Book of Common Prayer
पूरे इस्राएल का उद्धार
25 प्रियजन, मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो—ऐसा न हो कि तुम अपने ऊपर घमण्ड़ करने लगो—इस्राएलियों में यह कुछ भाग की कठोरता निर्धारित संख्या में अन्यजातियों के मसीह में आ जाने तक ही है. 26 इस प्रकार पूरा इस्राएल उद्धार प्राप्त करेगा—ठीक जिस प्रकार पवित्रशास्त्र का लेख है:
उद्धारकर्ता का आगमन त्सियोन से होगा.
वह याक़ोब से अभक्ति को दूर करेगा.
27 जब मैं उनके पाप हर ले जाऊँगा,
तब उनसे मेरी यही वाचा होगी.
28 ईश्वरीय सुसमाचार के दृष्टिकोण से तो वे तुम्हारे लिए परमेश्वर के शत्रु हैं किन्तु चुन लिए जाने के दृष्टिकोण से पूर्वजों के लिए प्रियजन. 29 परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान तथा उनकी बुलाहट अटल हैं. 30 ठीक जिस प्रकार तुमने, जो किसी समय परमेश्वर की आज्ञा न माननेवाले थे, अब उन यहूदियों की अनाज्ञाकारिता के कारण कृपादृष्टि प्राप्त की है. 31 वे अभी भी अनाज्ञाकारी हैं कि तुम पर दिखाई गई कृपादृष्टि के कारण उन पर भी कृपादृष्टि हो जाए. 32 इस समय परमेश्वर ने सभी को आज्ञा के उल्लंघन की सीमा में रख दिया है कि वह सभी पर कृपादृष्टि कर सकें.
परमेश्वर की करुणा और ज्ञान का स्तुति-गान
33 ओह! कैसा अपार है
परमेश्वर की बुद्धि और ज्ञान का भण्ड़ार! कैसे अथाह हैं उनके निर्णय!
तथा कैसा रहस्यमयी है उनके काम करने का तरीका!
34 भला कौन जान सका है परमेश्वर के मन को?
या कौन हुआ है उनका सलाहकार?
35 क्या किसी ने परमेश्वर को कभी कुछ दिया है
कि परमेश्वर उसे वह लौटाएँ?
36 वही हैं सब कुछ के स्रोत, वही हैं सब कुछ के कारक,
वही हैं सब कुछ की नियति—उन्हीं की महिमा सदा-सर्वदा हो, आमेन.
28 यह कह कर वह लौट गई और अपनी बहन मरियम को अलग ले जा कर उसे सूचित किया, “गुरुवर आ गए हैं और तुम्हें बुला रहे हैं.” 29 यह सुन कर मरियम तत्काल मसीह येशु से मिलने निकल पड़ी. 30 मसीह येशु ने अब तक नगर में प्रवेश नहीं किया था. वह वहीं थे, जहाँ मार्था ने उनसे भेंट की थी. 31 जब वहाँ शान्ति देने आए यहूदियों ने मरियम को एकाएक उठ कर बाहर जाते हुए देखा तो वे भी उसके पीछे-पीछे यह समझ कर चले गए कि वह क़ब्र पर रोने के लिए जा रही है.
32 मसीह येशु के पास पहुँच मरियम उनके चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती.”
33 मसीह येशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते हुए देखा तो उनका हृदय व्याकुल हो उठा. उन्होंने उदास शब्द में पूछा, 34 “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उनसे कहा.
“आइए, प्रभु, देख लीजिए.”
35 मसीह येशु के आँसू बहने लगे.
36 यह देख यहूदी कहने लगे, “देखो वह इन्हें कितना प्रिय था!”
37 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “क्या यह, जिन्होंने अंधे को आँखों की रोशनी दी, इस व्यक्ति को मृत्यु से बचा न सकते थे?”
मृत लाज़रॉस का उज्जीवन
38 दोबारा बहुत उदास हो मसीह येशु क़ब्र पर आए, जो वस्तुत: एक कन्दरा थी, जिसके प्रवेश द्वार पर एक पत्थर रखा हुआ था. 39 मसीह येशु ने वह पत्थर हटाने को कहा. मृतक की बहन मार्था ने आपत्ति प्रकट करते हुए उनसे कहा, “प्रभु, उसे मरे हुए चार दिन हो चुके हैं. अब तो उसमें से दुर्गन्ध आ रही होगी.”
40 मसीह येशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि यदि तुम विश्वास करोगी तो परमेश्वर की महिमा को देखोगी?”
41 इसलिए उन्होंने पत्थर हटा दिया. मसीह येशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाईं और कहा, “पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली. 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मेरी सुनते हैं किन्तु यहाँ उपस्थित भीड़ के कारण मैंने ऐसा कहा है कि वे सब विश्वास करें कि आप ने ही मुझे भेजा है.” 43 तब उन्होंने ऊँचे शब्द में पुकारा, “लाज़रॉस, बाहर आ जाओ!” 44 वह, जो चार दिन से मरा हुआ था, बाहर आ गया. उसका सारा शरीर पट्टियों में और उसका मुख कपड़े में लिपटा हुआ था. मसीह येशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो.”
यहूदियों द्वारा अविश्वास का हठ
37 यद्यपि मसीह येशु ने उनके सामने अनेक अद्भुत चिह्न दिखाए थे तौभी वे लोग उनमें विश्वास नहीं कर रहे थे; 38 जिससे भविष्यद्वक्ता यशायाह का यह वचन पूरा हो:
“प्रभु, किसने हमारे समाचार पर विश्वास किया,
किस पर प्रभु का बाहुबल प्रकट हुआ?”
39 वे विश्वास इसलिए नहीं कर पाये कि भविष्यद्वक्ता यशायाह ने यह भी कहा है:
40 “परमेश्वर ने उनकी आँखें अंधी
तथा उनका ह्रदय कठोर कर दिया,
कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें,
मन से समझें और पश्चाताप कर लें,
और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँ.”
41 यशायाह ने यह वर्णन इसलिए किया कि उन्होंने प्रभु का प्रताप देखा और उसका वर्णन किया.
42 अनेकों ने, यहाँ तक कि अधिकारियों ने भी मसीह येशु में विश्वास किया किन्तु फ़रीसियों के कारण सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया कि कहीं उन्हें यहूदी सभागृह से निकाल न दिया जाए 43 क्योंकि उन्हें परमेश्वर से प्राप्त आदर की तुलना में मनुष्यों से प्राप्त आदर अधिक प्रिय था.
मसीह येशु द्वारा अपने सन्देश की संक्षेपावृत्ति.
44 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में कहा, “जो कोई मुझ में विश्वास करता है, वह मुझ में ही नहीं परन्तु मेरे भेजनेवाले में विश्वास करता है. 45 क्योंकि जो कोई मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है. 46 मैं संसार में ज्योति हो कर आया हूँ कि वे सभी, जो मुझ में विश्वास करें, अन्धकार में न रहें.
47 “मैं उस व्यक्ति पर दोष नहीं लगाता, जो मेरे सन्देश सुन कर उनका पालन नहीं करता क्योंकि मैं संसार पर दोष लगाने नहीं परन्तु संसार के उद्धार के लिए आया हूँ. 48 जो कोई मेरा तिरस्कार करता है और मेरे समाचार को ग्रहण नहीं करता, उसका एक ही आरोपी है: मेरा समाचार. वही उसे अन्तिम दिन दोषी घोषित करेगा. 49 मैंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा, परन्तु मेरे पिता ने, जो मेरे भेजनेवाले हैं, आज्ञा दी है कि मैं क्या कहूँ और कैसे कहूँ. 50 मैं जानता हूँ कि उनकी आज्ञा का पालन अनन्त जीवन है. इसलिए जो कुछ मैं कहता हूँ, ठीक वैसा ही कहता हूँ, जैसा पिता ने मुझे कहने की आज्ञा दी है.”
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