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The Daily Audio Bible

This reading plan is provided by Brian Hardin from Daily Audio Bible.
Duration: 731 days

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Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
1 शमूएल 20-21

दाऊद और योनातान एक सन्धि करते हैं

20 दाऊद रामा के निकट के डेरे से भाग गया। दाऊद योनातान के पास पहुँचा और उससे पूछा, “मैंने कौन सी गलती की है? मेरा अपराध क्या है? तुम्हारा पिता मुझे मारने का प्रयत्न क्यों कर रहा है?”

योनातान ने उत्तर दिया, “मेरे पिता तुमको मारने का प्रयत्न नहीं कर रहे हैं! मेरे पिता मुझसे पहले कहे बिना कुछ नहीं करते। यह महत्वपूर्ण नहीं कि वह बात बहुत महत्वपूर्ण हो या तुच्छ, मेरे पिता सदा मुझे बताते हैं। मेरे पिता मुझसे यह बताने से क्यों इन्कार करेंगे कि वे तुमको मार डालना चाहते हैं? नहीं, यह सत्य नहीं है!”

किन्तु दाऊद ने उत्तर दिया, “तुम्हारे पिता अच्छी तरह जानते हैं कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। तुम्हारे पिता ने अपने मन में यह सोचा है, ‘योनातान को इस विषय में जानकारी नहीं होनी चाहिये। यदि वह जानेगा तो दाऊद से कह देगा।’ किन्तु जैसे यहोवा का होना सत्य है और तुम जीवित हो, उसी प्रकार यह भी सत्य है कि मैं मृत्यु के बहुत निकट हूँ!”

योनातान ने दाऊद से कहा, “मैं वह सब कुछ करूँगा जो तुम मुझसे करवाना चाहो।”

तब दाऊद ने कहा, “देखो, कल नया चाँद का महोत्सव है और मुझे राजा के साथ भोजन करना है। किन्तु मुझे सन्ध्या तक मैदान में छिपे रहने दो। यदि तुम्हारे पिता को यह दिखाई दे कि मैं चला गया हूँ, तो उनसे कहो कि, ‘दाऊद अपने घर बेतलेहेम जाना चाहता था। उसका परिवार इस मासिक बलि के लिए स्वयं ही दावत कर रहा है। दाऊद ने मुझसे पूछा कि मैं उसे बेतलेहेम जाने और उसके परिवार से उसे मिलने दूँ,’ यदि तुम्हारे पिता कहते हैं, ‘बहुत अच्छा हुआ,’ तो मैं सुरक्षित हूँ। किन्तु यदि तुम्हारे पिता क्रोधित होते हैं तो समझो कि मेरा बुरा करना चाहते हैं। योनातान मुझ पर दया करो। मैं तुम्हारा सेवक हूँ। तुमने यहोवा के सामने मेरे साथ सन्धि की है। यदि मैं अपराधी हूँ तो तुम स्वयं मुझे मार सकते हो! किन्तु मुझे अपने पिता के पास मत ले जाओ।”

योनातान ने उत्तर दिया, “नहीं, कभी नहीं! यदि मैं जान जाऊँगा कि मेरे पिता तुम्हारा बुरा करना चाहते हैं तो तुम्हें सावधान कर दूँगा।”

10 दाऊद ने कहा, “यदि तुम्हारे पिता तुम्हें कठोरता से उत्तर देते हैं तो उसके बारे में मुझे कौन बताएगा?”

11 तब योनातान ने कहा, “आओ, हम लोग मैदान मे चलें।” सो योनातान और दाऊद एक साथ एक मैदान में चले गए।

12 योनातान ने दाऊद से कहा, “मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा के सामने यह प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं पता लागाऊँगा कि मेरे पिता तुम्हारे प्रति कैसा भाव रखते हैं। मैं पता लगाऊँगा कि वे तुम्हारे बारे में अच्छा भाव रखते हैं या नहीं। तब तीन दिन में, मैं तुम्हें मैदान में सूचना भेजूँगा। 13 यदि मेरे पिता तुम पर चोट करना चाहते हैं तो मैं तुम्हें जानकारी दूँगा। मैं तुमको यहाँ से सुरक्षित जाने दूँगा। यहोवा मुझे दण्ड दे यदि मैं ऐसा न करूँ। यहोवा तुम्हारे साथ रहे जैसे वह मेरे पिता के साथ रहा है। 14 जब तक मैं जीवित रहूँ मेरे ऊपर दया रखना और जब मैं मर जाऊँ तो 15 मेरे परिवार पर दया करना बन्द न करना। यहोवा तुम्हारे सभी शत्रुओं को पृथ्वी पर से नष्ट कर देगा। 16 यदि उस समय योनातान का परिवार दाऊद के परिवार से पृथक किया जाना ही हो, तो उसे हो जाने देना। दाऊद के शत्रुओं को यहोवा दण्ड दे।”

17 तब योनातान ने दाऊद से कहा कि वह उसके प्रति प्रेम की प्रतिज्ञा को दुहराये। योनातान ने यह इसलिए किया क्योंकि वह दाऊद से उतना ही प्रेम करता था जितना अपने आप से।

18 योनातान ने दाऊद से कहा, “कल नया चाँद का उत्सव है। तुम्हारा आसन खाली रहेगा। इसलिए मेरे पिता समझ जाएंगे कि तुम चले गये हो। 19 तीसरे दिन उसी स्थान पर जाओ जहाँ तुम इस परेशानी के प्रारम्भ होने के समय छिपे थे। उस पहाड़ी की बगल में प्रतीक्षा करो। 20 तीसरे दिन, मैं उस पहाड़ी पर ऐसे जाऊँगा जैसे मैं किसी लक्ष्य को बेध रहा हूँ। मैं कुछ बाणों को छोड़ूँगा। 21 तब मैं, बाणों का पता लगाने के लिये, अपने शस्त्रवाहक लड़के से जाने के लिये कहूँगा। यदि सब कुछ ठीक होगा तो मैं लड़के से कहूँगा, ‘तुम बहुत दूर निकल गए हो! बाण मेरे करीब ही है। लौटो और उन्हें उठा लाओ।’ यदि मैं ऐसा कहूँ तो तुम छिपने के स्थान से बाहर आ सकते हो। मैं वचन देता हूँ कि जैसे यहोवा शाश्वत है वैसे ही तुम सुरक्षित हो। कोई भी खतरा नहीं है। 22 किन्तु यदि खतरा होगा तो मैं लड़के से कहूँगा। ‘बाण बहुत दूर है, जाओ और उन्हें लाओ।’ यदि मैं ऐसा कहूँ तो तुम्हें चले जाना चाहिये। यहोवा तुम्हें दूर भेज रहा है। 23 तुम्हारे और मेरे बीच की इस सन्धि को याद रखो। यहोवा सदैव के लिये हमारा साक्षी है!”

24 तब दाऊद मैदान में जा छिपा।

उत्सव में शाऊल के इरादे

नया चाँद के उत्सव का समय आया और राजा भोजन करने बैठा। 25 राजा दीवार के निकट वहीं बैठा जहाँ वह प्राय: बैठा करता था। योनातान शाऊल के दूसरी ओर सामने बैठा। अब्नेर शाऊल के बाद बैठा। किन्तु दाऊद का स्थान खाली था। 26 उस दिन शाऊल ने कुछ नहीं कहा। उसने सोचा, “सम्भव है दाऊद को कुछ हुआ हो और वह शुद्ध न हो।”

27 अगले दिन, महीने के दूसरे दिन, दाऊद का स्थान फिर खाली था। तब शाऊल ने अपने पुत्र योनातान से पूछा, “यिशै का पुत्र नया चाँद के उत्सव में कल या आज क्यों नहीं आया?”

28 योनातान ने उत्तर दिया, “दाऊद ने मुझसे बेतलेहेम जाने देने के लिये कहा था। 29 उसने कहा, ‘मुझे जाने दो। मेरा परिवार बेतलेहेम में एक बलि—भेंट कर रहा है। मेरे भाई ने वहाँ रहने का आदेश दिया है। अब यदि मैं तुम्हारा मित्र हूँ तो मुझे जाने दो और भाईयों से मिलने दो।’ यही कारण है कि दाऊद राजा की मेज पर नहीं आया है।”

30 शाऊल योनातान पर बहुत क्रोधित हुआ। उसने योनातान से कहा, “तुम उस एक दासी के पुत्र हो, जो आज्ञा पालन करने से इन्कार करती है और तुम ठीक उसी तरह के हो। मैं जानता हूँ कि तुम दाऊद के पक्ष में हो। तुम अपनी माँ और अपने लिये लज्जा का कारण हो। 31 जब तक यिशै का पुत्र जीवित रहेगा तब तक तुम कभी राजा नहीं बनोगे, न तुम्हारा राज्य होगा। अब दाऊद को हमारे पास लाओ। वह एक मरा व्यक्ति है!”

32 योनातान ने अपने पिता से पूछा, “दाऊद को क्यों मार डाला जाना चाहिये? उसने क्या अपराध किया है?”

33 किन्तु शाऊल ने अपना भाला योनातान पर चलाया और उसे मार डालने का प्रयन्त किया। अत: योनातान ने समझ लिया कि मेरा पिता दाऊद को निश्चित रूप से मार डालने का इच्चुक है। 34 योनातान क्रोधित हुआ और उसने मेज छोड़ दी। योनातान इतना घबरा गया और अपने पिता पर इतना क्रोधित हुआ कि उसने दावत के दूसरे दिन कुछ भी भोजन करना अस्वीकार कर दिया। योनातान इसलिये क्रोधित हुआ क्योंकि शाऊल ने उसे अपमानित किया था और शाऊल दाऊद को मार डालना चाहता था।

दाऊद और योनातान का विदा लेना

35 अगली सुबह योनातान मैदान में गया। वह दाऊद से मिलने गया, जैसा उन्होंने तय किया था। योनातान एक शस्त्रवाहक लड़के को अपने साथ लाया। 36 योनातान ने लडके से कहा, “दौड़ो, और जो बाण मैं चलाता हूँ, उनहें लाओ।” लड़के ने दौड़ना आरम्भ किया और योनातान ने उसके सिर के ऊपर से बाण चलाए। 37 लड़का उस स्थान को दौड़ा, जहाँ बाण गिरा था। किन्तु योनातान ने पुकारा, “बाण बहुत दूर है!” 38 तब योनातान जोर से चिल्लाया “जल्दी कारो! उन्हें लाओ! वहीं पर खड़े न रहो!” लड़के ने बाणों को उठाया और अपने स्वामी के पास वापस लाया। 39 लड़के को कुछ पता न चला कि हुआ क्या। केवल योनातान और दाऊद जान सके। 40 योनातान ने अपना धनुष बाण लड़के को दिया। तब योनातान ने लड़के से कहा, “नगर को लौट जाओ।”

41 लड़का चल पड़ा, और दाऊद अपने उस छिपने के स्थान से बाहर आया जो पहाड़ी के दूसरी ओर था। दाऊद ने भूमि तक अपने सिर को झुकाकर योनातान के सामने प्रणाम किया। दाऊद तीन बार झुका। तब दाऊद और योनातान ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। वे दोनों एक साथ रोये, किन्तु दाऊद योनातान से अधिक रोया।

42 योनातान ने दाऊद से कहा, “शान्तिपूर्वक जाओ। हम लोगों ने यहोवा का नाम लेकर मित्र होने की प्रतिज्ञा की थी। हम लोगों ने कहा था कि यहोवा हम लोगों और हमारे वंशजों के बीच सदा साक्षी रहेगा।”

दाऊद का याजक अहीमेलेक से मिलने जाना

21 तब दाऊद चला गया और योनातान नगर को लौट गया। दाऊद नोब नामक नगर में याजक अहीमेलेक से मिलने गया।

अहीमेलेक दाऊद से मिलने बाहर गया। अहीमेलेक भय से काँप रहा था। अहीमेलेक ने दाऊद से पूछा, “तुम अकेले क्यों हो? तुम्हारे साथ कोई व्यक्ति क्यों नहीं है?”

दाऊद ने अहीमेलेक को उत्तर दिया, “राजा ने मुझको विशेष आदेश दिया है। उसने मुझसे कहा है, ‘इस उद्देश्य को किसी को न जानने दो। कोई भी व्यक्ति उसे न जाने जिसे मैंने तुम्हें करने को कहा है।’ मैंने अपने व्यक्तियों से कह दिया है कि वे कहाँ मिलें। अब यह बताओ कि तुम्हारे पास भोजन के लिये क्या है? मुझे पाँच रोटियाँ या जो कुछ खाने को है, दो।”

याजक ने दाऊद से कहा, “मेरे पास यहाँ सामान्य रोटियाँ नहीं हैं। किन्तु मेरे पास कुछ पवित्र रोटी तो है। तुम्हारे अधिकारी उसे खा सकते हैं, यदि उन्होंने किसी स्त्री के साथ इन दिनों शारीरिक सम्बन्ध न किया हो।”[a]

दाऊद ने याजक को उत्तर दिया “हम लोग इन दिनों किसी स्त्री के साथ नहीं रहे हैं। हमारे व्यक्ति अपने शरीर को पवित्र रखते हैं जब कभी हम युद्ध करने जाते हैं, यहाँ तक कि सामान्य उद्देश्य के लिये जाने पर भी[b] और आज के लिए तो यह विशेष रूप से सच है क्योंकि हमारा काम अति विशिष्ट है।”

वहाँ पवित्र रोटी के अतिरिक्त कोई रोटी नहीं थी। अत: याजक ने दाऊद को वही रोटी दी। यह वह रोटी थी जिसे याजक यहोवा के सामने पवित्र मेज पर रखते थे। वे हर एक दिन इस रोटी को हटा लेते थे और उसकी जगह ताजी रोटी रखते थे।

उस दिन शाऊल के अधिकारियों में से एक वहाँ था। वह एदोमी दोएग था। दोएग को वहाँ यहोवा के सामने रखा गया था।[c] दोएग शाऊल के गड़ेरियों का मुखिया था।

दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, “क्या तुम्हारे पास यहाँ कोई भाला या तलवार है? राजा का कार्य बहुत जरूरी है। मुझे शीघ्रता से जाना है और मैं अपनी तलवार या अन्य कोई शस्त्र नहीं ला सका हूँ।”

याजक ने उत्तर दिया, “एक मात्र तलवार जो यहाँ है वह पलिश्ती (गोलियत) की है। यह वही तलवार है जिसे तुमने उससे तब लिया था जब तुमने उसे एला की घाटी में मारा था। वह तलवार एक कपड़े में लिपटी हुई एपोद के पीछे रखी है। यदि तुम चाहो तो उसे ले सकते हो।”

दाऊद ने कहा, “इसे मुझे दो। गोलियत की तलवार के समान कोई तलवार नहीं है।”

दाऊद का गत को जाना

10 उस दिन दाऊद शाऊल के यहाँ से भाग गया। दाऊद गत के राजा आकीश के पास गया। 11 आकीश के अधिकारियों को यह अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा, “यह इस्राएल प्रदेश का राजा दाऊद है। यही वह व्यक्ति है जिसका गीत इस्राएली गाते हैं। वे नाचते हैं और यह गीत गाते है:

“शाऊल ने हजारों शत्रुओं को मारा
    दाऊद ने दसियों हजार शत्रुओं को मारा!”

12 दाऊद को ये बातें याद थीं। दाऊद गत के राजा आकीश से बहुत भयभीत था। 13 इसलिए दाऊद ने आकीश और उसके अधिकारियों के सामने अपने को विक्षिप्त दिखाने का बहाना किया। जब तक दाऊद उनके साथ रहा उसने विक्षिप्तों जैसा व्यवहार किया। वह द्वार के दरवाजों पर थूक देता था। वह अपने थूक को अपनी दाढ़ी पर गिरने देता था।

14 आकीश ने अपने अधिकारियों से कहा, “इस व्यक्ति को देखो। यह तो विक्षिप्त है! तुम लोग इसे मेरे पास क्यों लाए हो? 15 मेरे पास तो वैसे ही बहुत से विक्षिप्त हैं। मैं तुम लोगों से यह नहीं चाहता कि तुम इस व्यक्ति को मेरे घर पर विक्षिप्त जैसा काम करने को लाओ। इस व्यक्ति को मेरे घर मैं फिर न आने देना।”

यूहन्ना 9

जन्म से अन्धे को दृष्टि-दान

जाते हुए उसने जन्म से अंधे एक व्यक्ति को देखा। इस पर यीशु के अनुयायियों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, यह व्यक्ति अपने पापों से अंधा जन्मा है या अपने माता-पिता के?”

यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किए हैं और न इसके माता-पिता ने बल्कि यह इसलिये अंधा जन्मा है ताकि इसे अच्छा करके परमेश्वर की शक्ति दिखायी जा सके। उसके कामों को जिसने मुझे भेजा है, हमें निश्चित रूप से दिन रहते ही कर लेना चाहिये क्योंकि जब रात हो जायेगी कोई काम नहीं कर सकेगा। जब मैं जगत में हूँ मैं जगत की ज्योति हूँ।”

इतना कहकर यीशु ने धरती पर थूका और उससे थोड़ी मिट्टी सानी उसे अंधे की आंखों पर मल दिया। और उससे कहा, “जा और शीलोह के तालाब में धो आ।” (शीलोह अर्थात् “भेजा हुआ।”) और फिर उस अंधे ने जाकर आँखें धो डालीं। जब वह लौटा तो उसे दिखाई दे रहा था।

फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे बोले, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

कुछ ने कहा, “यह वही है,” दूसरों ने कहा, “नहीं, यह वह नहीं है, उसके जैसा दिखाई देता है।”

इस पर अंधा कहने लगा, “मैं वही हूँ।”

10 इस पर लोगों ने उससे पूछा, “तुझे आँखों की ज्योति कैसे मिली?”

11 उसने जवाब दिया, “यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर मला और मुझसे कहा, जा और शीलोह में धो आ और मैं जाकर धो आया। बस मुझे आँखों की ज्योति मिल गयी।”

12 फिर लोगों ने उससे पूछा, “वह कहाँ है?”

उसने जवाब दिया, “मुझे पता नहीं।”

दृष्टि-दान पर फरीसियों का विवाद

13 उस व्यक्ति को जो पहले अंधा था, वे लोग फरीसियों के पास ले गये। 14 यीशु ने जिस दिन मिट्टी सानकर उस अंधे को आँखें दी थीं वह सब्त का दिन था। 15 इस तरह फ़रीसी उससे एक बार फिर पूछने लगे, “उसने आँखों की ज्योति कैसे पायी?”

उसने बताया, “उसने मेरी आँखों पर गीली मिट्टी लगायी, मैंने उसे धोया और अब मैं देख सकता हूँ।”

16 कुछ फ़रीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि यह सब्त का पालन नहीं करता।”

उस पर दूसरे बोले, “कोई पापी आदमी भला ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे कर सकता है?” इस तरह उनमें आपस में ही विवाद होने लगा।

17 वे एक बार फिर उस अंधे से बोले, “उसके बारे में तू क्या कहता है? क्योंकि इस तथ्य को तू जानता है कि उसने तुझे आँखे दी हैं।”

तब उसने कहा, “वह नबी है।”

18 यहूदी नेताओं ने उस समय तक उस पर विश्वास नहीं किया कि वह व्यक्ति अंधा था और उसे आँखों की ज्योति मिल गयी है। जब तक उसके माता-पिता को बुलाकर 19 उन्होंने यह नहीं पूछ लिया, “क्या यही तुम्हारा पुत्र है जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा था। फिर यह कैसे हो सकता है कि वह अब देख सकता है?”

20 इस पर उसके माता पिता ने उत्तर देते हुए कहा, “हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है और यह अंधा जन्मा था। 21 पर हम यह नहीं जानते कि यह अब देख कैसे सकता है? और न ही हम यह जानते हैं कि इसे आँखों की ज्योति किसने दी है। इसी से पूछो, यह काफ़ी बड़ा हो चुका है। अपने बारे में यह खुद बता सकता है।” 22 उसके माता-पिता ने यह बात इसलिये कही थी कि वे यहूदी नेताओं से डरते थे। क्योंकि वे इस पर पहले ही सहमत हो चुके थे कि यदि कोई यीशु को मसीह माने तो उसे आराधनालय से निकाल दिया जाये। 23 इसलिये उसके माता-पिता ने कहा था, “वह काफ़ी बड़ा हो चुका है, उससे पूछो।”

24 यहूदी नेताओं ने उस व्यक्ति को दूसरी बार फिर बुलाया जो अंधा था, और कहा, “सच कहो, और जो तू ठीक हुआ है उसका सिला परमेश्वर को दे। हमें मालूम है कि यह व्यक्ति पापी है।”

25 इस पर उसने जवाब दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं, मैं तो बस यह जानता हूँ कि मैं अंधा था, और अब देख सकता हूँ।”

26 इस पर उन्होंने उससे पूछा, “उसने क्या किया? तुझे उसने आँखें कैसे दीं?”

27 इस पर उसने उन्हें जवाब देते हुए कहा, “मैं तुम्हें बता तो चुका हूँ, पर तुम मेरी बात सुनते ही नहीं। तुम वह सब कुछ दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके अनुयायी बनना चाहते हो?”

28 इस पर उन्होंने उसका अपमान किया और कहा, “तू उसका अनुयायी है पर हम मूसा के अनुयायी हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी पर हम नहीं जानते कि यह आदमी कहाँ से आया है?”

30 उत्तर देते हुए उस व्यक्ति ने उनसे कहा, “आश्चर्य है तुम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है? पर मुझे उसने आँखों की ज्योति दी है। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता बल्कि वह तो उनकी सुनता है जो समर्पित हैं और वही करते हैं जो परमेश्वर की इच्छा है। 32 कभी सुना नहीं गया कि किसी ने किसी जन्म से अंधे व्यक्ति को आँखों की ज्योति दी हो। 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से नहीं होता तो यह कुछ नहीं कर सकता था।”

34 उत्तर में उन्होंने कहा, “तू सदा से पापी रहा है। ठीक तब से जब से तू पैदा हुआ। और अब तू हमें पढ़ाने चला है?” और इस तरह यहूदी नेताओं ने उसे वहाँ से बाहर धकेल दिया।

आत्मिक अंधापन

35 यीशु ने सुना कि यहूदी नेताओं ने उसे धकेल कर बाहर निकाल दिया है तो उससे मिलकर उसने कहा, “क्या तू मनुष्य के पुत्र में विश्वास करता है?”

36 उत्तर में वह व्यक्ति बोला, “हे प्रभु, बताइये वह कौन है? ताकि मैं उसमें विश्वास करूँ।”

37 यीशु ने उससे कहा, “तू उसे देख चुका है और वह वही है जिससे तू इस समय बात कर रहा है।”

38 फिर वह बोला, “प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।” और वह नतमस्तक हो गया।

39 यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय करने आया हूँ, ताकि वे जो नहीं देखते वे देखने लगें और वे जो देख रहे हैं, नेत्रहीन हो जायें।”

40 कुछ फ़रीसी जो यीशु के साथ थे, यह सुनकर यीशु से बोले, “निश्चय ही हम अंधे नहीं हैं। क्या हम अंधे हैं?”

41 यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो तुम पापी नहीं होते पर जैसा कि तुम कहते हो कि तुम देख सकते हो तो वास्तव में तुम पाप-युक्त हो।”

भजन संहिता 113-114

यहोवा की प्रशंसा करो!
हे यहोवा के सेवकों यहोवा की स्तुति करो, उसका गुणगान करो!
    यहोवा के नाम की प्रशंसा करो!
यहोवा का नाम आज और सदा सदा के लिये और अधिक धन्य हो।
    यह मेरी कामना है।
मेरी यह कामना है, यहोवा के नाम का गुण पूरब से जहाँ सूरज उगता है,
    पश्चिम तक उस स्थान में जहाँ सूरज डूबता है गाया जाये।
यहोवा सभी राष्ट्रों से महान है।
    उसकी महिमा आकाशों तक उठती है।
हमारे परमेश्वर के समान कोई भी व्यक्ति नहीं है।
    परमेश्वर ऊँचे अम्बर में विराजता है।
ताकि परमेश्वर अम्बर
    और नीचे धरती को देख पाये।
परमेश्वर दीनों को धूल से उठाता है।
    परमेश्वर भिखारियों को कूड़े के घूरे से उठाता है।
परमेश्वर उन्हें महत्वपूर्ण बनाता है।
    परमेश्वर उन लोगों को महत्वपूर्ण मुखिया बनाता है।
चाहै कोई निपूती बाँझ स्त्री हो, परमेश्वर उसे बच्चे दे देगा
    और उसको प्रसन्न करेगा।

यहोवा का गुणगान करो!

इस्राएल ने मिस्र छोड़ा।
    याकूब (इस्राएल) ने उस अनजान देश को छोड़ा।
उस समय यहूदा परमेश्वर का विशेष व्यक्ति बना,
    इस्राएल उसका राज्य बन गया।
इसे लाल सागर देखा, वह भाग खड़ा हुआ।
    यरदन नदी उलट कर बह चली।
पर्वत मेंढ़े के समान नाच उठे!
    पहाड़ियाँ मेमनों जैसी नाची।

हे लाल सागर, तू क्यों भाग उठा हे यरदन नदी,
    तू क्यों उलटी बही
पर्वतों, क्यों तुम मेंढ़े के जैसे नाचे
    और पहाड़ियों, तुम क्यों मेमनों जैसी नाची

यकूब के परमेश्वर, स्वामी यहोवा के सामने धरती काँप उठी।
परमेश्वर ने ही चट्टानों को चीर के जल को बाहर बहाया।
    परमेश्वर ने पक्की चट्टान से जल का झरना बहाया था।

नीतिवचन 15:15-17

15 कुछ गरीब सदा के लिये दुःखी रहते हैं, किन्तु प्रफुल्लित चित उत्सव मनाता रहता है।

16 बैचेनी के साथ प्रचुर धन उत्तम नहीं, यहोवा का भय मानते रहने से थोड़ा भी धन उत्तम है।

17 घृणा के साथ अधिक भोजन से, प्रेम के साथ थोड़ा भोजन उत्तम है।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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