Book of Common Prayer
15 तुम्हें यह मालूम ही है कि आसिया प्रदेश के सभी विश्वासी मुझ से दूर हो गए हैं. उनमें फ़िगेलस तथा हरमोगेनेस भी हैं.
16 ओनेसिफ़ोरस के परिवार पर प्रभु कृपा करें. उसने बहुधा मुझमें नई स्फूर्ति का संचार किया है. मेरी बेड़ियाँ उसके लिए लज्जा का विषय नहीं थीं. 17 जब वह रोम नगर में था, उसने यत्नपूर्वक मुझे खोजा और मुझसे भेंट की. 18 इफ़ेसॉस नगर में की गई उसकी सेवाओं से तुम भली-भांति परिचित हो. प्रभु करें कि उस दिन उसे प्रभु की कृपा प्राप्त हो!
कठिनाइयों का सामना करने के विषय में निर्देश
2 इसलिए, हे पुत्र, मसीह येशु में मिले अनुग्रह में बलवान हो जाओ. 2 उन शिक्षाओं को, जो तुमने अनेकों गवाहों की उपस्थिति में मुझसे प्राप्त की हैं, ऐसे विश्वासयोग्य व्यक्तियों को सौंप दो, जिनमें बाकियों को भी शिक्षा देने की क्षमता है. 3 मसीह येशु के अच्छे योद्धा की तरह मेरे साथ दुःखों का सामना करो. 4 कोई भी योद्धा रणभूमि में दैनिक जीवन के झंझटों में नहीं पड़ता कि वह योद्धा के रूप में अपने भर्ती करनेवाले को संतुष्ट कर सके. 5 इसी प्रकार यदि कोई अखाड़े की प्रतियोगिता में भाग लेता है किन्तु नियम के अनुसार प्रदर्शन नहीं करता, विजय-पदक प्राप्त नहीं करता. 6 यह सही ही है कि परिश्रमी किसान उपज से अपना हिस्सा सबसे पहिले प्राप्त करे. 7 मेरी शिक्षाओं पर विचार करो. प्रभु तुम्हें सब विषयों में समझ प्रदान करेंगे.
8 उस ईश्वरीय सुसमाचार के अनुसार, जिसका मैं प्रचारक हूँ, मरे हुओं में से जीवित, दाविद के वंशज मसीह येशु को याद रखो. 9 उसी ईश्वरीय सुसमाचार के लिए मैं कष्ट सह रहा हूँ, यहाँ तक कि मैं अपराधी जैसा बेड़ियों में जकड़ा गया हूँ—परन्तु परमेश्वर का वचन कैद नहीं किया जा सका. 10 यही कारण है कि मैं उनके लिए, जो चुने हुए हैं, सभी कष्ट सह रहा हूँ कि उन्हें भी वह उद्धार प्राप्त हो, जो मसीह येशु में मिलता है तथा उसके साथ अनन्त महिमा भी.
11 यह बात सत्य है:
यदि उनके साथ हमारी मृत्यु हुई है तो
हम उनके साथ जीवित भी होंगे;
12 यदि हम धीरज धारण किए रहें तो हम उनके साथ शासन भी करेंगे,
यदि हम उनका इनकार करेंगे तो वह भी हमारा इनकार करेंगे.
13 हम चाहे सच्चाई पर चलना त्याग दें किन्तु वह विश्वासयोग्य रहते हैं क्योंकि वह अपने सच्चाई पर चलने के स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते.
तलाक का विषय
(मत्ति 19:1-12)
10 मसीह येशु वहाँ से निकल कर यहूदिया के उस क्षेत्र में चले गए, जो यरदन नदी के पार था. भीड़ फिर से उनके चारों ओर इकट्ठी हो गई. अपनी रीति के अनुसार मसीह येशु ने एक बार फिर उन्हें शिक्षा देना प्रारम्भ किया.
2 उन्हें परखने के उद्देश्य से कुछ फ़रीसी उनके पास आ गए. उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या पुरुष के लिए पत्नी से तलाक लेना व्यवस्था के अनुसार है?”
3 मसीह येशु ने ही उनसे प्रश्न किया, “तुम्हारे लिए मोशेह का आदेश क्या है?”
4 फ़रीसियों ने उन्हें उत्तर दिया, “मोशेह ने तलाक पत्र लिख कर पत्नी का त्याग करने की अनुमति दी है.”
5 मसीह येशु ने उन्हें समझाया, “तुम्हारे कठोर हृदय के कारण मोशेह ने तुम्हारे लिए यह आज्ञा रखी 6 किन्तु वास्तव में सृष्टि के प्रारम्भ ही से परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया. 7 यही कारण है कि पुरुष अपने माता-पिता से मोहबन्ध तोड़ देगा.[a] 8 वे दोनों एक शरीर हो जाएँगे; परिणामस्वरूप अब वे दोनों दो नहीं परन्तु एक शरीर हैं 9 इसलिए जिन्हें स्वयं परमेश्वर ने जोड़ा है, उन्हें कोई मनुष्य अलग न करे.”
10 जब वे दोबारा अपने घर पर आए, शिष्यों ने मसीह येशु से इसके विषय में जानना चाहा. 11 मसीह येशु ने उन्हें समझाया, “यदि कोई अपनी पत्नी से तलाक लेकर अन्य स्त्री से विवाह करता है, वह उस अन्य स्त्री के साथ व्यभिचार करता है. 12 यदि स्वयं स्त्री अपने पति से तलाक लेकर अन्य पुरुष से विवाह कर लेती है, वह भी व्यभिचार करती है.”
मसीह येशु तथा बालक
(मत्ति 19:13-15; लूकॉ 18:15-17)
13 मसीह येशु को छू लेने के उद्देश्य से लोग बालकों को उनके पास ला रहे थे. इस पर शिष्य उन्हें डाँटने लगे. 14 यह देख मसीह येशु ने अप्रसन्न होते हुए उनसे कहा, “बालकों को यहाँ आने दो, उन्हें मेरे पास आने से मत रोको क्योंकि स्वर्ग-राज्य ऐसों का ही है. 15 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालकों के समान स्वीकार नहीं करता, उसका इसमें प्रवेश सम्भव ही नहीं है.” 16 तब मसीह येशु ने बालकों को अपनी गोद में लिया और उन पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया.
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