Book of Common Prayer
15 जऊन बेपारीमन ए चीजमन ला बेंचके बाबूल सहर ले धन कमाय रिहिन, ओमन ओकर पीरा ले डरके दूरिहा म ठाढ़ होहीं। ओमन रोहीं अऊ सोक मनाहीं; 16 अऊ ए कहिहीं:
‘हे महान सहर! हाय! तोर ऊपर हाय!
तेंह सुन्दर मलमल, बैंजनी अऊ लाल कपड़ा पहिरे रहय
अऊ सोन, कीमती पथरा अऊ मोती ले सजे रहय!
17 एकेच घंटा म ए जम्मो धन ह नास हो गीस!’
पानी जहाज के हर कप्तान, पानी जहाज म हर यातरा करइया, हर डोंगा खेवइया अऊ हर ओ मनखे, जऊन ह समुंदर ले अपन जिनगी चलाथे, ए जम्मो के जम्मो दूरिहा म ठाढ़े रहिहीं। 18 जब ओमन ओकर जरे के धुआं ला देखहीं, त ओमन चिचियाके कहिहीं, ‘का ए महान सहर सहीं कभू कोनो सहर रिहिस?’ 19 ओमन अपन मुड़ी ऊपर धूर्रा ला डारहीं, अऊ रोवत अऊ कलपत ओमन चिचिया-चिचियाके कहिहीं:
‘हे महान सहर! हाय! तोर ऊपर हाय!
एह ओ सहर ए,
जेकर धन के जरिये समुंदर के जम्मो जहाज के मालिकमन धनी हो गीन।
एकेच घंटा म, ओह नास हो गीस।’
20 हे स्वरग म रहइयामन अऊ पबितर मनखे अऊ प्रेरित अऊ अगमजानीमन!
ओकर बिनास ऊपर आनंद मनावव।
ओह तुम्हर संग जइसने बरताव करे रिहिस,
परमेसर ह ओला ओकर सजा दे हवय।”
21 तब एक सक्तिसाली स्वरगदूत ह चक्की के एक बड़े पाट सहीं पथरा ला उठाईस अऊ ए कहत ओला समुंदर म फटिक दीस:
“महान सहर बाबूल ह अइसने बेरहमी ले फटिक दिये जाही,
अऊ ओकर फेर कभू पता नइं चलही।
22 बीना बजइया, अऊ संगीतकार,
बांसुरी बजइया अऊ तुरही बजइया मन के अवाज,
ए सहर म फेर कभू सुनई नइं पड़ही। कोनो काम के कोनो घलो कारीगर,
ए सहर म फेर कभू नइं मिलही।
चक्की चले के अवाज,
ए सहर म फेर कभू सुनई नइं पड़ही।
23 दीया के अंजोर, ए सहर म फेर कभू नइं चमकही।
दूल्हा अऊ दुल्हिन के अवाज,
ए सहर म फेर कभू सुनई नइं पड़ही।
ए सहर के बेपारीमन संसार के बड़े मनखे रिहिन।
ए सहर ह अपन जादू के दुवारा जम्मो देस के मनखेमन ला बहकाय रिहिस।
24 ए सहर म अगमजानी अऊ पबितर मनखे मन के लहू पाय गीस,
अऊ धरती ऊपर जऊन मनखेमन मार डारे गीन, ओमन के लहू घलो ए सहर म पाय गीस।”
12 तब यीसू ह अपन नेवता देवइया ला कहिस, “जब तेंह मंझन या रतिहा कोनो भोज देथस, त अपन संगवारी या अपन भाई या अपन रिस्तेदार या अपन धनी पड़ोसी मन ला झन नेवता दे; यदि तेंह ओमन ला नेवता देथस, त ओमन घलो बदले म तोला नेवता दे सकथें, अऊ ए किसम ले जऊन कुछू तेंह करे हवस, ओकर भरपई हो जाही। 13 पर जब तेंह कोनो भोज देथस, त गरीब, अपंग, खोरवा अऊ अंधरामन ला बलाय कर। 14 तब परमेसर ह तोला आसिस दिही। हालाकि ओमन बदले म तोला कुछू नइं दे सकंय, पर तोला एकर परतिफल ओ समय मिलही, जब धरमी मनखेमन फेर जी उठहीं।”
बड़े भोज के पटंतर
(मत्ती 22:1-10)
15 जऊन मन यीसू के संग खाय बर बईठे रिहिन, ओम ले एक झन जब एला सुनिस, त ओह यीसू ले कहिस, “धइन ए ओ मनखे जऊन ह ओ भोज म खाही, जऊन ह परमेसर के राज म होही।”
16 यीसू ह ओला कहिस, “एक बार एक मनखे ह एक बड़े भोज करिस, अऊ बहुंत मनखेमन ला नेवता दीस। 17 जब भोज ह तियार हो गीस, त ओह अपन सेवक ला नेवताहारीमन करा ए कहे बर पठोईस, ‘आवव, जम्मो चीज तियार हो गे हवय।’
18 पर ओमन जम्मो झन बहाना करे लगिन। पहिली मनखे ह ओ सेवक ला कहिस, ‘मेंह अभी एक ठन खेत बिसोय हवंव, अऊ मोर उहां जाना अऊ ओला देखना जरूरी ए। मेंह तोर ले बिनती करत हंव कि मोला माफ कर दे।’
19 आने झन ह कहिस, ‘मेंह अभी पांच जोड़ी बइला बिसोय हवंव, अऊ मेंह ओमन ला परखे बर जावत हंव। मेंह तोर ले बिनती करत हंव कि मोला माफ कर दे।’
20 अऊ एक झन ह कहिस, ‘मेंह अभी बिहाव करे हवंव, एकरसेति मेंह नइं आ सकंव।’
21 ओ सेवक ह वापिस आईस अऊ ए बात अपन मालिक ला बताईस। तब घर के मालिक ह गुस्सा होईस अऊ अपन सेवक ला हुकूम दीस, ‘सहर के सड़क अऊ गली मन म तुरते जा अऊ गरीब, अपंग, अंधरा अऊ खोरवामन ला ले आ।’
22 ओ सेवक ह कहिस, ‘हे मालिक, जइसने तेंह कहे रहय, वइसने करे गे हवय, पर तभो ले जगह खाली हवय।’
23 तब मालिक ह अपन सेवक ला कहिस, ‘बाहिर सड़क अऊ गांव तरफ के गलीमन म जा अऊ कइसने करके मनखेमन ला ले आ, ताकि मोर घर ह भर जावय। 24 मेंह तोला कहत हंव कि ओ नेवताहारी मनखेमन ले एको झन घलो मोर भोज के सुवाद ला चखे नइं पाहीं।’ ”
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