे मुझे आनन्द की आशा है. मुझे निश्चय है कि मेरा आनन्द तुम सभी का आनन्द है. हृदय के कष्ट और क्लेश के कारण आँसू बहा-बहा कर मैंने तुम्हें यह पत्र लिखा है, इसलिए नहीं कि तुम्हें दुःखी करूँ परन्तु इसलिए कि तुम तुम्हारे प्रति मेरे अत्याधिक प्रेम को समझ सको.

पापी को क्षमा दी जाए

यदि कोई दुःख का कारण है तो वह मात्र मेरे लिए नहीं परन्तु किसी सीमा तक तुम सभी के लिए दुःख का कारण बना है. मैं इसके विषय में इससे अधिक कुछ और नहीं कहना चाहता. काफी है ऐसे व्यक्ति के लिए बहुमत द्वारा तय किया गया दण्ड. इसकी बजाय भला यह होगा कि तुम उसे क्षमा कर धीरज दो. कहीं ऐसा न हो कि कष्ट की अधिकाई उसे निराशा में डुबो दे. इसलिए तुमसे मेरी विनती है कि तुम दोबारा उसके प्रति अपने प्रेम की पुष्टि करो. यह पत्र मैंने यह जानने के उद्धेश्य से भी लिखा है कि तुम सब विषयों में आज्ञाकारी हो या नहीं. 10 जिसे तुम किसी विषय में क्षमा करते हो, उसे मैं भी क्षमा करता हूँ. जिस विषय में मैंने क्षमा किया है—यदि वह वास्तव में क्षमा-योग्य था—उसे मैंने मसीह को उपस्थित जानकर तुम्हारे लिए क्षमा किया है 11 कि शैतान हमारी स्थिति का कोई भी लाभ न उठाने पाए—हम उसकी चालों से अनजान नहीं हैं.

नए नियम के देनेवाले

12 मैं मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार के लिए त्रोआस आया और वहाँ प्रभु के द्वारा मेरे लिए द्वार खोला गया. 13 वहाँ अपने भाई तीतॉस को न पाकर मेरा मन व्याकुल हो उठा. इसलिए उनसे विदा लेकर मैं मकेदोनिया प्रदेश चला गया.

14 धन्यवाद हो परमेश्वर का! जो मसीह के जय के उत्सव की शोभायात्रा में हमारे आगे चलते हैं और हमारे द्वारा अपने ज्ञान की सुमधुर सुगंध हर जगह फैलाते जाते हैं. 15 हम ही परमेश्वर के लिए मसीह की सुगंध हैं—उन सब के लिए, जो उद्धार प्राप्त करते जा रहे हैं तथा उन सब के लिए भी, जो नाश होते जा रहे हैं. 16 जो नाश हो रहे हैं, उनके लिए हम मृत्यु की घातक गन्ध तथा उद्धार प्राप्त करते जा रहे व्यक्तियों के लिए जीवन की प्राणदायी सुगंध. किसमें है इस प्रकार के काम करने की योग्यता? 17 हम उनके समान नहीं, जिनके लिए परमेश्वर का वचन खरीदने-बेचने द्वारा लाभ कमाने की वस्तु है. इसके विपरीत हम सच्चाई में परमेश्वर की ओर से, परमेश्वर के सामने मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार को दूसरों तक पहुंचाते हैं.

क्या हमने दोबारा अपनी बड़ाई करनी शुरु कर दी? या कुछ अन्य व्यक्तियों के समान हमें भी तुमसे या तुम्हारे लिए सिफारिश के पत्रों की ज़रूरत है? हमारे पत्र तो तुम स्वयं हो—हमारे हृदयों पर लिखे हुए—जो सबके द्वारा पहचाने तथा पढ़े जा सकते हो. यह साफ़ ही है कि मसीह का पत्र तुम हो—हमारी सेवकाई का परिणाम—जिसे स्याही से नहीं परन्तु जीवित परमेश्वर की आत्मा से पत्थर की पटिया पर नहीं परन्तु मनुष्य के हृदय की पटिया पर लिखा गया है. हमें मसीह के द्वारा परमेश्वर में ऐसा ही विश्वास है. स्थिति यह नहीं कि हम यह दावा करें कि हम अपने आप में कुछ कर सकने के योग्य हैं—परमेश्वर हमारी योग्यता का स्त्रोत हैं, जिन्होंने हमें नई वाचा का काम करने योग्य सेवक बनाया. यह वाचा लिखी हुई व्यवस्था की नहीं परन्तु आत्मा की है. लिखी हुई व्यवस्था मृत्यु को जन्म देती है मगर आत्मा जीवन देती है.

नई वाचा का वैभव

यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी? यदि दण्ड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा? 10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया. 11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा!

12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिए ढ़का रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे-धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएँ. 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मन्द हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. 15 हाँ, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रन्थ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहाँ स्वतंत्रता है 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, उनके स्वरूप में धीरे-धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.

मिट्टी के पात्रों में रखी हुई निधि

इसलिए कि यह सेवकाई हमें परमेश्वर की कृपा से प्राप्त हुई है, हम निराश नहीं होते. हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया है. न तो हमारे स्वभाव में किसी प्रकार की चतुराई है और न ही हम परमेश्वर के वचन को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. किन्तु सच्चाई को प्रकट करके हम परमेश्वर के सामने स्वयं को हर एक के विवेक के लिए प्रस्तुत करते हैं. यदि हमारा ईश्वरीय सुसमाचार ढ़का हुआ है, तो यह उन्हीं के लिए ढ़का हुआ है, जो विनाश की ओर जा रहे हैं. इस संसार के ईश्वर ने उन अविश्वासियों की बुद्धि को अंधा कर दिया है कि वे परमेश्वर के प्रतिरूप, मसीह के तेजोमय ईश्वरीय सुसमाचार के प्रकाश को न देख सकें. हम स्वयं को ऊँचा नहीं करते—हम मसीह येशु को प्रभु तथा स्वयं को मसीह येशु के लिए तुम्हारे दास घोषित करते हैं. परमेश्वर, जिन्होंने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” वही परमेश्वर हैं, जिन्होंने हमारा हृदय चमका दिया कि हमें मसीह के मुख में चमकते हुए परमेश्वर के प्रताप के ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें.

यह बेशकीमती खजाना मिट्टी के पात्रों में इसलिए रखा हुआ है कि यह साफ़ हो जाए कि यह असीम सामर्थ हमारा नहीं परन्तु परमेश्वर का है. हम चारों ओर से कष्टों से घिरे रहते हैं किन्तु कुचले नहीं जाते; घबराते तो हैं किन्तु निराश नहीं जाते; सताए तो जाते हैं किन्तु त्यागे नहीं जाते; बहुत चोटिल किए जाते हैं किन्तु नष्ट नहीं किए जाते. 10 हम हरदम मसीह येशु की मृत्यु को अपने शरीर में लिए फिरते हैं कि मसीह येशु का जीवन हमारे शरीर में प्रकट हो जाए. 11 इसलिए हम, जो जीवित हैं, हरदम मसीह येशु के लिए मृत्यु को सौंपे जाते हैं कि हमारी शारीरिक देह में मसीह येशु का जीवन प्रकट हो जाए. 12 इस स्थिति में मृत्यु हममें सक्रिय है और जीवन तुममें.

13 विश्वास के उसी भाव में, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं चुप न रहा. हम भी यह सब इसीलिए कहते हैं कि हमने भी विश्वास किया है 14 यह जानते हुए कि जिन्होंने प्रभु येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, वही हमें भी मसीह येशु के साथ जीवित करेंगे तथा तुम्हारे साथ हमें भी अपनी उपस्थिति में ले जाएँगे. 15 यह सब तुम्हारे हित में है कि अनुग्रह, जो अधिक से अधिक मनुष्यों में व्याप्त होता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए अधिक से अधिक धन्यवाद का कारण बने.

16 इसलिए हम हतोत्साहित नहीं होते. हमारा बाहरी मनुष्यत्व तो कमज़ोर होता जा रहा है किन्तु भीतरी मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जा रहा है. 17 हमारा यह छोटा सा क्षण भर का कष्ट हमारे लिए ऐसी अनन्त और अत्याधिक महिमा को उत्पन्न कर रहा है, जिसकी तुलना नहीं कर सकते 18 क्योंकि हमने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित नहीं किया, जो दिखाई देता है परन्तु उस पर, जो दिखाई नहीं देता है. जो कुछ दिखाई देता है, वह क्षण भर का है किन्तु जो दिखाई नहीं देता वह अनन्त काल का.

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