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Read the Bible from start to finish, from Genesis to Revelation.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
प्रकाशन 13-16

13 और मैंने समुद्र में से एक हिंसक पशु को ऊपर आते देखा. उसके दस सींग तथा सात सिर थे. दसों सींगों पर एक-एक मुकुट था तथा उसके सिरों पर परमेश्वर की निन्दा के शब्द लिखे थे. इस पशु का शरीर चीते जैसा, पांव भालू जैसे और मुँह सिंह जैसा था. उस परों वाले साँप ने अपनी शक्ति, अपना सिंहासन तथा राज्य का सारा अधिकार उसे सौंप दिया. उसके एक सिर को देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो उस पर जानलेवा हमला किया गया हो और वह घाव अब भर चुके है. अचम्भा करते हुए सारी पृथ्वी के लोग इस पशु के पीछे-पीछे चलने लगे और उन्होंने उस परों वाले साँप की पूजा-अर्चना की क्योंकि उसने शासन का अधिकार उस पशु को सौंप दिया था. वे यह कहते हुए उस पशु की भी पूजा-अर्चना करने लगे, “कौन है इस पशु के समान? किसमें है इससे लड़ने की क्षमता?”

उसे डींग मारने तथा परमेश्वर की निन्दा करने का अधिकार तथा बयालीस माह तक शासन करने की अनुमति दी गई. पशु ने परमेश्वर, उनके नाम तथा उनके निवास अर्थात् स्वर्ग और उन सबकी, जो स्वर्ग में रहते हैं, निन्दा करना शुरु कर दिया. उसे पवित्र लोगों पर आक्रमण करने तथा उन्हें हराने और सभी कुलों, प्रजातियों, भाषाओं तथा राष्ट्रों पर अधिकार दिया गया. पृथ्वी पर रहने वाले उसकी पूजा-अर्चना करेंगे—वे सभी जिनके नाम सृष्टि की शुरुआत ही से उस मेमने की जीवन-पुस्तक में, जो बलि किया गया था, लिखे नहीं गए.

जिसके कान हों वह सुन ले:

10 जो कैद के लिए लिखा गया है,
वह बन्दीगृह में जाएगा; जो तलवार से मारता है,
    उसे तलवार ही से मारा जाएगा.

इसके लिए आवश्यक है पवित्र लोगों का धीरज और विश्वास.

झूठा भविष्यद्वक्ता—हिंसक पशु का दास

11 तब मैंने एक अन्य हिंसक पशु को पृथ्वी में से ऊपर आते हुए देखा, जिसके मेंढ़े के समान दो सींग थे. वह परों वाले साँप के शब्द में बोला करता था. 12 वह पहले से लिखे हिंसक पशु के प्रतिनिधि के रूप में उसके राज्य के अधिकार का उपयोग कर रहा था. वह पृथ्वी तथा पृथ्वी पर रहने वालों को उस पहले से लिखे हिंसक पशु की, जिसका घाव भर चुका था, पूजा-अर्चना करने के लिए मजबूर कर रहा था. 13 वह चमत्कार भरे चिह्न दिखाता था. यहाँ तक कि वह लोगों के देखते ही देखते आकाश से पृथ्वी पर आग बरसा देता था. 14 इन चमत्कार भरे चिह्नों द्वारा, जो वह उस पशु के प्रतिनिधि के रूप में दिखा रहा था, वह पृथ्वी पर रहने वालों को छल रहा था. उसने पृथ्वी पर रहने वालों से उस पशु की मूर्ति बनाने के लिए कहा, जो तलवार के जानलेवा हमले के बाद भी जीवित रहा. 15 उसे उस पशु की मूर्ति को ज़िन्दा करने की क्षमता दी गई कि वह मूर्ति बातचीत कर सके तथा उनका नाश करवा सके, जिन्हें उस मूर्ति की पूजा-अर्चना करना स्वीकार न था. 16 उसने साधारण और विशेष, धनी-निर्धन; स्वतन्त्र या दास, सभी को दायें हाथ या माथे पर एक चिह्न अंकित करवाने के लिए मजबूर किया 17 कि उसके अलावा कोई भी, जिस पर उस पशु का नाम या उसके नाम का अंक अंकित है, लेन-देन न कर सके.

18 इसके लिए आवश्यक है बुद्धिमानी. वह, जिसमें समझ है, उस पशु के अंकों का जोड़ कर ले. यह अंक मनुष्य के नाम का है, जिसकी संख्या का जोड़ है 666.

मेमना तथा 1,44,000

14 तब मैंने देखा कि वह मेमना त्सियोन पर्वत पर खड़ा है और उसके साथ 1,44,000 व्यक्ति भी हैं, जिनके मस्तक पर उसका तथा उसके पिता का नाम लिखा हुआ है. तब मुझे स्वर्ग से एक शब्द सुनाई दिया, जो प्रचण्ड लहरों की आवाज़ के समान तथा जो बड़ी गर्जन-सी आवाज़ के समान था. यह शब्द, जो मैंने सुना, ऐसा था मानो अनेक वीणा बजानेवाले वीणा बजा रहे हों. वे सिंहासन के सामने, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के सामने एक नया गीत गा रहे थे. उन 1,44,000 व्यक्तियों के अलावा, जो सारी मानवजाति में से छुड़ाए गए थे, किसी भी अन्य में यह गीत सीखने की योग्यता ही न थी. ये वे हैं, जो स्त्री-संगति से अशुद्ध नहीं हुए हैं क्योंकि इन्होंने स्वयं को स्त्री-संगति से अछूता रखा है. ये ही हैं वे, जो हमेशा मेमने के पीछे चलते हैं—चाहे मेमना कहीं भी जाए. इन्हें परमेश्वर तथा मेमने के लिए उपज के पहिले फल के समान मनुष्यों में से छुड़ाया गया है. झूठ इनके मुख से कभी न निकला—ये निष्कलंक हैं.

तीन स्वर्गदूत

तब मैंने बीच आकाश में एक स्वर्गदूत को उड़ते हुए देखा, जिसके पास सभी पृथ्वी पर रहने वालों—हर एक राष्ट्र, कुल, भाषा तथा प्रजाति में प्रचार के लिए अनन्त काल का ईश्वरीय सुसमाचार था. उसने ऊँचे शब्द में कहा, “परमेश्वर से डरो. उनकी महिमा करो क्योंकि न्याय का समय आ पहुँचा है. आराधना उनकी करो, जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र तथा जल के सोतों को बनाया है.”

पहिले स्वर्गदूत के बाद दूसरा स्वर्गदूत यह कहते हुए आया, “सर्वनाश हो गया! बड़े बाबेल का सर्वनाश हो गया! बाबेल, जिसने सारे राष्ट्रों को अपने व्यभिचार की मदहोशी का दाख़रस पिलाया है.”

इन दोनों के बाद एक तीसरा स्वर्गदूत ऊँचे शब्द में यह कहता हुआ आया, “यदि कोई उस पशु तथा उसकी मूर्ति की पूजा-अर्चना करेगा तथा अपने मस्तक या हाथ पर वह चिह्न अंकित करवाएगा, 10 वह भी परमेश्वर के क्रोध का दाख़रस पिएगा, जो परमेश्वर के क्रोध के प्याले में ही उण्डेली गई है. उसे पवित्र स्वर्गदूतों तथा मेमने की उपस्थिति में आग व गन्धक की घोर पीड़ा दी जाएगी. 11 वे, जो उस पशु तथा उसकी मूर्ति की पूजा-अर्चना करते हैं तथा जिन पर उसके नाम का चिह्न अंकित है, उनकी पीड़ा का धुआँ निरन्तर उठता रहेगा तथा उन्हें न तो दिन में चैन मिलेगा और न रात में.” 12 इसके लिए आवश्यक है पवित्र लोगों का धीरज, जो परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं तथा जिनका विश्वास मसीह येशु में है.

13 तब मुझे स्वर्ग से एक शब्द यह आज्ञा देता हुआ सुनाई दिया, “लिखो: धन्य होंगे वे मृत, अब से जिनकी मृत्यु प्रभु में होगी.”

“सच है!” आत्मा ने पुष्टि की. “वे अपने सारे परिश्रम से विश्राम पाएँगे क्योंकि उनके भले काम उनके साथ हैं.”

पृथ्वी पर उपज तथा दाख इकट्ठा करना

14 इसके बाद मैंने एक उज्ज्वल बादल देखा. उस पर मनुष्य के पुत्र समान कोई बैठा था, जिसके सिर पर सोने का मुकुट तथा हाथ में पैनी हसिया थी. 15 एक दूसरा स्वर्गदूत मन्दिर से बाहर निकला और उससे, जो बादल पर बैठा था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर फसल काटिए, कटनी का समय आ पहुँचा है क्योंकि पृथ्वी की फसल पक चुकी है.” 16 तब उसने, जो बादल पर बैठा था, अपना हसिया पृथ्वी के ऊपर घुमाया तो पृथ्वी की फसल की कटनी पूरी हो गई.

17 तब एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर से, जो स्वर्ग में है, बाहर निकला. उसके हाथ में भी पैना हँसिया था. 18 तब एक अन्य स्वर्गदूत, जिसे आग पर अधिकार था, वेदी से बाहर निकला तथा उस स्वर्गदूत से, जिसके हाथ में पैना हसिया था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर पृथ्वी की पूरी दाख की फसल के गुच्छे इकट्ठा करो क्योंकि दाख पक चुकी है.” 19 तब उस स्वर्गदूत ने अपना हसिया पृथ्वी की ओर घुमाया और पृथ्वी की सारी दाख इकट्ठा कर परमेश्वर के क्रोध के विशाल दाख के कुण्ड में फेंक दी. 20 तब नगर के बाहर दाख रसकुण्ड में दाख को रौंदा गया. उस रसकुण्ड में से जो लहू बहा, उसकी लम्बाई 300 किलोमीटर तथा ऊँचाई घोड़े की लगाम जितनी थी.

मोशेह तथा मेमने का गीत

15 तब मैंने स्वर्ग में एक अद्भुत और आश्चर्यजनक दृश्य देखा: सात स्वर्गदूत सात अन्तिम विपत्तियाँ लिए हुए थे—अन्तिम इसलिए कि इनके साथ परमेश्वर के क्रोध का अन्त हो जाता है. तब मुझे ऐसा अहसास हुआ मानो मैं एक काँच की झील को देख रहा हूँ, जिसमें आग मिला दी गई हो. मैंने इस झील के तट पर उन्हें खड़े हुए देखा, जिन्होंने उस हिंसक पशु, उसकी मूर्ति तथा उसके नाम की संख्या पर विजय प्राप्त की थी. इनके हाथों में परमेश्वर द्वारा दी हुई वीणा थीं. वे परमेश्वर के दास मोशेह तथा मेमने का गीत गा रहे थे:

“अद्भुत और असाधारण काम हैं आपके,
    याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
    धर्मी और सच्चे हैं उद्धेश्य आपके,
    राष्ट्रों के राजन!
कौन है,
    प्रभु, जिसमें आपके प्रति श्रद्धा न होगी,
कौन है, जो आपकी महिमा न करेगा?
    मात्र आप ही हैं पवित्र.
सभी राष्ट्र आकर आपका धन्यवाद करेंगे क्योंकि आपके न्याय के कार्य प्रकट हो चुके हैं.”
सात विपत्तियां लिए हुए सात स्वर्गदूत.

इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में मन्दिर, जो साक्ष्यों का तम्बू है, खोल दिया गया. मन्दिर में से वे सातों स्वर्गदूत, जो सात विपत्तियाँ लिए हुए थे, बाहर निकले. वे मलमल के स्वच्छ-उज्ज्वल वस्त्र धारण किए हुए थे तथा उनकी छाती पर सोने की कमरबन्द थी. तब चार जीवित प्राणियों में से एक ने उन सात स्वर्गदूतों को सनातन परमेश्वर के क्रोध से भरे सात सोने के कटोरे दे दिए. मन्दिर परमेश्वर की आभा तथा सामर्थ्य के धुएँ से भर गया और उस समय तक मन्दिर में कोई भी प्रवेश न कर सका, जब तक उन सातों स्वर्गदूतों द्वारा उण्डेली गई सातों विपत्तियाँ समाप्त न हो गईं.

परमेश्वर के क्रोध के सात कटोरे

16 तब मुझे मन्दिर में से एक ऊँचा शब्द उन सात स्वर्गदूतों को सम्बोधित करते हुए सुनाई दिया: “जाओ! परमेश्वर के क्रोध के सातों कटोरों को पृथ्वी पर उण्डेल दो.” इसलिए पहले स्वर्गदूत ने जाकर अपना कटोरा पृथ्वी पर उण्डेल दिया. परिणामस्वरूप उन व्यक्तियों को, जिन पर उस हिंसक पशु की मुहर थी तथा जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे, कष्टदायी और घातक फोड़े निकल आए.

दूसरे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा समुद्र पर उण्डेला तो समुद्र मरे हुए व्यक्ति के लहू जैसा हो गया और समुद्र के हर एक प्राणी की मृत्यु हो गई.

तीसरे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा नदियों और पानी के सोतों पर उण्डेला तो वे लहू बन गए. तब मैंने सारे जल के अधिकारी स्वर्गदूत को यह कहते हुए सुना:

“आप, जो हैं, जो थे, धर्मी हैं, परम पवित्र!
    उचित हैं आपके निर्णय!
    इसलिए कि उन्होंने पवित्र लोगों और भविष्यद्वक्ताओं का लहू बहाया,
पीने के लिए उन्हें आपने लहू ही दे दिया.
वे इसी योग्य हैं.”

तब मैंने समर्थन में वेदी को यह कहते हुए सुना:

“सच है, याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
    उचित और धर्मी हैं आपके निर्णय!”

चौथे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा सूर्य पर उण्डेला तो सूर्य को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह मनुष्यों को अपनी गर्मी से झुलसा दे. इसलिए मनुष्य उस बहुत गर्म ताप से झुलस गए और वे परमेश्वर के नाम की, जिन्हें इन सब विपत्तियों पर अधिकार है, शाप देने लगे. उन्होंने पश्चाताप कर परमेश्वर की महिमा करने से इनकार किया.

10 पाँचवें स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा उस हिंसक पशु के सिंहासन पर उण्डेला तो उसके साम्राज्य पर अन्धकार छा गया. पीड़ा के कारण मनुष्य अपनी जीभ चबाने लगे. 11 पीड़ा और फोड़ों के कारण वे स्वर्ग के परमेश्वर को शाप देने लगे. उन्होंने अपने कुकर्मों से पश्चाताप करने से इनकार किया.

12 छठे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा महानद यूफ़्रातेस पर उण्डेला तो उसका जल सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिए मार्ग तैयार हो जाए. 13 तब मैंने तीन अशुद्ध आत्माओं को जो मेंढक के समान थीं; उस परों वाले साँप के मुख से, उस हिंसक पशु के मुख से तथा झूठे भविष्यद्वक्ता के मुख से निकलते हुए देखा. 14 ये वे दुष्टात्मायें है, जो चमत्कार चिह्न दिखाते हुए पृथ्वी के सभी राजाओं को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस न्याय दिवस पर युद्ध करने के लिए इकट्ठा करती हैं.

15 “याद रहे: मैं चोर के समान आऊँगा! धन्य वह है, जो जागता है और अपने वस्त्रों की रक्षा करता है कि उसे लोगों के सामने नग्न होकर लज्जित न होना पड़े.”

16 उन आत्माओं ने राजाओं को उस स्थान पर इकट्ठा किया, जो इब्री भाषा में हरमागेद्दौन कहलाता है.

17 सातवें स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा वायु पर उण्डेला, और मन्दिर के सिंहासन से एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, “पूरा हो गया!” 18 तुरन्त ही बिजली की कौन्ध, गड़गड़ाहट तथा बादलों की गर्जन होने लगी और एक भयन्कर भूकम्प आया. यह भूकम्प इतना शक्तिशाली था कि पृथ्वी पर ऐसा भयन्कर भूकम्प मनुष्य की उत्पत्ति से लेकर अब तक नहीं आया था—इतना शक्तिशाली था यह भूकम्प 19 कि महानगर फट कर तीन भागों में बंट गया. सभी राष्ट्रों के नगर धराशायी हो गए. परमेश्वर ने बड़े नगर बाबेल को याद किया कि उसे अपने क्रोध की जलजलाहट का दाखरस का प्याला पिलाएं. 20 हर एक द्वीप विलीन हो गया और सभी पर्वत लुप्त हो गए. 21 आकाश से मनुष्यों पर विशालकाय ओले बरसने लगे और एक-एक ओला लगभग 45 किलो का था. ओलों की इस विपत्ति के कारण लोग परमेश्वर को शाप देने लगे क्योंकि यह विपत्ति बहुत असहनीय थी.

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