Book of Common Prayer
अपनी रक्षा में इस्राएल की असमर्थता
14 वे भला उन्हें कैसे पुकारेंगे जिनमें उन्होंने विश्वास ही नहीं किया? वे भला उनमें विश्वास कैसे करेंगे, जिन्हें उन्होंने सुना ही नहीं? और वे भला सुनेंगे कैसे यदि उनकी उद्घोषणा करने वाला नहीं? 15 और प्रचारक प्रचार कैसे कर सकेंगे यदि उन्हें भेजा ही नहीं गया? जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: कैसे सुहावने हैं वे चरण जिनके द्वारा अच्छी बातों का सुसमाचार लाया जाता है!
16 फिर भी सभी ने ईश्वरीय सुसमाचार पर ध्यान नहीं दिया. भविष्यद्वक्ता यशायाह का लेख है: प्रभु! किसने विश्वास किया है हमारे प्रतिवेदन पर? 17 इसलिए स्पष्ट है कि विश्वास की उत्पत्ति होती है सुनने के माध्यम से तथा सुनना मसीह के वचन के माध्यम से. 18 किन्तु अब प्रश्न यह है: क्या उन्होंने सुना नहीं? निस्सन्देह उन्होंने सुना है:
उनका शब्द सारी पृथ्वी में तथा,
उनका सन्देश पृथ्वी के छोर तक पहुँच चुका है.
19 मेरा प्रश्न है, क्या इस्राएली इसे समझ सके? पहिले मोशेह ने कहा:
मैं एक ऐसे राष्ट्र के द्वारा तुममें जलनभाव उत्पन्न करूँगा,
जो राष्ट्र है ही नहीं.
मैं तुम्हें एक ऐसे राष्ट्र के द्वारा क्रोधित करूँगा, जिसमें समझ है ही नहीं.
20 इसके बाद भविष्यद्वक्ता यशायाह निडरतापूर्वक कहते हैं:
मुझे तो उन्होंने पा लिया, जो मुझे खोज भी नहीं रहे थे तथा मैं उन पर प्रकट हो गया,
जिन्होंने इसकी कामना भी नहीं की थी.
21 इस्राएल के विषय में परमेश्वर का कथन है:
मैं आज्ञा न माननेवाली और
हठीली प्रजा के सामने पूरे दिन हाथ पसारे रहा.
आदर्श चरवाहे का रूपक
10 “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ. वह, जो भेड़शाला में द्वार से प्रवेश नहीं करता परन्तु बाड़ा फाँद कर घुसता है, चोर और लुटेरा है, 2 परन्तु जो द्वार से प्रवेश करता है, वह भेड़ों का चरवाहा है. 3 उसके लिए द्वारपाल द्वार खोल देता है, भेड़ें उसकी आवाज़ सुनती हैं. वह अपनी भेड़ों को नाम ले कर बुलाता और उन्हें बाहर ले जाता है. 4 अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल लेने के बाद वह उनके आगे-आगे चलता है और भेड़ें उसके पीछे-पीछे क्योंकि वे उसकी आवाज़ पहचानती हैं. 5 वे किसी अनजान के पीछे कभी नहीं चलेंगी परन्तु उससे भागेंगी क्योंकि वे उस अनजान की आवाज़ नहीं पहचानतीं.” 6 मसीह येशु के इस दृष्टांत का मतलब सुननेवाले नहीं समझे कि वह उनसे कहना क्या चाह रहे थे.
7 इसलिए मसीह येशु ने दोबारा कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: मैं ही भेड़ों का द्वार हूँ. 8 वे सभी, जो मुझसे पहले आए, चोर और लुटेरे थे. भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी. 9 मैं ही द्वार हूँ. यदि कोई मुझसे हो कर प्रवेश करता है तो उद्धार प्राप्त करेगा. वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और चारा पाएगा. 10 चोर किसी अन्य उद्धेश्य से नहीं, मात्र चुराने, हत्या करने और नाश करने आता है; मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ और बहुतायत का जीवन पाएँ.
11 “मैं ही आदर्श चरवाहा हूँ. आदर्श चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है. 12 मज़दूर, जो न तो चरवाहा है और न भेड़ों का स्वामी, भेड़िये को आते देख भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है. भेड़िया उन्हें पकड़ता है और वे तितर-बितर हो जाती हैं. 13 इसलिए कि वह मज़दूर है, उसे भेड़ों की कोई चिन्ता नहीं है.
14 “मैं ही आदर्श चरवाहा हूँ. मैं अपनों को जानता हूँ और मेरे अपने मुझे; 15 ठीक जिस प्रकार पिता परमेश्वर मुझे जानते हैं, और मैं उन्हें. भेड़ों के लिए मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूँ. 16 मेरी और भी भेड़ें हैं, जो अब तक इस भेड़शाला में नहीं हैं. मुझे उन्हें भी लाना है. वे मेरी आवाज़ सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड़ और एक ही चरवाहा होगा. 17 परमेश्वर मुझसे प्रेम इसीलिए करते हैं कि मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूँ—कि उन्हें दोबारा प्राप्त करूँ. 18 कोई भी मुझसे मेरे प्राण छीन नहीं रहा—मैं अपने प्राण अपनी इच्छा से भेंट कर रहा हूँ. मुझे अपने प्राण भेंट करने और उसे दोबारा प्राप्त करने का अधिकार है, जो मुझे अपने पिता की ओर से प्राप्त हुआ है.”
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