Book of Common Prayer
16 प्रियजन, धोखे में न रहना. 17 हर एक अच्छा वरदान और निर्दोष दान ऊपर से अर्थात् ज्योतियों के पिता की ओर से आता है, जिनमें न तो कोई परिवर्तन है और न अदल-बदल. 18 उन्होंने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कार्यान्वयन में हमें सत्य के वचन के द्वारा नया जीवन दिया है कि हम उनके द्वारा बनाए गए प्राणियों में पहिले फल के समान हों.
वास्तविक कर्तव्यनिष्ठा
19 प्रियजन, यह ध्यान रहे कि तुम सुनने में तत्पर, बोलने में धीर तथा क्रोध में धीमे हो, 20 क्योंकि मनुष्य के क्रोध के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता नहीं मिल सकती. 21 इसलिए सारी मलिनता तथा बैर-भाव का त्याग कर नम्रतापूर्वक उस वचन को ग्रहण करो, जिसे तुम्हारे हृदय में बोया गया है, जो तुम्हारे उद्धार में सामर्थी है. 22 वचन की शिक्षा पर चलने वाले बनो, न कि सिर्फ सुननेवाले, जो स्वयं को धोखे में रखते हैं 23 क्योंकि यदि कोई वचन की शिक्षा का सिर्फ सुननेवाले है किन्तु पालन नहीं करता, वह उस व्यक्ति के समान है, जो अपना मुख दर्पण में देखता है. 24 उसमें उसने स्वयं को देखा और चला गया और तुरन्त ही भूल गया कि कैसा था उसका रूप. 25 किन्तु जिसने निर्दोष व्यवस्था का गहन अध्ययन कर लिया है—जो वस्तुत: स्वतंत्रता का विधान है तथा जो उसी में स्थिर रहता है, वह व्यक्ति सुनकर भूलनेवाला नहीं परन्तु समर्थ पालन करने वाला हो जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने हर एक काम में आशीषित होगा.
26 यदि कोई व्यक्ति अपने आप को भक्त समझता है और फिर भी अपनी जीभ पर लगाम नहीं लगाता, वह अपने मन को धोखे में रखे हुए है और उसकी भक्ति बेकार है. 27 हमारे परमेश्वर और पिता की दृष्टि में बिलकुल शुद्ध और निष्कलंक भक्ति यह है: मुसीबत में पड़े अनाथों और विधवाओं की सुधि लेना तथा स्वयं को संसार के बुरे प्रभाव से निष्कलंक रखना.
प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का उदाहरण
(मत्ति 6:9-13)
11 एक दिन मसीह येशु एक स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे. जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की उनके शिष्यों में से एक ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमको प्रार्थना करना सिखा दीजिए—ठीक जैसे योहन ने अपने शिष्यों को सिखाया है.”
2 मसीह येशु ने उनसे कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो, इस प्रकार किया करो:
“‘हमारे स्वर्गीय पिता!
आपका नाम सभी जगह सम्मानित हो.
आपका राज्य हर जगह स्थापित हो.
3 हमारा रोज़ का भोजन हमें हर दिन दिया कीजिए.
4 हमारे पापों को क्षमा कीजिए.
हम भी उनके पाप क्षमा करते हैं, जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं.
हमें परीक्षा में फँसने से बचाइए.’”
5 “कल्पना करो,” मसीह येशु ने उनसे आगे कहा, “तुममें से किसी का एक मित्र आधी रात में आ कर यह विनती करे, ‘मित्र! मुझे तीन रोटियां दे दो; 6 क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए घर आया है और उसके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’ 7 तब वह अंदर ही से उत्तर दे, ‘मुझे मत सताओ! द्वार बन्द हो चुका है और मेरे बालक मेरे साथ सो रहे हैं. अब मैं उठ कर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.’ 8 मैं जो कह रहा हूँ उसे समझो: हालांकि वह व्यक्ति मित्र होने पर भी भले ही उसे देना न चाहे, फिर भी उस मित्र के बहुत विनती करने पर उसकी ज़रूरत के अनुसार उसे अवश्य देगा.
9 “यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है: विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा 10 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, प्राप्त करता है; हर एक, जो खोजता है, पाता है तथा हर एक, जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.
11 “तुममें कौन पिता ऐसा है, जो अपने पुत्र के मछली माँगने पर उसे साँप दे 12 या अण्डे की विनती पर बिच्छू? 13 जब तुम बुरे होते हुए भी अपने बालकों को सबसे अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता कहीं अधिक बढ़कर उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, पवित्रात्मा क्यों न देंगे!”
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