Book of Common Prayer
रोमी राज्यपाल के सामने पौलॉस का भाषण
10 राज्यपाल फ़ेलिक्स की ओर से संकेत प्राप्त होने पर पौलॉस ने इसके उत्तर में कहना प्रारम्भ किया. “इस बात के प्रकाश में कि आप इस राष्ट्र के न्यायाधीश रहे हैं, मैं खुशी से अपना बचाव प्रस्तुत कर रहा हूँ. 11 आप इस सच्चाई की पुष्टि कर सकते हैं कि मैं लगभग बारह दिन पहले सिर्फ आराधना के उद्धेश्य से येरूशालेम गया 12 और इन्होंने न तो मुझे मन्दिर में, न यहूदी आराधनालय में और न नगर में किसी से वाद-विवाद करते या नगर की शान्ति भंग करते पाया है और 13 न वे मुझ पर लगाए जा रहे इन आरोपों को साबित ही कर सकते हैं. 14 हाँ यह मैं आपके सामने अवश्य स्वीकार करता हूँ कि इस मत के अनुसार, जिसे इन्होंने पन्थ नाम दिया है, मैं वास्तव में हमारे पूर्वजों के ही परमेश्वर की सेवा-उपासना करता हूँ. सब कुछ, जो व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों के अनुसार है, मैं उसमें पूरी तरह विश्वास करता हूँ. 15 परमेश्वर में मेरी भी वह आशा है जैसी इनकी कि निश्चित ही एक ऐसा दिन तय किया गया है, जिसमें धर्मियों तथा अधर्मियों दोनों ही का पुनरुत्थान होगा. 16 इसी नज़रिए से मैं भी परमेश्वर और मनुष्यों दोनों ही के सामने हमेशा एक निष्कलंक विवेक बनाए रखने की भरपूर कोशिश करता हूँ.
17 “अनेक वर्षों के बीत जाने के बाद मैं गरीबों के लिए सहायता राशि लेकर तथा बलि चढ़ाने के उद्धेश्य से येरूशालेम आया था. 18 उसी समय इन्होंने मन्दिर में मुझे शुद्ध होने की रीति पूरी करते हुए देखा. वहाँ न कोई भीड़ थी और न ही किसी प्रकार का शोर. 19 हाँ, उस समय वहाँ आसिया प्रदेश के कुछ यहूदी अवश्य थे, जिनका यहाँ आपके सामने उपस्थित होना सही था. यदि उन्हें मेरे विरोध में कुछ कहना ही था तो सही यही था कि वे इसे आपकी उपस्थिति में कहते. 20 अन्यथा ये व्यक्ति, जो यहाँ खड़े हैं, स्वयं बताएं कि महासभा के सामने उन्होंने मुझे किस विषय में दोषी पाया है, 21 केवल इस एक बात को छोड़ के, जो मैंने उनके सामने ऊँचे शब्द में व्यक्त किया: ‘मरे हुओं के पुनरुत्थान में मेरी मान्यता के कारण आज आपके सामने मुझ पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है.’”
12 तब फिर मसीह येशु ने अपने न्योता देनेवाले से कहा, “जब तुम दिन या रात के भोजन पर किसी को आमन्त्रित करो तो अपने मित्रों, भाई-बन्धुओं, परिजनों या धनवान पड़ोसियों को आमन्त्रित मत करो; ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें आमन्त्रित करें और तुम्हें बदला मिल जाए. 13 किन्तु जब तुम भोज का आयोजन करो तो निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों तथा अंधों को आमन्त्रित करो. 14 तब तुम परमेश्वर की कृपा के भागी बनोगे. वे लोग तुम्हारा बदला नहीं चुका सकते. बदला तुम्हें धर्मियों के दोबारा जी उठने के अवसर पर प्राप्त होगा.”
महोत्सव के आमन्त्रण का दृष्टान्त
15 यह सुन वहाँ आमन्त्रितों में से एक ने मसीह येशु से कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य के भोज में सम्मिलित होगा.”
16 यह सुन मसीह येशु ने कहा, “किसी व्यक्ति ने एक बड़ा भोज का आयोजन किया और अनेकों को आमन्त्रित किया. 17 भोज तैयार होने पर उसने अपने सेवकों को इस सूचना के साथ आमन्त्रितों के पास भेजा, ‘आ जाइए, सब कुछ तैयार है.’
18 “किन्तु वे सभी बहाने बनाने लगे. एक ने कहा, ‘मैंने भूमि मोल ली है और आवश्यक है कि मैं जा कर उसका निरीक्षण करूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’
19 “दूसरे ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं और मैं उन्हें परखने के लिए बस निकल ही रहा हूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’
20 “एक और अन्य ने कहा, ‘अभी, इसी समय मेरा विवाह हुआ है इसलिए मेरा आना सम्भव नहीं.’
21 “सेवक ने लौट कर अपने स्वामी को यह सूचना दे दी. अत्यन्त गुस्से में घर के स्वामी ने सेवक को आज्ञा दी, ‘तुरन्त नगर की गलियों-चौराहों में जाओ और निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों और अंधों को ले आओ.’
22 “सेवक ने लौट कर सूचना दी, ‘स्वामी, आपके आदेशानुसार काम पूरा हो चुका है किन्तु अब भी कुछ जगह खाली है.’
23 “तब घर के स्वामी ने उसे आज्ञा दी, ‘अब नगर के बाहर के मार्गों से लोगों को यहाँ आने के लिए विवश करो कि मेरा भवन भर जाए. 24 यह निश्चित है कि वे, जिन्हें आमन्त्रित किया गया था, उनमें से एक भी मेरे भोज को चख न सकेगा.’”
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