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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 7:13-25

13 तब, क्या वह, जो भला है, मेरे लिए मृत्यु का कारण हो गया? नहीं! बिलकुल नहीं! भलाई के द्वारा पाप ने मुझमें मृत्यु उत्पन्न कर दी कि पाप को पाप ही के रूप में प्रदर्शित किया जाए तथा आज्ञा के द्वारा यह बहुत ही पापमय हो जाए.

दो स्वभावों में द्वन्द्व

14 यह तो हमें मालूम ही है कि व्यवस्था आत्मिक है किन्तु मैं हूँ शारीरिक—पाप के दासत्व में पूरी तरह बिका हुआ! 15 यह इसलिए कि यह मेरी समझ से हमेशा से परे है कि मैं क्या करता हूँ—मैं वह नहीं करता, जो मैं करना चाहता हूँ परन्तु मैं वही करता हूँ, जिससे मुझे घृणा है. 16 इसलिए यदि मैं वही सब करता हूँ, जो मुझे अप्रिय है तो सच यह है कि मैं व्यवस्था से सहमत हूँ और स्वीकार करता हूँ कि यह सही है. 17 इसलिए अब ये काम मैं नहीं, मुझमें बसा हुआ पाप करता है. 18 यह तो मुझे मालूम है कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में अंदर छिपा हुआ ऐसा कुछ भी नहीं, जो उत्तम हो. अभिलाषा तो मुझ में है किन्तु उसका करना मुझसे हो नहीं पाता. 19 वह हित, जिसकी मुझ में अभिलाषा है, मुझसे करते नहीं बनता परन्तु हो वह जाता है, जिसे मैं करना नहीं चाहता. 20 तब यदि मैं वह करता हूँ, जो मैं करना नहीं चाहता, तब वह मैं नहीं, परन्तु मुझमें बसा हुआ पाप ही है, जो यह सब करता है.

21 यहाँ मुझे इस सच का अहसास होता है कि जब भी मैं भलाई के लिए उतारू होता हूँ, वहाँ मुझसे बुराई हो जाती है. 22 मेरा भीतरी मनुष्यत्व तो परमेश्वर की व्यवस्था में प्रसन्न है 23 किन्तु मैं अपने शरीर के अंगों में एक दूसरी व्यवस्था देख रहा हूँ. यह मेरे मस्तिष्क में मौजूद व्यवस्था के विरुद्ध लड़ती है. इसने मुझे पाप की व्यवस्था का, जो मेरे शरीर के अंगों में मौजूद है, बन्दी बना रखा है. 24 कैसी दयनीय स्थिति है मेरी! कौन मुझे मेरी इस मृत्यु के शरीर से छुड़ाएगा? 25 धन्यवाद हो हमारे प्रभु मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का!

एक ओर तो मैं स्वयं अपने मस्तिष्क में परमेश्वर की व्यवस्था का दास हूँ किन्तु दूसरी ओर अपने शरीर में अपने पाप के स्वभाव का.

योहन 6:16-27

मसीह येशु का जल सतह पर चलना

(मत्ति 14:22-33; मारक 6:45-52)

16 जब सन्ध्या हुई तो मसीह येशु के शिष्य झील के तट पर उतर गए. 17 अन्धेरा हो चुका था और मसीह येशु अब तक उनके पास नहीं पहुँचे थे. उन्होंने नाव पर सवार हो कर गलील झील के दूसरी ओर कफ़रनहूम नगर के लिए प्रस्थान किया. 18 उसी समय तेज़ हवा के कारण झील में लहरें बढ़ने लगीं. 19 नाव को लगभग पाँच किलोमीटर खेने के बाद शिष्यों ने मसीह येशु को जल सतह पर चलते और नाव की ओर आते देखा. यह देख कर वे भयभीत हो गए. 20 मसीह येशु ने उनसे कहा, “भयभीत मत हो, मैं हूँ.” 21 यह सुन शिष्य मसीह येशु को नाव में चढ़ाने को तैयार हो गए. इसके बाद नाव उस स्थान पर पहुँच गई जहाँ उन्हें जाना था.

मसीह येशु—जीवन-रोटी

22 अगले दिन झील के उस पार रह गई भीड़ को मालूम हुआ कि वहाँ केवल एक छोटी नाव थी और मसीह येशु शिष्यों के साथ उसमें नहीं गए थे—केवल शिष्य ही उसमें दूसरे पार गए थे. 23 तब तिबेरियास नगर से अन्य नावें उस स्थान पर आईं, जहाँ प्रभु ने बड़ी भीड़ को भोजन कराया था. 24 जब भीड़ ने देखा कि न तो मसीह येशु वहाँ हैं और न ही उनके शिष्य, तो वे मसीह येशु को खोजते हुए नावों द्वारा कफ़रनहूम नगर पहुँच गए.

25 झील के इस पार मसीह येशु को पा कर उन्होंने उनसे पूछा, “रब्बी, आप यहाँ कब पहुँचे?”

26 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे कि तुमने अद्भुत चिह्न देखे हैं परन्तु इसलिए कि तुम रोटियां खा कर तृप्त हुए हो. 27 उस भोजन के लिए मेहनत मत करो, जो नाशमान है परन्तु उसके लिए, जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जो मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा क्योंकि पिता अर्थात् परमेश्वर ने समर्थन के साथ मात्र उसी को यह अधिकार सौंपा है.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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