Book of Common Prayer
महिमित मसीह के साथ जुड़े रहना ही जीवन है
3 इसलिए जब तुम मसीह के साथ नवजीवन में जिलाए गए हो तो उन वस्तुओं की खोज में रहो, जो ऊँचे पर विराजमान हैं, जहाँ मसीह परमेश्वर की दायीं ओर बैठे हैं. 2 अपना चित्त ऊपर की वस्तुओं में लीन रखो—उन वस्तुओं में नहीं, जो शारीरिक हैं 3 क्योंकि तुम्हारी मृत्यु हो चुकी है तथा तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है. 4 जब मसीह, जो हमारा जीवन हैं, प्रकट होंगे, तब तुम भी उनके साथ महिमा में प्रकट होगे.
5 इसलिए अपनी पृथ्वी की देह के अंगों को—वेश्यागामी, अशुद्धता, दुष्कामना, लालसा तथा लोभ को, जो वास्तव में मूर्तिपूजा ही है—मार दो 6 क्योंकि इन्हीं के कारण परमेश्वर का क्रोध भड़क उठता है. 7 एक समय तुम्हारा जीवन भी इन्हीं में लीन था. 8 किन्तु अब तुम सभी क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा तथा गंदी भाषा का भी त्याग कर दो. 9 एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम पुराने स्वभाव को उसके कामों सहित उतार चुके 10 और अब तुमने नए स्वभाव को धारण कर लिया है. यह स्वभाव अपने सृष्टिकर्ता की छवि के अनुसार वास्तविक ज्ञान के लिए नया होता जाता है. 11 परिणामस्वरूप अब यूनानी या यहूदी, ख़तनित या खतनारहित, बरबर या स्कूती, दास या मुक्त में कोई भेद नहीं है—मसीह ही सब कुछ और सब में मुख्य हैं.
रोमी अधिकारी का विश्वास
(मत्ति 8:5-13)
7 लोगों को ऊपर लिखी शिक्षा देने के बाद मसीह येशु कफ़रनहूम नगर लौट गए. 2 वहाँ एक सेनापति का एक अत्यन्त प्रिय सेवक रोग से बिस्तर पर था. रोग के कारण वह लगभग मरने पर था. 3 मसीह येशु के विषय में मालूम होने पर सेनापति ने कुछ वरिष्ठ यहूदियों को मसीह येशु के पास इस विनती के साथ भेजा, कि वह आ कर उसके सेवक को चँगा करें. 4 उन्होंने मसीह येशु के पास आ कर उनसे विनती कर कहा, “यह सेनापति निश्चय ही आपकी इस दया का पात्र है 5 क्योंकि उसे हमारे राष्ट्र से प्रेम है तथा उसने हमारे लिए सभागृह भी बनाया है.” 6 इसलिए मसीह येशु उनके साथ चले गए.
मसीह येशु उसके घर के पास पहुँचे ही थे कि सेनापति ने अपने मित्रों के द्वारा उन्हें सन्देश भेजा, “प्रभु! आप कष्ट न कीजिए. मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर पधारें. 7 अपनी इसी अयोग्यता को ध्यान में रखते हुए मैं स्वयं आप से भेंट करने नहीं आया. आप मात्र वचन कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा. 8 मैं स्वयं बड़े अधिकारियों के अधीन नियुक्त हूँ और सैनिक मेरे अधिकार में हैं. मैं किसी को आदेश देता हूँ, ‘जाओ!’ तो वह जाता है और किसी को आदेश देता हूँ, ‘इधर आओ!’ तो वह आता है. अपने सेवक से कहता हूँ, ‘यह करो!’ तो वह वही करता है.”
9 यह सुन कर मसीह येशु अत्यन्त चकित हुए और मुड़ कर पीछे आ रही भीड़ को सम्बोधित कर बोले, “मैं यह बताना सही समझता हूँ कि मुझे इस्राएलियों तक में ऐसा दृढ़ विश्वास देखने को नहीं मिला.” 10 वे, जो सेनापति द्वारा मसीह येशु के पास भेजे गए थे, जब घर लौटे तो यह पाया कि वह सेवक स्वस्थ हो चुका था.
विधवा के पुत्र का जी उठना
11 इसके कुछ ही समय बाद मसीह येशु नाइन नामक एक नगर को गए. एक बड़ी भीड़ और उनके शिष्य उनके साथ थे. 12 जब वह नगर-द्वार पर पहुँचे, एक मृत व्यक्ति अन्तिम संस्कार के लिए बाहर लाया जा रहा था—अपनी माता का एकलौता पुत्र और वह स्वयं विधवा थी; और उसके साथ नगर की एक बड़ी भीड़ थी. 13 उसे देख मसीह येशु करुणा से भर उठे. उन्होंने उससे कहा, “रोओ मत!”
14 तब उन्होंने जा कर उस अरथी को स्पर्श किया. यह देख वे, जिन्होंने उसे उठाया हुआ था, रुक गए. तब मसीह येशु ने कहा, “युवक! मैं तुमसे कहता हूँ, उठ जाओ!” 15 मृतक उठ बैठा और वार्तालाप करने लगा. मसीह येशु ने माता को उसका जीवित पुत्र सौंप दिया.
16 वे सभी श्रद्धा में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. वे कह रहे थे, “हमारे मध्य एक तेजस्वी भविष्यद्वक्ता का आगमन हुआ है. परमेश्वर ने अपनी प्रजा की सुधि ली है.” 17 मसीह येशु के विषय में यह समाचार यहूदिया प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों में फैल गया.
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