Chronological
4 इस यात्रा में बेरोयावासी पायरूस के पुत्र सोपेतर, थेस्सलोनिकेयुस नगर के आरिस्तारख़ॉस, सेकुन्दुस, दरबे से गायॉस, तिमोथियॉस तथा आसिया प्रदेश से तुख़िकस व त्रोफ़िमस हमारे साथी यात्री थे. 5 ये साथी यात्री हमसे आगे चले गए और त्रोऑस नगर पहुँच कर हमारा इंतज़ार करते रहे 6 किन्तु हमने अख़मीरी रोटी के उत्सव के बाद ही फ़िलिप्पॉय नगर से जलमार्ग द्वारा यात्रा शुरु की. पाँच दिन में हम त्रोऑस नगर पहुँचे और अपने साथियों से मिले. वहाँ हम सात दिन रहे.
त्रोऑस नगर: पौलॉस द्वारा मृतक व्यक्ति का उत्थान
7 सप्ताह के पहिले दिन हम रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठा हुए. पौलॉस ने वहाँ प्रवचन देना प्रारम्भ कर दिया, जो मध्यरात तक चलता गया क्योंकि उनकी योजना अगले दिन यात्रा प्रारम्भ करने की थी. 8 उस ऊपरी कक्ष में, जहाँ सब इकट्ठा हुए थे, अनेक दीपक जल रहे थे. 9 यूतिकुस नामक एक युवक खिड़की पर बैठा हुआ झपकियां ले रहा था. पौलॉस प्रवचन करते चले गए और उसे गहरी नीन्द आ गई. वह तीसरे तल से भूमि पर जा गिरा और उसकी मृत्यु हो गई. 10 पौलॉस नीचे गए, उसके पास जाकर उससे लिपट गए और कहा, “घबराओ मत, यह जीवित है.” 11 तब वह दोबारा ऊपर गए और रोटी तोड़ने की रीति पूरी की. वह उनसे इतनी लम्बी बातचीत करते रहे कि सुबह हो गई. इसके बाद वे वहाँ से चले गए. 12 उस युवक को वहाँ से जीवित ले जाते हुए उन सब के हर्ष की कोई सीमा न थी.
त्रोऑस नगर से मिलेतॉस नगर को
13 हम जलयान पर सवार हो अस्सेस नगर की ओर आगे बढ़े, जहाँ से हमें पौलॉस को साथ लेकर आगे बढ़ना था. पौलॉस वहाँ थल मार्ग से पहुँचे थे क्योंकि यह उन्हीं की पहले से ठहराई योजना थी. 14 अस्सेस नगर में उनसे भेंट होने पर हमने उन्हें जलयान में अपने साथ लिया और मितिलीन नगर जा पहुँचे. 15 दूसरे दिन वहाँ से यात्रा करते हुए हम किऑस नगर के पास से होते हुए सामोस नगर पहुँचे और उसके अगले दिन मिलेतॉस नगर. 16 पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर में न उतर कर आगे बढ़ते जाने का निश्चय किया क्योंकि वह चाहते थे कि आसिया प्रदेश में ठहरने के बजाय यदि सम्भव हो तो शीघ्र ही पेन्तेकॉस्त उत्सव के अवसर पर येरूशालेम पहुँच जाएँ.
इफ़ेसॉस नगर के कलीसिया-पुरनियों से विदाई
17 मिलेतॉस नगर से पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर को समाचार भेज कर कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया. 18 उनके वहाँ पहुँचने पर पौलॉस ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा: “आसिया प्रदेश में मेरे प्रवेश के पहिले दिन से आपको यह मालूम है कि मैं किस प्रकार हमेशा आपके साथ रहा, 19 और किस तरह सारी विनम्रता में आँसू बहाते हुए उन यातनाओं के बीच भी, जो यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर आईं, मैं प्रभु की सेवा करता रहा. 20 घर-घर जाकर तथा सार्वजनिक रूप से वह शिक्षा देने में, जो तुम्हारे लिए लाभदायक है, मैं कभी पीछे नहीं रहा. 21 मैं यहूदियों और यूनानियों से पूरी सच्चाई में पश्चाताप के द्वारा परमेश्वर की ओर मन फिराने तथा हमारे प्रभु मसीह येशु में विश्वास की विनती करता रहा हूँ.”
22 “अब, पवित्रात्मा की प्रेरणा में मैं येरूशालेम जा रहा हूँ. वहाँ मेरे साथ क्या होगा, इससे मैं अनजान हूँ; 23 बजाय इसके कि हर एक नगर में पवित्रात्मा मुझे सावधान करते रहते हैं कि मेरे लिए बेड़ियाँ और यातनाएँ तैयार हैं. 24 अपने जीवन से मुझे कोई मोह नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपनी इस दौड़ को पूरा करूँ तथा उस सेवा कार्य को, जो प्रभु मसीह येशु द्वारा मुझे सौंपा गया है—पूरी सच्चाई में परमेश्वर के अनुग्रह के ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार की. 25 अब यह भी सुनो: मैं जानता हूँ कि तुम सभी, जिनके बीच मैंने राज्य का प्रचार किया है, अब मेरा मुख कभी न देख सकोगे. 26 इसलिए आज मैं तुम सब पर यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि मैं किसी के भी विनाश का दोषी नहीं हूँ. 27 मैंने किसी पर भी परमेश्वर के सारे उद्देश्य को बताने में आनाकानी नहीं की. 28 तुम लोग अपना ध्यान रखो तथा उस समूह का भी, जिसका रखवाला तुम्हें पवित्रात्मा ने चुना है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की देखभाल करो जिसे उन्होंने स्वयं अपना लहू देकर मोल लिया है. 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद तुम्हारे बीच फाड़नेवाले भेड़िये आ जाएँगे, जो इस समूह को नहीं छोड़ेंगे. 30 इतना ही नहीं, तुम्हारे बीच से ऐसे व्यक्तियों का उठना होगा, जो गलत शिक्षा देने लगेंगे और तुम्हारे ही झुण्ड़ में से अपने चेले बनाने लगेंगे. 31 इसलिए यह याद रखते हुए सावधान रहो कि तीन वर्ष तक मैंने दिन-रात आँसू बहाते हुए तुम्हें चेतावनी देने में कोई ढील नहीं दी.”
32 “अब मैं तुम्हें प्रभु और उनके अनुग्रह के वचन की देखभाल में सौंप रहा हूँ, जिसमें तुम्हारे विकास करने तथा तुम्हें उन सबके साथ मीरास प्रदान करने की क्षमता है, जो प्रभु के लिए अलग किए गए हैं. 33 मैंने किसी के स्वर्ण, रजत या वस्त्र का लालच नहीं किया. 34 तुम सब स्वयं जानते हो कि अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए तथा उनके लिए भी, जो मेरे साथ रहे, मैंने अपने इन हाथों से मेहनत की है. 35 हर एक परिस्थिति में मैंने तुम्हारे सामने यही आदर्श प्रस्तुत किया है कि यह ज़रूरी है कि हम दुर्बलों की सहायता इसी रीति से कठिन परिश्रम के द्वारा करें. स्वयं प्रभु येशु द्वारा कहे गए ये शब्द याद रखो, ‘लेने के बजाय देना धन्य है.’”
36 जब पौलॉस यह कह चुके, उन्होंने घुटने टेककर उन सबके साथ प्रार्थना की. 37 तब शिष्य रोने लगे और पौलॉस से गले लगकर उन्हें बार-बार चूमने लगे. 38 उनकी पीड़ा का सबसे बड़ा कारण यह था कि पौलॉस ने कह दिया था कि अब वे उन्हें कभी न देख सकेंगे. इसके बाद वे सब पौलॉस के साथ जलयान तक गए.
येरूशालेम की ओर जाना
21 जब हमने उनसे विदा लेकर जलमार्ग से यात्रा प्रारम्भ की और हमने सीधे कॉस द्वीप का मार्ग लिया, फिर अगले दिन रोदॉस द्वीप का और वहाँ से पतारा द्वीप का. 2 वहाँ फ़ॉयनिके नगर जाने के लिए एक जलयान तैयार था. हम उस पर सवार हो गए और हमने यात्रा प्रारम्भ की. 3 हमें बायीं ओर कुप्रोस द्वीप दिखाई दिया. हम उसे छोड़ कर सीरिया प्रदेश की ओर बढ़ते गए और त्सोर नगर जा पहुँचे क्योंकि वहाँ जलयान से सामान उतारा जाना था. 4 वहाँ हमने शिष्यों का पता लगाया और उनके साथ सात दिन रहे. पवित्रात्मा के माध्यम से वे बार-बार पौलॉस से येरूशालेम न जाने की विनती करते रहे. 5 जब वहाँ से हमारे जाने का समय आया, वे परिवार के साथ हमें विदा करने नगर सीमा तक आए. समुद्र तट पर हमने घुटने टेक कर प्रार्थना की और एक दूसरे से विदा ली. 6 हम जलयान में सवार हो गए और वे सब अपने-अपने घर लौट गए.
7 त्सोर नगर से शुरु की गई यात्रा पूरी कर हम तोलेमाई नगर पहुँचे. स्थानीय शिष्यों से भेंट कर हम एक दिन वहीं रुक गए. 8 अगले दिन यात्रा करते हुए हम कयसरिया आए और प्रचारक फ़िलिप्पॉस के घर गए, जो उन सात दीकनों में से एक थे. हम उन्हीं के घर में ठहरे. 9 उनकी चार कुँवारी पुत्रियां थीं, जो भविष्यवाणी किया करती थीं. 10 जब हमें, वहाँ रहते हुए कुछ दिन हो गए, वहाँ अगाबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता आए, जो यहूदिया प्रदेश के थे. 11 वह जब हमसे भेंट करने आए, उन्होंने पौलॉस का पटुका लेकर उससे अपने हाथ-पैर बान्धते हुए कहा, “पवित्रात्मा का कहना है, ‘येरूशालेम के यहूदी उस व्यक्ति को इसी रीति से बाँधेंगे जिसका यह पटुका है और उसे अन्यजातियों के हाथों में सौंप देंगे.’” 12 यह सुनकर स्थानीय शिष्यों और हमने भी पौलॉस से येरूशालेम न जाने की विनती की. 13 पौलॉस ने उत्तर दिया, “इस प्रकार रो-रोकर मेरा हृदय क्यों तोड़ रहे हो? मैं येरूशालेम में न केवल बन्दी बनाए जाने परन्तु प्रभु मसीह येशु के लिए मार डाले जाने के लिए भी तैयार हूँ.” 14 इसलिए जब उन्हें मनाना असम्भव हो गया, हम शान्त हो गए. हम केवल यही कह पाए, “प्रभु ही की इच्छा पूरी हो!”
पौलॉस येरूशालेम में
15 कुछ दिन बाद हमने तैयारी की और येरूशालेम के लिए चल दिए. 16 कयसरिया नगर के कुछ शिष्य भी हमारे साथ हो लिए. ठहरने के लिए हमें कुप्रोसवासी म्नेसॉन के घर ले जाया गया. वह सबसे पहिले के शिष्यों में से एक था.
17 येरूशालेम पहुँचने पर विश्वासियों ने बड़े आनन्दपूर्वक हमारा स्वागत किया. 18 अगले दिन पौलॉस हमारे साथ याक़ोब के निवास पर गए, जहाँ सभी प्राचीन इकट्ठा थे. 19 नमस्कार के बाद पौलॉस ने एक-एक करके वह सब बताना शुरु किया, जो परमेश्वर ने उनकी सेवा के माध्यम से अन्यजातियों के बीच किया था. 20 यह सब सुन, वे परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. उन्होंने पौलॉस से कहा, “देखिए, प्रियजन, यहूदियों में हज़ारों हैं जिन्होंने विश्वास किया है. वे सभी व्यवस्था के मजबूत समर्थक भी हैं. 21 उन्होंने यह सुन रखा है कि आप अन्यजातियों के बीच निवास कर रहे यहूदियों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि मोशेह की व्यवस्था छोड़ दो, न तो अपने शिशुओं का ख़तना करो और न ही प्रथाओं का पालन करो. 22 अब बताइए, हम क्या करें? उन्हें अवश्य यह तो मालूम हो ही जाएगा कि आप यहाँ आए हुए हैं. 23 इसलिए हमारा सुझाव मानिए: यहाँ ऐसे चार व्यक्ति हैं, जिन्होंने शपथ ली है, 24 आप उनके साथ जाइए, शुद्ध होने की विधि पूरी कीजिए तथा उनके मुण्डन का खर्च उठाइए. तब सबको यह मालूम हो जाएगा कि जो कुछ भी आपके विषय में कहा गया है, उसमें कोई सच्चाई नहीं है और आप स्वयं व्यवस्था का पालन करते हैं.
25 “जहाँ तक अन्यजाति शिष्यों का प्रश्न है, हमने उन्हें अपना फैसला लिखकर भेज दिया है कि वे मूर्तियों को चढ़ाई भोजन सामग्री, लहू, गला घोंट कर मारे गए पशुओं के माँस के सेवन से तथा वेश्यागामी से परे रहें.”
26 अगले दिन पौलॉस ने इन व्यक्तियों के साथ जाकर स्वयं को शुद्ध किया. तब वह मन्दिर गए कि वह वहाँ उस तारीख की सूचना दें, जब उनकी शुद्ध करने की रीति की अवधि समाप्त होगी और उनमें से हर एक के लिए भेंट चढ़ाई जाएगी.
पौलॉस का बन्दी बनाया जाना
27 जब सात दिन प्रायः समाप्त होने पर ही थे, आसिया प्रदेश से वहाँ आए कुछ यहूदियों ने पौलॉस को मन्दिर में देख लिया. उन्होंने सारी मौजूद भीड़ में कोलाहल मचा दिया और पौलॉस को यह कहते हुए बन्दी बना लिया, 28 “प्रिय इस्राएलियो! हमारी सहायता करो! यही है वह, जो हर जगह हमारे राष्ट्र, व्यवस्था के नियमों तथा इस मन्दिर के विरुद्ध शिक्षा देता फिर रहा है. इसके अलावा यह यूनानियों को भी मन्दिर के अंदर ले आया है. अब यह पवित्र स्थान अपवित्र हो गया है.” 29 वास्तव में इसके पहले उन्होंने इफ़ेसॉसवासी त्रोफ़िमस को पौलॉस के साथ नगर में देख लिया था इसलिए वे समझे कि पौलॉस उसे अपने साथ मन्दिर में ले गए थे.
30 सारे नगर में खलबली मच गई. लोग एक साथ पौलॉस की ओर लपके, उन्हें पकड़ा और उन्हें घसीट कर मन्दिर के बाहर कर दिया और तुरन्त द्वार बन्द कर दिए गए. 31 जब वे पौलॉस की हत्या की योजना कर ही रहे थे, रोमी सेनापति को सूचना दी गई कि सारे नगर में कोलाहल मचा हुआ है. 32 सेनापति तुरन्त अपने साथ कुछ सैनिक और अधिकारियों को लेकर दौड़ता हुआ घटना स्थल पर जा पहुँचा. सेनापति और सैनिकों को देखते ही, उन्होंने पौलॉस को पीटना बन्द कर दिया. 33 सेनापति ने आगे बढ़कर पौलॉस को पकड़ कर उन्हें दो-दो बेड़ियों से बान्धने की आज्ञा दी और लोगों से प्रश्न किया कि यह कौन है और क्या किया है इसने? 34 किन्तु भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ. जब सेनापति कोलाहल के कारण सच्चाई न जान पाया, उसने पौलॉस को सेना गढ़ में ले जाने का आदेश दिया. 35 जब वे सीढ़ियों तक पहुँचे, गुस्से में बलवा करने को उतारु भीड़ के कारण सुरक्षा की दृष्टि से सैनिक पौलॉस को उठाकर अंदर ले गए. 36 भीड़ उनके पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुई चल रही थी, “मार डालो उसे!”
37 जब वे सैनिक घर पर पहुँचने पर ही थे, पौलॉस ने सेनापति से कहा, “क्या मैं आप से कुछ कह सकता हूँ?” सेनापति ने आश्चर्य से पूछा, “तुम यूनानी भाषा जानते हो? 38 इसका अर्थ यह है कि तुम वह मिस्री नहीं हो जिसने कुछ समय पहले विद्रोह कर दिया था तथा जो चार हज़ार आतंकियों को जंगल में ले गया था.”
39 पौलॉस ने उसे उत्तर दिया, “मैं किलिकिया प्रदेश के तारस्यॉस नगर का एक यहूदी नागरिक हूँ. मैं आपकी आज्ञा पाकर इस भीड़ से कुछ कहना चाहता हूँ.”
40 आज्ञा मिलने पर पौलॉस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर भीड़ से शांत रहने को कहा. जब वे सब शांत हो गए, उन्होंने भीड़ को इब्री भाषा में सम्बोधित किया:
22 “प्रियजन! अब कृपया मेरा उत्तर सुन लें.” 2 जब उन्होंने पौलॉस को इब्री भाषा में सम्बोधित करते हुए सुना तो वे और अधिक शांत हो गए. पौलॉस ने उनसे कहना शुरु किया.
येरूशालेम के यहूदियों से पौलॉस का उपदेश
3 “मैं यहूदी हूँ, मेरा जन्म किलिकिया प्रदेश, के तारस्यॉस नगर में तथा पालन-पोषण इसी नगर येरूशालेम में हुआ है. मेरी शिक्षा नियमानुकूल पूर्वजों की व्यवस्था के अनुरूप आचार्य गमालिएल महोदय की देखरेख में हुई, आज परमेश्वर के प्रति जैसा आप सबका उत्साह है, वैसा ही मेरा भी था. 4 मैं तो इस मत के शिष्यों को प्राण लेने तक सताहट देता था, स्त्री-पुरुष दोनों को ही मैं बन्दी बना कारागार में डाल देता था, 5 महायाजक और पुरनियों की समिति के सदस्य इस सच्चाई के गवाह हैं, जिनसे दमिश्क नगर के यहूदियों के सम्बन्ध में अधिकार पत्र प्राप्त कर मैं दमिश्क नगर जा रहा था कि वहाँ से इस मत के शिष्यों को बन्दी बना कर येरूशालेम ले आऊँ कि वे दण्डित किए जाएँ.”
6 “जब मैं लगभग दोपहर के समय दमिश्क नगर के पास पहुँचा, आकाश से अचानक बहुत तेज़ प्रकाश मेरे चारों ओर कौन्ध गया 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा. तभी मुझे सम्बोधित करता एक शब्द सुनाई दिया, ‘शाऊल! शाऊल! तुम मुझे क्यों सता रहे हो?’”
8 मैंने प्रश्न किया, “‘आप कौन हैं, प्रभु?’
“‘मैं नाज़रेथ नगर का येशु हूँ, जिसे तुम सता रहे हो,’ उस शब्द ने उत्तर दिया. 9 मेरे साथियों को प्रकाश तो अवश्य दिखाई दे रहा था किन्तु मुझसे बातचीत करता हुआ शब्द उन्हें साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था.”
10 मैंने पूछा, “‘मैं क्या करूँ, प्रभु?’ प्रभु ने मुझे उत्तर दिया.
“‘उठो,’ ‘दमिश्क नगर में जाओ, वहीं तुम्हें बताया जाएगा कि तुम्हारे द्वारा क्या-क्या किया जाना तय किया गया है.’ 11 तेज़ प्रकाश के कारण मैं देखने की क्षमता खो बैठा था. इसलिए मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क नगर ले गए.”
12 “हननयाह नामक व्यक्ति, जो व्यवस्था के अनुसार परमेश्वर भक्त और सभी स्थानीय यहूदियों द्वारा सम्मानित थे, 13 मेरे पास आकर मुझसे बोले, ‘भाई शाऊल! अपनी दृष्टि प्राप्त करो!’ उसी क्षण दृष्टि प्राप्त कर मैंने उनकी ओर देखा.
14 “उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने आपको अपनी इच्छा जानने तथा उन्हें देखने के लिए, जो धर्मी हैं तथा उन्हीं के मुख से निकले हुए शब्द सुनने के लिए चुना गया है. 15 आपने जो कुछ देखा और सुना है, वह सब के सामने आपकी गवाही का विषय होगा. 16 तो अब देर क्यों? उठिए, बपतिस्मा लीजिए—प्रभु के नाम की दोहाई देते हुए पाप-क्षमा प्राप्त कीजिए.’”
17 “येरूशालेम लौटने पर जब मैं मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, मैं ध्यान मग्न की स्थिति में पहुँच गया. 18 मैंने प्रभु को स्वयं से यह कहते सुना, ‘बिना देर किए येरूशालेम छोड़ दो क्योंकि मेरे विषय में तुम्हारे द्वारा दी गई गवाही इन्हें स्वीकार नहीं होगी.’ 19 मैंने उत्तर दिया, ‘प्रभु, वे स्वयं यह जानते हैं कि एक-एक यहूदी आराधनालय से मैं आपके शिष्यों को चुन-चुन कर बन्दी बनाता तथा यातनाएँ देता था. 20 जब आपके गवाह स्तेफ़ानॉस का लहू बहाया जा रहा था तो मैं न केवल इसके समर्थन में वहाँ खड़ा था, परन्तु उसके हत्यारों के बाहरी कपड़ों की रखवाली भी कर रहा था.’”
21 “किन्तु मेरे लिए प्रभु की आज्ञा थी, ‘जाओ; मैं तुम्हें अन्यजातियों के बीच दूर-दूर के स्थानों में भेज रहा हूँ.’”
पौलॉस—एक रोमी नागरिक
22 यहाँ तक तो वे पौलॉस की बात ध्यान से सुनते रहे किन्तु अब उन्होंने चिल्लाना शुरु कर दिया, “इस व्यक्ति के बोझ से धरती को मुक्त करो. इसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है.”
23 जब वे चिल्लाने, वस्त्र उछालने और हवा में धूल उड़ाने लगे 24 तो सेनापति ने पौलॉस को सेना गढ़ के अंदर ले जाने की आज्ञा दी कि उन्हें कोड़े लगा कर उनसे पूछताछ की जाए और उनके विरुद्ध भीड़ के इस प्रकार चिल्लाने का कारण मालूम हो सके. 25 जब वे पौलॉस को कोड़े लगाने की तैयारी में उनके हाथ-पैर फैलाकर बान्ध ही रहे थे, पौलॉस ने अपने पास खड़े सेनानायक से प्रश्न किया, “क्या आपके सामने एक रोमी नागरिक का दोष साबित हुए बिना उसे कोड़े लगाना ठीक है?”
26 यह सुनना था कि सेनानायक ने तुरन्त सैन्य-अधिकारी के पास जाकर उससे कहा “आप यह क्या करने पर हैं? यह व्यक्ति तो रोमी नागरिक है!”
27 सैन्याधिकारी ने पौलॉस के पास आ कर उनसे प्रश्न किया, “तुम रोमी नागरिक हो?”
“जी हाँ.” पौलॉस ने उत्तर दिया.
28 सैन्याधिकारी ने उनसे कहा, “एक बड़ी राशि चुकाने पर प्राप्त हुई है मुझे यह नागरिकता.”
“किन्तु मैं तो जन्म से रोमी नागरिक हूँ!” पौलॉस ने उत्तर दिया.
29 वे लोग, जो उनसे पूछताछ करने आए थे तुरन्त वहाँ से खिसक लिए. जब सैन्याधिकारी को यह मालूम हुआ कि उसने पौलॉस को, जो एक रोमी नागरिक हैं, बेड़ियाँ लगा दी हैं, तो वह घबरा गया.
महासभा के सामने पौलॉस की पेशी
30 अगले दिन सच्चाई मालूम करने की इच्छा में कि पौलॉस पर यहूदियों द्वारा आरोप क्यों लगाए गए, सेनापति ने उन्हें रिहा कर दिया, प्रधान पुरोहितों तथा महासभा को इकट्ठा होने की आज्ञा दी और पौलॉस को लाकर उनके सामने पेश किया.
23 महासभा की ओर ध्यान से देखते हुए पौलॉस ने कहना शुरु किया, “प्रियजन, परमेश्वर के सामने मेरा जीवन आज तक पूरी तरह सच्चे विवेक सा रहा है.” 2 इस पर महायाजक हननयाह ने पौलॉस के पास खड़े हुओं को पौलॉस के मुख पर वार करने की आज्ञा दी. 3 स्वयं पौलॉस ही बोल उठे, “अरे ओ सफेदी पुती दीवार, तुम पर ही परमेश्वर का वार होने पर है! तुम तो यहाँ व्यवस्था की विधियों के अनुसार न्याय करने बैठे हो, फिर भी मुझ पर वार करने की आज्ञा दे कर स्वयं व्यवस्था भंग कर रहे हो?”
4 वे, जो पौलॉस के पास खड़े थे कहने लगे, “तुम तो परमेश्वर के महायाजक का तिरस्कार करने का दुस्साहस कर बैठे हो!”
5 पौलॉस ने उत्तर दिया, “भाइयो, मुझे यह मालूम ही न था कि यह महायाजक हैं पवित्रशास्त्र का लेख है: अपनी प्रजा के राजा के लिए कोई बुरे शब्द न कहना.”
6 तब यह मालूम होने पर कि वहाँ कुछ सदूकी और कुछ फ़रीसी भी उपस्थित हैं, पौलॉस महासभा के सामने ऊँचे शब्द में कहने लगे, “प्रियजन, मैं फ़रीसी हूँ—फ़रीसियों की सन्तान हूँ. मुझ पर यहाँ, मरे हुओं की आशा और उनके पुनरुत्थान में मेरी मान्यता के कारण मुकद्दमा चलाया जा रहा है.” 7 जैसे ही उन्होंने यह कहा, फ़रीसियों तथा सदूकियों के बीच विवाद छिड़ गया और सारी सभा में फूट पड़ गई, 8 क्योंकि सदूकियों का विश्वास है कि न तो मरे हुओं का पुनरुत्थान होता है, न स्वर्गदूतों का अस्तित्व होता है और न आत्मा का. किन्तु फ़रीसी इन सबमें विश्वास करते हैं.
9 वहाँ बड़ा कोलाहल शुरु हो गया. फ़रीसियों की ओर से कुछ शास्त्रियों ने खड़े हो कर झगड़ते हुए कहा, “हमारी दृष्टि में यह व्यक्ति निर्दोष है. सम्भव है किसी आत्मा या स्वयं स्वर्गदूत ही ने उससे बातें की हों.” 10 जब वहाँ कोलाहल बढ़ने लगा, सेनापति इस आशंका से घबरा गया कि लोग पौलॉस के चिथड़े न उड़ा दें. इसलिए उसने सेना को आज्ञा दी कि पौलॉस को जबरन वहाँ से सेना गढ़ में ले जाया जाए.
11 उसी रात में प्रभु ने पौलॉस के पास आ कर कहा, “साहस रखो. जिस सच्चाई में तुमने मेरे विषय में येरूशालेम में गवाही दी है, वैसी ही गवाही तुम्हें रोम में भी देनी है.”
पौलॉस के विरुद्ध यहूदियों का षड्यन्त्र
12 प्रातःकाल यहूदियों ने एक षड्यन्त्र रचा और सौगन्ध ली कि पौलॉस को समाप्त करने तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे. 13 इस योजना में चालीस से अधिक व्यक्ति शामिल हो गए. 14 उन्होंने महायाजकों और पुरनियों से कहा, “हमने ठान लिया है कि पौलॉस को समाप्त किए बिना हम अन्न-जल चखेंगे तक नहीं. 15 इसलिए आप और महासभा मिल कर सेनापति को सूचना भेजें और पौलॉस को यहाँ ऐसे बुलवा लें, मानो आप उसका विवाद बारीकी से जांच करके सुलझाना चाहते हैं. यहाँ हमने उसके पहुँचने के पहले ही उसे मार ड़ालने की तैयारी कर रखी है.”
16 पौलॉस के भाँजे ने इस मार ड़ालने के विषय में सुन लिया. उसने सेना घर में जा कर पौलॉस को इसकी सूचना दे दी.
17 पौलॉस ने एक सैन्य अधिकारी को बुला कर कहा, “कृपया इस युवक को सेनापति के पास ले जाइए. इसके पास उनके लिए एक सूचना है.” 18 इसलिए सैन्य अधिकारी ने उसे सेनापति के पास ले जा कर कहा, “बन्दी पौलॉस ने मुझे बुला कर विनती की है कि इस युवक को आपके पास ले आऊँ क्योंकि इसके पास आपके लिए एक सूचना है.”
19 इसलिए सेनापति ने उस युवक का हाथ पकड़ कर अलग ले जा कर उससे पूछताछ करनी शुरु कर दी, “क्या सूचना है तुम्हारे पास?”
20 उसने उत्तर दिया, “पौलॉस को महासभा में बुलाना यहूदियों की सिर्फ एक योजना ही है, मानो वे उनके विषय में बारीकी से जांच करना चाहते हैं. 21 कृपया उनकी इस विनती की ओर ध्यान न दें क्योंकि चालीस से अधिक व्यक्ति पौलॉस के लिए घात लगाए बैठे हैं. उन्होंने ठान लिया है कि जब तक वे पौलॉस को खत्म नहीं कर देते, वे न तो कुछ खाएँगे और न ही कुछ पिएंगे. अब वे आपकी हाँ के इंतज़ार में बैठे हैं.”
22 सेनापति ने युवक को इस निर्देश के साथ विदा कर दिया, “किसी को भी यह मालूम न होने पाए कि तुमने मुझे यह सूचना दी है.”
पौलॉस का स्थानान्तरण कयसरिया नगर को
23 तब सेनापति ने दो नायकों को बुला कर आज्ञा दी, “रात के तीसरे घण्टे तक दो सौ सैनिकों को लेकर कयसरिया नगर को प्रस्थान करो. उनके साथ सत्तर घुड़सवार तथा दो सौ भालाधारी सैनिक भी हों. 24 पौलॉस के लिए घोड़े की सवारी का प्रबन्ध करो कि वह राज्यपाल फ़ेलिक्स के पास सुरक्षित पहुँचा दिए जाएँ.”
25 सेनापति ने उनके हाथ यह पत्र भेज दिया:
26 परमश्रेष्ठ राज्यपाल फ़ेलिक्स की सेवा में,
क्लॉदियॉस लिसियस का सादर,
अभिनन्दन.
27 जब इस व्यक्ति को यहूदियों ने दबोचा और इसकी हत्या करने पर ही थे, मैं घटना स्थल पर अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ जा पहुँचा और इसे उनके पंजों से मुक्त कराया क्योंकि मुझे यह मालूम हुआ कि यह एक रोमी नागरिक है. 28 तब इस पर लगाए आरोपों की पुष्टि के उद्देश्य से मैंने इसे उनकी महासभा के सामने प्रस्तुत किया. 29 वहाँ मुझे यह मालूम हुआ कि इस पर लगाए गए आरोप मात्र उनकी ही व्यवस्था की विधियों से सम्बन्धित हैं, न कि ऐसे, जिनके लिए हमारे नियमों के अनुसार मृत्युदण्ड या कारावास दिया जाए. 30 फिर मुझे यह सूचना प्राप्त हुई कि इस व्यक्ति के विरुद्ध हत्या का षड्यन्त्र रचा जा रहा है. मैंने इसे बिना देर किए आपके पास भेजने का निश्चय किया. मैंने आरोपियों को भी ये निर्देश दे दिए हैं कि वे इसके विरुद्ध सभी आरोप आपके ही सामने प्रस्तुत करें.
31 इसलिए आज्ञा के अनुसार सैनिकों ने रातों-रात पौलॉस को अन्तिपातरिस नगर के पास पहुँचा दिया. 32 दूसरे दिन घुड़सवारों को पौलॉस के साथ भेज कर वे स्वयं सैनिक गढ़ लौट आए. 33 कयसरिया नगर पहुँच कर उन्होंने राज्यपाल को वह पत्र सौंपा और पौलॉस को उनके सामने प्रस्तुत किया. 34 पत्र पढ़ कर राज्यपाल ने पौलॉस से प्रश्न किया कि वह किस प्रदेश के हैं. यह मालूम होने पर कि वह किलिकिया प्रदेश के हैं 35 राज्यपाल ने कहा, “तुम्हारे आरोपियों के यहाँ पहुँचने पर ही मैं तुम्हारी सुनवाई करूँगा” और उसने पौलॉस को हेरोदेस के राजभवन परिसर में रखने की आज्ञा दी.
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