Book of Common Prayer
निरन्तर प्रयास की बुलाहट
19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.
विश्वास की शिक्षा को त्यागने के दुष्परिणाम
26 यदि सत्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी हम जानबूझकर पाप करते जाएँ तो पाप के लिए कोई भी बलि बाकी नहीं रह जाती; 27 सिवाय न्याय-दण्ड की भयावह प्रतीक्षा तथा आग के क्रोध के, जो सभी विरोधियों को चट कर जाएगा.
28 जो कोई मोशेह की व्यवस्था की अवहेलना करता है, उसे दो या तीन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के आधार पर, बिना किसी कृपा के, मृत्युदण्ड दे दिया जाता है. 29 उस व्यक्ति के दण्ड की कठोरता के विषय में विचार करो, जिसने परमेश्वर के पुत्र को अपने पैरों से रौंदा तथा वाचा के लहू को अशुद्ध किया, जिसके द्वारा वह स्वयं अलग किया गया था तथा जिसने अनुग्रह के आत्मा का अपमान किया. 30 हम तो उन्हें जानते हैं, जिन्होंने यह धीरज दिया: बदला मैं लूँगा, यह ज़िम्मेदारी मेरी ही है तब यह भी: प्रभु ही अपनी प्रजा का न्याय करेंगे. 31 भयानक होती है जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ने की स्थिति!
2 येरूशालेम में भेड़-फाटक के पास एक जलाशय है, जो इब्री भाषा में बैथज़ादा कहलाता है और जिसके पाँच ओसारे हैं, 3 उसके किनारे अंधे, अपंग और लकवे के अनेक रोगी पड़े रहते थे, 4 जो जल के हिलने की प्रतीक्षा किया करते थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि परमेश्वर का स्वर्गदूत यदा-कदा वहाँ आ कर जल हिलाया करता था. जल हिलते ही, जो व्यक्ति उसमें सबसे पहिले उतरता था, स्वस्थ हो जाता था. 5 इनमें एक व्यक्ति ऐसा था, जो अड़तीस वर्ष से रोगी था. 6 मसीह येशु ने उसे वहाँ पड़े हुए देख और यह मालूम होने पर कि वह वहाँ बहुत समय से पड़ा हुआ है, उसके पास जा कर पूछा, “क्या तुम स्वस्थ होना चाहते हो?”
7 रोगी ने उत्तर दिया, “श्रीमन, ऐसा कोई नहीं, जो जल के हिलने पर मुझे जलाशय में उतारे—मेरे प्रयास के पूर्व ही कोई अन्य व्यक्ति उसमें उतर जाता है.”
8 मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.” 9 तुरन्त वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया और अपना बिछौना उठा कर चला गया.
वह शब्बाथ था. 10 अतः यहूदियों ने स्वस्थ हुए व्यक्ति से कहा, “आज शब्बाथ है. अतः तुम्हारा बिछौना उठाना उचित नहीं है.”
11 उसने कहा, “जिन्होंने मुझे स्वस्थ किया है, उन्हीं ने मुझे आज्ञा दी, ‘अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.’”
12 उन्होंने उससे पूछा, “कौन है वह, जिसने तुमसे कहा है कि अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो?”
13 स्वस्थ हुआ व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका स्वस्थ करनेवाला कौन था क्योंकि उस समय मसीह येशु भीड़ में गुम हो गए थे.
14 कुछ समय बाद मसीह येशु ने उस व्यक्ति को मन्दिर में देख उससे कहा, “देखो, तुम स्वस्थ हो गए हो, अब पाप न करना. ऐसा न हो कि तुम्हारा हाल इससे ज़्यादा बुरा हो जाए.”
मसीह येशु का परमेश्वर-पुत्र होने का दावा
15 तब उस व्यक्ति ने आ कर यहूदियों को सूचित किया कि जिन्होंने उसे स्वस्थ किया है, वह येशु हैं. 16 शब्बाथ पर मसीह येशु द्वारा यह काम किए जाने के कारण यहूदी उनको सताने लगे. 17 मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “मेरे पिता अब तक कार्य कर रहे हैं इसलिए मैं भी काम कर रहा हूँ.” 18 परिणामस्वरूप यहूदी मसीह येशु की हत्या के लिए और भी अधिक ठन गए क्योंकि उनके अनुसार मसीह येशु शब्बाथ की विधि को तोड़ ही नहीं रहे थे बल्कि परमेश्वर को अपना पिता कह कर स्वयं को परमेश्वर के तुल्य भी दर्शा रहे थे.
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