Book of Common Prayer
24 अपोल्लॉस नामक एक यहूदी व्यक्ति थे, जिनका जन्म अलेक्सान्द्रिया नगर में हुआ था. वह इफ़ेसॉस नगर आए. वह प्रभावशाली वक्ता और पवित्रशास्त्र के बड़े ज्ञानी थे 25 किन्तु उन्हें प्रभु के मार्ग की मात्र ज़ुबानी शिक्षा दी गई थी. वह अत्यन्त उत्साही स्वभाव के थे तथा मसीह येशु के विषय में उनकी शिक्षा सटीक थी किन्तु उनका ज्ञान मात्र योहन के बपतिस्मा तक ही सीमित था. 26 अपोल्लॉस निडरता से यहूदी आराधनालय में प्रवचन देने लगे किन्तु जब प्रिस्का और अकुलॉस ने उनका प्रवचन सुना तो वे उन्हें अलग ले गए और वहाँ उन्होंने अपोल्लॉस को परमेश्वर के शिक्षा सिद्धान्त की सच्चाई को और अधिक साफ़ रीति से समझाया.
27 जब अपोल्लॉस ने आख़ेया प्रदेश के आगे जाने की इच्छा व्यक्त की तो शिष्यों ने उन्हें प्रोत्साहित किया तथा आख़ेया प्रदेश के शिष्यों को पत्र लिख कर विनती की कि वे उन्हें स्वीकार करें. इसलिए जब अपोल्लॉस वहाँ पहुँचे, उन्होंने उन शिष्यों का बहुत प्रोत्साहन किया, जिन्होंने अनुग्रह द्वारा विश्वास किया था 28 क्योंकि वह सार्वजनिक रूप से यहूदियों का खण्डन करते और पवित्रशास्त्र के आधार पर प्रमाणित करते थे कि येशु ही वह मसीह हैं.
इफ़ेसॉस नगर में योहन के शिष्य
19 जब अपोल्लॉस कोरिन्थॉस नगर में थे तब पौलॉस दूरवर्तीय प्रदेशों से होते हुए इफ़ेसॉस नगर आए और उनकी भेंट कुछ शिष्यों से हुई. 2 पौलॉस ने उनसे प्रश्न किया, “क्या विश्वास करते समय तुमने पवित्रात्मा प्राप्त किया था?”
उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं. हमने तो यह सुना तक नहीं कि पवित्रात्मा भी कुछ होता है.”
3 तब पौलॉस ने प्रश्न किया, “तो तुमने बपतिस्मा कौनसा लिया था?”
उन्होंने उत्तर दिया, “योहन का.”
4 तब पौलॉस ने उन्हें समझाया, “योहन का बपतिस्मा मात्र पश्चाताप का बपतिस्मा था. बपतिस्मा देते हुए योहन यह कहते थे कि लोग विश्वास उनमें करें, जो उनके बाद आ रहे थे अर्थात् मसीह येशु.” 5 जब उन शिष्यों को यह समझ में आया तो उन्होंने प्रभु मसीह येशु के नाम में बपतिस्मा लिया. 6 जब पौलॉस ने उनके ऊपर हाथ रखे, उन पर पवित्रात्मा उतरा और वे अन्य भाषाओं में बातचीत और भविष्यवाणी करने लगे. 7 ये लगभग बारह व्यक्ति थे.
सर्वोपरि आज्ञा
25 एक अवसर पर एक वकील ने मसीह येशु को परखने के उद्देश्य से उनके सामने यह प्रश्न रखा: “गुरुवर, अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मैं क्या करूँ?”
26 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “व्यवस्था में क्या लिखा है, इसके विषय में तुम्हारा विश्लेषण क्या है?”
27 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “‘प्रभु, अपने परमेश्वर से अपने सारे हृदय, अपने सारे प्राण, अपनी सारी शक्ति तथा अपनी सारी समझ से प्रेम करो तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम’.”
28 मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हारा उत्तर बिलकुल सही है. यही करने से तुम जीवित रहोगे.”
29 स्वयं को संगत प्रमाणित करने के उद्देश्य से उसने मसीह येशु से प्रश्न किया, “तो यह बताइए कौन है मेरा पड़ोसी?”
30 मसीह येशु ने उत्तर दिया. “येरूशालेम नगर से एक व्यक्ति येरीख़ो नगर जा रहा था कि डाकुओं ने उसे घेर लिया, उसके वस्त्र छीन लिए, उसकी पिटाई की और उसे अधमरी हालत में छोड़ कर भाग गए. 31 संयोग से एक याजक उसी मार्ग से जा रहा था. जब उसने उस व्यक्ति को देखा, वह मार्ग के दूसरी ओर से आगे बढ़ गया. 32 इसी प्रकार एक लेवी भी उसी स्थान पर आया, उसकी दृष्टि उस पर पड़ी तो वह भी दूसरी ओर से होता हुआ चला गया. 33 एक शोमरोनी भी उसी मार्ग से यात्रा करते हुए उस जगह पर आ पहुँचा. जब उसकी दृष्टि उस घायल व्यक्ति पर पड़ी, वह दया से भर गया. 34 वह उसके पास गया और उसके घावों पर तेल और दाखरस लगा कर पट्टी बांधी. तब वह घायल व्यक्ति को अपने वाहक पशु पर बैठा कर एक यात्री निवास में ले गया तथा उसकी सेवा टहल की. 35 अगले दिन उसने दो दीनार यात्री निवास के स्वामी को देते हुए कहा, ‘इस व्यक्ति की सेवा टहल कीजिए. इसके अतिरिक्त जो भी व्यय होगा वह मैं लौटने पर चुका दूँगा.’
36 “यह बताओ तुम्हारे विचार से इन तीनों व्यक्तियों में से कौन उन डाकुओं द्वारा घायल व्यक्ति का पड़ोसी है?”
37 वकील ने उत्तर दिया, “वही, जिसने उसके प्रति करुणाभाव का परिचय दिया.” मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, तुम्हारा स्वभाव भी ऐसा ही हो.”
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