Book of Common Prayer
पौलॉस के कष्ट
3 हमारा स्वभाव किसी के लिए किसी भी क्षेत्र में बाधा नहीं बनता कि हमारी सेवकाई पर दोष न हो. 4 इसलिए हम हर एक परिस्थिति में स्वयं को परमेश्वर के सुयोग्य सेवक के समान प्रस्तुत करते हैं: धीरज से पीड़ा सहने में, दरिद्रता में, कष्ट में, 5 सताहट में, जेल में, उपद्रव में, अधिक परिश्रम में, अपर्याप्त नींद में, उपवास में, 6 शुद्धता में, ज्ञान में, धीरज में, सहृदयता में, पवित्रता के भाव में, निश्छल प्रेम में, 7 सच के सन्देश में, परमेश्वर के सामर्थ्य में, वार तथा बचाव दोनों ही पक्षों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता के शस्त्रों से सुसज्जित, 8 आदर-निरादर में और निन्दा-प्रशंसा में; हमें भरमानेवाला समझा जाता है, जबकि हम सत्यवादी हैं; 9 हम तुच्छ समझे जाते हैं फिर भी प्रसिद्ध हैं; हम मरे हुए समझे जाते हैं किन्तु देखो! हम जीवित हैं! हमें दण्ड तो दिया जाता है किन्तु हमारे प्राण नहीं लिए जा सके. 10 हम कष्ट में भी आनन्दित रहते हैं. हालांकि हम स्वयं तो कंगाल हैं किन्तु बाकियों को धनवान बना देते हैं. हमारी निर्धनता में हम धनवान हैं.
11 कोरिन्थवासियो! हमने पूरी सच्चाई में तुम पर सच प्रकट किया है—हमने तुम्हारे सामने अपना हृदय खोल कर रख दिया है. 12 हमने तुम पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई; रोक-टोक स्वयं तुमने ही अपने मनों पर लगाई है. 13 तुम्हें अपने बालक समझते हुए मैं तुमसे कह रहा हूँ: तुम भी अपने हृदय हमारे सामने खोल कर रख दो.
विश्वासियों और अविश्वासियों में मेल-जोल असम्भव
14 अविश्वासियों के साथ असमान सम्बन्ध में न जुड़ो. धार्मिकता तथा अधार्मिकता में कैसा मेलजोल या ज्योति और अंधकार में कैसा सम्बन्ध? 15 मसीह और शैतान में कैसा मेल या विश्वासी और अविश्वासी में क्या सहभागिता? 16 या परमेश्वर के मन्दिर तथा मूर्तियों में कैसी सहमति? हम जीवित परमेश्वर के मन्दिर हैं. जैसा कि परमेश्वर का कहना है:
मैं उनमें वास करूँगा,
उनके बीच चला फिरा करूँगा,
मैं उनका परमेश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा.
17 इसलिए
उनके बीच से निकल आओ
और अलग हो जाओ.
यह प्रभु की आज्ञा है
उसका स्पर्श न करो, जो अशुद्ध है तो मैं तुम्हें स्वीकार करूँगा.
18 मैं तुम्हारा पिता होऊँगा
और तुम मेरी सन्तान.
यही है सर्वशक्तिमान प्रभु का कहना.
7 इसलिए प्रियजन, जब हमसे ये प्रतिज्ञाएँ की गई हैं तो हम परमेश्वर के प्रति श्रद्धा के कारण, स्वयं को शरीर और आत्मा की हर एक मलिनता से शुद्ध करते हुए पवित्रता को सिद्ध करें.
एक अकेला आभारी कोढ़ रोगी
11 येरूशालेम नगर की ओर बढ़ते हुए मसीह येशु शोमरोन और गलील प्रदेश के बीच से होते हुए जा रहे थे. 12 जब वह गाँव में प्रवेश कर ही रहे थे, उनकी भेंट दस कोढ़ रोगियों से हुई, जो दूर ही खड़े रहे. 13 उन्होंने दूर ही से पुकारते हुए मसीह येशु से कहा, “स्वामी! मसीह येशु! हम पर कृपा कीजिए!” 14 उन्हें देख मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जा कर पुरोहितों द्वारा स्वयं का निरीक्षण करवाओ.” जब वे जा ही रहे थे, वे शुद्ध हो गए. 15 उनमें से एक, यह अहसास होते ही कि वह शुद्ध हो गया है, मसीह येशु के पास लौट आया और ऊँचे शब्द में परमेश्वर की वंदना करने लगा. 16 मसीह येशु के चरणों पर गिर कर उसने उनके प्रति धन्यवाद प्रकट किया—वह शोमरोनवासी था. 17 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या सभी दस शुद्ध नहीं हुए? कहाँ हैं वे अन्य नौ? 18 क्या इस परदेशी के अतिरिक्त किसी अन्य ने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करना सही न समझा?” 19 तब मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो और जाओ. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें हर तरह से स्वस्थ किया है.”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.