Book of Common Prayer
17 मसीह येशु ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए नहीं परन्तु ईश्वरीय सुसमाचार प्रचार के लिए चुना है—वह भी शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस उसके सामर्थ्य से व्यर्थ हो जाए.
मसीह, परमेश्वर का सामर्थ्य और ज्ञान
18 क्रूस का सन्देश उनके लिए, जो नाश होने पर हैं, मूर्खता है किन्तु हमारे लिए, जो उद्धार के मार्ग पर हैं, परमेश्वर का सामर्थ्य है, 19 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:
मैं ज्ञानियों का ज्ञान नाश कर दूँगा
तथा समझदारों की समझ को शून्य.
20 कहाँ है ज्ञानी, कहाँ है शास्त्री और कहाँ है इस युग का विवादी? क्या परमेश्वर के सामने संसार का सारा ज्ञान मूर्खता नहीं है? 21 अपने ज्ञान के अनुसार परमेश्वर ने यह असम्भव बना दिया कि मानव अपने ज्ञान के द्वारा उन्हें जान सके, इसलिए परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि मनुष्यों के अनुसार मूर्खता के इस सन्देश के प्रचार का उपयोग उन सबके उद्धार के लिए करें, जो विश्वास करते हैं. 22 सबूत के लिए यहूदी चमत्कार-चिह्नों की माँग करते हैं और यूनानी ज्ञान के खोजी हैं 23 किन्तु हम प्रचार करते हैं क्रूसित मसीह का, जो यहूदियों के लिए ठोकर का कारण हैं तथा अन्यजातियों के लिए मूर्खता, 24 किन्तु बुलाए हुओं—यहूदी या यूनानी दोनों ही के लिए यही मसीह परमेश्वर का सामर्थ्य तथा परमेश्वर का ज्ञान हैं 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों की बुद्धि से कहीं अधिक बुद्धिमान तथा परमेश्वर की दुर्बलता मनुष्यों के बल से कहीं अधिक बलवान है.
26 प्रियजन, याद करो कि जब तुम्हें बुलाया गया, उस समय अनेकों में न तो शरीर के अनुसार ज्ञान था, न ही बल और न ही कुलीनता 27 ज्ञानवानों को लज्जित करने के लिए परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में मूर्खता है तथा शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसको, जो संसार की दृष्टि में दुर्बलता है. 28 परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में नीचा है, तुच्छ है और जो है ही नहीं कि उसे व्यर्थ कर दें, जो महत्वपूर्ण समझी जाती है; 29 कि कोई भी मनुष्य परमेश्वर के सामने घमण्ड़ न करे. 30 परमेश्वर के द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप तुम मसीह येशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता तथा छुड़ौती बन गए; 31 पवित्रशास्त्र का लेख है: जो गर्व करता है, वह परमेश्वर में गर्व करे.
उपवास के प्रश्न का हल
(मत्ति 9:14-17; लूकॉ 5:33-39)
18 योहन के शिष्य तथा फ़रीसी उपवास कर रहे थे. कुछ ने आ कर मसीह येशु से प्रश्न किया, “ऐसा क्यों है कि योहन तथा फ़रीसियों के शिष्य तो उपवास करते हैं किन्तु आपके शिष्य नहीं?”
19 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या कभी वर के रहते हुए उसके साथी उपवास करते हैं? जब तक वर उनके साथ है, वे उपवास कर ही नहीं सकते. 20 किन्तु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा, वे उस समय उपवास करेंगे.
21 “किसी पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता क्योंकि ऐसा करने पर नये वस्त्र का जोड़ सिकुड़ कर उस पुराने वस्त्र की पहले से अधिक दुर्दशा कर देता है. 22 कोई भी नये दाख़रस को पुरानी मश्कों में नहीं रखता अन्यथा ख़मीर हो कर दाख़रस मश्कों को फाड़ देती है. इससे दाख़रस भी नाश हो जाता है और मश्कें भी—नया दाख़रस नए मटके में ही डाला जाता है.”
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