Book of Common Prayer
पारिवारिक नैतिकता के विषय में निर्देश
6 हे बालकों, प्रभु में अपने माता-पिता का आज्ञापालन करें क्योंकि उचित यही है. 2 अपने माता-पिता का सम्मान करो—आज्ञाओं में से यह ऐसा पहिली आज्ञा है जिसके साथ प्रतिज्ञा जुड़ी है 3 तुम्हारा भला हो और तुम पृथ्वी पर बहुत दिन तक जीवित रहो. 4 तुम में जो पिता हैं, अपनी सन्तान को रिस न दिलाएं परन्तु प्रभु की शिक्षा व अनुशासन में उनका पालन-पोषण करें.
5 जो दास हैं, अपने सांसारिक स्वामियों का आज्ञापालन सच्चाई से व एकचित्त होकर ऐसे करें मानो मसीह का. 6 यह सब दिखावे मात्र व उन्हें प्रसन्न करने के उद्धेश्य मात्र से नहीं परन्तु मसीह के दास के रूप में हृदय से परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति करते हुए हो. 7 सच्चे हृदय से स्वामियों की सेवा इस प्रकार करते रहो मानो मनुष्य मात्र की नहीं परन्तु प्रभु की सेवा कर रहे हो 8 यह जानते हुए कि हर एक मनुष्य चाहे वह दास हो या स्वतन्त्र, अपने अच्छे कामों का प्रतिफल प्रभु से प्राप्त करेगा.
9 जो स्वामी हैं, वे भी दासों के साथ ऐसा ही व्यवहार करें और उन्हें डराना-धमकाना छोड़ दें, यह ध्यान रखते हुए कि तुम्हारे व दासों दोनों ही के स्वामी स्वर्ग में हैं, जिनके स्वभाव में किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं है.
बवण्डर को शान्त करना
(मत्ति 8:23-27; लूकॉ 8:22-25)
35 उसी दिन शाम के समय में मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “चलो, उस पार चलें.” 36 भीड़ को वहीं छोड़, उन्होंने मसीह येशु को, वह जैसे थे वैसे ही, अपने साथ नाव में ले तुरन्त चल दिए. कुछ अन्य नावें भी उनके साथ हो लीं. 37 उसी समय हवा बहुत तेज़ी से चलने लगी. तेज़ लहरों के थपेड़ों के कारण नाव में पानी भरने लगा. 38 मसीह येशु नाव के पिछले भाग में तकिया लगाए हुए सो रहे थे. उन्हें जगाते हुए शिष्य बोले, “गुरुवर! आपको हमारी चिन्ता ही नहीं कि हम नाश हुए जा रहे हैं!”
39 मसीह येशु जाग गए. उन्होंने बवण्डर को डाँटा तथा लहरों को आज्ञा दी, “शान्त हो जाओ! स्थिर हो जाओ!” बवण्डर शान्त हो गया तथा पूरी शान्ति छा गई.
40 मसीह येशु शिष्यों को देखकर बोले, “क्यों इतने भयभीत हो तुम? क्या कारण है कि तुममें अब तक विश्वास नहीं?”
41 शिष्य अत्यन्त भयभीत थे. वे आपस में कहने लगे, “कौन है यह कि बवण्डर और झील[a] तक इनका आज्ञापालन करते हैं!”
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