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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
इफिसियों 1-6

पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का एक प्रेरित है,

इफिसुस के रहने वाले संत जनों और मसीह यीशु में विश्वास रखने वालों के नाम:[a]

तुम्हें हमारे परम पिता परमेश्वर और यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह तथा शांति मिले।

मसीह में स्थितों के लिये आध्यात्मिक आशीषें

हमारे प्रभु यीशु मसीह का पिता और परमेश्वर धन्य हो। उसने हमें मसीह के रूप में स्वर्ग के क्षेत्र में हर तरह के आशीर्वाद दिये हैं। 4-5 संसार की रचना से पहले ही परमेश्वर ने हमें, जो मसीह में स्थित हैं, अपने सामने पवित्र और निर्दोष बनने कि लिये चुना। हमारे प्रति उसका जो प्रेम है उसी के कारण उसने यीशु मसीह के द्वारा हमें अपने बेटों के रूप में स्वीकार किये जाने के लिए नियुक्त किया। यही उसकी इच्छा थी और यही प्रयोजन भी था। उसने ऐसा इसलिए किया कि वह अपनी महिमामय अनुग्रह के कारण स्वयं को प्रशंसित करे। उसने इसे हमें, जो उसके प्रिय पुत्र में स्थित हैं मुक्त भाव से प्रदान किया।

उसकी बलिदानी मृत्यु के द्वारा अब हम अपने पापों से छुटकारे का आनन्द ले रहे हैं। उसके सम्पन्न अनुग्रह के कारण हमें हमारे पापों की क्षमा मिलती है। अपने उसी प्रेम के अनुसार जिसे वह मसीह के द्वारा हम पर प्रकट करना चाहता था। उसने हमें अपनी इच्छा के रहस्य को बताया है। जैसा कि मसीह के द्वारा वह हमें दिखाना चाहता था। 10 परमेश्वर की यह योजना थी कि उचित समय आने पर स्वर्ग की और पृथ्वी पर की सभी वस्तुओं को मसीह में एकत्र करे।

11 सब बातें योजना और परमेश्वर के निर्णय के अनुसार की जाती हैं। और परमेश्वर ने अपने निजी प्रयोजन के कारण ही हमें उसी मसीह में संत बनने के लिये चुना है। यह उसके अनुसार ही हुआ जिसे परमेश्वर ने अनादिकाल से सुनिश्चित कर रखा था। 12 ताकि हम उसकी महिमा की प्रशंसा के कारण बन सकें। हम, यानी जिन्होंने अपनी सभी आशाएँ मसीह पर केन्द्रित कर दी हैं। 13 जब तुमने उस सत्य का संदेश सुना जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार था, और जिस मसीह पर तुमने विश्वास किया था, तो जिस पवित्र आत्मा का वचन दिया था, मसीह के माध्यम से उसकी छाप परमेश्वर के द्वारा तुम लोगों पर भी लगायी गयी। 14 वह आत्मा हमारे उत्तराधिकार के भाग की जमानत के रूप में उस समय तक के लिये हमें दिया गया है, जब तक कि वह हमें, जो उसके अपने है, पूरी तरह छुटकारा नहीं दे देता। इसके कारण लोग उसकी महिमा की प्रशंसा करेंगे।

इफिसियों के लिये पौलुस की प्रार्थना

15 इसलिए जब से मैंने प्रभु यीशु में तुम्हारे विश्वास और सभी संतों के प्रति तुम्हारे प्रेम के विषय में सुना है, 16 मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर कर रहा हूँ। अपनी प्रार्थनाओं में मैं तुम्हारा उल्लेख किया करता हूँ। 17 मैं प्रार्थना किया करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर तुम्हें विवेक और दिव्यदर्शन की ऐसी आत्मा की शक्ति प्रदान करे जिससे तुम उस महिमावान परम पिता को जान सको।

18 मेरी विनती है कि तुम्हारे हृदय की आँखें खुल जायें और तुम प्रकाश का दर्शन कर सको ताकि तुम्हें पता चल जाये कि वह आशा क्या है जिसके लिये तुम्हें उसने बुलाया है। और जिस उत्तराधिकार को वह अपने सभी लोगों को देगा, वह कितना अद्भुत और सम्पन्न है। 19 तथा हम विश्वासियों के लिए उसकी शक्ति अतुलनीय रूप से कितनी महान है। यह शक्ति अपनी महान शक्ति के उस प्रयोग के समान है, 20 जिसे उसने मसीह में तब काम में लिया था जब मरे हुओं में से उसे फिर से जिला कर स्वर्ग के क्षेत्र में अपनी दाहिनी ओर बिठाकर 21 सभी शासकों, अधिकारियों, सामर्थ्यों और प्रभुताओं तथा हर किसी ऐसी शक्तिशाली पदवी के ऊपर स्थापित किया था, जिसे न केवल इस युग में बल्कि आने वाले युग में भी किसी को दिया जा सकता है। 22 परमेश्वर ने सब कुछ को मसीह के चरणों के नीचे कर दिया और उसी ने मसीह को कलीसिया का सर्वोच्च शिरोमणि बनाया। 23 कलीसिया मसीह की देह है और सब विधियों से सब कुछ को उसकी पूर्णता ही परिपूर्ण करती है।

मृत्यु से जीवन की ओर

एक समय था जब तुम लोग उन अपराधों और पापों के कारण आध्यात्मिक रूप से मरे हुए थे जिनमें तुम पहले, संसार के बुरे रास्तों पर चलते हुए और उस आत्मा का अनुसरण करते हुए जीते थे जो इस धरती के ऊपर की आत्मिक शक्तियों का स्वामी है। वही आत्मा अब उन व्यक्तियों में काम कर रही है जो परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते। एक समय हम भी उन्हीं के बीच जीते थे और अपनी पापपूर्ण प्रकृति की भौतिक इच्छाओं को तृप्त करते हुए अपने हृदयों और पापपूर्ण प्रकृति की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए संसार के दूसरे लोगों के समान परमेश्वर के क्रोध के पात्र थे।

किन्तु परमेश्वर करुणा का धनी है। हमारे प्रति अपने महान् प्रेम के कारण उस समय अपराधों के कारण हम आध्यात्मिक रूप से अभी मरे ही हुए थे, मसीह के साथ साथ उसने हमें भी जीवन दिया (परमेश्वर के अनुग्रह से ही तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और क्योंकि हम यीशु मसीह में हैं इसलिए परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ ही फिर से जी उठाया और उसके साथ ही स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया। ताकि वह आने वाले हर युग में अपने अनुग्रह के अनुपम धन को दिखाये जिसे उसने मसीह यीशु में अपनी दया के रूप में हम पर दर्शाया है।

परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा अपने विश्वास के कारण तुम्हारा उद्धार हुआ है। यह तुम्हें तुम्हारी ओर से प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह तो परमेश्वर का वरदान है। यह हमारे किये कर्मों का परिणाम नहीं है कि हम इसका गर्व कर सकें। 10 क्योंकि परमेश्वर हमारा सृजनहार है। उसने मसीह यीशु में हमारी सृष्टि इसलिए की है कि हम नेक काम करें जिन्हें परमेश्वर ने पहले से ही इसलिए तैयार किया हुआ है कि हम उन्हीं को करते हुए अपना जीवन बितायें।

मसीह में एक

11 इसलिए याद रखो, वे लोग, जो अपने शरीर में मानव हाथों द्वारा किये गये ख़तने के कारण अपने आपको “ख़तना युक्त” बताते हैं, विधर्मी के रूप में जन्मे तुम लोगों को “ख़तना रहित” कहते थे। 12 उस समय तुम बिना मसीह के थे, तुम इस्राएल की बिरादरी से बाहर थे। परमेश्वर ने अपने भक्तों को जो वचन दिए थे उन पर आधारित वाचा से अनजाने थे। तथा इस संसार में बिना परमेश्वर के निराश जीवन जीते थे। 13 किन्तु अब तुम्हें, जो कभी परमेश्वर से बहुत दूर थे, मसीह के बलिदान के द्वारा मसीह यीशु में तुम्हारी स्थिति के कारण, परमेश्वर के निकट ले आया गया है।

14 यहूदी और ग़ैर यहूदी आपस में एक दूसरे से नफ़रत करते थे और अलग हो गये थे। ठीक ऐसे जैसे उन के बीच कोई दीवार खड़ी हो। किन्तु मसीह ने स्वयं अपनी देह का बलिदान देकर नफ़रत की उस दीवार को गिरा दिया। 15 उसने ऐसा तब किया जब अपने समूचे नियमों और व्यवस्थाओं के विधान को समाप्त कर दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि वह अपने में इन दोनों को ही एक में मिला सकें। और इस प्रकार मिलाप करा दे। क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा उसने उस घृणा का अंत कर दिया। और उन दोनों को परमेश्वर के साथ उस एक देह में मिला दिया। 16 और क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा बैर भाव का नाश करके एक ही देह में उन दोनों को संयुक्त करके परमेश्वर से फिर मिला दे। 17 सो आकर उसने तुम्हें, जो परमेश्वर से बहुत दूर थे और जो उसके निकट थे, उन्हें शांति का सुसमाचार सुनाया। 18 क्योंकि उसी के द्वारा एक ही आत्मा से परम पिता के पास तक हम दोनों की पहुँच हुई।

19 परिणामस्वरूप अब तुम न अनजान रहे और न ही पराये। बल्कि अब तो तुम संत जनों के स्वदेशी संगी-साथी हो गये हो। 20 तुम एक ऐसा भवन हो जो प्रेरितों और नबियों की नींव पर खड़ा है। तथा स्वयं मसीह यीशु जिसका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कोने का पत्थर है। 21-22 मसीह में स्थित एक ऐसे स्थान की रचना के रूप में दूसरे लोगों के साथ तुम्हारा भी निर्माण किया जा रहा है, जहाँ आत्मा के द्वारा स्वयं परमेश्वर निवास करता है।

ग़ैर यहूदियों में पौलुस का प्रचार-कार्य

इसीलिए मैं, पौलुस तुम ग़ैर यहूदियों के लिये मसीह यीशु के हेतु बन्दी बना हूँ। तुम्हारे कल्याण के लिए परमेश्वर ने अनुग्रह के साथ जो काम मुझे सौंपा है, उसके बारे में तुमने अवश्य ही सुना होगा। कि वह रहस्यमयी योजना दिव्यदर्शन द्वारा मुझे जनाई गयी थी, जैसा कि मैं तुम्हें संक्षेप में लिख ही चुका हूँ। और यदि तुम उसे पढ़ोगे तो मसीह विषयक रहस्यपूर्ण सत्य में मेरी अन्तर्दष्टि की समझ तुम्हें हो जायेगी। यह रहस्य पिछली पीढ़ी के लोगों को वैसे नहीं जनाया गया था जैसे अब उसके अपने पवित्र प्रेरितों और नबियों को आत्मा के द्वारा जनाया जा चुका है। यह रहस्य है कि यहूदियों के साथ ग़ैर यहूदी भी सह उत्तराधिकारी हैं, एक ही देह के अंग हैं और मसीह यीशु में जो वचन हमें दिया गया है, उसमें सहभागी हैं।

सुसमाचार के कारण मैं उस सुसमाचार का प्रचार करने वाला एक सेवक बन गया, जो उसकी शक्ति के अनुसार परमेश्वर के अनुग्रह के वरदान स्वरूप मुझे दिया गया था। यद्यपि सभी संत जनों में मैं छोटे से भी छोटा हूँ किन्तु मसीह के अनन्त धन रूपी सुसमाचार का ग़ैर यहूदियों में प्रचार करने का यह अनुग्रह मुझे दिया गया कि मैं सभी लोगों के लिए उस रहस्यपूर्ण योजना को स्पष्ट करूँ जो सब कुछ के सिरजनहार परमेश्वर में सृष्टि के प्रारम्भ से ही छिपी हुई थी। 10 ताकि वह स्वर्गिक क्षेत्र की शक्तियों और प्रशासकों को अब उस परमेश्वर के बहुविध ज्ञान को कलीसिया के द्वारा प्रकट कर सके। 11 यह उस सनातन प्रयोजन के अनुसार सम्पन्न हुआ जो उसने हमारे प्रभु मसीह यीशु में पूरा किया था। 12 मसीह में विश्वास के कारण हम परमेश्वर तक भरोसे और निर्भीकता के साथ पहुँच रखते है। 13 इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हारे लिए मैं जो यातनाएँ भोग रहा हूँ, उन से आशा मत छोड़ बैठना क्योंकि इस यातना में ही तो तुम्हारी महिमा है।

मसीह का प्रेम

14 इसलिए मैं परमपिता के आगे झुकता हूँ। 15 उसी से स्वर्ग में या धरती पर के सभी वंश अपने अपने नाम ग्रहण करते हैं। 16 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह महिमा के अपने धन के अनुसार अपनी आत्मा के द्वारा तुम्हारे भीतरी व्यक्तित्व को शक्तिपूर्वक सुदृढ़ करे। 17 और विश्वास के द्वारा तुम्हारे हृदयों में मसीह का निवास हो। तुम्हारी जड़ें और नींव प्रेम पर टिकें। 18 जिससे तुम्हें अन्य सभी संत जनों के साथ यह समझने की शक्ति मिल जाये कि मसीह का प्रेम कितना व्यापक, विस्तृत, विशाल और गम्भीर है। 19 और तुम मसीह के उस प्रेम को जान लो जो सभी प्रकार के ज्ञानों से परे है ताकि तुम परमेश्वर की सभी परिपूर्णताओं से भर जाओ।

20 अब उस परमेश्वर के लिये जो अपनी उस शक्ति से जो हममें काम कर रही है, जितना हम माँग सकते हैं या जहाँ तक हम सोच सकते हैं, उससे भी कहीं अधिक कर सकता है, 21 उसकी कलीसिया में और मसीह यीशु में अनन्त पीढ़ियों तक सदा सदा के लिये महिमा होती रहे। आमीन।

एक देह

इसलिए मैं, जो प्रभु का होने के कारण बंदी बना हुआ हूँ, तुम लोगों से प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें अपना जीवन वैसे ही जीना चाहिए जैसा कि संतों के अनुकूल होता है। सदा नम्रता और कोमलता के साथ, धैर्यपूर्वक आचरण करो। एक दूसरे की प्रेम से सहते रहो। वह शांति, जो तुम्हें आपस में बाँधती है, उससे उत्पन्न आत्मा की एकता को बनाये रखने के लिये हर प्रकार का यत्न करते रहो। देह एक है और पवित्र आत्मा भी एक ही है। ऐसे ही जब तुम्हें भी बुलाया गया तो एक ही आशा में भागीदार होने के लिये ही बुलाया गया। एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास है और है एक ही बपतिस्मा। परमेश्वर एक ही है और वह सबका पिता है। वही सब का स्वामी है, हर किसी के द्वारा वही क्रियाशील है, और हर किसी में वही समाया है।

हममें से हर किसी को उसके अनुग्रह का एक विशेष उपहार दिया गया है जो मसीह की उदारता के अनुकूल ही है। इसलिए शास्त्र कहता है:

“उसने विजयी को ऊँचे चढ़,
    बंदी बनाया और उसने लोगों को अपने आनन्दी वर दिये।”(A)

अब देखो, जब वह कहता है, “ऊँचे चढ़” तो इसका अर्थ इसके अतिरिक्त क्या है? कि वह धरती के निचले भागों पर भी उतरा था। 10 जो नीचे उतरा था, वह वही है जो ऊँचे भी चढ़ा था इतना ऊँचा कि सभी आकाशों से भी ऊपर, ताकि वह सब कुछ को सम्पूर्ण कर दे। 11 उसने स्वयं ही कुछ को प्रेरित होने का वरदान दिया तो कुछ को नबी होने का तो कुछ को सुसमाचार के प्रचारक होने का तो कुछ को परमेश्वर के जनों की सुरक्षा और शिक्षा का। 12 मसीह ने उन्हें ये वरदान संत जनों की सेवा कार्य के हेतु तैयार करने को दिये ताकि हम जो मसीह की देह है, आत्मा में और दृढ़ हों। 13 जब तक कि हम सभी विश्वास में और परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में एकाकार होकर परिपक्व पुरुष बनने के लिए विकास करते हुए मसीह के सम्पूर्ण गौरव की ऊँचाई को न छू लें।

14 ताकि हम ऐसे बच्चे ही न बने रहें जो हर किसी ऐसी नयी शिक्षा की हवा से उछाले जायें, जो हमारे रास्ते में बहती है, लोगों के छलपूर्ण व्यवहार से, ऐसी धूर्तता से, जो ठगी से भरी योजनाओं को प्रेरित करती है, इधर-उधर भटका दिये जाते हैं। 15 बल्कि हम प्रेम के साथ सत्य बोलते हुए हर प्रकार से मसीह के जैसे बनने के लिये विकास करते जायें। मसीह सिर है, 16 जिस पर समूची देह निर्भर करती है। यह देह उससे जुड़ती हुई प्रत्येक सहायक नस से संयुक्त होती है और जब इसका हर अंग जो काम उसे करना चाहिए, उसे पूरा करता है तो प्रेम के साथ समूची देह का विकास होता है और यह देह स्वयं सुदृढ़ होती है।

ऐसे जीओ

17 मैं इसीलिए यह कहता हूँ और प्रभु को साक्षी करके तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि उनके व्यर्थ के विचारों के साथ अधर्मियों के जैसा जीवन मत जीते रहो। 18 उनकी बुद्धि अंधकार से भरी है। वे परमेश्वर से मिलने वाले जीवन से दूर हैं। क्योंकि वे अबोध हैं और उनके मन जड़ हो गये हैं। 19 लज्जा की भावना उनमें से जाती रही है। और उन्होंने अपने को इन्द्रिय उपासना में लगा दिया है। बिना कोई बन्धन माने वे हर प्रकार की अपवित्रता में जुटे हैं। 20 किन्तु मसीह के विषय में तुमने जो जाना है, वह तो ऐसा नहीं है। 21 मुझे कोई संदेह नहीं है कि तुमने उसके विषय में सुना है; और वह सत्य जो यीशु में निवास करता है, उसके अनुसार तुम्हें उसके शिष्यों के रूप में शिक्षित भी किया गया है। 22 जहाँ तक तुम्हारे पुराने जीवन प्रकार का संबन्ध हैं तुम्हें शिक्षा दी गयी थी कि तुम अपने पुराने व्यक्तित्व को उतार फेंको जो उसकी भटकाने वाली इच्छाओं के कारण भ्रष्ट बना हुआ है। 23 जिससे बुद्धि और आत्मा में तुम्हें नया किया जा सके। 24 और तुम उस नये स्वरूप को धारण कर सको जो परमेश्वर के अनुरूप सचमुच धार्मिक और पवित्र बनने के लिए रचा गया है।

25 सो तुम लोग झूठ बोलने का त्याग कर दो। अपने साथियों से हर किसी को सच बोलना चाहिए, क्योंकि हम सभी एक शरीर के ही अंग हैं। 26 क्रोध में आकर पाप मत कर बैठो। सूरज ढलने से पहले ही अपने क्रोध को समाप्त कर दो। 27 शैतान को अपने पर हावी मत होने दो। 28 जो चोरी करता आ रहा है, वह आगे चोरी न करे। बल्कि उसे काम करना चाहिए, स्वयं अपने हाथों से कोई उपयोगी काम। ताकि उसके पास, जिसे आवश्यकता है, उसके साथ बाँटने को कुछ हो सके।

29 तुम्हारे मुख से कोई अनुचित शब्द नहीं निकलना चाहिए, बल्कि लोगों के विकास के लिए जिसकी अपेक्षा है, ऐसी उत्तम बात ही निकलनी चाहिए, ताकि जो सुनें उनका उससे भला हो। 30 परमेश्वर की पवित्र आत्मा को दुःखी मत करते रहो क्योंकि परमेश्वर की सम्पत्ति के रूप में तुम पर छुटकारे के दिन के लिए आत्मा के साथ मुहर लगा दिया गया है। 31 समूची कड़वाहट, झुँझलाहट, क्रोध, चीख-चिल्लाहट और निन्दा को तुम अपने भीतर से हर तरह की बुराई के साथ निकाल बाहर फेंको। 32 परस्पर एक दूसरे के प्रति दयालु और करुणावान बनो। तथा आपस में एक दूसरे के अपराधों को वैसे ही क्षमा करो जैसे मसीह के द्वारा तुम को परमेश्वर ने भी क्षमा किया है।

प्यारे बच्चों के समान परमेश्वर का अनुकरण करो। प्रेम के साथ जीओ। ठीक वैसे ही जैसे मसीह ने हमसे प्रेम किया है और अपने आप को मधुर-गंध-भेंट के रूप में, हमारे लिए परमेश्वर को अर्पित कर दिया है।

तुम्हारे बीच व्यभिचार और हर किसी तरह की अपवित्रता अथवा लालच की चर्चा तक नहीं चलनी चाहिए। जैसा कि संत जनों के लिए उचित ही है। तुममें न तो अश्लील भाषा का प्रयोग होना चाहिए, न मूर्खतापूर्ण बातें या भद्दा हँसी ठट्टा। ये तुम्हारी अनुकूल नहीं हैं। बल्कि तुम्हारे बीच धन्यवाद ही दिये जायें। क्योंकि तुम निश्चय के साथ यह जानते हो कि ऐसा कोई भी व्यक्ति जो दुराचारी है, अपवित्र है अथवा लालची है, जो एक मूर्ति पूजक होने जैसा है। मसीह के और परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पा सकता।

देखो, तुम्हें कोरे शब्दों से कोई छल न ले। क्योंकि इन बातों के कारण ही आज्ञा का उल्लंघन करने वालों पर परमेश्वर का कोप होने को है। इसलिए उनके साथी मत बनो। यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि एक समय था जब तुम अंधकार से भरे थे किन्तु अब तुम प्रभु के अनुयायी के रूप में ज्योति से परिपूर्ण हो। इसलिए प्रकाश पुत्रों का सा आचरण करो। हर प्रकार के धार्मिकता, नेकी और सत्य में ज्योति का प्रतिफलन दिखायी देता है। 10 हर समय यह जानने का जतन करते रहो कि परमेश्वर को क्या भाता है। 11 ऐसे काम जो अधंकारपूर्ण है, उन बेकार के कामों में हिस्सा मत बटाओ बल्कि उनका भाँडा-फोड़ करो। 12 क्योंकि ऐसे काम जिन्हें वे गुपचुप करते हैं, उनके बारे में की गयी चर्चा तक लज्जा की बात है। 13 ज्योति जब प्रकाशित होती है तो सब कुछ दृश्यमान हो जाता है 14 और जो कुछ दृश्यमान हो जाता है, वह स्वयं ज्योति ही बन जाता है। इसीलिए हमारा भजन कहता है:

“अरे जाग, हे सोने वाले!
    मृतकों में से जी उठ बैठ,
तेरे ही सिर स्वयं मसीह प्रकाशित होगा।”

15 इसलिए सावधानी के साथ देखते रहो कि तुम कैसा जीवन जी रहे हो। विवेकहीन का सा आचरण मत करो, बल्कि बुद्धिमान का सा आचरण करो। 16 जो हर अवसर का अच्छे कर्म करने के लिये पूरा-पूरा उपयोग करते हैं, क्योंकि ये दिन बुरे हैं 17 इसलिए मूर्ख मत बनो बल्कि यह जानो कि प्रभु की इच्छा क्या है। 18 मदिरा पान करके मतवाले मत बने रहो क्योंकि इससे कामुकता पैदा होती है। इसके विपरीत आत्मा से परिपूर्ण हो जाओ। 19 आपस में भजनों, स्तुतियों और आध्यात्मिक गीतों का, परस्पर आदानप्रदान करते रहो। अपने मन में प्रभु के लिए गीत गाते उसकी स्तुति करते रहो। 20 हर किसी बात के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम पर हमारे परमपिता परमेश्वर का सदा धन्यवाद करो।

पत्नी और पति

21 मसीह के प्रति सम्मान के कारण एक दूसरे को समर्पित हो जाओ।

22 हे पत्नियो, अपने-अपने पतियों के प्रति ऐसे समर्पित रहो, जैसे तुम प्रभु को समर्पित होती हो। 23 क्योंकि अपनी पत्नी के ऊपर उसका पति ही प्रमुख है। वैसे ही जैसे हमारी कलीसिया का सिर मसीह है। वह स्वयं ही इस देह का उद्धार करता है। 24 जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियों को सब बातों में अपने अपने पतियों के प्रति समर्पित रहना चाहिए।

25 हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम करो। वैसे ही जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आपको उसके लिये बलि दे दिया। 26 ताकि वह उसे प्रभु की सेवा में जल में स्नान करा के पवित्र कर हमारी घोषणा के साथ परमेश्वर को अर्पित कर दे। 27 इस प्रकार वह कलीसिया को एक ऐसी चमचमाती दुल्हन के रूप में स्वयं के लिए प्रस्तुत कर सकता है जो निष्कलंक हो, झुरियों से रहित हो या जिसमें ऐसी और कोई कमी न हो। बल्कि वह पवित्र हो और सर्वथा निर्दोष हो।

28 पतियों को अपनी-अपनी पत्नियों से उसी प्रकार प्रेम करना चाहिए जैसे वे स्वयं अपनी देहों से करते हैं। जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है, वह स्वयं अपने आप से ही प्रेम करता है। 29 कोई अपनी देह से तो कभी घृणा नहीं करता, बल्कि वह उसे पालता-पोसता है और उसका ध्यान रखता है। वैसे ही जैसे मसीह अपनी कलीसिया का 30 क्योंकि हम भी तो उसकी देह के अंग ही हैं। 31 शास्त्र कहता है: “इसीलिए एक पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से बंध जाता है और दोनों एक देह हो जाते हैं।”(B) 32 यह रहस्यपूर्ण सत्य बहुत महत्वपूर्ण है और मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह मसीह और कलीसिया पर भी लागू होता है। 33 सो कुछ भी हो, तुममें से हर एक को अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे तुम स्वयं अपने आपको करते हो। और एक पत्नी को भी अपने पति का डर मानते हुए उसका आदर करना चाहिए।

बच्चे और माता-पिता

हे बालकों, प्रभु में आस्था रखते हुए माता-पिता की आज्ञा का पालन करो क्योंकि यही उचित है। “अपने माता-पिता का सम्मान कर।”(C) यह पहली आज्ञा है जो इस प्रतिज्ञा से भी युक्त है, “तेरा भला हो और तू धरती पर चिरायु हो।”(D)

और हे पिताओं, तुम भी अपने बालकों को क्रोध मत दिलाओ बल्कि प्रभु से मिली शिक्षा और निर्देशों को देते हुए उनका पालन-पोषण करो।

सेवक और स्वामी

हे सेवको, तुम अपने सांसारिक स्वामियों की आज्ञा निष्कपट हृदय से भय और आदर के साथ उसी प्रकार मानो जैसे तुम मसीह की आज्ञा मानते हो। केवल किसी के देखते रहते ही काम मत करो जैसे तुम्हें लोगों के समर्थन की आवश्यकता हो। बल्कि मसीह के सेवक के रूप में काम करो जो अपना मन लगाकर परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं। उत्साह के साथ एक सेवक के रूप में ऐसे काम करो जैसे मानो तुम लोगों की नहीं प्रभु की सेवा कर रहे हो। याद रखो, तुममें से हर एक, चाहे वह सेवक या स्वतन्त्र है यदि कोई अच्छा काम करता है, तो प्रभु से उसका प्रतिफल पायेगा।

हे स्वामियों, तुम भी अपने सेवकों के साथ वैसा ही व्यवहार करो और उन्हें डराना-धमकाना छोड़ दो। याद रखो, उनका और तुम्हारा स्वामी स्वर्ग में है और वह कोई पक्षपात नहीं करता।

प्रभु का अभेद्य कवच धारण करो

10 मतलब यह कि प्रभु में स्थित होकर उसकी असीम शक्ति के साथ अपने आपको शक्तिशाली बनाओ। 11 परमेश्वर के सम्पूर्ण कवच को धारण करो। ताकि तुम शैतान की योजनाओं के सामने टिक सको। 12 क्योंकि हमारा संघर्ष मनुष्यों से नहीं है, बल्कि शासकों, अधिकारियों इस अन्धकारपूर्ण युग की आकाशी शक्तियों और अम्बर की दुष्टात्मिक शक्तियों के साथ है। 13 इसलिए परमेश्वर के सम्पूर्ण कवच को धारण करो ताकि जब बुरे दिन आयें तो जो कुछ सम्भव है, उसे कर चुकने के बाद तुम दृढ़तापूर्वक अडिग रह सको।

14-15 सो अपनी कमर पर सत्य का फेंटा कस कर धार्मिकता की झिलम पहन कर तथा पैरों में शांति के सुसमाचार सुनाने की तत्परता के जूते धारण करके तुम लोग अटल खड़े रहो। 16 इन सब से बड़ी बात यह है कि विश्वास को ढाल के रूप में ले लो। जिसके द्वारा तुम उन सभी जलते तीरों को बुझा सकोगे, जो बदी के द्वारा छोड़े गये हैं। 17 छुटकारे का शिरस्त्राण पहन लो और परमेश्वर के संदेश रूपी आत्मा की तलवार उठा लो। 18 हर प्रकार की प्रार्थना और निवेदन सहित आत्मा की सहायता से हर अवसर पर विनती करते रहो। इस लक्ष्य से सभी प्रकार का यत्न करते हुए सावधान रहो। तथा सभी संतों के लिये प्रार्थना करो।

19 और मेरे लिये भी प्रार्थना करो कि मैं जब भी अपना मुख खोलूँ, मुझे एक सुसंदेश प्राप्त हो ताकि निर्भयता के साथ सुसमाचार के रहस्यपूर्ण सत्य को प्रकट कर सकूँ। 20 इसी के लिए मैं ज़ंजीरों में जकड़े हुए राजदूत के समान सेवा कर रहा हूँ। प्रार्थना करो कि मैं, जिस प्रकार मुझे बोलना चाहिए, उसी प्रकार निर्भयता के साथ सुसमाचार का प्रवचन कर सकूँ।

अंतिम नमस्कार

21 तुम भी, मैं कैसा हूँ और क्या कर रहा हूँ, इसे जान जाओ। सो तुखिकुस तुम्हें सब कुछ बता देगा। वह हमारा प्रिय बंधु है और प्रभु में स्थित एक विश्वासपूर्ण सेवक है 22 इसीलिए मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूँ ताकि तुम मेरे समाचार जान सको और इसलिए भी कि वह तुम्हारे मन को शांति दे सके।

23 हे भाइयों, तुम सब को परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से विश्वास शांति और प्रेम प्राप्त हो। 24 जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से अमर प्रेम रखते हैं, उन पर परमेश्वर का अनुग्रह होता है।

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