Book of Common Prayer
परमेश्वर की न्यायसंगतता [a]का प्रकाशन
21 किन्तु अब स्थिति यह है कि व्यवस्था के बिना ही परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट हो गई है, जिसका वर्णन पवित्रशास्त्र तथा भविष्यद्वक्ता करते रहे थे 22 अर्थात् मसीह येशु में विश्वास द्वारा उपलब्ध परमेश्वर की धार्मिकता, जो उन सब के लिए है, जो मसीह येशु में विश्वास करते हैं, क्योंकि कोई भेद नहीं 23 क्योंकि पाप सभी ने किया है और सभी परमेश्वर की महिमा से दूर हो गए है 24 किन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से पाप के छुटकारे द्वारा, हरेक उस सेंत-मेंत छुटकारे में धर्मी घोषित किया जाता है, जो मसीह येशु में है. 25 मसीह येशु, जिन्हें परमेश्वर ने उनके लहू में विश्वास द्वारा प्रायश्चित-बलि के रूप में सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया. इसमें उनका विश्वास था अपनी ही धार्मिकता का सबूत देना क्योंकि वह अपनी सहनशीलता के कारण पूर्व युगों में किए गए पाप-दण्ड को इसलिए टालते रहे 26 कि वह इस वर्तमान युग में अपनी धार्मिकता प्रकट करें कि वह स्वयं को तथा उसे धर्मी घोषित करें, जिसका विश्वास मसीह येशु में है.
विश्वास का परिणाम
27 तब हमारे घमण्ड़ का क्या हुआ? उसका बहिष्कार कर दिया गया है. किस सिद्धान्त के द्वारा? कामों के सिद्धान्त के द्वारा? नहीं! यह हुआ है विश्वास की व्यवस्था द्वारा. 28 हमारी मान्यता यह है: मनुष्य व्यवस्था का सिर्फ पालन करने के द्वारा नहीं परन्तु अपने विश्वास द्वारा धर्मी घोषित किया जाता है. 29 क्या कही परमेश्वर सिर्फ यहूदियों ही के परमेश्वर हैं? क्या वह अन्यजातियों के परमेश्वर नहीं? निःसन्देह, वह उनके भी परमेश्वर हैं; 30 क्योंकि परमेश्वर एक हैं. वही ख़तना किये हुओं तथा ख़तना रहित दोनों को उनके विश्वास के द्वारा धर्मी घोषित करेंगे. 31 तो क्या हमारा विश्वास व्यवस्था को व्यर्थ ठहराता है? नहीं! बिलकुल नहीं! इसके विपरीत अपने विश्वास के द्वारा हम व्यवस्था को स्थिर करते हैं.
येशु तथा बालक
(मारक 10:13-16; लूकॉ 18:15-17)
13 कुछ लोग बालकों को येशु के पास लाए कि येशु उन पर हाथ रख कर उनके लिए प्रार्थना करें, मगर शिष्यों ने उन लोगों को डाँटा.
14 यह सुन येशु ने उनसे कहा, “बालकों को यहाँ आने दो, उन्हें मेरे पास आने से मत रोको क्योंकि स्वर्ग-राज्य ऐसों का ही है”. 15 यह कहते हुए येशु ने बालकों पर हाथ रखे. इसके बाद येशु वहाँ से आगे चले गए.
अनन्त जीवन का अभिलाषी धनी युवक
(मारक 10:17-31; लूकॉ 18:18-30)
16 एक व्यक्ति ने आ कर येशु से प्रश्न किया, “गुरुवर, अनन्त काल का जीवन प्राप्त करने के लिए मैं कौन सा अच्छा काम करूँ?” येशु ने उसे उत्तर दिया.
17 “तुम मुझसे क्यों पूछते हो कि अच्छा क्या है? उत्तम तो मात्र एक ही हैं. परन्तु यदि तुम जीवन में प्रवेश की कामना करते ही हो तो आदेशों का पालन करो.”
18 “कौन से?” उसने येशु से प्रश्न किया.
उन्होंने उसे उत्तर दिया, “हत्या मत करो; व्यभिचार मत करो; चोरी मत करो; झूठी गवाही मत दो; 19 अपने माता-पिता का सम्मान करो तथा तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से करते हो.”
20 उस युवक ने येशु को उत्तर दिया, “मैं तो इनका पालन करता रहा हूँ; तब अब भी क्या कमी है मुझ में?”
21 येशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि तुम सिद्ध बनना चाहते हो तो अपनी सम्पत्ति को बेच कर उस राशि को निर्धनों में वितरित कर दो और आओ, मेरे पीछे हो लो—धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा.”
22 यह सुन कर वह युवक दुःखित हो लौट गया क्योंकि वह बहुत धन का स्वामी था.
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