Book of Common Prayer
सीनय पर्वत तथा त्सियोन पर्वत
18 तुम उस पर्वत के पास नहीं आ पहुँचे, जिसे स्पर्श किया जा सके और न ही दहकती ज्वाला, अन्धकार, काली घटा और बवण्डर 19 तुरही की आवाज़ और शब्द की ऐसी ध्वनि के समीप, जिसके शब्द ऐसे थे कि जिन्होंने उसे सुना, विनती की कि अब वह उनसे और अधिक कुछ न कहे. 20 उनके लिए यह आज्ञा सहने योग्य न थी: यदि पशु भी पर्वत का स्पर्श करे तो वह पथराव द्वारा मार डाला जाए. 21 वह दृश्य ऐसा डरावना था कि मोशेह कह उठे: मैं भय से थरथरा रहा हूँ.
22 किन्तु तुम त्सियोन पर्वत के, जीवित परमेश्वर के नगर स्वर्गीय येरूशालेम के, असंख्य स्वर्गदूतों के, 23 स्वर्ग में लिखे पहलौठों की कलीसिया के, परमेश्वर के, जो सब के न्यायी हैं, सिद्ध बना दिए गए धर्मियों की आत्माओं के, 24 मसीह येशु के, जो नई वाचा के मध्यस्थ हैं तथा छिड़काव के लहू के, जो हाबिल के लहू से कहीं अधिक साफ़ बातें करता है, पास आ पहुँचे हो.
25 इसका ध्यान रहे कि तुम उनकी आज्ञा न टालो, जो तुमसे बातें कर रहे हैं. जब वे दण्ड से न बच सके, जिन्होंने उनकी आज्ञा न मानी, जिन्होंने उन्हें पृथ्वी पर चेतावनी दी थी, तब हम दण्ड से कैसे बच सकेंगे यदि हम उनकी न सुनें, जो स्वर्ग से हमें चेतावनी देते हैं? 26 उस समय तो उनकी आवाज़ ने पृथ्वी को हिला दिया था किन्तु अब उन्होंने यह कहते हुए प्रतिज्ञा की है: एक बार फिर मैं न केवल पृथ्वी परन्तु स्वर्ग को भी हिला दूँगा. 27 ये शब्द एक बार फिर उन वस्तुओं के हटाए जाने की ओर संकेत हैं, जो अस्थिर हैं अर्थात् सृष्ट वस्तुएं, कि वे वस्तुएं, जो अचल हैं, स्थायी रह सकें.
28 इसलिए जब हमने अविनाशी राज्य प्राप्त किया है, हम परमेश्वर के आभारी हों कि इस आभार के द्वारा हम परमेश्वर को सम्मान और श्रद्धा के साथ स्वीकार-योग्य आराधना भेंट कर सकें 29 इसलिए कि निस्सन्देह हमारे परमेश्वर भस्म कर देने वाली आग हैं.
24 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक बीज भूमि में पड़ कर मर न जाए, अकेला ही रहता है परन्तु यदि वह मर जाए तो बहुत फलता है. 25 जो अपने जीवन से प्रेम रखता है, उसे खो देता है परन्तु जो इस संसार में अपने जीवन से प्रेम नहीं रखता, उसे अनन्त जीवन के लिए सुरक्षित रखेगा. 26 यदि कोई मेरी सेवा करता है, वह मेरे पीछे चले. मेरा सेवक वहीं होगा जहाँ मैं हूँ. जो मेरी सेवा करता है, उसका पिता परमेश्वर आदर करेंगे.
27 “इस समय मेरी आत्मा व्याकुल है. मैं क्या कहूँ? ‘पिता, मुझे इस स्थिति से बचा लीजिए’? किन्तु इसी कारण से तो मैं यहाँ तक आया हूँ. 28 पिता, अपने नाम को महिमित कीजिए.”
इस पर स्वर्ग से निकल कर यह आवाज़ सुनाई दी, “मैंने तुम्हें महिमित किया है और दोबारा महिमित करूँगा.” 29 भीड़ ने जब यह सुना तो कुछ ने कहा, “देखो, बादल गरजा!” अन्य कुछ ने कहा, “किसी स्वर्गदूत ने उनसे कुछ कहा है.” 30 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “यह आवाज़ मेरे नहीं, तुम्हारे लिए है. 31 इस संसार के न्याय का समय आ गया है और अब इस संसार के हाकिम को निकाल दिया जाएगा. 32 जब मैं पृथ्वी से ऊँचे पर उठाया जाऊँगा तो सब लोगों को अपनी ओर खींच लूँगा.”
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