The Daily Audio Bible
Today's audio is from the NET. Switch to the NET to read along with the audio.
एली अपने पापी पुत्रों पर नियन्त्रण करने में असफल
22 एली बहुत बूढ़ा था। वह बार बार उन बुरे कामों के बारे में सुनता था जो उसके पुत्र शीलो में सभी इस्राएलियों के साथ कर रहे थे। एली ने यह भी सुना कि जो स्त्रियाँ मिलापवाले तुम्बू के द्वार पर सेवा करती थीं, उनके साथ वे सोते थे।
23 एली ने अपने पुत्रों से कहा, “तुमने जो कुछ बुरा किया है उसके बारे में लोगों ने यहाँ मुझे बताया है। तुम लोग ये बुरे काम क्यों करते हो? 24 पुत्रो, इन बुरे कामों को मत करो। यहोवा के लोग तुम्हारे विषय में बुरी बातें कह रहे हैं। 25 यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध पाप करता है, तो परमेश्वर उसकी मध्यस्थता कर सकता है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति यहोवा के ही विरुद्ध पाप करता है तो उस व्यक्ति की मध्यस्थता कौन कर सकता है?”
किन्तु एली के पुत्रों ने एली की बात सुनने से इन्कार कर दिया। इसलिए यहोवा ने एली के पुत्रों को मार डालने का निश्चय किया।
26 बालक शमूएल बढ़ता रहा। उसने परमेश्वर और लोगों को प्रसन्न किया।
एली के पिरवार के विषय में भंयकर भविष्यवाणी
27 परमेश्वर का एक व्यक्ति एली के पास आया। उसने कहा, “यहोवा यह बात कहता है, ‘तुम्हारे पूर्वज फिरौन के परिवार के गुलाम थे। किन्तु मैं तुम्हारे पूर्वजों के सामने उस समय प्रकट हुआ। 28 मैंने तुम्हारे परिवार समूह को इस्राएल के सभी परिवार समूहों में से चुना। मैंने तुम्हारे परिवार समूह को अपना याजक बनने के लिये चुना। मैंने उन्हें अपनी वेदी पर बलि—भेंट करने के लिये चुना। मैंने उन्हें सुगन्ध जलाने और एपोद पहनने के लिये चुना। मैंने तुम्हारे परिवार समूह को बलि—भेंट से वह माँस भी लेने दिया जो इस्राएल के लोग मुझको चढ़ाते हैं। 29 इसलिए तुम उन बलि—भेंटों और अन्नबलियों का सम्मान क्यों नहीं करते। तुम अपने पुत्रों को मुझसे अधिक सम्मान देते हो। तुम माँस के उस सर्वोत्तम भाग से मोटे हुए हो जिसे इस्राएल के लोग मेरे लिये लाते हैं।’
30 “इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यह वचन दिया था कि तुम्हारे पिता का परिवार ही सदा उसकी सेवा करेगा। किन्तु अब यहोवा यह कहता है, ‘वैसा कभी नहीं होगा! मैं उन लोगों का सम्मान करूँगा जो मेरा सम्मान करेंगे। किन्तु उनका बुरा होगा जो मेरा सम्मान करने से इनकार करते हैं। 31 वह समय आ रहा है जब मैं तुम्हारे सारे वंशजों को नष्ट कर दूँगा। तुम्हारे परिवार में कोई बूढ़ा होने के लिये नहीं बचेगा। 32 इस्राएल के लिये अच्छी चीजें होंगी, किन्तु तुम घर में बुरी घटनाऐं होती देखोगे। तुम्हारे परिवार में कोई भी बूढ़ा होने के लिये नहीं बचेगा। 33 केवल एक व्यक्ति को मैं अपनी वेदी पर याजक के रुप में सेवा के लिये बचाऊँगा। वह बहुत अधिक बुढ़ापे तक रहेगा। वह तब तक जीवित रहेगा जब तक उसकी आँखे और उसकी शक्ति बची रहेगी। तुम्हारे शेष वंशज तलवार के घाट उतारे जाएंगे। 34 मैं तुम्हें एक संकेत दूँगा जिससे यह ज्ञात होगा कि ये बातें सच होंगी। तुम्हारे दोनों पुत्र होप्नी और पीनहास एक ही दिन मरेंगे। 35 मैं अपने लिये एक विश्वसनीय याजक ठहराऊँगा। वह याजक मेरी बात मानेगा और जो मैं चाहता हूँ, करेगा। मैं इस याजक के परिवार को शक्तिशाली बनाऊँगा। वह सदा मेरे अभिषिक्त राजा के सामने सेवा करेगा। 36 तब सभी लोग जो तुम्हारे परिवार में बचे रहेंगे, आएंगे और इस याजक के आगे झुकेंगे। ये लोग थोड़े धन या रोटी के टुकड़े के लिए भीख मागेंगे। वे कहेंगे, “कृपया याजक का सेवा कार्य हमें दे दो जिससे हम भोजन पा सकें।”’”
शमूएल को परमेश्वर का बुलावा
3 बालक शमूएल एली के अधीन यहोवा की सेवा करता रहा। उन दिनों, यहोवा प्राय: लोगों से सीधे बातें नहीं करता था। बहुत कम ही दर्शन हुआ करता था।
2 एली की दृष्टि इतनी कमजोर थी कि वह लगभग अन्धा था। एक रात वह बिस्तर पर सोया हुआ था। 3 शमूएल यहोवा के पवित्र आराधनालय में बिस्तर पर सो रहा था। उस पवित्र आराधनालय में परमेश्वर का पवित्र सन्दूक था। यहोवा का दीपक अब भी जल रहा था। 4 यहोवा ने शमूएल को बुलाया। शमूएल ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ उपस्थित हूँ।” 5 शमूएल को लगा कि उसे एली बुला रहा है। इसलिए शमूएल दौड़कर एली के पास गया। शमूएल ने एली से कहा, “मैं यहाँ हूँ। आपने मुझे बुलाया।”
किन्तु एली ने कहा, “मैंने तुम्हें नहीं बुलाया। अपने बिस्तर में जाओ।”
शमूएल अपने बिस्तर पर लौट गया। 6 यहोवा ने फिर बुलाया, “शमूएल!” शमूएल फिर दौड़कर एली के पास गया। शमूएल ने कहा, “मैं यहाँ हूँ। आपने मुझे बुलाया।”
एली ने कहा, “मैंने तुम्हें नहीं बुलाया, अपने बिस्तर में जाओ।”
7 शमूएल अभी तक यहोवा को नहीं जानता था। यहोवा ने अभी तक उससे सीधे बात नहीं की थी।
8 यहोवा ने शमूएल को तीसरी बार बुलाया। शमूएल फिर उठा और एली के पास गया। शमूएल ने कहा, “मैं आ गया। आपने मुझे बुलाया।”
तब एली ने समझा कि यहोवा लड़के को बुला रहा है। 9 एली ने शमूएल से कहा, “बिस्तर में जाओ। यदि वह तुम्हें फिर बुलाता है तो कहो, ‘यहोवा बोल! मैं तेरा सेवक हूँ और सुन रहा हूँ।’”
सो शमूएल बिस्तर में चला गया। 10 यहोवा आया और और वहाँ खड़ा हो गया। उसने पहले की तरह बुलाया।
उसने कहा, “शमूएल, शमूएल!” शमूएल ने कहा, “बोल! मैं तेरा सेवक हूँ और सुन रहा हूँ।”
11 यहोवा ने शमूएल से कहा, “मैं शीघ्र ही इस्राएल में कुछ करुँगा। जो लोग इसे सुनेंगे उनके कान झन्ना उठेंगे। 12 मैं वह सब कुछ करूँगा जो मैंने एली और उसके परिवार के विरूद्ध करने को कहा है। मैं आरम्भ से अन्त तक सब कुछ करूँगा। 13 मैंने एली से कहा है कि मैं उसके परिवार को सदा के लिये दण्ड दूँगा। मैं यह इसलिए करूँगा कि एली जानता है उस के पुत्रों ने परमेश्वर के विरुद्ध बुरा कहा है, और किया है, और एली उन पर नियन्त्रन करने में असफल रहा है। 14 यही कारण है कि मैंने एली के परिवार को शाप दिया है कि बलि—भेंट और अन्नबलि उनके पापों को दूर नहीं कर सकती।”
15 शमूएल सवेरा होने तक बिस्तर में पड़ा रहा। वह तड़के उठा और उसने यहोवा के मन्दिर के द्वार को खोला। शमूएल अपने दर्शन की बात एली से कहने में डरता था।
16 किन्तु एली ने शमूएल से कहा, “मेरे पुत्र, शमूएल!”
शमूएल ने उत्तर दिया, “हाँ, महोदय।”
17 एली ने पूछा, “यहोवा ने तुनसे क्या कहा? उसे मुझसे मत छिपाओ। परमेश्वर तुम्हें दण्ड देगा, यदि परमेश्वर ने जो सन्देश तुमको दिया है उसमें से कुछ भी छिपाओगे।”
18 इसलिए शमूएल ने एली को वह हर एक बात बताई। शमूएल ने एली से कुछ भी नहीं छिपाया।
एली ने कहा, “वह यहोवा है। उसे वैसा ही करने दो जैसा उसे अच्छा लगता है।”
19 शमूएल बड़ा होता रहा और यहोवा उसके साथ रहा। यहोवा ने शमूएल के किसी सन्देश को असत्य नहीं होने दिया। 20 तब सारा इस्राएल, दान से लेकर बेर्शबा तक, समझ गया कि शमूएल यहोवा का सच्चा नबी है। 21 शीलो में यहोवा शमूएल के सामने प्रकट होता रहा। यहोवा ने शमूएल के आगे अपने आपको वचन[a] के द्वारा प्रकट किया।
4 शमूएल के विषय में समाचार पूरे इस्राएल में फैल गया। एली बहुत बूढ़ा हो गया था। उसके पुत्र यहोवा के सामने बुरा काम करते रहे।
पलिश्तियों ने इस्राएलियों को हराया
उस समय, पलिश्ती इस्राएल के विरुद्ध युद्ध करने के लिये तैयार हुए। इस्राएली पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ने गए। इस्राएलियों ने अपना डेरा एबेनेजेर में डाला। पलिश्तियों ने अपना डेरा अपेक में डाला। 2 पलिश्तियों ने इस्राएल पर आक्रमण करने की तैयारी की। युद्ध आरम्भ हो गया। पलिश्तियों ने इस्राएलियों को हरा दिया।
पलिश्तियों ने इस्राएल की सेना के लगभग चार हजार सैनिकों को मार डाला। 3 इस्राएलियों के बाकी सैनिक अपने डेरे में लौट गए। इस्राएल के अग्रजों (प्रमुखों) ने पूछा, “यहोवा ने पलिश्तियों को हमें क्यों पराजित करने दिया? हम लोग शीलो से वाचा के सन्दूक को ले आयें। इस प्रकार, परमेश्वर हम लोगों के साथ युद्ध में जायेगा। वह हमें हमारे शत्रुओं से बचा देगा।”
4 इसलिये लोगों ने वयक्तियों को शीलो में भेजा। वे लोग सर्वशक्तिमान यहोवा के वाचा के सन्दूक को ले आए। सन्दूक के ऊपर करूब (स्वर्गदूत) हैं और वे उस आसन की तरह हैं जिस पर यहोवा बैठता है। एली के दोनों पुत्र, होप्नी और पीनहास सन्दूक के साथ आए।
5 जब यहोवा के वाचा का सन्दूक डेरे के भीतर आया, तो इस्राएलियों ने प्रचण्ड उद्घोष किया। उस उद्घोष से धरती काँप उठी। 6 पलिश्तियों ने इस्राएलियों के उद्घोष को सुना। उन्होंने पूछा, “हिब्रू लोगों के डेरे में ऐसा उद्घोष क्यों है?”
तब पलिश्तियों को ज्ञात हुआ कि इस्राएल के डेरे में वाचा का सन्दूक आया है। 7 पलिश्ती डर गए। पलिश्तियों ने कहा, “परमेश्वर उनके डेरे में आ गया है! हम लोग मुसीबत में हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। 8 हमें चिन्ता है! इस शक्तिशाली परमेश्वर से हमें कौन बचा सकता है? ये वही परमेश्वर है जिसने मिस्रियों को वे बीमारियाँ और महामारियाँ दी थीं। 9 पलिश्तियों साहस करो! वीर पुरूषों की तरह लड़ो! बीते समय में हिब्रू लोग हमारे दास थे। इसलिए वीरों की तरह लड़ो नहीं तो तुम उनके दास हो जाओगे।”
10 पलिश्ती वीरता से लड़े औ उन्होंने इस्राएलियों को हरा दिया। हर एक इस्राएली योद्धा अपने डेरे में भाग गया। इस्राएल के लिये यह भयानक पराजय थी। तीस हजार इस्राएली सैनिक मारे गए। 11 पलिश्तियों ने उनसे परमेश्वर का पवित्र सन्दूक छीन लिया और उन्होंने एली के दोनों पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला।
12 उस दिन बिन्यामीन परिवार का एक व्यक्ति युद्ध से भागा। उसने अपने शोक को प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला और अपने सिर पर धूलि डाल ली। 13 जब यह व्यक्ति शीलो पहुँचा तो एली अपनी कुर्सी पर नगर द्वार के पास बैठा था। उसे पमेश्वर के पवित्र सन्दूक के लिये चिंता थी, इसीलिए वह प्रतीक्षा में बैठा हुआ था। तभी विन्यामीन परिवार समूह का वह व्यक्ति शीलो में आया और उसने दुःख भरी सूचना दी। नगर के सभी लोग जोर से रो पड़े। 14-15 एली अट्ठानवे वर्ष का बूढ़ा और अन्धा था, एली ने रोने की आवाज सुनी तो एली ने पूछा, “यह जोर का शोर क्या है?”
वह बिन्यामीन व्यक्ति एली के पास दौड़ कर गया और जो कुछ हुआ था उसे बताया। 16 बिन्यामीनी व्यक्ति ने कहा कि “मैं आज युद्ध से भाग आया हूँ!”
एली ने पूछा, “पुत्र, क्या हुआ?”
17 बिन्यामीनी व्यक्ति ने उत्तर दिया, “इस्राएली पलिश्तियों के मुकाबले भाग खड़े हुए हैं। इस्राएली सेना ने अनेक योद्धाओं को खो दिया है। तुम्हारे दोनों पुत्र मारे गए हैं और पलिश्ती परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को छीन ले गये हैं।”
18 जब बिन्यामीनी व्यक्ति ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक की बात कही, तो एली द्वार के निकट अपनी कुर्सी से पीछे गिर पड़ा और उसकी गर्दन टूट गई। एली बूढ़ा और मोटा था, इसलिये वह वहीं मर गया। एली बीस वर्ष तक इस्राएल का अगुवा रहा।
गौरव समाप्त हो गया
19 एली की पुत्रवधू, पीनहास की पत्नी, उन दिनों गर्भवती थी। यह लगभग उसके बच्चे के उत्पन्न होने का समय था। उसने यह समाचार सुना कि परमेश्वर का पवित्र सन्दूक छीन लिया गया है। उसने यह भी सुना कि उसके ससुर एली की मृत्यु हो गई है और सका पति पीनहास मारा गया है। ज्यों ही उसने यह सामचार सुना, उसको प्रसव पीड़ा आरम्भ हो गई और उसने अपने बच्चे को जन्म देना आरम्भ किया। 20 उसके मरने से पहले जो स्त्रियाँ उसकी सहायता कर रही थीं उन्होने कहा, “दुःखी मत हो! तुम्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ है।”
किन्तु एली की पुत्रवधू ने न तो उत्तर ही दिया, न ही उस पर ध्यान दिया। 21 एली की पुत्रवधू ने कहा, “इस्राएल का गौरव अस्त हो गया!” इसलिए उसने बच्चे का नाम ईकाबोद रखा और बस वह तभी मर गई। उसने अपने बच्चे का नाम ईकाबोद रखा क्योंकि परमेश्वर का पवित्र सन्दूक चला गया था और उसके ससुर एवं पति मर गए थे। 22 उसने कहा, “इस्राएल का गौरव अस्त हुआ।” उसने यह कहा, क्योंकि पलिश्ती परमेश्वर का सन्दूक ले गये।
24 “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ जो मेरे वचन को सुनता है और उस पर विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है, वह अनन्त जीवन पाता है। न्याय का दण्ड उस पर नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत वह मृत्यु से जीवन में प्रवेश पा जाता है। 25 मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ कि वह समय आने वाला है बल्कि आ ही चुका है-जब वे, जो मर चुके हैं, परमेश्वर के पुत्र का वचन सुनेंगे और जो उसे सुनेंगे वे जीवित हो जायेंगे क्योंकि जैसे पिता जीवन का स्रोत है। 26 वैसे ही उसने अपने पुत्र को भी जीवन का स्रोत बनाया है। 27 और उसने उसे न्याय करने का अधिकार दिया है। क्योंकि वह मनुष्य का पुत्र है।
28 “इस पर आश्चर्य मत करो कि वह समय आ रहा है जब वे सब जो अपनी कब्रों में है, उसका वचन सुनेंगे 29 और बाहर आ जायेंगे। जिन्होंने अच्छे काम किये हैं वे पुनरुत्थान पर जीवन पाएँगे पर जिन्होंने बुरे काम किये हैं उन्हें पुनरुत्थान पर दण्ड दिया जायेगा।
30 “मैं स्वयं अपने आपसे कुछ नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर से जो सुनता हूँ उसी के आधार पर न्याय करता हूँ और मेरा न्याय उचित है क्योंकि मैं अपनी इच्छा से कुछ नहीं करता बल्कि उसकी इच्छा से करता हूँ जिसने मुझे भेजा है।
यीशु का यहूदियों से कथन
31 “यदि मैं अपनी तरफ से साक्षी दूँ तो मेरी साक्षी सत्य नहीं है। 32 मेरी ओर से साक्षी देने वाला एक और है। और मैं जानता हूँ कि मेरी ओर से जो साक्षी वह देता है, सत्य है।
33 “तुमने लोगों को यूहन्ना के पास भेजा और उसने सत्य की साक्षी दी। 34 मैं मनुष्य की साक्षी पर निर्भर नहीं करता बल्कि यह मैं इसलिए कहता हूँ जिससे तुम्हारा उद्धार हो सके। 35 यूहन्ना उस दीपक की तरह था जो जलता है और प्रकाश देता है। और तुम कुछ समय के लिए उसके प्रकाश का आनन्द लेना चाहते थे।
36 “पर मेरी साक्षी यूहन्ना की साक्षी से बड़ी है क्योंकि परम पिता ने जो काम पूरे करने के लिए मुझे सौंपे हैं, मैं उन्हीं कामों को कर रहा हूँ और वे काम ही मेरे साक्षी हैं कि परम पिता ने मुझे भेजा है। 37 परम पिता ने जिसने मुझे भेजा है, मेरी साक्षी दी है। तुम लोगों ने उसका वचन कभी नहीं सुना और न तुमने उसका रूप देखा है। 38 और न ही तुम अपने भीतर उसका संदेश धारण करते हो। क्योंकि तुम उसमें विश्वास नहीं रखते हो जिसे परम पिता ने भेजा है। 39 तुम शास्त्रों का अध्ययन करते हो क्योंकि तुम्हारा विचार है कि तुम्हें उनके द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त होगा। किन्तु ये सभी शास्त्र मेरी ही साक्षी देते हैं। 40 फिर भी तुम जीवन प्राप्त करने के लिये मेरे पास नहीं आना चाहते।
41 “मैं मनुष्य द्वारा की गयी प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता। 42 किन्तु मैं जानता हूँ कि तुम्हारे भीतर परमेश्वर का प्रेम नहीं है। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं करते किन्तु यदि कोई और अपने ही नाम से आए तो तुम उसे स्वीकार कर लोगे। 44 तुम मुझमें विश्वास कैसे कर सकते हो, क्योंकि तुम तो आपस में एक दूसरे से प्रशंसा स्वीकार करते हो। उस प्रशंसा की तरफ देखते तक नहीं जो एकमात्र परमेश्वर से आती है। 45 ऐसा मत सोचो कि मैं परम पिता के आगे तुम्हें दोषी ठहराऊँगा। जो तुम्हें दोषी सिद्ध करेगा वह तो मूसा होगा जिस पर तुमने अपनी आशाएँ टिकाई हुई हैं। यदि तुम वास्तव में मूसा में विश्वास करते 46 तो तुम मुझमें भी विश्वास करते क्योंकि उसने मेरे बारे में लिखा है। 47 जब तुम, जो उसने लिखा है उसी में विश्वास नहीं करते, तो मेरे वचन में विश्वास कैसे करोगे?”
1 यहोवा की प्रशंसा करो!
यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह उत्तम है!
परमेश्वर का प्रेम सदा ही रहता है!
2 सचमुच यहोवा कितना महान है, इसका बखान कोई व्यक्ति कर नहीं सकता।
परमेश्वर की पूरी प्रशंसा कोई नहीं कर सकता।
3 जो लोग परमेश्वर का आदेश पालते हैं, वे प्रसन्न रहते हैं।
वे व्यक्ति हर समय उत्तम कर्म करते हैं।
4 यहोवा, जब तू निज भक्तों पर कृपा करे।
मुझको याद कर। मुझको भी उद्धार करने को याद कर।
5 यहोवा, मुझको भी उन भली बातों में हिस्सा बँटाने दे
जिन को तू अपने लोगों के लिये करता है।
तू अपने भक्तों के साथ मुझको भी प्रसन्न होने दे।
तुझ पर तेरे भक्तों के साथ मुझको भी गर्व करने दे।
6 हमने वैसे ही पाप किये हैं जैसे हमारे पूर्वजों ने किये।
हम अधर्मी हैं, हमने बुरे काम किये है!
7 हे यहोवा, मिस्र में हमारे पूर्वजों ने
आश्चर्य कर्मो से कुछ भी नहीं सीखा।
उन्होंने तेरे प्रेम को और तेरी करूणा को याद नहीं रखा।
हमारे पूर्वज वहाँ लाल सागर के किनारे तेरे विरूद्ध हुए।
8 किन्तु परमेश्वर ने निज नाम के हेतु हमारे पूर्वजों को बचाया था।
परमेश्वर ने अपनी महान शक्ति दिखाने को उनको बचाया था।
9 परमेश्वर ने आदेश दिया और लाल सागर सूखा।
परमेश्वर हमारे पूर्वजों को उस गहरे समुद्र से इतनी सूखी धरती से निकाल ले आया जैसे मरूभूमि हो।
10 परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को उनके शत्रुओं से बचाया!
परमेश्वर उनको उनके शत्रुओं से बचा कर निकाल लाया।
11 और फिर उनके शत्रुओं को उसी सागर के बीच ढ़ाँप कर डुबा दिया।
उनका एक भी शत्रु बच निकल नहीं पाया।
12 फिर हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर पर विश्वास किया।
उन्होंने उसके गुण गाये।
30 शान्त मन शरीर को जीवन देता है किन्तु ईर्ष्या हड्डियों तक को सड़ा देती है।
31 जो गरीब को सताती है, वह तो सबके सृजनहार का अपमान करता है। किन्तु वह जो भी कोई गरीब पर दयालु रहता है, वह परमेश्वर का आदर करता है।
© 1995, 2010 Bible League International