Book of Common Prayer
13 इसलिए वह, जो अन्य भाषा में बातें करता है, प्रार्थना करे कि उसे उसका वर्णन तथा अनुवाद करने की क्षमता भी प्राप्त हो जाए. 14 जब मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करता हूँ तो मेरी अन्तरात्मा तो प्रार्थना करती रहती है किन्तु मेरा मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है, 15 तो सही क्या है? यही न कि मैं अन्तरात्मा से प्रार्थना करूँ और समझ से भी. मैं अन्तरात्मा से गाऊँगा और समझ से भी गाऊँगा. 16 यदि तुम सिर्फ अन्तरात्मा में स्तुति करते हो तो वहाँ उपस्थित अनजान व्यक्ति तुम्हारे धन्यवाद के अन्त में “आमेन” कैसे कहेगा क्योंकि उसे तो यह मालूम ही नहीं कि तुम कह क्या रहे हो? 17 निस्सन्देह तुमने तो सुन्दर रीति से धन्यवाद प्रकट किया किन्तु इससे उस व्यक्ति का कुछ भी भला नहीं हुआ.
18 मैं परमेश्वर का आभारी हूँ कि मैं तुम सबसे अधिक अन्य भाषाओं में बातें करता हूँ. 19 फिर भी कलीसिया सभा में शिक्षा देने के उद्धेश्य से मैं सोच-समझ कर मात्र पाँच शब्द ही कहना सही समझता हूँ इसकी बजाय कि मैं अन्य भाषा के दस हज़ार शब्द कहूँ.
20 प्रियजन, तुम्हारी समझ बालकों-सी नहीं, सयानों की-सी हो. तुम सिर्फ बुराई के लिए बालक बने रहो. 21 पवित्रशास्त्र का लेख है:
मैं अन्य भाषा बोलनेवालों तथा
अनजान लोगों के मुख से
अपनी प्रजा से बातें करूँगा;
फिर भी वे मेरी न सुनेंगे;
यह प्रभु का वचन है.
22 इसलिए अन्य भाषाओं में बातें करना विश्वासियों के लिए नहीं परन्तु अविश्वासियों के लिए चिह्न का रूप है किन्तु भविष्यवाणी करना अविश्वासियों के लिए नहीं परन्तु मसीह के विश्वासियों के लिए चिह्न स्वरूप है. 23 यदि सारी कलीसिया इकट्ठा हो और हरेक व्यक्ति अन्य भाषा में बातें करने लगे और उसी समय वहाँ ऐसे व्यक्ति प्रवेश करें, जो ये भाषाएँ नहीं समझते या अविश्वासी हैं, तो क्या वे तुम्हें पागल न समझेंगे? 24 किन्तु यदि सभी भविष्यवाणी करें और वहाँ कोई ऐसा व्यक्ति प्रवेश करे, जिसे यह क्षमता प्राप्त न हो, या वहाँ कोई अविश्वासी प्रवेश करे तो उसे अपनी पाप की अवस्था का अहसास हो जाएगा, वह अपने विवेक को टटोलेगा 25 और उसके हृदय के भेद खुल जाएँगे. तब वह यह घोषणा करते हुए कि निश्चय ही परमेश्वर तुम्हारे बीच मौजूद हैं, दण्डवत् हो परमेश्वर की वन्दना करने लगेगा.
24 “शिष्य अपने गुरु से श्रेष्ठ नहीं और न दास अपने स्वामी से. 25 शिष्य के पक्ष में यही काफी है कि वह अपने गुरु के तुल्य हो जाए तथा दास अपने स्वामी के. यदि उन्होंने परिवार के प्रधान को ही शैतान घोषित कर दिया तो उस परिवार के सदस्यों को क्या कुछ न कहा जाएगा!
26 “इसलिए उनसे भयभीत न होना क्योंकि ऐसा कुछ भी छुपा नहीं, जिसे खोला न जाएगा या ऐसा कोई रहस्य नहीं, जिसे प्रकट न किया जाएगा. 27 मैं जो कुछ तुम पर अन्धकार में प्रकट कर रहा हूँ, उसे प्रकाश में स्पष्ट करो और जो कुछ तुमसे कान में कहा गया है, उसकी घोषणा हर जगह करो. 28 उनसे भयभीत न हो, जो शरीर को तो नाश कर सकते हैं किन्तु आत्मा को नाश करने में असमर्थ हैं. सही तो यह है कि भयभीत उनसे हो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नर्क में नाश करने में समर्थ हैं. 29 क्या दो गौरैयाँ बहुत सस्ती नहीं बिकतीं? फिर भी ऐसा नहीं कि यदि उनमें से एक भी भूमि पर गिर जाए और तुम्हारे पिता को उसके विषय में मालूम न हो. 30 तुम्हारे सिर का तो एक-एक बाल गिना हुआ है. 31 इसलिए भयभीत न हो. तुम्हारा दाम अनेक गौरैयों से कहीं अधिक है.
32 “जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करता है, मैं भी उसे अपने स्वर्गीय पिता के सामने स्वीकार करूँगा 33 किन्तु जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करता है, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने अस्वीकार करूँगा.
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