Book of Common Prayer
28 जब ओमन परमेसर के गियान म बने रहना उचित नइं समझिन, त परमेसर ह ओमन ला एक नीच मानसिकता म छोंड़ दीस ताकि ओमन अनुचित चाल चलंय। 29 ओमन जम्मो किसम के दुस्टता, बुरई, लोभ अऊ नीचता ले भर गे हवंय। ओमन जलन, हतिया, झगरा, छल अऊ दुरभाव ले भरे हवंय। ओमन बकवादी, 30 बदनाम करइया, परमेसर ले घिन करइया, बेजत्ती करइया, घमंडी अऊ डींगमार अंय। ओमन खराप काम करे के उपाय खोजथें। ओमन अपन दाई-ददा के बात नइं मानंय। 31 ओमन मुरुख, बिगर बिसवास के, बिगर मया के अऊ निरदयी अंय।
32 हालाकि ओमन परमेसर के ए फैसला ला जानत हवंय कि जऊन मन अइसने कुकरम करथें, ओमन मिरतू के भागी होहीं, तभो ले ओमन न सिरिप खुदे अइसने काम करथें, पर अइसने काम करइयामन ले ओमन खुस होथें।
परमेसर के नियाय
2 एकरसेति, हे आने ऊपर दोस लगइया मनखे, तेंह चाहे कोनो होवस, तोर करा कोनो बहाना नइं ए। आने ऊपर दोस लगाय के दुवारा, तेंह अपनआप ला दोसी ठहिराथस, काबरकि तेंह आने ऊपर दोस लगाथस अऊ ओहीच गलती तेंह खुदे करथस। 2 हमन जानथन कि जऊन मन अइसने काम करथें, ओमन के बिरोध म परमेसर के नियाय ह सच्चई के आधार म होथे। 3 जब तेंह एक मनखे होके, ओमन के ऊपर दोस लगाथस अऊ ओहीच काम खुदे करथस, त का तेंह परमेसर के नियाय ले बच जाबे? 4 का तेंह परमेसर के दया, सहनसीलता अऊ धीरज ला तुछ समझथस? का तेंह ए नइं जानस कि परमेसर के दया ह तोला पछताप करे बर सिखोथे?
5 पर तेंह ढीठ अऊ कठोर हो गे हवस अऊ एकर कारन ले परमेसर के कोरोध के दिन बर, जब ओकर सही नियाय ह परगट होही, तेंह अपन बिरोध म कोरोध बटोरत हवस। 6 परमेसर ह हर एक मनखे ला ओकर काम के मुताबिक फर दिही। 7 जऊन मन धीरज धरके बने काम करथें अऊ महिमा, आदर अऊ अमरता के खोज म रहिथें, ओमन ला ओह सदाकाल के जिनगी दिही। 8 पर जऊन मन सुवारथी अंय अऊ सच्चई ला नइं मानंय, पर बुरई के पाछू चलथें, ओमन ऊपर परमेसर के कोप अऊ कोरोध ह भड़कही। 9 हर एक मनखे जऊन ह खराप काम करथे, ओकर ऊपर दुःख अऊ बिपत्ती आही: पहिली यहूदी तब फेर आनजात ऊपर। 10 पर जऊन ह भलई करथे, ओला महिमा, आदर अऊ सांति मिलही: पहिली यहूदी ला, तब फेर आनजात ला। 11 काबरकि परमेसर ह काकरो पखियपात नइं करय।
स्वरग के राज म सबले बड़े कोन ए
(मरकुस 9:33-37; लूका 9:46-48)
18 ओ समय चेलामन यीसू करा आईन अऊ पुछिन, “स्वरग के राज म सबले बड़े कोन ए?” 2 यीसू ह एक छोटे लइका ला बलाईस अऊ ओला ओमन के बीच म ठाढ़ करके कहिस, 3 “मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जब तक तुमन नइं बदलव अऊ लइकामन सहीं नइं बनव, तब तक तुमन स्वरग के राज म जाय नइं सकव। 4 एकरसेति जऊन ह अपन-आप ला ए लइका के सहीं नम्र करथे, ओह स्वरग के राज म सबले बड़े अय। 5 अऊ जऊन ह मोर नांव म अइसने छोटे लइका ला गरहन करथे, ओह मोला गरहन करथे।
6 पर जऊन ह मोर ऊपर बिसवास करइया ए छोटे मन ले कोनो ला पाप म गिराथे, त ओकर बर बने होतिस कि ओकर टोंटा म चकिया के एक बड़े पथरा ला बांधे जातिस अऊ ओला गहिरा समुंदर म डुबो दिये जातिस। 7 संसार ला ओ चीजमन बर धिक्कार अय, जऊन मन मनखेमन ला पाप म गिराथें। अइसने चीजमन के अवई जरूरी अय। पर धिक्कार अय ओ मनखे ला, जेकर दुवारा ए चीजमन आथें। 8 यदि तुम्हर हांथ या तुम्हर गोड़ ह तुम्हर पाप म गिरे के कारन बनथे, त ओला काटके फटिक दव। तुम्हर बर एह बने अय कि तुमन लूलवा या खोरवा होके, जिनगी म परवेस करव, एकर बनिसपत कि दूनों हांथ या दूनों गोड़ के रहत, तुमन ला सदाकाल के आगी म डार दिये जावय। 9 अऊ यदि तुम्हर आंखी ह तुम्हर पाप म गिरे के कारन बनथे, त ओला निकारके फटिक दव। तुम्हर बर एह बने अय कि तुमन एक आंखी के कनवां होके जिनगी म परवेस करव, एकर बनिसपत कि दूनों आंखी के रहत तुमन ला नरक के आगी म डार दिये जावय।”
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