Book of Common Prayer
दृढ़ बने रहने के लिए प्रोत्साहन
13 किन्तु, प्रियजन, यहाँ तुम्हारे लिए परमेश्वर के सामने हमारा सदैव धन्यवाद देना सही ही है. तुम प्रभु के प्रिय हो क्योंकि परमेश्वर ने प्रारम्भ ही से पवित्रात्मा द्वारा पाप से अलग करके तथा सच में तुम्हारे विश्वास के कारण उद्धार के लिए तुम्हें चुन लिया है. 14 परमेश्वर ने हमारे ईश्वरीय सुसमाचार बताने के द्वारा तुम्हें बुलाया कि तुम हमारे प्रभु मसीह येशु की महिमा में शामिल हो सको. 15 इसलिए, प्रियजन, स्थिर रहो. उन पारम्परिक शिक्षाओं में अटल रहो, जो तुमने हमसे मौखिक रूप से या पत्र के द्वारा प्राप्त की हैं.
16 अब स्वयं हमारे प्रभु मसीह येशु तथा पिता परमेश्वर, जिन्होंने अपने प्रेम में अनुग्रह द्वारा हमें अनन्त धीरज-प्रोत्साहन तथा उत्तम आशा प्रदान की है, 17 तुम्हें हर एक सत्कर्म तथा वचन-सन्देश में मनोबल और प्रोत्साहन प्रदान करें.
प्रार्थना के लिए प्रोत्साहन
7 “विनती करो और वह पूरी की जाएगी, खोजो और तुम पाओगे, द्वार खटखटाओ और वह द्वार तुम्हारे लिए खोला जाएगा 8 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, उसकी विनती पूरी की जाती है, जो खोजता है, वह प्राप्त करता है और वह, जो द्वार खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.
9 “तुममें ऐसा कौन है कि जब उसका पुत्र उससे रोटी की माँग करता है तो उसे पत्थर देता है 10 या मछली की माँग करने पर साँप? 11 जब तुम पतित होने पर भी अपनी सन्तान को उत्तम वस्तुएं प्रदान करना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, कहीं अधिक बढ़कर वह प्रदान न करेंगे, जो उत्तम है?
12 “इसलिए हर एक परिस्थिति में लोगों से तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो क्योंकि व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा भी यही है.
दो मार्ग
13 “सकेत द्वार में से प्रवेश करो क्योंकि विशाल है वह द्वार और चौड़ा है वह मार्ग, जो विनाश तक ले जाता है और अनेक हैं, जो इसमें से प्रवेश करते हैं 14 क्योंकि सकेत है वह द्वार तथा कठिन है वह मार्ग, जो जीवन तक ले जाता है और थोड़े ही हैं, जो इसे प्राप्त करते हैं.
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