Book of Common Prayer
3 इसलिए, प्रियजन, प्रभु में आनन्दित रहो. इस विषय पर तुम्हें दोबारा लिखने से मुझे कष्ट नहीं होता परन्तु यह तुम्हारी सुरक्षा की योजना है.
2 कुत्तों, बुरे काम करने वालों तथा अंगों के काट-कूट करने वालों से सावधान रहो 3 क्योंकि वास्तविक ख़तना वाले हम ही हैं, जो परमेश्वर के आत्मा में आराधना करते, मसीह येशु पर गर्व करते तथा शरीर सम्बन्धी कामों पर निर्भर नहीं रहते 4 यद्यपि स्वयं मेरे पास शरीर पर भी निर्भर रहने का कारण हो सकता था.
यदि किसी की यह धारणा है कि उसके लिए शरीर पर भरोसा करने का कारण है तो मेरे पास तो कहीं अधिक है: 5 आठवें दिन ख़तना, इस्राएली राष्ट्रीयता, बिन्यामीन का कुल, इब्रियों में से इब्री, व्यवस्था के अनुसार फ़रीसी, 6 उन्माद [a]में कलीसिया का सतानेवाला और व्यवस्था में बताई गई धार्मिकता के मापदण्डों के अनुसार निष्कलंक!
7 जो कुछ मेरे लिए लाभदायक था, मैंने उसे मसीह के लिए अपनी हानि मान लिया है. 8-9 इससे कहीं अधिक बढ़कर मसीह येशु मेरे प्रभु को जानने के उत्तम महत्व के सामने मैंने सभी वस्तुओं को हानि मान लिया है—वास्तव में मैंने इन्हें कूड़ा मान लिया है कि मैं मसीह को प्राप्त कर सकूँ और मैं उनमें स्थिर हो जाऊँ, जिनके लिए मैंने सभी वस्तुएं खो दीं हैं. अब मेरी अपनी धार्मिकता वह नहीं जो व्यवस्था के पालन से प्राप्त होती है परन्तु वह है, जो मसीह में विश्वास द्वारा प्राप्त होती है—परमेश्वर की ओर से विश्वास की धार्मिकता 10 ताकि मैं उनकी मृत्यु की समानता में होकर उन्हें, उनके पुनरुत्थान की सामर्थ तथा उनकी पीड़ा की सहभागिता को जानूँ 11 कि मैं किसी रीति से मरे हुओं के पुनरुत्थान का भागी बन जाऊँ.
12 इसका अर्थ यह नहीं कि मुझे यह सब उपलब्ध हो चुका है या मैंने सिद्धता प्राप्त कर ली है, परन्तु मैं कोशिश के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा हूँ कि मुझे वह प्राप्त हो जाए, जिसके लिए मसीह येशु ने मुझे पकड़ लिया है. 13 मेरे विचार से मैं इसे अब तक पा नहीं सका हूँ किन्तु हाँ, मैं यह अवश्य कर रहा हूँ: बीती बातों को भुलाते हुए, आगे की ओर बढ़ते हुए 14 मसीह येशु में परमेश्वर की स्वर्गीय बुलाहट के इनाम को प्राप्त करने के लिए निशाने की ओर बढ़ता जाता हूँ.
15 इसलिए हममें से जितने भी आत्मिक क्षेत्र में सिद्ध कहलाते हैं, उनका भी यही विचार हो; किन्तु यदि किसी विषय में तुम्हारा मानना अलग है, परमेश्वर उसे तुम पर प्रकट कर देंगे. 16 फिर भी हमारा स्वभाव उसी नमूने के अनुसार हो, जहाँ तक हम पहुँच चुके हैं.
बपतिस्मा देने वाले योहन का उपदेश
(मारक 1:1-8; लूकॉ 3:1-17)
3 कालान्तर में यहूदिया प्रदेश के जंगल में बपतिस्मा देने वाला योहन आकर यह प्रचार करने लगे, 2 “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग-राज्य पास आ गया है.” 3 यह वही हैं जिनके विषय में भविष्यद्वक्ता यशायाह ने अपने अभिलेख में इस प्रकार संकेत दिया है:
“वह आवाज़, जो जंगल में पुकार-पुकार कर कह रही है,
‘प्रभु का रास्ता समतल-सीधा करो,
उनका मार्ग सरल बनाओ.’”
4 बपतिस्मा देने वाले योहन ऊँट के बालों से बने हुए वस्त्र तथा चमड़े का पटुका पहनते थे और उनका भोजन था टिड्डियाँ तथा वनमधु. 5 येरूशालेम नगर, सारे यहूदिया प्रदेश और यरदन नदी के नज़दीकी क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग उनके पास आने लगे. 6 पाप को मानने के बाद योहन उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया करते थे.
7 जब योहन ने देखा कि अनेक फ़रीसी और सदूकी बपतिस्मा लेने आ रहे हैं, उन्होंने उनकी उल्लाहना करते हुए कहा, “विषैले साँपों की सन्तान! समीप आ रहे क्रोध से भागने की चेतावनी तुम्हें किसने दे दी? 8 अपने स्वभाव द्वारा अपने पश्चाताप की पुष्टि करो. 9 स्वयं को यह कहते हुए धीरज मत दो, ‘हम तो अब्राहाम के वंशज हैं.’ मैं तुम्हें सूचित करना चाहता हूँ कि परमेश्वर अब्राहाम के लिए इन पत्थरों से भी सन्तान उत्पन्न कर सकते हैं. 10 कुल्हाड़ी पहले ही वृक्षों की जड़ पर रखी हुई है. हर एक पेड़, जो उत्तम फल नहीं फलता, काटा जाता और आग में झोंक दिया जाता है.
11 “मैं तो तुम्हें पश्चाताप के लिए पानी से बपतिस्मा दे रहा हूँ किन्तु वह, जो मेरे बाद आ रहे हैं, मुझसे अधिक सामर्थी हैं. मैं तो इस योग्य भी नहीं कि उनकी जूतियाँ उठाऊँ. वह तुम्हें पवित्रात्मा और आग में बपतिस्मा देंगे. 12 सूप उनके हाथ में है. वह अपने खलिहान को अच्छी तरह साफ़ करेंगे, गेहूं को भण्डार में इकट्ठा करेंगे और भूसी को कभी न बुझनेवाली आग में भस्म कर देंगे.”
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