Book of Common Prayer
6 परन्तु सन्तोष भरी परमेश्वर की भक्ति स्वयं में एक अद्भुत धन है 7 क्योंकि हम इस संसार में कुछ भी लेकर नहीं आए हैं, इसलिए हम यहाँ से कुछ ले जा भी न सकेंगे. 8 हम इसी में सन्तुष्ट रहेंगे कि हमारे पास भोजन तथा वस्त्र हैं. 9 जो धनी बनने के अभिलाषी हैं, वे परीक्षा, फन्दें और अनेक मूर्खता भरे व हानिकारक लालसाओं में पड़ जाते हैं, जो उन्हें पतन और विनाश के गर्त में ले डुबाती हैं. 10 धन का लालच हर एक प्रकार की बुराई की जड़ है. कुछ इसी लालच में विश्वास से भटक गए तथा इसमें उन्होंने स्वयं को अनेक दुःखों से छलनी कर लिया है.
तिमोथियॉस को उसकी सेवकाई की दोबारा याद दिलाना
11 परन्तु तुम, जो परमेश्वर के सेवक हो, इन सब से दूर भागो तथा सच्चाई, परमेश्वर भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज तथा विनम्रता का पीछा करो. 12 अपने विश्वास का कठिन संघर्ष करो, उस अनन्त जीवन को थामे रखो, जिसके लिए परमेश्वर ने तुम्हे बुलाया और जिसे तुमने अनेक गवाहों के सामने अंगीकार किया है. 13 सारी सृष्टि के पिता तथा मसीह येशु को, जो पोन्तियॉस पिलातॉस के सामने अच्छे गवाह साबित हुए, उपस्थित जान कर मैं तुम्हें निर्देश देता हूँ: 14 हमारे प्रभु मसीह येशु के दोबारा आगमन तक इस आज्ञा को निष्कलंक और निर्दोष बनाए रखो: 15 जो ठीक समय पर परमेश्वर के द्वारा पूरा होगा—परमेश्वर, जो धन्य व एकमात्र अधिपति, राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु हैं. 16 सिर्फ वही अमर्त्य हैं, जिनका वास अपार ज्योति में है. जिन्हें किसी ने न तो कभी देखा है और न ही देख सकता है. उनकी महिमा और प्रभुता निरन्तर रहे. आमेन.
धनी विश्वासी
17 संसार के धनवानों को आदेश दो कि वे घमण्ड़ न करें और अपनी आशा नाशमान धन पर नहीं, परन्तु परमेश्वर पर रखें, जो हमारे उपभोग की हर एक वस्तु बहुतायत में देते हैं. 18 उन्हें भले काम करने, अच्छे कामों का धनी हो जाने तथा दान देनेवाले व उदार बनने की आज्ञा दो. 19 इस प्रकार वे इस धन का खर्च अपने आनेवाले जीवन की नींव के लिए करेंगे कि वे उस जीवन को, जो वास्तविक है, थामे रह सकें.
अन्तिम आज्ञा व समापन
20 तिमोथियॉस! उस धरोहर की रक्षा करो, जो तुम्हें सौंपी गई है. जो बातें आत्मिक नहीं, व्यर्थ बातचीत और उन बातों के ज्ञान से उपजे विरोधी तर्कों से दूर रहो, 21 जिसे स्वीकार कर अनेक अपने मूल विश्वास से भटक गए.
तुम पर अनुग्रह होता रहे.
35 मन्दिर के आँगन, में शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने उनके सामने यह प्रश्न रखा, “शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि मसीह दाविद के वंशज हैं? 36 दाविद ने, पवित्रात्मा, में आत्मलीन हो कहा था:
“‘प्रभु याहवेह ने मेरे प्रभु से कहा:
“मेरी दायीं ओर बैठे रहो
मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे अधीन करूँगा.” ’
37 स्वयं दाविद उन्हें प्रभु कह कर सम्बोधित कर रहे हैं इसलिए किस भाव में प्रभु दाविद के पुत्र हुए?”
भीड़ उनके इस वाद-विवाद का आनन्द ले रही थी.
शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखण्ड
(मत्ति 23:1-12; लूकॉ 20:45-47)
38 आगे शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने कहा, “उन शास्त्रियों से सावधान रहना, जो लम्बे-ढीले-लहराते वस्त्र पहने हुए घूमा करते हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्थलों पर सम्मानपूर्ण नमस्कार की इच्छा रहती है. 39 उन्हें सभागृहों में प्रधान आसन तथा भोज के अवसरों पर मुख्य मुख्य स्थान की आशा रहती है. 40 वे विधवाओं के घर हड़प जाते हैं तथा मात्र दिखावे के उद्देश्य से लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करते हैं. कठोरतम होगा इनका दण्ड!”
कंगाल विधवा का दान
(लूकॉ 21:1-4)
41 मसीह येशु मन्दिर-कोष के सामने बैठे हुए थे. वह देख रहे थे कि लोग मन्दिर कोष में किस प्रकार दान दे रहे हैं. अनेक धनी लोग बड़ी-बड़ी राशि डाल रहे थे. 42 एक निर्धन विधवा भी वहाँ आई और उसने कोष में ताम्बे की मात्र दो बहुत छोटी मुद्राएं डालीं.
43 मसीह येशु ने अपने शिष्यों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जितनों ने भी कोष में दान दिया है, इस विधवा का दान उन सबसे बढ़कर है 44 क्योंकि शेष सभी ने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है किन्तु इस विधवा ने अपनी निर्धनता में से अपनी सारी सम्पत्ति ही दे दी—यह उसकी सारी जीविका थी.”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.