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Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)
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नीतिवचन 22-23

22 अच्छा नाउँ अपार धन पावइ स जोग्ग अहइ। चाँदी, सोना स, तारीफ क पात्र होब जियादा उत्तिम अहइ।

धनियन मँ अउर निर्धनन मँ इ एक समता अहइ। यहोवा ही एन सबहिं क सिरजनहार अहइ।

कुसल जन जब कउनो विपत्ति क लखत ह, ओका बचइ बरे एहर ओहर होइ जात ह मुला मूरख उहइ राहे पइ बढ़त ही जात ह। अउर उ एकरे बरे दुःख ही उठत ह।

जब मनई विनम्र होत ह अउ यहोवा क भय करत ह उ धन-दौलत, आदर अउर जिन्नगी पाइहीं।

कुटिल क राहन काँटन स भरी होत ह अउर हुआँ पइ फंदन फइला होत ही; मुला जउन आतिमा क रच्छा करत ह उ तउ ओनसे दूर ही रहत ह।

बच्चन क जबकि उ छोटा अहइ जिन्नगी क नीक राह क सिच्छा दइ। तउ उ बुढ़ापा मँ भी ओहसे भटकी नाहीं।

धनी दरिद्रन पइ सासन करत हीं। उधार लेइवाला, देइवाल क दास होत ह।

अइसा मनई जउन दुट्ठता क बीज बोवत ह उ तउ संकट क फसल काटी; अउर ओकर किरोध क लाठी नस्ट होइ जाइ।

उदार मने क मनई खुद ही धन्न होइ, काहेकि उ आपन भोजन गरीब जने क संग बाँटिके खात ह।

10 गुस्ताख मनई जउन कि कउनो क सम्मान नाहीं देत ह क दूर करा तउ कलह दूर होइ। एहसे झगड़ा अउ अपमान मिट जात हीं।

11 उ जउन पवित्तर मने स पिरेम करत ह अउर जेकर वाणी मनोरम होत ह ओकर तउ राजा भी मीत बन जात ह।

12 यहोवा सदा विवेक क धियान राखत ह; मुला उ बिस्सासघाती क कार्य क नास करत ह।

13 काम नाहीं करइ क बहाना बनावत भवा आलसी कहत ह, “बाहेर सेर बइठा अहइ, होइ सकत ह कि गलियन मँ मोका मार डावा जाइ।”

14 बिभिचार क पाप गहिर गढ़ा क नाईं अहइ। यहोवा ओहसे बहोतइ कोहाइ जाइ जउन भी इ मँ गिरी।

15 लरिकन सैतानी करत रहत हीं; मुला अनुसासन क छड़ी ही सैतानी दूर कइ देत ह।

16 अइसा मनई जउन आपन धन बढ़ावइ बरे गरीब पइ अत्याचार करत ह; अउर उ, जउन धनी क उपहार देत ह, दुइनउँ ही अइसे जन अहइ जउन निर्धन होइ जात हीं।

तीस विवेक स भरी कहावतन

17 बुद्धिमान क कहावतन सुना अउर धियान द्या। ओह पइ धियान लगावा जउन मइँ सिखावत हउँ। 18 अगर तू ओनका आपन मने मँ बसाइ ल्या तउ बहोत नीक होइ; तू ओनका हरदम आपन ओंठन पइ तैयार राखा। 19 मइँ तोहका आजु सिच्छा देत हउँ ताकि तोहार यहोवा पइ बिस्सास पैदा होइ। 20 इ सबइ तीस सीखन मइँ तोहरे बरे रचेउँ, इ सबइ बचन सम्मति अउर गियान क अहइँ। 21 उ सबइ बचन जउन महत्वपूर्ण होतिन, इ सबइ सत्य बचन तोहका सिखइहीं ताकि तू ओका उचित जवाब दइ सका, जउन तोहका पठएस ह।

—1—

22 तू गरीब क सोसण जिन करा। एह बरे कि उ पचे बस दरिद्र अहइँ; अउर कंगाले क कचहरी मँ जिन हीचा। 23 काहेकि परमेस्सर ओनकर सुनवाई करी अउर जउन ओनका लूटेन ह उ ओनका लूट लेइ।

—2—

24 तू किरोधी सुभाव क मनइयन क संग कबहुँ मिताई जिन करा अउर ओकरे संग, आपन क जिन जोड़ा जेका हाली किरोध आइ जात ह। 25 नाहीं तउ तू भी ओकरे राहे चालब्या अउर आपन क जालि मँ फँसाइ बइठब्या।

—3—

26 तू कउनो दूसर क कर्ज बरे जमानतदार नाहीं बना। 27 जदि ओका चुकावइ मँ तोहार साधन चुकिहीं तउ खाले क बिस्तर तलक तोहसे छोर लीन्ह जाइ।

—4—

28 तोहरे धरती क सम्पत्ति जेकर चउहद्दिन तोहार पुरखन निर्धारित किहन उस सीमा रेखा कबहुँ भी जिन हिलावा।

—5—

29 अगर कउनो मनई आपन कारज मँ कुसल अहइ, तउ उ राजा लोगन क सेवा करइ क जोग्ग अहइ। अइसे मनइयन बरे जेनकर कछू महत्व नाहीं ओका काम करइ क जरूरत नाहीं अहइ।

—6—

23 जब तू कउनो अधिकारी क संग खइया क बरे बइठा तउ एकर धियान राखा, कि कउन तोहरे समन्वा अहइ। अगर तू पेटू अहा तउ खाना पइ नियंत्रण राखा। ओकरे स्वादिस्ट पकवानन क लालसा जिन करा काहेकि उ खइया धोका बाज़ अहइ।

—7—

धनवान बनइ क काम कइ कइके आपने क जिन थकावा। तू संयम देखावइ क, बुद्धि अपनाइ ल्या। इ सबइ धन सम्पत्तियन लखत हीं लखत लुप्त होइ जइहीं निहचय ही आपन पंखन क फइलाइके उ पचे गरूड़ क नाईं अकासे मँ उड़ि जइहीं।

—8—

अइसे मनई क संग जउन स्वार्थी अहइ भोजन जिन करा। तू ओकरे स्वादिस्ट पकवाने क लालसा जिन करा। काहेकि उ अइसा मनई अहइ जउन मन मँ हरदम ओकरी कीमत क हिंसाब लगावत रहत ह; तोहसे तउ उ कहत ह, “तू खा अउर पिआ” मुला उ मने स तोहरे संग नाहीं अहइ। जउन कछू थोड़ा बहोत तू ओकर खाइ चुका अहा, तोहका तउ उ भी उलटइ पड़ी अउर उ पचे तोहार कहे भए आदर स पूर्ण वचन बियर्थ चला जइहीं।

—9—

तू मूरख क संग बातचीत जिन करा, काहेकि उ तोहरे विवेक स भरे बचनन स धिना ही करी।

—10—

10 पुराने जमाने क सीमा क पत्थर क जिन सरका। अउर अनाथे क भुइयाँ क जिन हड़पा। 11 काहेकि ओनकर संरच्छक सामरथ स पूरा अहइ, तोहरे खिलाफ ओनकर मुकदमा उ लड़ी।

—11—

12 तू आपन मन सीख क बातन मँ लगावा। तू गियान स भरे बचनन पइ कान द्या।

—12—

13 तू कउनो गदेला क अनुसासित करइ मँ कबहुँ जिन रोका अगर तू कबहुँ ओका छड़ी स सजा देब्या तउ उ एहसे नाहीं मरी। 14 तू छड़ी स पीटिके ओका अउर ओकर जिन्नगी क मउत स बचाइ लेब्या।

—13—

15 हे मोर पूत, जदि तोहार मन विवेक स पूर्ण रहत ह तउ मोर मन भी आनंद स पूर्ण रही। 16 अउर जदि तोहार ओंठ उचित बोलत हीं, तउ मइँ बहोत खुस होब्या।

—14—

17 तू आपन मने मँ भी पापे स भरा मनइयन क बरे जलन जिन करा। मुला तू एकर बजाए यहोवा स सदा डरा। 18 तउ तोहार लगे भविस्य होई, अउर तोहार आसा कबहुँ ध्वस्त नाहीं होई।

—15—

19 मोर पूत सुना! अउर विवेकी बनि जा अउर आपन मन क नेकी क राहे पइ चलावा। 20 तू ओनके संग जिन रहा जउन पियक्कड़ अहइँ, अथवा अइसे, जउन ठूँस ठूँस गोस खात हीं। 21 काहेकि इ पचे पियक्कड़ अउर इ सबइ पेटू दलिद्र होइ जइहीं, अउर इ ओनकर खुमारी, ओनका चिथड़न पहिरइहीं।

—16—

22 आपन बाप क सुना जउन तोहका जिन्नगी दिहेस ह, अपनी महतारी क निरादर जिन करा जब उ बुढ़िया होइ जाइ। 23 सच्चाई क खरीद ल्या अउर ओका जिन बेचा। अइसे ही विवेक, अनुसासन अउ समुझ क भी खरीद ल्या। 24 नेक पूत क बाप महा आनंद मँ रहत अउर जेकर पूत विवेक स पूर्ण होत ह उ तउ ओहमाँ ही खुस रहत ह। 25 तोहार महतारी अउ तोहार बाप क आनंद प्राप्त होइ अउर तोहार महतारी जउन तोहका जन्म दिहस, ओका खुसी मिलत रहइ।

—17—

26 मोर पूत, मोहमाँ मन लगावा अउर तोहार आँखिन मोह पइ टिकी रहइँ। मोका आदर्स माना। 27 एक वेस्या गहिर गड़हा होत ह। अउर एक बदकार मेहरारु मुसीबत स भरा कुआँ अहइ। 28 उ घात मँ रहत ह जइसे कउनो डाकू अउर उ लोगन मँ बिस्सास हीनन क संख्या बढ़ावत ह।

—18—

29 कउन बिपत्ति मँ अहइ? कउन दुःखे मँ पड़ा अहइ? कउन झगड़न-टंटन मँ अहइ? कउने क सिकाइतन अहइँ? कउन क घाव अहइ? केकर आँखिन लाल अहइँ? 30 उ पचे जउन लगातार दाखरस पिअत रहत हीं अउर जेनमाँ मसाला मिली भइ दाखरस क ललक होत ह।

31 जब दाखरस लाल होइ, अउर पिआलन मँ झिलमिलात होइ अउ धीरे धीरे डावत जात होइ, ओका ललचाही आँखिन स जिन लखा। 32 सर्प क समान उ डसत, आखीर मँ जहर भरि देत ह जइसे नाग भरि देत ह।

33 तोहरी आँखिन मँ अजीब दृस्य तैरइ लगिहीं, तोहार मन उल्टी-सोझ बातन मँ उलझी। 34 तू अइसा होइ जाइ, जइसे उफनत सागरे पइ सोवत रहत होइ अउर जइसे मस्तूल क सिखर ओलरा होइ। 35 तू कहब्या, “उ पचे मोका मारेन पर मोका तउ दर्द क अनुभव नाहीं हुआ। उ पचे मोका पीटेन, पर मोका याद ही नाहीं मइँ उठी क लायक नाहीं हउँ, मोका पिअइ क अउर द्या।”

Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)

Awadhi Bible: Easy-to-Read Version. Copyright © 2005 Bible League International.