Book of Common Prayer
दो वाचाएँ: हागार तथा साराह
21 मुझे यह बताओ: तुम, जो व्यवस्था के अधीन रहना चाहते हो, क्या तुम वास्तव में व्यवस्था का पालन नहीं करते? 22 पवित्रशास्त्र में लिखा है कि अब्राहाम के दो पुत्र थे, एक दासी से और दूसरा स्वतन्त्र स्त्री से. 23 दासी का पुत्र शरीर से जन्मा था और स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र का जन्म प्रतिज्ञा के पूरा होने के लिए हुआ था.
24 यह एक दृष्टान्त है. ये स्त्रियाँ दो वाचाएँ हैं. सीनय पर्वत की वाचा हागार है, जिससे दासत्व की सन्तान उत्पन्न होती है. 25 हागार अरब में सीनय पर्वत है, जो वर्तमान येरूशालेम का प्रतीक है क्योंकि वह सन्तानों सहित दासत्व में है; 26 किन्तु स्वर्गीय येरूशालेम स्वतन्त्र है. वह हमारी माता है. 27 जैसा कि लिखा है:
बाँझ, तुम, जो सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ हो,
आनन्दित हो.
तुम, जो प्रसव-पीड़ा से अनजान हो,
जय-जयकार करो,
क्योंकि त्यागी हुई की सन्तान सुहागिन की सन्तान से अधिक है.
28 प्रियजन, तुम इसहाक के समान प्रतिज्ञा की सन्तान हो. 29 किन्तु जैसे उस समय शरीर से जन्मा पुत्र आत्मा से जन्मे पुत्र को सताया करता था, वैसी ही स्थिति इस समय भी है. 30 पवित्रशास्त्र का लेख क्या है? दासी व उसके पुत्र को निकाल दो क्योंकि दासी का पुत्र कभी भी स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र के साथ वारिस नहीं होगा. 31 इसलिए, प्रियजन, हम दासी की नहीं परन्तु स्वतन्त्र स्त्री की सन्तान हैं.
11 फ़रीसियों ने आ कर उनसे विवाद प्रारम्भ कर दिया. उन्होंने यह परखने के लिए कि मसीह येशु परमेश्वर-पुत्र हैं, चमत्कार चिह्न की माँग की. 12 मसीह येशु ने अपने अन्दर में गहरी पीड़ा में कराहते हुए उन्हें उत्तर दिया, “यह पीढ़ी चमत्कार चिह्न क्यों चाहती है? सच तो यह है कि इस पीढ़ी को कोई भी चमत्कार चिह्न नहीं दिया जाएगा.” 13 उन्हें छोड़ कर मसीह येशु नाव पर सवार हो दूसरी ओर चले गए.
गलत शिक्षा के प्रति चेतावनी
(मत्ति 16:5-12)
14 शिष्य अपने साथ भोजन रखना भूल गए थे—उनके पास नाव में मात्र एक रोटी थी. 15 मसीह येशु ने शिष्यों को चेतावनी देते हुए कहा, “फ़रीसियों के ख़मीर से तथा हेरोदेस के ख़मीर से सावधान रहना.”
16 इस पर वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “वह यह इसलिए कह रहे हैं कि हमने अपने साथ रोटियां नहीं रखीं.”
17 उनकी स्थिति समझते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा, “रोटी के न होने के विषय में वाद-विवाद क्यों किए जा रहे हो? क्या अब भी तुम्हें कुछ समझ नहीं आ रहा? क्या तुम्हारा हृदय कठोर हो गया है? 18 आँखें होते हुए भी तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा और कानों के होते हुए भी तुम कुछ सुन नहीं पा रहे? तुम्हें कुछ भी याद नहीं रहा! 19 जब मैंने पाँच हज़ार व्यक्तियों के लिए पाँच रोटियां परोसीं तुमने रोटी से भरे कितने टोकरे इकट्ठा किए थे?”
“बारह,” उन्होंने उत्तर दिया.
20 “जब मैंने चार हज़ार के लिए सात रोटियां परोसीं तब तुमने रोटी से भरे कितने टोकरे इकट्ठा किए थे?”
“सात,” उन्होंने उत्तर दिया.
21 तब मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या अब भी तुम्हारी समझ में नहीं आया?”
अंधे को दृष्टिदान
22 वे बैथसैदा नगर आए. वहाँ लोग एक अंधे व्यक्ति को उनके पास लाए और उनसे विनती की कि वह उसका स्पर्श करें. 23 मसीह येशु उस अंधे का हाथ पकड़ उसे गाँव के बाहर ले गए. वहाँ उन्होंने उस व्यक्ति की आँखों पर थूका और उस पर हाथ रखते हुए उससे पूछा, “क्या तुम्हें कुछ दिखाई दे रहा है?”
24 उसने ऊपर दृष्टि करते हुए कहा, “मुझे लोग दिख रहे हैं परन्तु वे ऐसे दिख रहे हैं जैसे चलते-फिरते पेड़.”
25 मसीह येशु ने दोबारा उस पर अपने हाथ रखे और उसकी ओर एकटक देखा और उसे दृष्टि प्राप्त हो गई—उसे सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा. 26 मसीह येशु ने उसे उसके घर भेजते हुए कहा, “अब इस गाँव में कभी न आना.”
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