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Historical

Read the books of the Bible as they were written historically, according to the estimated date of their writing.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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प्रेरित 23-25

23 महासभा की ओर ध्यान से देखते हुए पौलॉस ने कहना शुरु किया, “प्रियजन, परमेश्वर के सामने मेरा जीवन आज तक पूरी तरह सच्चे विवेक सा रहा है.” इस पर महायाजक हननयाह ने पौलॉस के पास खड़े हुओं को पौलॉस के मुख पर वार करने की आज्ञा दी. स्वयं पौलॉस ही बोल उठे, “अरे ओ सफेदी पुती दीवार, तुम पर ही परमेश्वर का वार होने पर है! तुम तो यहाँ व्यवस्था की विधियों के अनुसार न्याय करने बैठे हो, फिर भी मुझ पर वार करने की आज्ञा दे कर स्वयं व्यवस्था भंग कर रहे हो?”

वे, जो पौलॉस के पास खड़े थे कहने लगे, “तुम तो परमेश्वर के महायाजक का तिरस्कार करने का दुस्साहस कर बैठे हो!”

पौलॉस ने उत्तर दिया, “भाइयो, मुझे यह मालूम ही न था कि यह महायाजक हैं पवित्रशास्त्र का लेख है: अपनी प्रजा के राजा के लिए कोई बुरे शब्द न कहना.”

तब यह मालूम होने पर कि वहाँ कुछ सदूकी और कुछ फ़रीसी भी उपस्थित हैं, पौलॉस महासभा के सामने ऊँचे शब्द में कहने लगे, “प्रियजन, मैं फ़रीसी हूँ—फ़रीसियों की सन्तान हूँ. मुझ पर यहाँ, मरे हुओं की आशा और उनके पुनरुत्थान में मेरी मान्यता के कारण मुकद्दमा चलाया जा रहा है.” जैसे ही उन्होंने यह कहा, फ़रीसियों तथा सदूकियों के बीच विवाद छिड़ गया और सारी सभा में फूट पड़ गई, क्योंकि सदूकियों का विश्वास है कि न तो मरे हुओं का पुनरुत्थान होता है, न स्वर्गदूतों का अस्तित्व होता है और न आत्मा का. किन्तु फ़रीसी इन सबमें विश्वास करते हैं.

वहाँ बड़ा कोलाहल शुरु हो गया. फ़रीसियों की ओर से कुछ शास्त्रियों ने खड़े हो कर झगड़ते हुए कहा, “हमारी दृष्टि में यह व्यक्ति निर्दोष है. सम्भव है किसी आत्मा या स्वयं स्वर्गदूत ही ने उससे बातें की हों.” 10 जब वहाँ कोलाहल बढ़ने लगा, सेनापति इस आशंका से घबरा गया कि लोग पौलॉस के चिथड़े न उड़ा दें. इसलिए उसने सेना को आज्ञा दी कि पौलॉस को जबरन वहाँ से सेना गढ़ में ले जाया जाए.

11 उसी रात में प्रभु ने पौलॉस के पास आ कर कहा, “साहस रखो. जिस सच्चाई में तुमने मेरे विषय में येरूशालेम में गवाही दी है, वैसी ही गवाही तुम्हें रोम में भी देनी है.”

पौलॉस के विरुद्ध यहूदियों का षड्यन्त्र

12 प्रातःकाल यहूदियों ने एक षड्यन्त्र रचा और सौगन्ध ली कि पौलॉस को समाप्त करने तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे. 13 इस योजना में चालीस से अधिक व्यक्ति शामिल हो गए. 14 उन्होंने महायाजकों और पुरनियों से कहा, “हमने ठान लिया है कि पौलॉस को समाप्त किए बिना हम अन्न-जल चखेंगे तक नहीं. 15 इसलिए आप और महासभा मिल कर सेनापति को सूचना भेजें और पौलॉस को यहाँ ऐसे बुलवा लें, मानो आप उसका विवाद बारीकी से जांच करके सुलझाना चाहते हैं. यहाँ हमने उसके पहुँचने के पहले ही उसे मार ड़ालने की तैयारी कर रखी है.”

16 पौलॉस के भाँजे ने इस मार ड़ालने के विषय में सुन लिया. उसने सेना घर में जा कर पौलॉस को इसकी सूचना दे दी.

17 पौलॉस ने एक सैन्य अधिकारी को बुला कर कहा, “कृपया इस युवक को सेनापति के पास ले जाइए. इसके पास उनके लिए एक सूचना है.” 18 इसलिए सैन्य अधिकारी ने उसे सेनापति के पास ले जा कर कहा, “बन्दी पौलॉस ने मुझे बुला कर विनती की है कि इस युवक को आपके पास ले आऊँ क्योंकि इसके पास आपके लिए एक सूचना है.”

19 इसलिए सेनापति ने उस युवक का हाथ पकड़ कर अलग ले जा कर उससे पूछताछ करनी शुरु कर दी, “क्या सूचना है तुम्हारे पास?”

20 उसने उत्तर दिया, “पौलॉस को महासभा में बुलाना यहूदियों की सिर्फ एक योजना ही है, मानो वे उनके विषय में बारीकी से जांच करना चाहते हैं. 21 कृपया उनकी इस विनती की ओर ध्यान न दें क्योंकि चालीस से अधिक व्यक्ति पौलॉस के लिए घात लगाए बैठे हैं. उन्होंने ठान लिया है कि जब तक वे पौलॉस को खत्म नहीं कर देते, वे न तो कुछ खाएँगे और न ही कुछ पिएंगे. अब वे आपकी हाँ के इंतज़ार में बैठे हैं.”

22 सेनापति ने युवक को इस निर्देश के साथ विदा कर दिया, “किसी को भी यह मालूम न होने पाए कि तुमने मुझे यह सूचना दी है.”

पौलॉस का स्थानान्तरण कयसरिया नगर को

23 तब सेनापति ने दो नायकों को बुला कर आज्ञा दी, “रात के तीसरे घण्टे तक दो सौ सैनिकों को लेकर कयसरिया नगर को प्रस्थान करो. उनके साथ सत्तर घुड़सवार तथा दो सौ भालाधारी सैनिक भी हों. 24 पौलॉस के लिए घोड़े की सवारी का प्रबन्ध करो कि वह राज्यपाल फ़ेलिक्स के पास सुरक्षित पहुँचा दिए जाएँ.”

25 सेनापति ने उनके हाथ यह पत्र भेज दिया:

26 परमश्रेष्ठ राज्यपाल फ़ेलिक्स की सेवा में,

क्लॉदियॉस लिसियस का सादर,

अभिनन्दन.

27 जब इस व्यक्ति को यहूदियों ने दबोचा और इसकी हत्या करने पर ही थे, मैं घटना स्थल पर अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ जा पहुँचा और इसे उनके पंजों से मुक्त कराया क्योंकि मुझे यह मालूम हुआ कि यह एक रोमी नागरिक है. 28 तब इस पर लगाए आरोपों की पुष्टि के उद्देश्य से मैंने इसे उनकी महासभा के सामने प्रस्तुत किया. 29 वहाँ मुझे यह मालूम हुआ कि इस पर लगाए गए आरोप मात्र उनकी ही व्यवस्था की विधियों से सम्बन्धित हैं, न कि ऐसे, जिनके लिए हमारे नियमों के अनुसार मृत्युदण्ड या कारावास दिया जाए. 30 फिर मुझे यह सूचना प्राप्त हुई कि इस व्यक्ति के विरुद्ध हत्या का षड्यन्त्र रचा जा रहा है. मैंने इसे बिना देर किए आपके पास भेजने का निश्चय किया. मैंने आरोपियों को भी ये निर्देश दे दिए हैं कि वे इसके विरुद्ध सभी आरोप आपके ही सामने प्रस्तुत करें.

31 इसलिए आज्ञा के अनुसार सैनिकों ने रातों-रात पौलॉस को अन्तिपातरिस नगर के पास पहुँचा दिया. 32 दूसरे दिन घुड़सवारों को पौलॉस के साथ भेज कर वे स्वयं सैनिक गढ़ लौट आए. 33 कयसरिया नगर पहुँच कर उन्होंने राज्यपाल को वह पत्र सौंपा और पौलॉस को उनके सामने प्रस्तुत किया. 34 पत्र पढ़ कर राज्यपाल ने पौलॉस से प्रश्न किया कि वह किस प्रदेश के हैं. यह मालूम होने पर कि वह किलिकिया प्रदेश के हैं 35 राज्यपाल ने कहा, “तुम्हारे आरोपियों के यहाँ पहुँचने पर ही मैं तुम्हारी सुनवाई करूँगा” और उसने पौलॉस को हेरोदेस के राजभवन परिसर में रखने की आज्ञा दी.

पौलॉस फ़ेलिक्स के सामने

24 पाँच दिन बाद महायाजक हननयाह पुरनियों तथा तरतुलुस नामक एक वकील के साथ कयसरिया नगर आ पहुँचे और उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलॉस के विरुद्ध अपने आरोप प्रस्तुत किए. जब पौलॉस को वहाँ लाया गया, राज्यपाल के सामने तरतुलुस ने पौलॉस पर आरोप लगाने प्रारम्भ कर दिए: “आपकी दूरदृष्टि के कारण आपके शासन में लंबे समय से शान्ति बनी रही है तथा आपके शासित प्रदेश में इस राष्ट्र के लिए आपके द्वारा लगातार सुधार किए जा रहे हैं. परमश्रेष्ठ राज्यपाल फ़ेलिक्स, हम इनका हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद करते हुए हार्दिक स्वागत करते हैं. मैं आपका और अधिक समय खराब नहीं करूँगा. मैं आप से यह छोटा सा उत्तर सुनने की विनती करना चाहता हूँ.

“यह व्यक्ति हमारे लिए वास्तव में कष्टदायक कीड़ा साबित हो रहा है. यह एक ऐसा व्यक्ति है, जो विश्व के सारे यहूदियों के बीच मतभेद पैदा कर रहा है. यह एक कुख्यात नाज़री पन्थ का मुखिया भी है. इसने मन्दिर की पवित्रता भंग करने की भी कोशिश की है इसीलिए हमने इसे बन्दी बना लिया. हम तो अपनी ही व्यवस्था की विधियों के अनुसार इसका न्याय करना चाह रहे थे किन्तु सेनापति लिसियस ने जबरदस्ती दखलंदाज़ी कर इसे हमसे छीन लिया तथा हमें आपके सामने अपने आरोप प्रस्तुत होने की आज्ञा दी कि आप स्वयं स्थिति की जांच कर इन सभी आरोपों से सम्बन्धित सच्चाईयों को जान सकें.”

तब यहूदियों ने भी आरोप लगाना प्रारम्भ कर दिया और इस बात की पुष्टि की कि ये सभी आरोप सही हैं.

रोमी राज्यपाल के सामने पौलॉस का भाषण

10 राज्यपाल फ़ेलिक्स की ओर से संकेत प्राप्त होने पर पौलॉस ने इसके उत्तर में कहना प्रारम्भ किया. “इस बात के प्रकाश में कि आप इस राष्ट्र के न्यायाधीश रहे हैं, मैं खुशी से अपना बचाव प्रस्तुत कर रहा हूँ. 11 आप इस सच्चाई की पुष्टि कर सकते हैं कि मैं लगभग बारह दिन पहले सिर्फ आराधना के उद्धेश्य से येरूशालेम गया 12 और इन्होंने न तो मुझे मन्दिर में, न यहूदी आराधनालय में और न नगर में किसी से वाद-विवाद करते या नगर की शान्ति भंग करते पाया है और 13 न वे मुझ पर लगाए जा रहे इन आरोपों को साबित ही कर सकते हैं. 14 हाँ यह मैं आपके सामने अवश्य स्वीकार करता हूँ कि इस मत के अनुसार, जिसे इन्होंने पन्थ नाम दिया है, मैं वास्तव में हमारे पूर्वजों के ही परमेश्वर की सेवा-उपासना करता हूँ. सब कुछ, जो व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों के अनुसार है, मैं उसमें पूरी तरह विश्वास करता हूँ. 15 परमेश्वर में मेरी भी वह आशा है जैसी इनकी कि निश्चित ही एक ऐसा दिन तय किया गया है, जिसमें धर्मियों तथा अधर्मियों दोनों ही का पुनरुत्थान होगा. 16 इसी नज़रिए से मैं भी परमेश्वर और मनुष्यों दोनों ही के सामने हमेशा एक निष्कलंक विवेक बनाए रखने की भरपूर कोशिश करता हूँ.

17 “अनेक वर्षों के बीत जाने के बाद मैं गरीबों के लिए सहायता राशि लेकर तथा बलि चढ़ाने के उद्धेश्य से येरूशालेम आया था. 18 उसी समय इन्होंने मन्दिर में मुझे शुद्ध होने की रीति पूरी करते हुए देखा. वहाँ न कोई भीड़ थी और न ही किसी प्रकार का शोर. 19 हाँ, उस समय वहाँ आसिया प्रदेश के कुछ यहूदी अवश्य थे, जिनका यहाँ आपके सामने उपस्थित होना सही था. यदि उन्हें मेरे विरोध में कुछ कहना ही था तो सही यही था कि वे इसे आपकी उपस्थिति में कहते. 20 अन्यथा ये व्यक्ति, जो यहाँ खड़े हैं, स्वयं बताएं कि महासभा के सामने उन्होंने मुझे किस विषय में दोषी पाया है, 21 केवल इस एक बात को छोड़ के, जो मैंने उनके सामने ऊँचे शब्द में व्यक्त किया: ‘मरे हुओं के पुनरुत्थान में मेरी मान्यता के कारण आज आपके सामने मुझ पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है.’”

कयसरिया नगर में पौलॉस का बंदीगृह में रहना

22 किन्तु राज्यपाल फ़ेलिक्स ने, जो इस पन्थ से भली-भांति परिचित था, सुनवाई को स्थगित करते हुए घोषणा की, “सेनापति लिसियस के आने पर ही मैं इस विषय में निर्णय दूँगा.” 23 उसने आज्ञा दी कि पौलॉस को कारावास में तो रखा जाए किन्तु उन्हें इतनी स्वतन्त्रता अवश्य दी जाए कि उनके खास मित्र आकर उनकी सेवा कर सकें.

24 कुछ दिनों के बाद फ़ेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला के साथ वहाँ आया, जो यहूदी थी. उसने पौलॉस को बुलवाने की आज्ञा दी और उनसे उनके मसीह येशु में विश्वास विषय पर बातें सुनी. 25 जब पौलॉस धार्मिकता, संयम तथा आनेवाले न्याय का वर्णन कर रहे थे, फ़ेलिक्स ने भयभीत हो पौलॉस से कहा, “इस समय तो तुम जाओ. जब मेरे पास समय होगा, मैं स्वयं तुम्हें बुलवा लूँगा.” 26 फ़ेलिक्स पौलॉस से धनराशि प्राप्ति की आशा लगाए हुए था. इसी आशा में वह पौलॉस को बातचीत के लिए बार-बार अपने पास बुलावाता था.

27 यही क्रम दो वर्षों तक चलता रहा. तब फ़ेलिक्स के स्थान पर पोर्कियॉस फ़ेस्तुस इस पद पर चुना गया और यहूदियों को प्रसन्न करने के उद्धेश्य से फ़ेलिक्स ने पौलॉस को बन्दी ही बना रहने दिया.

कयसर से पौलॉस की विनती

25 कार्यभार सम्भालने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस कयसरिया नगर से येरूशालेम गया. वहाँ उसके सामने प्रधान याजकों और मुख्य यहूदियों ने पौलॉस के विरुद्ध मुकद्दमा प्रस्तुत किया. उन्होंने फ़ेस्तुस से विनती की कि वह विशेष कृपादृष्टि कर पौलॉस को येरूशालेम भेज दें. वास्तव में उनकी योजना मार्ग में घात लगाकर पौलॉस की हत्या करने की थी. फ़ेस्तुस ने इसके उत्तर में कहा, “पौलॉस तो कयसरिया में बन्दी है और मैं स्वयं शीघ्र वहाँ जा रहा हूँ. इसलिए आप में से कुछ प्रधान व्यक्ति मेरे साथ वहाँ चलें. यदि पौलॉस को वास्तव में दोषी पाया गया तो उस पर मुकद्दमा चलाया जाएगा.”

आठ-दस दिन ठहरने के बाद फ़ेस्तुस कयसरिया लौट गया और अगले दिन पौलॉस को न्यायालय में लाने की आज्ञा दी. पौलॉस के वहाँ आने पर येरूशालेम से आए यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और उन पर अनेक गम्भीर आरोपों की बौछार शुरु कर दी, जिन्हें वे स्वयं साबित न कर पाए.

अपने बचाव में पौलॉस ने कहा, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के विरुद्ध किसी भी प्रकार का अपराध किया है और न ही मन्दिर या कयसर के विरुद्ध.”

फिर भी यहूदियों को प्रसन्न करने के उद्धेश्य से फ़ेस्तुस ने पौलॉस से प्रश्न किया, “क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे इन आरोपों की सुनवाई मेरे सामने येरूशालेम में हो?” 10 इस पर पौलॉस ने उत्तर दिया, “मैं कयसर के न्यायालय में खड़ा हूँ. ठीक यही है कि मेरी सुनवाई यहीं हो. मैंने यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया है यह तो आपको भी भली-भांति मालूम है. 11 यदि मैं अपराधी ही हूँ और यदि मैंने मृत्युदण्ड के योग्य कोई अपराध किया ही है, तो मुझे मृत्युदण्ड स्वीकार है. किन्तु यदि इन यहूदियों द्वारा मुझ पर लगाए आरोप सच नहीं हैं तो किसी को यह अधिकार नहीं कि वह मुझे इनके हाथों में सौंपे. यहाँ मैं अपनी सुनवाई की याचिका कयसर के न्यायालय में भेज रहा हूँ.”

12 अपनी महासभा से विचार-विमर्श के बाद फ़ेस्तुस ने घोषणा की, “ठीक है. तुमने कयसर से सुनवाई की विनती की है तो तुम्हें कयसर के पास ही भेजा जाएगा.”

राजा अग्रिप्पा के सामने पौलॉस

13 कुछ समय बाद राजा अग्रिप्पा तथा बेरनिके फ़ेस्तुस से भेंट करने कयसरिया नगर आए. 14 वे वहाँ बहुत समय तक ठहरे. फ़ेस्तुस ने राजा को पौलॉस के विषय में इस प्रकार बताया: “फ़ेस्तुस एक बन्दी को यहाँ छोड़ गया है. 15 जब मैं येरूशालेम गया हुआ था वहाँ प्रधान याजकों तथा यहूदी प्राचीनों ने उस पर आरोप लगाए थे. उन्होंने उसे मृत्युदण्ड दिए जाने की माँग की. 16 मैंने उनके सामने रोमी शासन की नीति स्पष्ट करते हुए उनसे कहा कि इस नीति के अन्तर्गत दोषी और दोष लगानेवालों के आमने-सामने सवाल जवाब किए बिना तथा दोषी को अपनी सफ़ाई पेश करने का अवसर दिए बिना दण्ड देना सही नहीं है.

17 “इसलिए उनके यहाँ इकट्ठा होते ही मैंने बिना देर किए दूसरे ही दिन इस व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने की आज्ञा दी. 18 जब आरोपी खड़े हुए, उन्होंने उस पर सवाल जवाब शुरु कर दिए किन्तु मेरे अनुमान के विपरीत, ये आरोप उन अपराधों के नहीं थे जिनकी मुझे आशा थी 19 ये उनके पारस्परिक मतभेद थे, जिनका सम्बन्ध मात्र उनके विश्वास से तथा येशु नामक किसी मृत व्यक्ति से था, जो इस बन्दी पौलॉस के अनुसार जीवित है. 20 मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस प्रकार के विषय का पता कैसे किया जाए. इसलिए मैंने यह जानना चाहा, क्या वह येरूशालेम में मुकद्दमा चलाए जाने के लिए राज़ी है. 21 किन्तु पौलॉस की इस विनती पर कि सम्राट के निर्णय तक उसे कारावास में रखा जाए, मैंने उसे कयसर के पास भेजे जाने तक बन्दी बनाए रखने की आज्ञा दी है.”

22 राजा अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “मैं स्वयं उसका बचाव सुनना चाहूँगा.”

फ़ेस्तुस ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “ठीक है, कल ही सुन लीजिएगा.”

23 अगले दिन जब राजा अग्रिप्पा और बेरनिके ने औपचारिक धूम-धाम के साथ सभागार में प्रवेश किया, उनके साथ सेनापति और गणमान्य नागरिक भी थे. फ़ेस्तुस की आज्ञा पर पौलॉस को वहाँ लाया गया. 24 फ़ेस्तुस ने कहना शुरु किया, “महाराज अग्रिप्पा तथा उपस्थित सज्जनो! इस व्यक्ति को देखिए, जिसके विषय में सारे यहूदी समाज ने येरूशालेम और यहाँ कयसरिया में मेरे न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है. ये लोग चिल्ला-चिल्ला कर यह कह रहे हैं कि अब उसे एक क्षण भी जीवित रहने का अधिकार नहीं है. 25 किन्तु अपनी जांच में मैंने इसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया जिसके लिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए और अब, जब उसने स्वयं सम्राट के न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है, मैंने उसे रोम भेज देने का निश्चय किया है. 26 फिर भी, उसके विषय में मेरे पास कुछ भी तय नहीं है जिसे लिखकर महाराजाधिराज की सेवा में प्रस्तुत किया जाए. यही कारण है कि मैंने उसे आप सबके सामने प्रस्तुत किया है—विशेष रूप से महाराज अग्रिप्पा आपके सामने, जिससे कि सारी जांच पूरी होने पर मुझे लिखने के लिए कुछ सबूत मिल जाएँ, जो सम्राट की सेवा में प्रस्तुत किए जा सकें. 27 क्योंकि मेरे लिए यह गलत है कि किसी भी दोषी को उसके आरोपों के वर्णन के बिना आगे भेजा जाए.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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